शिल्पा की सास ने अपने पोते की मिर्च से, झाडू से, चप्पल से और न जाने कौन-कौन सी सी चीज़ से नजर उतारी...लेकिन पोते का बुखार था कि उतर ही नहीं रहा था... उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब पोते की नजर कौन सी चीज से उतारे??
आज मेरे बेटे प्रतिक का पहला जन्मदिन था। तंदुरुस्त, गोल-मटोल, प्यारा सा प्रतिक सभी के आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। सभी लोग उसकी तारीफ कर रहे थे। मिसेस चांडक प्रतिक की मासुमियम, उसकी तुतलाती हुई मीठी बोली और खूबसूरती के गुणगान करने लगी, ''बहुत प्यारा बच्चा हैं। टी.व्ही. पर सीरियलों और विज्ञापनों में जो प्यारे से बच्चे दिखाते हैं न बिल्कुल वैसा। यदि हमारे प्रतिक को चांस मिले तो यह भी टी.व्ही. पर धूम मचा दे!'' अपने बच्चे की तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती? सुन कर मुझे और मेरे पूरे परिवार को बहुत अच्छा लगा।
रात दस बजे तक सभी मेहमान चले गए।
प्रतिक थोड़ा सा थका-थका सा लगने लगा। मुझे लगा कि इतने लोगों के बीच में शायद उसे भी थकान महसूस होने लगी होगी। मैं उसे सुलाने के लिए कमरे में लेकर जाने लगी तो जैसे ही मैं ने उसे गोद में उठाया तो देखा कि उसका बदन तो बुखार से तप रहा हैं। कमरे जाते-जाते ही मैं ने मम्मी जी से कहा कि प्रतिक को तेज बुखार हो गया हैं। थर्मामिटर लगा कर देखा तो 104 डिग्री बुखार! मुझे खुद को भी थकान महसूस हो रही थी। मैं सोच ही रहीं थी कि बाकि का बचा हुआ काम कल करुंगी और अभी सोती हूं। लेकिन प्रतिक को इस हालात में देख मेरी नींद गायब हो गई। मैं ने उसे बुखार की दवा दी और ठंडे पानी की पट्टी लगाने के लिए बर्फ़ लेने हेतु किचन में गई। देखा तो मम्मी जी नजर उतारने हेतु लाल मिर्च और नमक आदि ले रहे थे। मम्मी जी ने प्रतिक की नजर उतारी फ़िर उसके पास आकर बैठ गए और कहने लगे, ''मुझे लग ही रहा था कि इसे नजर लग गई होगी। देखा इतनी तेज मिर्च जलाने पर भी थोड़ी सी भी धास (गंध) नहीं आई। शिल्पा, अब देखना अभी थोड़ी ही देर में प्रतिक का बुखार उतर जाएगा।''
मुझे नजर लगने जैसी बातों पर विश्वास नहीं हैं लेकिन मम्मी जी को इन बातों पर बहुत आस्था हैं। इसलिए मैं उन्हें क्रॉस नहीं कर सकती थी। मैं और पति देव थोड़ी-थोड़ी देर में ठंडे पानी की पट्टिया बदलते रहे। रात से सुबह हो गई लेकिन उसका बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। रात भर में ही उसका चेहरा इतना उतर गया कि ऐसा लग रहा था मानों कितने दिनों से बीमार हैं! सुबह 6 बजे उठते बराबर मम्मी जी कमरे में आएं और पूछने लगे कि उतर गया न उसका बुखार? ''नहीं, मम्मी जी देखो न अभी भी वैसा ही हैं। इन्होंने अभी थर्मामिटर लगा कर चेक किया।'' ''हो न हो प्रतिक को मिसेस चांडक की ही नजर लगी हैं। वो ही इसकी बहुत तारीफ कर रहीं थी। लेकिन रात को नजर उतारने के बाद अभी तक तो बुखार उतर जाना चाहिए था। शायद बहुत जबरदस्त नजर लग गई हैं इसलिए एक बार में नहीं उतरी। मैं झाड़ू से नजर उतारकर देखती हूँ।'' इतना कह कर वे झाड़ू लेकर आएं और सात बार प्रतिक के उपर से घुमाकर नजर उतारी।
पति देव को ऑफ़िस के लिए सुबह 9 बजे ही निकलना होता हैं इसलिए प्रतिक के पास मम्मी जी को बैठा कर मैं ने नाश्ता और टिफिन बनाया। ऑफ़िस जाते-जाते पति देव कहते गए कि यदि बुखार न उतरा तो गर्ग अंकल को दिखा देना। डॉ. गर्ग ससुर जी के खास दोस्त हैं इसलिए हम उन्हें अंकल ही बोलते हैं। जब 11 बजे तक बुखार नहीं उतरा तो मैं ने मम्मी जी से कहा, ''इसका बुखार तो उतरा ही नहीं हैं। क्यों न हम इसे गर्ग अंकल को दिखा दे?''
''कैसी बात करती हैं शिल्पा? क्या किसी डॉक्टर के पास नजर का इलाज हैं? नजर तो घर में हम ही उतारेंगे न? मैं ने सुबह झाड़ू से नजर उतारी थी शाम को चप्पल से उतार दूंगी। वैसे भी शाम तक देखना उसका बुखार पूरी तरह उतर जाएगा।''
अब मैं क्या बोलती? प्रतिक में तो मम्मी जी की जान बसती हैं। प्रतिक को इस हालात में देख कर मम्मी जी खुद बीमार से दिखने लगे थे। वो भी चाहते थे कि प्रतिक जल्द से जल्द अच्छा हो जाएं। लेकिन अंधविश्वास के आगे किसकी चली हैं? शाम को मम्मी जी ने चप्पल से नजर उतारी। लेकिन बुखार हैं कि उतरना तो दूर की बात कम भी नहीं हो रहा था। अब प्रतिक भी एकदम सुस्त हो गया था। आज फिर से ठंडे पानी की पट्टियां उसके सर पर रखी।
जब सुबह होने पर भी उसका बुखार नहीं उतरा तब मम्मी जी ने खुद ही कहा कि आज इसको गर्ग भाई साब के पास लेकर चलते हैं।
हम दोनों सास-बहू प्रतिक को लेकर गर्ग अंकल के क्लिनिक गए। जैसे ही उन्होंने प्रतिक को देखा तो कहने लगे, ''बाप रे इतना तेज बुखार! कब से हैं इसे इतना तेज बुखार?''
''जी, परसों से...'' मैं ने धीरे से कहा।
''क्या कहा, परसों रात से और तुम लोग अब इसे लेकर मेरे पास आ रहे हो? तुम लोगों को बच्चे की कुछ फ़िक्र हैं की नहीं?''
''भाईसाब, असल में प्रतिक को किसी की नजर लग गई हैं। परसों से मैं ने मिर्च से, झाडू से और न जाने कौन-कौन सी चिजों से नजर उतारी। मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर इसकी नजर कैसे उतारू?? बुखार हैं कि उतरने का नाम ही नहींं ले रहा...इसलिए आपके पास ले के आएं हैं।'' मम्मी जी ने कहा।
''शिल्पा, भाभी थोड़ी सी पुराने ख्यालात की हैं। लेकिन तुम तो आज की पढ़ी लिखी महिला हो। तुम भी नजर लगने जैसे अंधविश्वास को मानती हो?''
मैं क्या जबाब देती? चुप रहीं।
''जी, परसों से...'' मैं ने धीरे से कहा।
''क्या कहा, परसों रात से और तुम लोग अब इसे लेकर मेरे पास आ रहे हो? तुम लोगों को बच्चे की कुछ फ़िक्र हैं की नहीं?''
''भाईसाब, असल में प्रतिक को किसी की नजर लग गई हैं। परसों से मैं ने मिर्च से, झाडू से और न जाने कौन-कौन सी चिजों से नजर उतारी। मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर इसकी नजर कैसे उतारू?? बुखार हैं कि उतरने का नाम ही नहींं ले रहा...इसलिए आपके पास ले के आएं हैं।'' मम्मी जी ने कहा।
''शिल्पा, भाभी थोड़ी सी पुराने ख्यालात की हैं। लेकिन तुम तो आज की पढ़ी लिखी महिला हो। तुम भी नजर लगने जैसे अंधविश्वास को मानती हो?''
मैं क्या जबाब देती? चुप रहीं।
मम्मी जी ने कहा, ''भाईसाब आपने परसों देखा न कितना प्यारा लग रहा था प्रतिक? सभी लोग उसकी तारीफ कर रहे थे। फ़िर अचानक इसको बुखार आ गया तो मुझे लगा कि बुखार नजर लगने से ही आया हैं।''
''भाभी, जरा सोचिए...यदि सुंदर दिखने मात्र से बच्चों को नजर लगती तो टी. व्ही. पर सीरियलों मे और विज्ञापनों में जो सुंदर सुंदर बच्चे दिखाते हैं...वे सब तो बारह महीने नजर लगने से बीमार ही रहते! इतने सारे हीरो-हिरोइने हैं, विश्व सुंदरियां हैं...क्या आपने कभी सुना कि नजर लगने से अमुक हिरोइन बीमार पड़ गई? नहीं न?''
''मैं ने बचपन में मेरे पापा को दुकान के दरवाज़े के उपर हरी मिर्च और नींबू बांधते हुए देखा हैं ताकि किसी कि नजर न लगे। क्या वो भी गलत थे?''
''हां, वो भी गलत थे। वास्तव में किसी को भी किसी की नजर नहीं लग सकती। कोई हमारे लिए कितना भी नकारात्मक सोचे उनके सोच की उर्जा सिर्फ़ हमारे सोच तक पहुंच सकती हैं। यदि हमारी खुद की सोच डर की वजह से, असुरक्षा की वजह से नकारात्मक हो गई, तो हमारी सोच हमारा भाग्य बदल सकती हैं। किसी की नजर तभी लग सकती हैं जब खुद की स्थिति कमजोर हो! मतलब यदि किसी ने हमारे लिए नकारात्मक सोचा और हम खुद भी नकारात्मक सोच रखते हैं तो उस व्यक्ति की नकारात्मक सोच का हमारे उपर ज़रुर असर होगा। और इसे ही हम अपनी भाषा में नजर लग गई कहते हैं। लेकिन वो नजर हमें लोगों के कारण नहीं अपने स्वयं के कारण लगेगी। किसी भी व्यक्ति में इतनी ताकत नहीं हैं कि वो हमारे लिए बुरा सोचे और हमारा बुरा हो जायेगा। इसलिए कभी भी अपने मन में यह डर मत पालों कि किसी की नजर लग जायेगी!!''
मम्मी जी बोली, ''मेरे मायके में एक नींबू का पेड था। बहुत सारे नींबू लगते थे उसमें। पेड पर पत्तों से ज्यादा नींबू दिखते थे। पेड को पूरा भरण-पोषण मिले इसलिए मेरी मम्मी रोज पेड की जडों में छाछ भी डालती थी। लेकिन अचानक न जाने किसकी नजर लग गई पेड सूखने लगा और पूरा ही सूख गया। मेरी मम्मी ने कहा था कि सड़क पर से आते-जाते हुए लोगों को इतने सारे नींबू लगे हुए दिखते हैं। इतने सारे नींबू देख कर किसी न किसी की नजर लगी हैं। आप ही बताइये यदि हरा भरा, फलों से लदा पेड अचानक सूख जाए तो आप इसे नजर लगना नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?''
''भाभीजी, यदि किसी के देखने भर से हरा-भरा पेड़ सूख सकता तो आज दुनिया भर में इतने सारे पेड़-पौधे हैं क्या वे जिवित होते? इतने बड़े-बड़े बगिचो में इतने सुंदर-सुंदर फूल लगे रह सकते थे? बगिचो में तो हजारों लोग हर रोज आते हैं। क्या उन फूलों को नजर नहीं लगती? आप ही ने बताया कि आपकी मम्मी नींबू के पेड की जडो में मठ्ठा डालती थी। वो नींबू का पेड जडो में मठ्ठा डालने से सूखा और शायद उसमें किड़ा भी लग गया होगा! शायद आपने वो कहावत नहीं सुनी कि पेड़ो की जड़ो में मठ्ठा डाल दो पेड़ अपने आप सूख जाएगा। असलियत यहीं हैं कि कौएं के शाप से गाय नहीं मरती। ये डर कभी भी अपने मन में नहीं पालना चाहिए कि हमें किसी की नजर लग जाएगी। जब हमारे उपर उस परम पिता परमात्मा की कृपा दृष्टी हैं, उसकी नजर हैं तो हमें किसी और की नजर कैसे लग सकती हैं?''
''मैं बचपन से जो देखते सुनते आई उसी अनुसार मेरी सोच बन गई थी। लेकिन अब मेरी समझ में आ गया हैं कि ये नजर-वजर कुछ नहीं होती। ये हमारे मन का वहम हैं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आज आपने मेरी आंखे खोल दी।''
गर्ग अंकल ने प्रतिक को चेक करके दवाइयां लिख कर दी। हम लोग घर जाने के लिए उठने लगे तो अंकल ने कहा, ''मेरी फीस?'' मैं और मम्मी जी दोनों असमंजस से एक-दूसरे की ओर देखने लगे। क्योंकि आज तक उन्होंने हम से कभी भी फीस नहीं ली थी।
''अरे बाबा, मैं हरदम एक ही काम करता हूं न...पेशंट को जांचने का...लेकिन आज मैं ने दो काम किए...पेशंट को जांचा भी और अंधविश्वास भी दूर किया तो मेरी फ़ीस तो बनती हैं न? मेरे यार से कहना इस रविवार को आ रहा हूं मैं रात को डिनर पर!!''
मम्मी जी बोली, ''मेरे मायके में एक नींबू का पेड था। बहुत सारे नींबू लगते थे उसमें। पेड पर पत्तों से ज्यादा नींबू दिखते थे। पेड को पूरा भरण-पोषण मिले इसलिए मेरी मम्मी रोज पेड की जडों में छाछ भी डालती थी। लेकिन अचानक न जाने किसकी नजर लग गई पेड सूखने लगा और पूरा ही सूख गया। मेरी मम्मी ने कहा था कि सड़क पर से आते-जाते हुए लोगों को इतने सारे नींबू लगे हुए दिखते हैं। इतने सारे नींबू देख कर किसी न किसी की नजर लगी हैं। आप ही बताइये यदि हरा भरा, फलों से लदा पेड अचानक सूख जाए तो आप इसे नजर लगना नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?''
''भाभीजी, यदि किसी के देखने भर से हरा-भरा पेड़ सूख सकता तो आज दुनिया भर में इतने सारे पेड़-पौधे हैं क्या वे जिवित होते? इतने बड़े-बड़े बगिचो में इतने सुंदर-सुंदर फूल लगे रह सकते थे? बगिचो में तो हजारों लोग हर रोज आते हैं। क्या उन फूलों को नजर नहीं लगती? आप ही ने बताया कि आपकी मम्मी नींबू के पेड की जडो में मठ्ठा डालती थी। वो नींबू का पेड जडो में मठ्ठा डालने से सूखा और शायद उसमें किड़ा भी लग गया होगा! शायद आपने वो कहावत नहीं सुनी कि पेड़ो की जड़ो में मठ्ठा डाल दो पेड़ अपने आप सूख जाएगा। असलियत यहीं हैं कि कौएं के शाप से गाय नहीं मरती। ये डर कभी भी अपने मन में नहीं पालना चाहिए कि हमें किसी की नजर लग जाएगी। जब हमारे उपर उस परम पिता परमात्मा की कृपा दृष्टी हैं, उसकी नजर हैं तो हमें किसी और की नजर कैसे लग सकती हैं?''
''मैं बचपन से जो देखते सुनते आई उसी अनुसार मेरी सोच बन गई थी। लेकिन अब मेरी समझ में आ गया हैं कि ये नजर-वजर कुछ नहीं होती। ये हमारे मन का वहम हैं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आज आपने मेरी आंखे खोल दी।''
गर्ग अंकल ने प्रतिक को चेक करके दवाइयां लिख कर दी। हम लोग घर जाने के लिए उठने लगे तो अंकल ने कहा, ''मेरी फीस?'' मैं और मम्मी जी दोनों असमंजस से एक-दूसरे की ओर देखने लगे। क्योंकि आज तक उन्होंने हम से कभी भी फीस नहीं ली थी।
''अरे बाबा, मैं हरदम एक ही काम करता हूं न...पेशंट को जांचने का...लेकिन आज मैं ने दो काम किए...पेशंट को जांचा भी और अंधविश्वास भी दूर किया तो मेरी फ़ीस तो बनती हैं न? मेरे यार से कहना इस रविवार को आ रहा हूं मैं रात को डिनर पर!!''
अंध विश्वास पर प्रहार करती सार्थक कथा ।
जवाब देंहटाएंडाक्टर के माध्यम से बहुत अच्छी तरह वहम की व्याख्या की है आपने ज्योति बहन ।
शानदार सृजन।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-07-2019) को charchamanch.blogspot.in/" > "गर्म चाय का प्याला आया" (चर्चा अंक- 3412) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंVery nice Didi!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सटीक अंधविश्वास पर व्यंग करती लाजवाब कहानी...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सुंदर रचना। लेकिन विज्ञान में भी न कुछ घटनाओं का सैद्धांतिक आधार नहीं होता लेकिन व्यवहारिक धरातल पर वह सम्पन्न होती है। ठीक इसके उलट कुछ बातों का ठोस सैद्धांतिक आधार होंने पर भी व्यवहार में वह घटित नहीं होती। यहीं से अनुभूतियों का प्रज्ञान( आध्यात्म) शुरू हो जस्ता है। विज्ञान(अधिभौतिक) अंधविश्वास(आधिदैविक) पर तो भारी पड़ जाता है, किन्तु अनुभूति (आधात्मिक) के आगे संज्ञा शून्य हो जाता है।
जवाब देंहटाएंमेरा आशय आपके लेख के दर्शन को आगे बढ़ाना है, अंधविश्वास का समर्थन नहीं। सादर।
विश्वमोहन जी,मैं आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूं। मेरी पोस्ट पर अपने विचार इतने सुंदर तरीके से व्यक्त करने के लिए धन्यवाद।
हटाएं@किसी भी व्यक्ति में इतनी ताकत नहीं हैं कि वो हमारे लिए बुरा सोचे और हमारा बुरा हो जायेगा। इसलिए कभी भी अपने मन में यह डर मत पालों कि किसी की नजर लग जायेगी.........वाह! सटीक
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहद सटीक और शानदार लिखा
जवाब देंहटाएंअन्धविश्वास पर प्रहार करता शानदार लेख ...बधाई ज्योति जी
जवाब देंहटाएंअन्ध्विश्वास जितना जल्दी हों दूर होने चाहियें ... देर न हो जाये ...
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख, कहानी के माध्यम से रोचकता भी बनी रहती है ...
Aapne bahut achhi jankari di nhai.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahut Badhiya post likha hai aapne- Thanks
जवाब देंहटाएंकहानी कुछ अधिक गम्भीर है लेकिन इसमें उठाई गयी बात बहुत ज़रूरी है.
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