कैसा होता हैं पति-पत्नी का रिश्ता? एक दूसरे के लिए कितना बड़ा सुरक्षा कवच और एक दूसरे के बिना कितने असहाय! शिल्पा सोचने लगी कि काश, कोई दूसरा रिश्ता भी ऐसा होता जो कहता कि जब तक मैं जिंदा हूं...!!!
शिल्पा अपने नए फ्लैट में शिफ्ट हुई। नए फ्लैट में सब सामान सेट करते-करते दिन कब खत्म होता और सुबह कब होती उसे पता ही नहीं चलता। घर सेट करते-करते वो इतनी थक जाती कि सोचने लगती कि इंसान घर में इतनी सारी चीजें जमा ही क्यों करता हैं? ये भी होना और वो भी होना! हर चीज बस होना ही होना!! जबकि उसे अच्छे से पता हैं कि जब उपरवाले का बुलावा आएगा तो सब कुछ यहीं छूट जाएगा!!! लेकिन जीते जी तो घर में हर चीज चाहिए ही न। छोटी से छोटी सूई भी यदि वक्त पर पास में नहीं रही तो उसके बिना काम रुक जाता हैं। नए घर में कौन सा सामान कहां रखू यह सोचते-सोचते उसका सर दर्द करने लगता। क्योंकि पति महाशय और बच्चों के लिए तो ये बाते मायने ही नहीं रखती थी। वो तो यह कह कर फ्री हो जाते थे कि अरे उसमें इतना क्या सोचना? जैसा समझ में आएं वैसा रख दो सामान। इसके लिए कौन तुमको सर्टिफ़िकेट देने वाला हैं? जैसे घर सिर्फ़ शिल्पा का अकेली का था। खैर...
नए फ्लैट में आने के बाद दूसरे ही दिन जब सोकर उठने के बाद उसने बेडरुम की गैलरी का दरवाज़ा खोला तो गैलरी में ढेर सारा कचरा! अब तीसरे मंज़िल की फ्लैट की गैलरी में कचरा डालने कौन आएगा? बहुत सोचने पर समझ में आया कि हो न हो यह कचरा चौथे मंज़िल के फ्लैट वालों ने ही अपनी खिड़की से फेंका होगा। पहले ही काम की थकान और उपर से यह कचरा...सुबह-सुबह ही उसका मूड ख़राब हो गया। खैर, जैसे ही वक्त मिलेगा उपर जाकर उनसे मिलकर बात करूंगी ऐसा सोचकर शिल्पा काम में लग गई।
दोपहर को काम खत्म कर जब शिल्पा सो रही थी तो अचानक डोअर बेल बजी। अब इतनी धूप में कौन आया ऐसा बड़बडाते ही उसने दरवाज़ा खोला तो सामने कोई भी नहीं...आजू बाजू में भी कोई नहीं...नए आए लोगों से कौन ऐसी शरारत कर सकता हैं?...सोचते-सोचते वो चुपचाप अंदर चली गई। शाम को सब्जी ले के वापस आते वक्त वो लिफ्ट के पास गई तो पता चला कि चौथे मंज़िल पर किसी ने लिफ्ट का दरवाज़ा बराबर बंद नहीं किया हैं इसलिए लिफ्ट काम नहीं कर रही। थकान के बावजूद मजबुरीवश हाथ में सब्जियों का थैला लेकर उसे सीढ़ियों से चढ़कर जाना पड़ा। तीसरे दिन सो कर उठने के बाद गैलरी का दरवाज़ा खोला तो बिन बरसात गैलरी में पानी भरा था। मन ही मन उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि ऐसे कैसे लोग हैं चौथी मंज़िल पर? जो शरारत पर शरारत करते रहते हैं? मैं तो उन्हें जानती तक नहीं फ़िर वो लोग मुझे क्यों तंग कर रहे हैं? दोपहर को बाजुवाले फ्लैट वाली दिपाली आई तो शिल्पा ने उससे इस बारे में बात की तब उसने बताया कि चौथे मंजिल पर एक बुजुर्ग दंपंती रहते हैं। जो बुजुर्ग अंकल हैं वो कभी-कभी इस तरह की हरकते करते हैं। इतने में बच्चे स्कूल से आ गए और बात अधूरी रह गई।
दोपहर को काम खत्म कर जब शिल्पा सो रही थी तो अचानक डोअर बेल बजी। अब इतनी धूप में कौन आया ऐसा बड़बडाते ही उसने दरवाज़ा खोला तो सामने कोई भी नहीं...आजू बाजू में भी कोई नहीं...नए आए लोगों से कौन ऐसी शरारत कर सकता हैं?...सोचते-सोचते वो चुपचाप अंदर चली गई। शाम को सब्जी ले के वापस आते वक्त वो लिफ्ट के पास गई तो पता चला कि चौथे मंज़िल पर किसी ने लिफ्ट का दरवाज़ा बराबर बंद नहीं किया हैं इसलिए लिफ्ट काम नहीं कर रही। थकान के बावजूद मजबुरीवश हाथ में सब्जियों का थैला लेकर उसे सीढ़ियों से चढ़कर जाना पड़ा। तीसरे दिन सो कर उठने के बाद गैलरी का दरवाज़ा खोला तो बिन बरसात गैलरी में पानी भरा था। मन ही मन उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि ऐसे कैसे लोग हैं चौथी मंज़िल पर? जो शरारत पर शरारत करते रहते हैं? मैं तो उन्हें जानती तक नहीं फ़िर वो लोग मुझे क्यों तंग कर रहे हैं? दोपहर को बाजुवाले फ्लैट वाली दिपाली आई तो शिल्पा ने उससे इस बारे में बात की तब उसने बताया कि चौथे मंजिल पर एक बुजुर्ग दंपंती रहते हैं। जो बुजुर्ग अंकल हैं वो कभी-कभी इस तरह की हरकते करते हैं। इतने में बच्चे स्कूल से आ गए और बात अधूरी रह गई।
अगले दिन सुबह जब शिल्पा मॉर्निंग वॉक के लिए सोसायटी के बगीचे में गई तो उसे चौथी मंजिल वाली बुजुर्ग आंटी टहलते हुए मिल गई। उन्हें देखते ही शिल्पा अपने-आप को रोक नहीं पाई और उनसे कहने लगी,“आंटी, तंग आ गई हुं मैं आपके पति से! समझा दीजिए उन्हें, नहीं तो मैं सोसायटी ऑफ़िस में जाकर लिखित शिकायत कर दूंगी!” बुजुर्ग आंटी ने बिल्कुल शांत भाव से जबाब दिया,"बेटा, उनकी तरफ़ से मैं माफ़ी मांगती हूं। माफ़ कर दो उन्हें। वह छोटे बच्चे जैसे ही हैं इसलिए बच्चों जैसी हरकते करते हैं! पिछले तीन-चार दिनों से मेरी तबियत अच्छी न होने से मैं उनकी ओर ख्याल नहीं दे पा रहीं थी। इसलिए उन्होंने तुमको परेशान कर दिया। आगे से ऐसा नहीं होगा।'' बुजुर्ग आंटी ने इतने शांती से ये बाते कहीं कि शिल्पा का गुस्सा रफुचक्कर हो गया। उसने पूछा, ''बच्चे जैसे? मतलब?...मेंटली डिस्टर्ब?'' उन्होंने कहा- 'हां''
'आंटी, क्या आपको बच्चे नहीं हैं?''
''मुझे एक बेटा और एक बेटी हैं। दोनों की शादी हो गई हैं। बेटा-बहु दोनों सरकारी नौकरी में बड़े पद पर हैं। बच्चों को इतनी उंचाई पर पहुंचाने वाले उनके पापा अब उनके लिए एक पागल पुरुष भर हैं। इसलिए बच्चे चाहते हैं कि मैं उन्हें पागलखाने...। लेकिन मैंने उनको साफ कह दिया हैं कि जब तक मैं जिंदा हूं... मैं उनको पागलखाने नहीं जाने दूंगी। चाहे इसके लिए मुझे कितनी भी तकलीफ़े उठानी पड़े! इस बात को लेकर घर में रोज-रोज कलह होने लगी। मेरे न मानने पर बेटा और बहू ने दूसरे शहर में ट्रांसफर करवा लिया। इनकी पेंशन मिलती हैं जिससे हम दो लोगों का जैसे-तैसे गुजारा हो जाता हैं।''
''बाप रे...आंटी, इस उम्र में जब आपसे खुद से ज्यादा काम नहीं होता तब भी आपको अंकल की इतनी परवाह हैं! ज़रुर अंकल आपसे बहुत प्यार करते होंगे, हैं न?''
''वो मुझसे कितना प्यार करते थे यह तो मैं नहीं जानती।''
'मतलब?'
''ऐसा हैं बेटा कि प्यार की सबकी अपनी-अपनी परिभाषाएं हैं। उनके दृष्टिकोन से पत्नी को जरुरत की सभी भौतिक सुख-सुविधाएँ मुहैया करवाना ही प्यार हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा पत्नी को कुछ और भी चाहिए ये उन्हें पता ही नहीं था। हमारी शादी को पचपन साल हो गए हैं लेकिन इतने सालों में एक बार भी उन्होंने मेरी ओर उस प्यार भरी निगाहों से नहीं देखा जिस निगाहों से इंसान शरमाकर अपने-आप में समाता जाता हैं। जिस निगाहों को सिर्फ़ याद करकर भी इंसान मन ही मन मुस्कराने लगता हैं!''
''फ़िर भी आप अंकल के लिए इतना कर रहीं हैं?''
''नहीं, मैं अंकल के लिए नहीं अपने खुद के लिए कर रही हूं। बेटा, हम किसी को मजबूर तो नहीं कर सकते न कि वो हमें प्यार करे...लेकिन हमें प्यार करने से कौन रोक सकता हैं? मैं इनसे बहुत प्यार करती थी, करती हूं और करती रहूँगी! इसलिए मैं ये सब मेरे प्यार के लिए कर रहीं हूं। जब तक मैं जिंदा हूं...मैं मेरे प्यार को पागलखाने नहीं जाने दूंगी!''
'इस उम्र में अकेले घर-बाहर के काम करना और अंकल को भी संभालना ये सब आप कैसे करती हैं?'
''जिंदगी के हर मोड़ पर उन्होंने मेरा साथ दिया हैं। प्यार के अलावा उन्होंने मुझे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी! मैं ही नसीब में प्यार लिखा के नहीं लाई थी तो इसमें उनका क्या कसूर? एक दुर्घटना से उनके दिमाग पर बहुत असर होने से वो ऐसे हो गए हैं तो मैं अपने कर्तव्यों से पिछे कैसे हटू? मैं अपना कर्तव्य निभाने की कोशिश कर रहीं हूं। उनका इलाज चालू हैं। मुझे पूरा विश्वास हैं कि दवाइयाँ और मेरे प्यार से एक न एक दिन वो पूरी तरह ठीक हो जायेंगे। मुझे मेरे प्यार पर पूरा-पूरा विश्वास हैं। इतना कह कर वे चली गई।''
आंटी अपने दांपत्य जीवन को संभालते हुए अंकल की बहुत अच्छे से देखभाल कर रहीं थी। दिन भर अंकल बच्चों जैसी शरारते करके आंटी के नाक में दम करते थे। फ़िर भी आंटी चुपचाप उनके द्वारा बिगाडे गए कामों सुधारने में लगी रहती! अब पूरी बिल्डिंग में उनके बारे में सभी को पता होने से कोई भी नाराज़ नहीं होता था। साल-दो साल में उनकी बेटी ज़रुर मिलने आ जाती थी। लेकिन बेटा और बहू तो एक बार भी नहीं आएं। पांच-सात साल बाद सचमुच आंटी के प्यार और समर्पण से अंकल कुछ हद तक ठीक हो गए। लेकिन अब आंटी की तबियत ज्यादा ख़राब रहने लगी...आंटी के शरीर ने जबाब दे दिया...और आंटी को अपने प्यार को छोड कर हमेशा के लिए जाना पड़ा! कल ही आंटी के बारवे की रस्म पूरी हूई। मैं गैलरी में खड़ी थी तो देखा कि पागलखाने की गाड़ी आई हुई हैं और वो लोग अंकल को ले जा रहे हैं।
सचमुच आंटी ने अपने जीते जी अपने प्यार को पागलखाने जाने नहीं दिया। आखिर कैसा होता हैं पति-पत्नी का रिश्ता? एक दूसरे के लिए कितना बड़ा सुरक्षा कवच और एक दूसरे के बिना कितने असहाय! शिल्पा सोचने लगी कि काश, कोई दूसरा रिश्ता भी ऐसा होता जो कहता कि जब तक मैं जिंदा हूं...!!!
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमार्मिक कहानी । आजकल के समाज की हक़ीक़त भी ,जहाँ बड़े हो चुके बच्चे अपना अलग आशियाने में मशगूल हो जाते हैं ।वृद्ध माँ-बाप को दो वक्त की रोटी देना भी उन्हें भारी लगता है ।हाँ,उनकी संपत्ति का वारिस बनने का अधिकार लेना नहीं भूलते, चाहे अपना कर्त्तव्य भूल जाएं ।
जवाब देंहटाएंसही कहा सरिता। ज्यादातर मामलों में ऐसा ही देखने मिलता हैं।
हटाएंReality based story👌👌
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई बहुत ही मार्मिक कहानी
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-07-2018) को "करना मत विश्राम" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंदिल को छू गई..हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंवर्तमान का यथार्थ एवं मर्मस्पर्शी चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक कहानी ज्योति जी , आज का यथार्थ भी यही है की बच्चे पूंछते नहीं बस पति -पत्नी ही एक दूसरे का सहारा होते हैं |
जवाब देंहटाएंबहुत ही ह्रदयस्पर्शी कहानी हैं.
जवाब देंहटाएंमार्मिक ...
जवाब देंहटाएंकहानी ने अंत तक बांधे रखा ... रोचक ... समर्पण की कोई सीमा कहाँ होती है प्रेम में ... पर आजकल के बच्चे ये नहि समझते पति पत्नी का रिश्ता समझना आसान नहीं आज की दुनिया में ...
मार्मिक कहानी...अंत तक बांधे रखा..
जवाब देंहटाएंvery nice interesting story
जवाब देंहटाएंमन को छू गयी दी कहानी।
जवाब देंहटाएंसचमुच माँ-बाप जाने कैसे बोझ हो जाते है। ऐसे जीवनसाथी का साथ मिलना सौभाग्य से होता है।
इस टिप्पणी को ब्लॉग के किसी एडमिन ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंआज के समाज की सोच को आईना दिखाती हुईं, सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी कहानी ...आज के यथार्थ पर खरी उतरती..... सच कहा पति पत्नी के रिश्ते में प्रेम समर्पण और विश्वास है तो इसके समान कोई दूसरा रिश्ता नहीं...."जब तक मै जिन्दा हूँ" बहुत ही लाजवाब एवं सटीक कहानी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख
जवाब देंहटाएंबेहद लाजबाब!
Hindi Panda
मरमर्मस्पर्शी कहानी और इतना गहरा एक सत्य जिसे महसूस किया जाता है तो बहुत मुश्किल
जवाब देंहटाएंआपने अपनी कहानी के जरिए उस सत्य को सुंदर परिभाषा दी है
अप्रतिम ।
एक पत्नी के प्यार प्यार और समर्पण की मर्मस्पर्शी दस्ता ,सच मन द्रवित हो गया, बस इसे ही सच्चा प्यार कहते हैं ,आप की लेखन शैली भी लाजबाब ,अंत तक बांधे रखी ,स्नेह सखी
जवाब देंहटाएंइतने सुंदर शब्दों से उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
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