मुझे पूरा विश्वास हैं कि हमारा देश कोरोना पर जीत हासिल कर ही लेगा। लेकिन कोरोना ने हमें जो अहम सबक सिखाया उस पर हमने समय रहते अमल नहीं किया तो भविष्य में कोरोना जैसे वायरस से निपटना मुश्किल होगा!
फिलहाल कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में अपना कहर ढाया हुआ हैं। आज मैं कोरोना को हराने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इस बारे में बात नहीं करुंगी क्योंकि ये सब बातें तो हर नागरिक टी वी पर, सोशल मीडिया पर देख और सून रहा हैं। मुझे पूरा विश्वास हैं कि हमारा देश अपनी जागरुकता, एकजुटता और देशभक्ति की ताकत से, हमारे डॉक्टरों और नर्सों के सेवाभाव से, आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति करने वाले हर नागरिक की कर्तव्यनिष्ठा से इस महामारी पर जीत हासिल कर ही लेगा। इसलिए आज मैं बात करना चाहती हूं कि इस कोरोना वायरस ने हमें जो अहम सबक सिखाया उस बारें में। ये सबक इतना अहम हैं कि यदि समय रहते हमने इस पर अमल नहीं किया तो भविष्य में कोरोना जैसे वायरस से निपटना मुश्किल होगा!
कोरोना ने हमें यह अहम सबक सिखाया कि देश को मंदिर मस्जिद से ज्यादा अस्पतालों और डॉक्टरों की आवश्यकता हैं!!
दोस्तों, हम सब देख ही रहे हैं कि संकट की इस घडी में देश के मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च सब बंद हैं। अब आप ही सोचिए कि क्या संकट की इस घडी में हम सब ईश्वर को याद नहीं कर रहे? ईश्वर की प्रार्थना नहीं कर रहे हैं? जब हम आज तक के मानव जाति पर आए सबसे बड़े संकट के समय घर में बैठ कर ईश्वर की आराधना कर सकते हैं, तो सामान्य स्थिति में भी घर में बैठ कर ईश्वर की आराधना क्यों नहीं कर सकते? क्या ईश्वर या अल्लाह सिर्फ़ और सिर्फ़ मंदिर या मस्जिद में ही हैं? इस संकट की घडी में मैं ने सोशल मीड़िया पर या टी वी पर एक बार भी यह बात देखी या सुनी नहीं कि अमुक जगह के लोग कह रहे हैं कि मंदिर बंद हैं तो अब हमारी प्रार्थना ईश्वर कैसे सुनेंगे? मतलब साफ़ हैं कि हमें विश्वास हैं कि ईश्वर सिर्फ़ मंदिर में ही नहीं हैं! मंदिर बंद होने पर भी ईश्वर हमारी प्रार्थना जरुर सुनेंगे!! सवाल ये हैं कि जब ईश्वर सिर्फ़ मंदिर में ही नहीं हैं तो फ़िर हम बड़े-बड़े और भव्य मंदिरों का निर्माण क्यों करते हैं? क्यों मंदिरों में हमारे खून पसीने की कमाई दान कर देते हैं?
आगे कुछ बताने से पहले हम थोड़ा सा हमारे देश के मंदिर और मस्जिद के बारे में जानते हैं-
कहा जाता हैं कि गूगल सब कुछ उगल! किंतु जब मैं ने ''देश में कूल मंदिर कितने हैं'' यह गूगल पर सर्च किया तो गुगल भी नहीं बता पाया। कहा जाता हैं कि देश के मंदिरों की संख्या गिनना समुद्र का पानी गिनने जैसा हैं। मतलब हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि पूरे देश में कितने मंदिर होंगे! हर मंदिर में उसकी भव्यता के आधार पर चढावा आता हैं। जैसे,
• श्री तिरुपति बालाजी मंदिर का सालाना बजट ही 2600 करोड़ होता हैं। अलग-अलग बैंको में इस मंदिर का करीब 3000 किलो सोना जमा हैं और मंदिर के पास 1000 करोड़ के फिक्स्ड डिपॉजिट हैं!
• केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित पद्मनामस्वामी मंदिर के पास 1300 टन सोना हैं!
• मुंबई स्थित सिद्धिविनायक मंदिर के पास 160 टन सोना जमा हैं।
• शिर्डी के साई बाबा मंदिर के पास 360 किलो सोना हैं। इस मंदिर की संपत्ति और आय अरबों में हैं। यहां हर साल लगभग 350 करोड़ का दान आता हैं।
• तमिलनाडु के वेल्लोर नगर के पहाडों पर बना महालक्ष्मी मंदिर 15 हजार किलो सोने से बना हैं। इसे दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर कहा जाता हैं।
• भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिमों की जनसंख्या सिर्फ़ 14.23 प्रतिशत हैं। इतनी कम आबादी पर विकिपिडिया के अनुसार हमारे देश में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा 3 लाख मस्जिदे हैं! जबकि भारत एक गैर इस्लामिक देश हैं!!
• एक अनुमान के अनुसार देश में अलिगढ़ के ऊपरकोट इलाके में स्थित जामा मस्जिद के निर्माण में 6 क्विंटल सोना लगा हैं। यह एशिया की सबसे ज्यादा सोना लगी मस्जिद हैं। इसमें स्वर्ण मंदिर से भी ज्यादा सोना लगा हैं।
अब थोड़ा अस्पतालों और डॉक्टरों की स्थिति देख लेते हैं।
• भारत में न पर्याप्त अस्पताल हैं, न डॉक्टर, न नर्स और न ही सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मचारी। देश में मार्च 2011 में सरकारी अस्पतालों की कूल संख्या 11,933 थी। इन अस्पतालों में कूल 7.84 लाख मरीजों के लिए बिस्तर उपलब्ध थे। इन सरकारी अस्पतालों में भी सुविधाएं बहुत कम होने से लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ता हैं।
• देश के 75 प्रतिशत मरीज प्राइवेट अस्पतालों पर ही निर्भर हैं और प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने में इतना पैसा लगता हैं कि आम जनता की कमर ही टूट जाती हैं।
• फिलहाल भारत में सिर्फ़ 9 एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) जैसे बड़े अस्पताल हैं।
• इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार देश में 1.3 अरब लोगों की आबादी के इलाज के लिए महज 10 लाख एलौपैथिक डॉक्टर हैं!
ये सब आंकडे बताने का उद्देश सिर्फ़ एक ही हैं कि देश की जनता का बहुत सारा पैसा मंदिरों और मस्जिदों पर व्यय होता हैं! और दूसरी तरफ़ हमें जो मुलभुत सुविधा मतलब अच्छे अस्पताल और अच्छे डॉक्टर चाहिए वो ही बहुत कम हैं। अस्पतालों की कमी होने की वजह से ही फिलहाल अस्पतालों में सामान्य मरीज को देखा ही नहीं जा रहा हैं ताकि कोरोना के मरीजों का इलाज हो सके। यदि हमारे पास पर्याप्त अस्पताल और डॉक्टर होते तो हम आज सामान्य मरीजों का भी इलाज कर सकते और कोरोना से होने वाली मौतों में भी कमी हो सकती थी।
मंदिरों के पास जो अरबों का धन हैं वो जनता का ही हैं। लेकिन मैं ने अभी तक एक भी समाचार नहीं सुना कि अमुक मंदिर ने इस संकट की घडी में जनता की सहायता हेतु जनता का थोड़ा सा पैसा जनता को देने का घोषित किया हो। चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो हम हर बात के लिए सरकार को जी भर-भर कर कोसते हैं कि सरकार ने ये नहीं किया, सरकार ने वो नहीं किया। आज वो ही सरकार संकट के समय जनता की हर सुविधा का ख्याल रख रही हैं। जब देश की सरकार राशन पानी दे रही हैं तो मंदिर भी तो कुछ दे ही सकते हैं। आखिर मंदिरों में पैसा जनता का ही तो हैं।
इसलिए मेरे प्यारे देशवासियों, कोरोना वायरस ने हमें यह बहुत अहम सबक सिखाया हैं कि
• अपने खून पसीने की कमाई मंदिरों और मस्जिदों में मत लगाओ! संकट के समय ये अपने दरवाजे बंद रखेंगे। सिर्फ़ दर्शन के लिए दरवाजे बंद ही नहीं रखेंगे तो हमारी आर्थिक रुप से भी कोई सहायता नहीं करेंगे!!
• हमारी खून पसीने की कमाई से जो भी बचता हैं उससे हमें अच्छे-अच्छे और बड़े-बड़े अस्पताल बनवाने चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की महामारी से कम से कम लोगों की जान जाएं।
• डॉक्टर की पढ़ाई में बहुत पैसा लगता हैं इसलिए बहुत सारे काबिल युवा ऐसे हैं जो पैसों की कमी की वजह से डॉक्टर नहीं बन सकते। इसलिए या तो डॉक्टर की पढ़ाई की फीस कम की जानी चाहिए या मेरीट लिस्ट के अनुसार होशियार युवाओं को आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए ताकि देश में डॉक्टरों की संख्या बढ़ाई जा सके।
अभी अभी एक बहुत ही सकारात्मक खबर पढ़ी की बोधगया मंदिर गया (बिहार) ने कोरोना से लड़ने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में एक करोड़ रुपए देने की घोषणा की हैं। काश, इस मंदिर से प्रेरणा लेकर बाकि मंदिर भी ऐसा करे।
अभी अभी एक बहुत ही सकारात्मक खबर पढ़ी की बोधगया मंदिर गया (बिहार) ने कोरोना से लड़ने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में एक करोड़ रुपए देने की घोषणा की हैं। काश, इस मंदिर से प्रेरणा लेकर बाकि मंदिर भी ऐसा करे।
निवेदन-
ये मेरे अपने विचार हैं। जरुरी नहीं कि आप इससे सहमत ही हो। लेकिन भविष्य में कोरोना जैसे खतरनाक वायरस से लडने के लिए हमें अस्पतालों और डॉक्टरों की संख्या बढानी ही होगी ताकि कम से कम लोगों की जान जाएं...और उसके लिए पैसा मंदिरों के चढावे में से आ सकता हैं!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
29/03/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कुलदीप भाई।
हटाएंउपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक.... आपने तो मेरे मन की बात लिख दी ज्योति जी!सही कहा मंदिर मस्जिद ज्यादा हैं और हॉस्पिटल कम...।मंदिरों में इस विपत्ति की घड़ी में ताले क्यों...कुछ गुरुद्वारे बेघर और पलायन कर रहे गरीबों के लिए आसरा बने हैं मंदिर क्यों नहीं... इतने मंदिरों में अगर इन लोंगो को आसरा मिल जाता तो आज ये लोग सड़कों पर पैदल नहीं भटक रहे होते, और भारत की तस्वीर कुछ और होती।अक्सर हर सोसायटी अपना एक मंदिर बनवा रही है पर बहुत कम सोसायटियों में हास्पिटल जैसी सुविधाएं हैं...और मंदिरों के इस धन का लेखा-लेने भगवान आयेंगे क्या? भगवान के बन्दे भूखे मर रहे हैं और ये भगवान के नाम पर मंदिरों में धनसंग्रह कर ताले मार कर बैठे हैं ...
जवाब देंहटाएंये कैसी विडंबना हैं...
सुन्दर सार्थक समसामयिक लेख हेतु बधाई एवं साधुवाद।
सुधा दी,यहीं तो हमारी विडंबना हैं कि सब कुछ जानते हुए भी लोग हॉस्पिटल खुलवाने की जगह मंदिरों में अपने खून पसीने की कमाई दान कर देते हैं।
हटाएंसटीक बात लिखी है आपने,मैम। अगर ऐसा हो जाए तो देश में स्वास्थ्य सेवाओं के हाल अच्छे हो जाये। कोई गरीब इलाज की कमी के चलते न मरे। कुछ ही महीनों पहले हम ऐसे कितनी घटनाओं को देख चुके हैं जिसमें पैसे की कमी के चलते ईलाज न होने से व्यक्ति की मृत्यु तो हो ही गयी बल्कि उसके शरीर को भी परिवार जनों को खुद ही ढोकर ले जाना पड़ा। देश में यह पैसा हो तो ऐसी घटनाओं में कमी आएगी। सार्थक आलेख।
जवाब देंहटाएंविकास भाई, यदि हमारे देश में लोगों को यह बात समझ में आ जाएं तो ईलाज के अभाव में होने वालि मौतों में जरुर कमी आयेंगी।
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