किन्नरों को हरदम सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता हैं। क्या गुनाह किया हैं किन्नरों ने? भगवान ने उन्हें बीच का इंसान बनाया इसमें किन्नरों की क्या गलती हैं? किन्नरों के प्रति हमें हमारी सोच बदलनी होगी...
किन्नरों को हरदम सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता हैं। क्या गुनाह किया हैं किन्नरों ने? भगवान ने उन्हें बीच का इंसान बनाया इसमें किन्नरों की क्या गलती हैं? 84 लाख योनियों में ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना 'इंसान' हैं और सबसे विकृत रचना हैं, 'किन्नर'! इंसानों की दो ही जाति स्त्री और पुरुष समाज में स्विकार्य हैं, तीसरी जाति ‘किन्नर’ शब्द ही श्राप सा प्रतित होता हैं। किन्नर को आज भी एक आम इंसान जैसा जीवन नसीब नहीं होता। समाज से आज भी उन्हें अपमान और नफरत ही मिलती हैं। अपनी पूरी जिंदगी ये लोग सामाजिक तिरस्कार का सामना करते ही जीते हैं। कहा जाता हैं कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ नहीं रह सकता इसलिए उसने 'माँ' को बनाया। लेकिन यहीं 'माँ' समाज के डर से अपने कलेजे के टुकड़े को, किन्नर को पैदा होते ही ठुकरा देती हैं...कोई स्कूल इन्हें दाखिला नहीं देता...कोई इन्हें नौकरी नहीं देता...किन्नर भी चाहते हैं आम इंसान की तरह मेहनत कर पैसा कमाना...आम इंसान की तरह गुजर-बसर करना...लेकिन समाज उन्हें हरदम दुत्कारता ही रहता हैं! इनका जन्म भी किसी माँ के गर्भ से ही होता हैं। लेकिन इन्हें बेटा या बेटी के रुप में मान्यता नहीं मिलती। ऐसा लगता हैं जैसे ये आसमान से टपक गए हो!
किन्नर कौन हैं?
कोई कहता हैं, 'हिजड़ा'...!
कोई कहता हैं, 'छक्का'...!
कोई कहता हैं, 'बीचका'...!
कम्बख्तों, मैं भी हिस्सा हूँ, 'इंसानों की भीड़' का!!
यहीं सच्चाई हैं किन्नरों की। किन्नर न तो पूरी तरह नर होता है और न नारी। इन्हें हिजड़ा, छक्का या ट्रांसजेंडर के नाम से भी संबोधित किया जाता हैं। किन्नर का अर्थ होता हैं स्वर्ग के गायक या गाना बजाने का पेशा करने वाली एक जाति। माना जाता हैं कि पुरुष वीर्य की अधिकता से पुत्र उत्पन्न होता हैं और स्त्री रक्त (रज) की अधिकता से कन्या उत्पन्न होती हैं। यदि वीर्य और रज समान मात्रा में हो तो किन्नर संतान उत्पन्न होती हैं। महाभारत में उल्लेख मिलता है कि अर्जुन भी एक शाप के कारण साल भर किन्नर रूप में रहे थे। 2011 की जनगणना के अनुसार तब भारत में ट्रांसजेंडरों की जनसंख्या 4.88 लाख थी।
शादी-ब्याह या बच्चे का जन्म जैसी खुशियों के मौके पर एकाएक किन्नर कहीं से आ धमकते हैं और दुआए देकर बख्शिस लेकर अपनी दुनिया में लौट जाते हैं। ट्रेन में, बस में या ट्रेफिक सिग्नल पर रुकी गाडियों के शिशे थपकाते हुए भी आपने किन्नरों को देखा होगा। हट्टे-कट्टे किन्नरों को यू मांगते देख आम इंसान यहीं सोचता हैं कि आलसी हैं...मेहनत करना नहीं चाहते इसलिए भीख मांग कर खाते हैं! लेकिन किन्नर बेचारे क्या करे क्योंकि कोई उन्हें काम ही नहीं देना चाहता! किन्नरों का जीवन कितना संघर्षमय हैं...अपमानजनक हैं इसकी कल्पना भी आम इंसान नहीं कर सकता! औरों के जलसों को रोशन करनेवाले किन्नरों के खुद के जीवन में हमेशा अंधेरा ही रहता हैं। दूसरों को दुआ देने वाले किन्नरों को कोई दुआ नहीं देता। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर यानि किन्नर को थर्ड जेंडर यानि तीसरे लिंग के तौर पर कानूनी मान्यता दी। फिर भी इनका शोषण, सामाजिक तिरस्कार और उसके बाद जीवन के लिए की जा रही जद्दोजहद और संघर्ष कम होने का नाम नहीं ले रहा है।
किन्नरों की शादी-
आमतौर पर यह माना जाता है कि किन्नर विवाह नहीं करते। लेकिन कम लोगों को पता है कि किन्नर भी शादी करते हैं और इनकी शादी आम लोगों से अलग होती है। इनकी शादी जीवन भर के लिए नहीं बल्कि महज एक रात की होती है। एक रात में ही यह सुहागन से विधवा बन जाते हैं।
महाभारत के युद्ध में पांडवों को एक राजकुमार की बलि देनी थी। बलि के लिए कोई भी राजुकमार तैयार नहीं हुआ। तब अर्जुन और नागकन्या उलूपी का पुत्र इरावन तैयार हो गया, लेकिन उसकी एक शर्त थी कि वह बिना शादी किए बलि पर नहीं चढेगा। ऐसे राजकुमार से कौन शादी करता, जिसको अगले दिन मरना हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी रुप धारण कर इरावन से शादी की। अगले दिन इरावन के मरने के बाद श्रीकृष्ण ने विधवा बन कर विलाप किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही हैं। किन्नर एक दिन के लिए अपने भगवान इरावन से शादी करते हैं और दूसरे दिन विलाप करते हैं।
किन्नरों का अंतिम संस्कार-
माना जाता हैं कि किन्नरों को मौत का आभास हो जाता हैं। ऐसा आभास होने के बाद वे खाना बंद कर सिर्फ़ पानी पीते हैं और ईश्वर से दूसरे किन्नरों के लिए दुआ करते हैं। मान्यता हैं कि मरणासन्न किन्नर की दुआ काफ़ी असरदार होती हैं इसलिए दूरदराज के किन्नर मरणासन्न किन्नर की दुआ लेने आते हैं।
किन्नरों में शव को खड़ा करके अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता हैं। मान्यता हैं कि यदि आम लोग मृत किन्नर का शरीर देख ले तो मृतक को दूबारा किन्नर का ही जन्म मिलता हैं। इसलिए किसी बाहरी व्यक्ति को मरणासन्न किन्नर या किन्नर के मौत की बिल्कुल ख़बर न हो, ये एहतियात बरती जाती हैं। यदि उन्हें भनक भी लग जाए कि बाहरी व्यक्ति अंतिम संस्कार देख रहा हैं, तो ये उस दर्शक के लिए खतरनाक हो सकता हैं।
किन्नर खुद अपने जीवन को इतना शापित मानते हैं कि शवयात्रा से पहले मृतक को जूते-चप्पलों से पीटा जाता हैं और गालियां दी जाती हैं ताकि जीते-जी किन्नर ने यदि कोई अपराध किया हो, तो उसका प्रायश्चित हो जाए और अगला जन्म आम इंसान का मिले।
कामयाबी को छुते किन्नर-
किन्नरों में आज कुछ किन्नर ऐसे हैं, जो समाज की रुढिवादिता को तोड कर अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं। इन किन्नरों ने दुनिया को दिखा दिया कि अपनी पहचान को अपनी कमजोरी न बनाते हुए उसे अपनी ताकत बनाकर भी दुनिया को अपनी मुट्ठी में किया जा सकता हैं। कई किन्नरों ने भीख मांगने से भी मना कर दिया हैं। जैसे कि,
• जमशेदपुर (झारखंड) की किन्नर डॉली। इसने अपना स्वयं का छोटा सा फूड कोर्ट खोला हैं।
• देश की पहली किन्नर विधायक शबनब मौसी का कहना हैं, ‘शासन करने की बेहतर क्षमता का लिंग से क्या संबंध’।
• केरल की तिरुवनंतपुरम की रहनेवाली किन्नर जारा शेख को एक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनी में वरिष्ठ सहायक के पद पर नियुक्त हैं। जारा शेख भारत की पहली ऐसी किन्नर हैं, जो बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती हैं।
• 2017 में केरल की एक फैशन डिझायनर शर्मिला ने अपने साडियों के कलेक्शन को प्रस्तुत करने के लिए दो किन्नर 'माया मेनन' और 'गोवरी सावित्री' को अपनी मॉडल चुन कर किन्नरों को सम्मान दिलाया।
किन्नर: बदलनी होगी हमारी सोच
किन्नरों के प्रति हमारी दुषित मानसिकता के कारण ही हमारे देश में अधिकांश किन्नर दीन-हीन जीवन जीने को मजबूर हैं। हमारा समाज ये तो मानता हैं कि किन्नरों की दुआओं में बड़ा असर होता हैं, लेकिन उनके हित के लिए कोई भी कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं! वे किन्नर हैं इसमें उनका स्वयं का कोई दोष नहीं हैं, ईश्वर ने ही उन्हें ऐसा बनाया हैं। वे भी हमारी तरह इंसान ही हैं। किन्नरों के प्रति हमारी जो दुषित सोच हैं, वो बदलनी चाहिए...उनके साथ जो सामाजिक भेदभाव होता हैं, वो दूर होना चाहिए...उनके लिए रोजगार के साधन उपलब्ध किए जाने चाहिए...तभी किन्नर समाज अपनी सामाजिक बेड़िया तोड़ कर स्वाभिमान से जी सकेगा!
बहुत ज़रूरी लेख! हमारी संवेदनहीनता को उधेड़ कर रख देता हुआ लेख !
जवाब देंहटाएंसही कहा ज्योति आपनेंं ,किन्नर जिंदगी भर अपमानित जीवन जीते हैं ...हमें अपनी सोच को बदलना होगा ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त विषय चुना है आपने ..।
चिंतनपरक आलेख
जवाब देंहटाएंजी आपने अति संवेदनशील विषय को उठाया है। हमारे मिर्जापुर जनपद के अहरौरा नगर पालिका परिषद से पूर्व में चुनाव रेखा किन्नर लड़ी थी और विजयी भी हुई थी। इस दौरान मुझे किन्नरों का साक्षात्कार लेने का अवसर मिला और मैं उन्हें करीब से समझ सका , हालांकि रेखा किन्नर काफी संपन्न थी।
जवाब देंहटाएंपरंतु शेष में तो वह सामर्थ्य नहीं है।
सही कहा समाज को और स्वयं किन्नरों को भी अपनी सोच बदलनी होगी...जब किन्नर फूड कोर्ट, विधायक और बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों में तक कार्यरत है तो इसका मतलब है कि इनके उज्जवल भविष्य के लिए रास्ते साफ हैं अब जरूरत है कि किन्नर के माता-पिता अपनी अन्य संतानों की तरह ही इनका पालनपोषण करेंऔर इन्हें स्वावलंबी बनायें लिंगभेद से बाहर निकलें.....।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चिन्तनपरक लेख।
सुधा दी, अब किन्नर भी आगे आ रहे हैं। लेकिन उन्हें परिवार का सुख मतलब माँ-बाप भाई-बहन का प्यार नहीं मिल पाता।
हटाएंप्रकृति के अन्याय के शिकार इस वर्ग के प्रति समाज का तिरस्कारपूर्ण व्यवहार तथा उन्हें मूलभूत मानवीय सुविधाओं तक से वंचित किया जाना उस संवेदनहीनता का ही परिचायक है जो हमारी रग-रग में व्याप्त हो गई लगती है । आपके लेख में व्यक्त सभी विचारों से मैं सहमत हूँ । इनका जीवन अन्याय की वह गाथा है जिसमें कोई व्यक्ति नहीं, संपूर्ण समाज ही खलनायक है ।
जवाब देंहटाएंजितेंद्र भाई, किन्नर के विशिप्त जीवन के लिए असल में हमारा पूरा समाज ही जिम्मेदार हैं। हर कोई इस बात को जानता हैं। लेकिन सभी मैं क्या कर सकता हूँ यह सोच कर चूप रह जाता हैं।
हटाएंकिन्नर होना किसी के हाथ में नहीं है फिर भी मनुष्यों ने भेदभाव की एक दीवार खड़ी कर दी है | जिससे उनका जीवन और दुष्कर हो गया है | आज ईस बात को समझा जा रहा है | गोष्ठियां हो रहीं है | आप का ये लेख भी इस दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है | उम्मीद है समाज समझेगा और उन्हें भी सामान्य जीवन जीने का मौका मिलेगा |
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