काला-सांवला या कुरुप, कोई अपनी पसंद से तो डिजाइन होकर नहीं आता! फ़िर ऐसा क्या है कि सांवली रंगतवालों के प्रति हमारे मन में एक तरह का नफ़रत भरा भाव रहता है।
क्या सांवली या काली रंगतवाले इंसान नहीं होते? उनके सीने में दिल नहीं धडकता? वे हाडमांस के बने नहीं होते? मोटा, काला-सांवला या कुरुप, कोई अपनी पसंद से तो डिजाइन होकर नहीं आता! जैसा भगवान ने बनाया, हम वैसे ही तो होंगे! फ़िर ऐसा क्या है कि सांवली रंगतवालों के प्रति हमारे मन में एक तरह का नफ़रत भरा भाव रहता है। दुनिया की नफरत बर्दास्त करते-करते ज्यादातर सांवली या काली रंगतवाले हीनभावना से ग्रसित क्यो हो जाते है? क्या सांवला या काला होना कोई गुनाह है...??
अलग-अलग रंगों से जुडी हमारी भ्रांतियां
हम काले रंग को कुरुपता का प्रतिक मानते है। इसकी असली वजह अलग-अलग रंगों से जुडी हमारी भ्रांतियां है। सफेद रंग को शुध्दता, स्पष्टता और स्वच्छता का प्रतिक माना जाता है, तो काला रंग ठीक इसके विपरीत है। सफेद स्वच्छ है और काला गंदा। क्या चमडी के रंग के आधार पर लोगों के बारे में धारणा बनाते हुए हम इसी बात से प्रभावित होते है? आखिर ऐसा क्या है जो हमें गोरेपन के पिछे भागने को मजबूर करता है? लडकों की अपेक्षा लडकियों को सांवली या काली रंगत होने से ज्यादा दुश्वारियां सहन करनी पडती है। सांवली रंगतवाली लडकियों के पिता को उनके शादी में ज्यादा दहेज देना पडता है। लडकियों को बचपन से ही घुट्टी की तरह यह वाक्य पिलाया जाता है, “अच्छी नौकरी चाहिए, ब्वॉयफ्रेंड और पति की दरकार है तो भले पढ़ो-लिखो नहीं लेकिन गोरी-चिट्टी जरुर बनी रहना।" शायद इसी सोच की बदौलत “धुप में निकला न करों रुप की रानी...”, “गोरी है कलाइयां...” जैसे गानों की भरमार हैं और “मोहे श्याम रंग दई दे...” जैसी कविताएं इक्का-दुक्का ही नजर आती है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का एक बयान आया था, "अगर राजीव गांधी ने किसी नाइजीरियन से शादी की होती तो क्या कांग्रेस के कार्यकर्ता उसका नेतृत्व स्वीकार करते?"
सफेद रंग सुंदरता का अकेला मापदंड नहीं हो सकता। वास्तव में चमडी तो केवल हमारे शरीर का नाजुक आवरण भर है। इसकी मोटाई दो मिलीमीटर से ज्यादा नहीं होती। इसका मुख्य काम शरीर के अंगों की सुरक्षा करना है। इंसान की सुंदरता का आकलन केवल उसके बाहरी आवरण से नहीं हो सकता। एक आदमी रंगबिरंगे हीलियम गैस के गुब्बारे बेच रहा था। एक बालक ने आकाश में उंचे उठते हुए गुब्बारों को देखकर उस आदमी से पुछा, "अंकल, आपके गुब्बारों में क्या काले रंग का गुब्बारा भी उड सकता है?" उसने कहा, "बेटे, गुब्बारा अपने रंग के कारण नहीं उडता। गुब्बारे के भीतर जो विश्वास और शक्ति भरी हुई है, उसी की बदौलत वह उपर उठता है।" मनुष्य के विकास में भी न तो उसका गोरा रंग सहायक होता है और न ही उसका काला रंग बाधक है। हां, सुरवात में कठिनाईयां आ सकती है लेकिन अपने आत्मविश्वास से सांवली या काली रंगत वाले इंसान भी आसमान की उंचाइयों को छू सकते है। विश्वसुंदरियों की श्रृंखला में दक्षिण अफ्रिका की महिला भी विश्व-सुंदरी का खिताब जीत चुकी है। जबकि दक्षिण अफ्रिका के लोग कितने काले होते है! सीधी सी बात है कि गुब्बारा अपने काले रंग के कारण नहीं बल्कि उसके भीतर जो कुछ है, उसी के बल पर उपर उठता है।
बॉलिवुड की अभिनेत्रियों के कुछ उदाहरण
• कलर्स टीवी पर आनेवाले शो "कोमेडी नाइट्स बचाओ" में फिल्म अभिनेत्री तनिष्ठा चटर्जी का उनके सांवले रंग को लेकर मजाक उडाया गया था।
• 13 साल की उम्र में स्कुली पढ़ाई के लिए अमेरिका गई प्रियंंका चोपडा को वहां पर कुछ लोग 'ब्राउनी' कह कर पुकारते थे। लगातार होने वाली नस्लभेदी टिप्पणियों के चलते वे आखिरकार भारत आ गई थी। लेकिन उसी 'ब्राउनी' ने अपने गुणों के बलबुते पर पिछले साल अमेरिकी टीवी श्रृंखला 'क्वाटिंको' से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता बटोरी।
• रेखा जब बॉलीवुड में आई थी, तो सांवले रंग के चलते उन्हें अच्छी नजर से नहीं देखा गया था। लेकिन हुनर बोला। मोहक अभिनय और कशिश भरी संवाद अदायगी ने उन्हें लीजेंड बना दिया।
• बिपाशा बसु ने कैरियर की शुरवात से पहले लोगों की खुब उपेक्षा झेली।
प्रियंका चोपडा, रेखा और बिपाशा बसु को शुरवात में लोगों ने उनके सांवले रंगत की वजह से नजरअंदाज जरुर किया लेकिन अपने आत्मविश्वास और गुणों के बलबुते पर उन्होंने अपना मुकाम हासील किया।
प्राचीन भारत में सांवला और गोरा रंग
हमारे भगवान विष्णु, कृष्ण और राम सांवले है। यदि सांवला रंग कुरुपता का प्रतीक है, तो हमारे भगवान सांवले क्यों है? महाभारत में सांवले रंग की द्रोपदी को अनिंद्य सुंदरी बताया गया है। सांवले रंग को मिट्टी की उर्वरता से जोड़कर देखा जाता था। इसका यह अर्थ नहीं कि गोरे रंग को लेकर प्राचीन भारत में कोई पूर्वग्रह था। राधा चंपक के फुलों की तरह गोरी थी। सफेद रंग का संबंध दूध और मक्खन से था। न तो गोरा रंग सांवले रंग से श्रेष्ठ माना जाता था और न ही सांवला रंग गोरे से श्रेष्ठ! दोनों रंगो को समान महत्व प्राप्त था। देवियों में महाकाली भी है तो गोरे रंग की गौरी भी है। मतलब कोई भी रंग अन्य किसी रंग से बेहतर नहीं था!
रंगों से जुडे विज्ञापन
बॉलिवुड की अभिनेत्रियों के कुछ उदाहरण
• कलर्स टीवी पर आनेवाले शो "कोमेडी नाइट्स बचाओ" में फिल्म अभिनेत्री तनिष्ठा चटर्जी का उनके सांवले रंग को लेकर मजाक उडाया गया था।
• 13 साल की उम्र में स्कुली पढ़ाई के लिए अमेरिका गई प्रियंंका चोपडा को वहां पर कुछ लोग 'ब्राउनी' कह कर पुकारते थे। लगातार होने वाली नस्लभेदी टिप्पणियों के चलते वे आखिरकार भारत आ गई थी। लेकिन उसी 'ब्राउनी' ने अपने गुणों के बलबुते पर पिछले साल अमेरिकी टीवी श्रृंखला 'क्वाटिंको' से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता बटोरी।
• रेखा जब बॉलीवुड में आई थी, तो सांवले रंग के चलते उन्हें अच्छी नजर से नहीं देखा गया था। लेकिन हुनर बोला। मोहक अभिनय और कशिश भरी संवाद अदायगी ने उन्हें लीजेंड बना दिया।
• बिपाशा बसु ने कैरियर की शुरवात से पहले लोगों की खुब उपेक्षा झेली।
प्रियंका चोपडा, रेखा और बिपाशा बसु को शुरवात में लोगों ने उनके सांवले रंगत की वजह से नजरअंदाज जरुर किया लेकिन अपने आत्मविश्वास और गुणों के बलबुते पर उन्होंने अपना मुकाम हासील किया।
प्राचीन भारत में सांवला और गोरा रंग
हमारे भगवान विष्णु, कृष्ण और राम सांवले है। यदि सांवला रंग कुरुपता का प्रतीक है, तो हमारे भगवान सांवले क्यों है? महाभारत में सांवले रंग की द्रोपदी को अनिंद्य सुंदरी बताया गया है। सांवले रंग को मिट्टी की उर्वरता से जोड़कर देखा जाता था। इसका यह अर्थ नहीं कि गोरे रंग को लेकर प्राचीन भारत में कोई पूर्वग्रह था। राधा चंपक के फुलों की तरह गोरी थी। सफेद रंग का संबंध दूध और मक्खन से था। न तो गोरा रंग सांवले रंग से श्रेष्ठ माना जाता था और न ही सांवला रंग गोरे से श्रेष्ठ! दोनों रंगो को समान महत्व प्राप्त था। देवियों में महाकाली भी है तो गोरे रंग की गौरी भी है। मतलब कोई भी रंग अन्य किसी रंग से बेहतर नहीं था!
रंगों से जुडे विज्ञापन
हमारे यहां गोरा बनाने का दावा करने वाली क्रीम अरबों का कारोबार करती हैं। हमारे देश में उम्मीद का बाज़ार, सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है, यह उम्मीद कि हम गोरे हो जाएंगे.....!!! एक विज्ञापन में शाहरुख लड़कों को सीख दे रहे थे, "अगर फेयर और हैण्डसम नहीं होगा तो लड़कियाँ तुझे कंधा बना कर इस्तेमाल करेंगी और तेरे हाथ कुछ नहीं आएगा।" रंगभेदी और लिंगभेदी यह विज्ञापन मुझे बार-बार कचोटता है। यह विज्ञापन न सिर्फ साँवले रंग का अपमान है बल्कि औरत को भी उसके स्त्रियोचित गुणों के लिए अपमानित करता है। शाहरुख को मैं कहना चाहती हूं कि वक्त बदल रहा है। एक पढी-लिखी कैरियर ओरिएंटेड लड़की दो दिन में ही ऐसे गोरे रंगवाले से ऊब जाएगी, जो घर में अकेली खटती हुई पत्नी का हाथ बटाने के बजाए, सिर्फ स्टाइल मारता हो! इसलिए डियर शाहरुख, यदि लड़को को सही मायने में ‘मर्द’ बनना है, तो उन्हें पहले कंधा तो बनना ही पडेगा। बोझ ढोनेवाला नहीं, सुख-दु:ख में साथ निभानेवाला। थोडा कम मर्द! जैसे आजकल की लड़कियां थोडी कम ‘लड़की’ है। वास्तव में हमसफ़र काला हुआ तो चलेगा लेकिन प्यार करनेवाला, केयर करनेवाला होना चाहिए। यह बात आज की लडकियों को भली-भांती समझती है।
विज्ञापन के मामले में मैं कंगना रनोट के हिम्मत की कायल हूं। आजकल जब हर छोटे से छोटा और बडे से बडा सितारा पैसों के लिए किसी भी तरह का विज्ञापन करने को तैयार रहता है, ऐसे में कंगना रनोट फेयरनेस क्रीम बनाने वाली एक कंपनी की ओर से आया 2 करोड़ का ऑफर ठुकरा चुकी है! उनके मुताबिक, "गोरेपन के कॉन्सेप्ट को मैं कभी समझ ही नहीं पाई। मैं ऐसी किसी क्रीम का विज्ञापन कर नौजवानों के सामने गलत उदाहरण कैसे पेश करूं, जबकि खुद मानती हूं कि कोई भी रंग किसी की सफलता का पैमाना नहीं हो सकता। आप भला किस आधार पर कह सकते है कि किसी खास रंग का इंसान बेहतर हो सकता है?" कुछ लोग रंगभेदी विज्ञापनों पर रोक लगाने की मांग करते है। लेकिन सिर्फ़ विज्ञापनों पर रोक लगाने से कुछ नहीं होगा। वास्तव में हमें हमारी सोच बदलनी होगी। रंगो पर व्हाट्स एप पर एक बढिया मैसेज आया था,
"किसी के काले रंग को मत देखों, उसके दिल को देखों!
यदि सफेद रंग में वफा होती... तो नमक जख्मों की दवा होती!!"
सांवला या काला होना कोई गुनाह नहीं है! गोरी रंगतवाले जिस तरह के हांड-मांस के बने हुए है ठीक उसी तरह के हाड-मांस से सांवली या काली रंगतवाले भी बने हुए है। भारत के एक मशहूर फ़ैशन ब्रांड ने जब अपने प्रचार के लिए एसिड अटैक की शिकार लक्ष्मी को अपना नया चेहरा बनाया था, तो स्वाभाविक रूप से लोगों को आश्चर्य हुआ था। लेकिन उस ब्रांड ने अपने डिजायनर कपड़ों में लक्ष्मी को चेहरा बनाने पर संदेश दिया कि फ़ैशन, सुंदरता और ख़ूबसूरती के कई मायने हो सकते हैं और सुंदरता बाहर से नहीं अंदर से होती हैं। अत: दोस्तो, यदि आप सांवले है... तो भी आप अपने-आप में खास है!! जो कार्य आप कर सकते है, वह कार्य कोई और नहीं कर सकता! मेहनती और पढ़े-लिखे इंसान का रंग-रुप और सुंदरता कोई नहीं देखता। इंसान का कर्म ही उसकी असली सुदंरता बन जाता हैं। अपने हुनर को पहचानकर उसे सामने लाइए। चमडी सांंवली हो तो चलेगा लेकिन आपको सच्चाई का सामना करना आना चाहिए। सही मायने में आपकी बातें, आपका व्यवहार, आपका पाक-साफ़ दिल और आपके अंतर्मन की खूबसूरती ही आपको सुंदर बनाती है। कहा जाता है,
अच्छा दिखने के लिए मत जिओ,
बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ।
अच्छा दिखने के लिए मत जिओ,
बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ।
उस बातें समाज में इतने गहरे उतरी हुयी हीं की इन भ्रांतियाँ से बाहर आना मुश्किल लगता है ... फिर बाज़ारवाद भी हावी है
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, बिल्कुल सही कहा आपने ...ये भ्रांतिया ही तो है जिससे इंसान चाह कर भी बाहर नहीं निकल सकता या यो कहिए निकलना नहीं चाहता!
हटाएंवाह!! ज्योति जी!
जवाब देंहटाएंसही बात लिखी है आपने,एकदम तथ्यों के साथ।
बहुत-बहुत बधाई।
नववर्ष की शुभकामनाएं।
धन्यवाद, सुधा! आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 02 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, यशोदा जी!
हटाएंखूबसूरत इंसान / वस्तु अथवा दृश्य नहीं होता,
हटाएंखूबसूरत होती है देखने वाले की नजर कि वह किस में क्या देखता है या क्या देखना पसंद करता है. .....
उदाहरण के लिए....
पक्षियों के घोंसले.... एक सामान्यतः बेकार चीज है...
परंतु एक प्रकृति प्रेमी के लिए उसके निर्माण की सुन्दरता अनुपम है. .. .
इसमें तुलसी दास की वह चौपाई ठीक बैठती
है... जाकी रही भावना जैसी |
प्रभु मूर्त दिखी तिन तैसी ||
बिल्कुल सहीं कहा, बैरवा जी।
हटाएंरंग-रूप पर अच्छी जानकारी और भ्रांतियों को मिटाने वाला लेख है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदरता का पैमाना गोरेपन को माना जाता है. शादी के लिए लड़की देखते समय लड़का चाहे जैसा हो, लड़की गोरी, दुबली पतली होनी चाहिए. विज्ञापन उद्योग गोरे रंग वाली मॉडलों और अभिनेत्रियों को पसंद करता है. उद्योगों ने इससे अरबों रुपये कमाये हैं. लोगों की सोच बदलना जरूरी है.
जवाब देंहटाएंनये साल के शुभ अवसर पर आपको और सभी पाठको को नए साल की कोटि-कोटि शुभकामनायें और बधाईयां। Nice Post ..... Thank you so much!! :) :)
जवाब देंहटाएंवा...व... आपने तो मेरे साथ-साथ मेरे पाठकों को भी नववर्ष की शुभकामनाएं दे दी! आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएं... जाहिर है मेरे एवं मेरे पाठकों की ओर से...
हटाएंha ha ha ...धन्यवाद ज्योति जी। It's my pleasure!! :) :)
हटाएंकिसी के काले रंग को मत देखों, उसके दिल को देखों!
जवाब देंहटाएंयदि सफेद रंग में वफा होती... तो नमक जख्मों की दवा होती!!"
..बहुत खूब!
आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
मानव मन से सुन्दर होता है
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की मंगलकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in
Insan apne rangroop ki apeksha apne karmo se jana jata hai .. nice post Jyoti madam
जवाब देंहटाएंहां, सुरवात में कठिनाईयां आ सकती है लेकिन अपने आत्मविश्वास से सांवली या काली रंगत वाले इंसान भी आसमान की उंचाइयों को छू सकते है। ये बात सही है आदरणीय ज्योति जी कि सांवला रंग बाधाएं पैदा करता है हमारे समाज में लेकिन बदलाव भी आ रहा है लोगों की सोच में ! हमारे यहां तो कहावत तो कहावत है कि काला रंग मतलब भगवान श्री कृष्णा का रंग !! बढ़िया सामाजिक पोस्ट
जवाब देंहटाएंWhat a post mam...awesome
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा topic है और आप ने काले गोरे के भेद को इतना अच्छे से समझाया है कि इसे पढकर अगर अब भी कोई न समझे तो कोई छोटी सोच वाला ही होगा । धन्यवाद ज्योंति जी इतना उम्दा लेख के लिए ।
जवाब देंहटाएंसांवली रंगत वाले या काली चमड़ी वाले भी इंसान ही होते हैं। लेकिन जो लोग रंगभेद में यकीन रखते हैं, वे सांवली रंगत रखने वाले या काली चमड़ी वाले लोगों को पशुओं के समान ही समझते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका जैसे देशों में रंगभेद के आधार पर उत्पी्ड़न सबसे ज्याहदा देखने को मिलता है।
जवाब देंहटाएंBahut accha article! kale aur gore me bhed kiya jata hai, aapne is bhranti ko bahut acchi tarah samjhaya hai....aapka dhanyavad!
जवाब देंहटाएंबढिया विश्लेषण
जवाब देंहटाएंरंग और कपड़ों के आधार पर लोगो का विश्लेषण करना लोगों की छोटी और घटिया मानसिकता का प्रमाण है ...ये कभी जरुरी नहीं होता कि काले या सांवले लोग अपनी जिंदगी में सफल नहीं हो सकते ....बहुत से लोगो ने इस बात को साबित किया बुलंदी पर पहुँचने के लिए रंग रूप कोई मायने नहीं रखता ....लोगों को अपनी सोच बदलनी चाहिये .....nice article
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ज्योति जी, बहुत ही अच्छे तथ्यो के साथ लिखी गई यह POST बहुत ही अच्छी लगी, केवल रंग के आधार पर किसी की अच्छाई या सुन्दरता को नहीं आका जा सकता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं तथ्यपरक ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन लेख।।plz also read the blog on #racism by dilip c mandal, i'm sure you'll like it.
जवाब देंहटाएंhttps://hindi.thequint.com/voices/opinion/india-highly-embarrassed-country-with-skin-especially-color-of-face
Bhut khub likha aapne dear..
जवाब देंहटाएं