आजकल के युवाओं में लिव इन रिलेशनशिप का मोह बढ़ता जा रहा हैं। लिव इन का रिश्ता ऊपर से लुभावना नजर आता हैं, पर अंदर से वो बहुत ज्यादा खोखला हैं।
आजकल के युवाओं में वैवाहिक रिश्ते की वैकल्पिक व्यवस्था लिव इन रिलेशनशिप का मोह बढ़ता जा रहा हैं। उनका कहना हैं कि इससे साथी को समझने परखने में आसानी होती हैं, वे पूरी जिंदगी का जुआ खेलना नहीं चाहते और यदि दोनों के आचार विचार मिले तो ही शादी करने में भलाई हैं। लेकिन वे लोग लिव इन की भयावहता से अनजान हैं। कई युवाओं को ये पता ही नहीं हैं कि लिव इन में भी जबाबदारी होती हैं!
लिव इन रिलेशनशिप का मतलब
जब बालिग लड़का और लड़की अपनी मर्ज़ी से विवाह के बंधन में बंधे बिना घर की एक ही छत के निचे पति-पत्नी की तरह रहते हैं तो उस संबंध को लिव इन रिलेशन कहते हैं। लिव इन भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का व्यक्तिगत एवं आर्थिक प्रबंध मात्र हैं। इस में हमेशा के लिए साथ देने का कोई वादा नहीं होता। लिव इन में रहने का फैसला कितना सही होगा या कितना गलत होगा ये तो कोई नहीं बता सकता। किसी भी रिश्ते को लंबे समय तक टिकाने के लिए उसके नियम-कानून और कुछ व्यवहारिक बातों को जानना जरूरी हैं। इस विषय पर बनी फिल्म "लव के फंडे" बनने से पहले यशराज प्रोडक्शन ने मैक्स मीडिया के साथ मिल कर एक सर्वे कराया था। जिस में 68% युवाओं का मानना था कि लिव इन प्यार नहीं वासना हैं। 72% लोगों ने माना कि इस का अंत ब्रेक अप होता हैं।
लिव इन रिलेशनशिप पर कानून क्या कहता हैं?
लिव इन में रहने के लिए भी उच्चतम न्यायालय की कुछ शर्तें हैं जैसे कि
• दोनों बालिग हो
• दोनों ही अविवाहित या तलाक़शुदा हो
• एक समय में एक ही रिलेशनशिप में रहना जरूरी हैं।
• किसी से विवाह के बाद संबंध बनाए तो यह लिव-इन रिलेशनशिप नहीं हैं।
• यदि पति की मौत हो जाती हैं, तो महिला संपत्ति में हिस्सेदारी मांग सकती हैं।
• किसी से विवाह के बाद संबंध बनाए तो यह लिव-इन रिलेशनशिप नहीं हैं।
• यदि पति की मौत हो जाती हैं, तो महिला संपत्ति में हिस्सेदारी मांग सकती हैं।
कोई भी पुरुष या महिला लिव इन को खेल न समझे इसलिए कानून बनाए गए हैं। ताकि कोई पुरुष केवल सेक्स संबंध के लिए किसी लड़की के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद छोड़ ना सके। अगर वह छोड़ता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। लिव इन में रहने वाली महिलाओं के पास वो सारे कानूनी अधिकार हैं, जो भारतीय पत्नी को संवैधानिक तौर पर दिए गए हैं।
• घरेलू हिंसा से संरक्षण प्राप्त
• प्रॉपर्टी पर अधिकार
• संबंध विच्छेद की स्थिति में गुजारा भत्ता
• बच्चे को विरासत का अधिकार
मतलब यह कि लिव इन रिलेशन में रह रहे पुरुष को भी पति की तरह सारी ज़िम्मेदारी उठानी पड़ती हैं। साथ ही यदि वह बगैर धोखा दिए यानी आपसी सहमति से भी रिश्ता तोड़ते हैं तो भी कोर्ट के फैसले के आधार पर जुर्माना लग सकता हैं। उन्हें साथी महिला को गुजारा भत्ता देना पड़ सकता हैं और यदि इस रिश्ते से बच्चा पैदा हुआ हैं तो उसका संपत्ति पर अधिकार भी होता हैं। ज्यादातर युवाओं को ये कानून पता नहीं हैं। इसलिए वे सोचते हैं कि लिव इन में सिर्फ मौज़ मस्ती हैं और जिम्मेदारियां कुछ नहीं हैं। यहीं सोचकर उनका रुझान इस ओर बढ़ रहा हैं। लेकिन वास्तविकता यहीं हैं कि दूर के ढोल सुहाने लगते हैं!
लिव इन के प्रमुख लाभ
• शादी से पहले ही साथी का साथ मिलने से साथी को जानने में आसानी होती हैं।
• इस रिश्ते में सामाजिक एवं पारिवारिक नियम लागू नहीं होते।
• वैवाहिक जीवन की जबाबदारी नहीं होती।
• संबंध समाप्त होने पर तलाक जैसे झंझट से झुटकारा मिलता हैं।
ये लाभ युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं। लेकिन लाभ की तुलना में लिव इन के नुकसान ज्यादा हैं।
लिव इन के नुकसान
• साथी से वफ़ा चाहिए तो लिव इन सही नहीं हैं
वर्तमान लिव इन रिश्तों का भावी वैवाहिक रिश्तों पर भी गहरा असर होता हैं। एक अध्ययन के मुताबिक यदि कोई शख्स शादी से पहले सेक्स का अनुभव करता हैं, तो इस बात की संभावना ज्यादा रहती हैं कि शादी के बाद भी उस के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स रहेंगे। अध्ययनों के मुताबिक जो पुरुष एवं महिलाएं शादी से पूर्व लिव इन में नहीं रहे उनमें से 90% पुरुष और महिलाएं अपने साथी के प्रति वफादार रहे। जबकि शादी से पूर्व लिव इन में रह रहे सिर्फ 60% महिलाएं और 43% पुरुष ही अपने साथी के प्रति वफादार रहे।
ये आंकड़े बताते हैं कि यदि आप चाहते है कि आपका लाइफ पार्टनर आपके प्रति वफादार रहे तो लिव इन में न रहे।
लिव इन का महिलाओं पर गलत असर होता हैं
हमारा समाज कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाएं इस के मापदंड हमेशा पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग रहे हैं। समाज ऐसी महिलाओं को इज़्ज़त की नज़रों से नहीं देखता। कभी-कभी तो लिव इन के तनाव के कारण और गर्भ धारण होने की स्थिति में कई महिलाएं आत्महत्या तक कर लेती हैं। टीवी स्टार प्रत्यूषा बनर्जी (बालिका वधु की आनंदी) अपने ब्वॉयफ़्रेंड राहुल राज के साथ लिव इन में रह रहीं थी। वो प्रेग्नेंट थी और राज से शादी करना चाहती थी। लेकिन शायद राहुल इसके लिए तैयार नहीं था। इस मानसिक तनाव से ग्रस्त प्रत्यूषा बनर्जी अपने घर में फाँसी के फंदे पर लटकी पाई गई।
• कई मामलों में लड़के लड़कियों का अश्लील वीडियो बना लेते हैं। बाद में अलग होने पर यहीं वीडियो लड़कियों की जिंदगी नर्क बना देते हैं। शादी के बाद लड़कियाँ हमेशा इस डर के साथ जीती हैं कि कहीं ये वीडियो ससुराल वालों के हाथ न लग जाए या सोशल मीडिया पर अपलोड न हो!
• जो लड़कियाँ ऐसे रिश्ते से गर्भवती हो जाती हैं उनको आज भी हमारा समाज स्वीकार नहीं करता। कई बार तो लड़के ख़ुद ऐसी लड़कियों से किनारा कर लेते हैं। उनका कहना होता हैं कि जो लड़की शादी से पहले किसी के साथ सो सकती हैं वो शादी के बाद भी...इतना ही नहीं कुछ लड़के तो साफ़-साफ शब्दों में यहां तक कह देते हैं कि वो बच्चा उनका हैं ही नहीं! ऐसे में लड़की न घर की रहती हैं न घाट की!!
इसलिए खासकर लड़कियों को लिव इन रहने से पहले सौ बार सोचना चाहिए।
इम्यून सिस्टम कमजोर होता हैं
लिव इन में लिव आउट का विकल्प हमेशा खुला रहने से असुरक्षा और अनिश्चिंत भविष्य की चिंता हमेशा लगी रहती हैं। जिससे ऐसे लोग अवसाद और भावनात्मक उथल पुथल के शिकार होते हैं। थोड़ी उम्र बीतने के बाद हर इंसान अपने जीवन मे स्थिरता चाहता हैं। लेकिन लिव इन में रहने वाले हमेशा इस दुविधा में रहते हैं कि परिवार बढ़ाएं या न बढ़ाएं...इस दुविधा के कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ने से इन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता हैं।
अपराधबोध से उपजी बेचैनी
ज्यादातर मामलों में लिव इन में रह रहे लड़के-लड़कियों को माँ-बाप की सहमति न मिलने से उन्हें इस रिश्ते का राज छिपा कर रखना पड़ता हैं। इस विषय पर हाल ही में बनी फिल्म "लुका-छुपी" में यह बात बहुत अच्छी तरह बताई गई हैं कि लिव इन में रह रहे नायक-नायिका को अपने संबंधों को छिपाने के लिए कितने और कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं। उन लोगों को अपने माँ-बाप से लगातार झूठ बोलने का अपराधबोध कितना सताता हैं और इससे वे कितने ज्यादा बेचैन हो जाते हैं।
लड़कियों के लिए तो यह भयावह हैं ही लेकिन लड़कों के लिए भी कम भयावह नहीं हैं। क्योंकि कई बार लड़कियाँ भी लिव इन में रहने के बाद लड़कों पर रेप का केस दर्ज कर देती हैं।
लिव इन का रिश्ता ऊपर से लुभावना नजर आता हैं, पर अंदर से वो बहुत ज्यादा खोखला हैं। लड़कों के लिए नुकसानदायक इसलिए हैं क्योंकि सहमति से अलग होने पर भी न्यायालय लड़के पर जुर्माना लगा सकती हैं और लड़की रेप का केस कर सकती हैं! लड़कियों के लिए इसलिए नुकसानदायक हैं कि समाज के ताने सुनने पड़ेंगे और लड़का अश्लील वीडियो बनाकर ब्लैकमेल कर सकता हैं!!
इसलिए इस लेख के माध्यम से मैं आज के युवाओं को यहीं कहना चाहती हूं कि लिव इन में रहने से पहले इसके सभी पहलुओं पर गौर अवश्य करें।
इसलिए इस लेख के माध्यम से मैं आज के युवाओं को यहीं कहना चाहती हूं कि लिव इन में रहने से पहले इसके सभी पहलुओं पर गौर अवश्य करें।
आपके विचार पूर्णत: उचित हैं आदरणीया ज्योति जी । यदि एक पुरुष और स्त्री एक दूसरे को पसंद करते हैं तो अच्छा है कि विवाह करके ही साथ रहें । स्त्री को लिव-इन संबंध में तभी जाना चाहिए जब वह आर्थिक रूप से पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर हो एवं सामाजिक रूप से भी सशक्त हो अन्यथा यह उसके लिए प्रत्येक प्रकार से हानिकारक ही है । इसके अतिरिक्त यदि ऐसी स्वावलम्बी स्त्री लिव-इन संबंध में जाए भी तो अच्छा यही है कि वह लिव-इन की अवधि को कम-से-कम रखे एवं मातृत्व तभी प्राप्त करे जब वह लिव-इन संबंध उस युगल के विवाह में परिणत हो जाए क्योंकि संसार में आने वाले प्रत्येक शिशु को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है जिससे उसके माता-पिता उसे वंचित नहीं कर सकते । लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा (यदि आप इस तथ्य को नहीं जानती हैं) कि लिव-इन जैसी ही प्रथा अनेक दशकों से राजस्थान के अनेक गाँवों में नाता-प्रथा के नाम से प्रचलित है जिसे पंचायतें भी मान्यता देती हैं । इस प्रथा के अंतर्गत स्वतंत्र स्त्रियां ही नहीं, विवाहिताएं भी किसी अन्य पुरुषों के साथ पत्नी के रूप में रहने के लिए चली जाती हैं (पतियों को छोड़कर) जिसे 'नाते चले जाना' कहते हैं । लेकिन ऐसी स्त्रियां प्रायः अशिक्षित एवं परनिर्भर ही होती हैं । परंतु सौ बातों की एक बात यही है कि लिव-इन का संबंध न तो गरिमापूर्ण है और न ही तर्कपूर्ण । इससे केवल लम्पट, चरित्रहीन एवं अनुत्तरदायी पुरुषों को ही कोई लाभ हो तो हो; स्त्रियों, बालकों एवं सामाजिक व्यवस्था को तो हानि ही होती है ।
जवाब देंहटाएंजितेंंद्र भाई, इतनी त्वरित और सारगर्भित टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बिल्कुल सही कहा आपने कि लिव-इन का संबंध न तो गरिमापूर्ण है और न ही तर्कपूर्ण। इससे केवल लम्पट, चरित्रहीन एवं अनुत्तरदायी पुरुषों को ही कोई लाभ हो तो हो; स्त्रियों, बालकों एवं सामाजिक व्यवस्था को तो हानि ही होती है।
हटाएंहम पाश्चात्य मूल्यों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना रहे हैं. संयुक्त परिवार की परंपरा का निर्वाहन अब एक अपवाद हो गया है. पाश्चात्य देशों की भांति भारत में भी विवाह को और स्त्री-पुरुष के मध्य संबंधों को अब एक धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक दायित्व के रूप में नहीं, बल्कि आपसी सहमति से दो व्यक्तियों के मध्य स्थापित समझौते के रूप में देखा जा रहा है. अब विवाह को सात जन्मों का सम्बन्ध नहीं माना जाता है.
जवाब देंहटाएंलिव-इन-रिलेशनशिप की अपनी अच्छाइयां भी हैं और अपनी बुराइयाँ भी हैं. अगर स्त्री-पुरुष अपने संबंधों का निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं तो उन्हें ज़बर्दस्ती खींचने की या ढोते रहने की ज़रुरत नहीं है, वो उन्हें बिना किसी कठिनाई के तोड़ सकते हैं. लेकिन इस प्रकार के समझौतों में भावनाओं का प्रायः लोप हो जाता है और सौदेबाज़ी ज़्यादा हो जाती है.
लेकिन अब माँ-बाप द्वारा अपने बच्चों की शादी तय किए जाने का दौर तो ख़त्म ही हो जाना चाहिए. लिव-इन रिलेशनशिप को युवा पीढी अपनाए या उसे अस्वीकार करे लेकिन यह ज़रूरी है कि स्त्री-पुरुष के मध्य संबंध में सबसे ज़रूरी बात आपसी सहमति और आपसी पसंद होनी चाहिए.
गोपेश भाई, अपनी पसंद से हमसफर चुनना और लिव इन में रहना दोनों थोड़ी सी अलग बातें हैं। मेरा मानना हैं कि इंसान को अपने मनपसंद का हमसफर चुनने का अधिकार अवश्य होना चाहिए। लेकिन जहां तक साथ में रहने की बात हो तो शादी करके ही साथ रहना चाहिए! नहीं तो हमारा सामाजिक ढाचा पूरी तरह अस्तव्यस्त हो जाएगा और हम आने वाली पीढी को भी अच्छे संस्कार नही दे पायेंगे। क्योंकि लिव इन से पैदा हुए बच्चों को समाज में स्विकृति नहीं मिल पाती हैं।
हटाएंज्योति जी बहुत ही संवेदनशील मुद्दे को आपने उठाया है और इस व्यवस्था का बहुत ही तर्कपूर्ण विश्लेषण कर सभी हानि लाभों की समुचित मीमांसा भी की है ! मैं आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ ! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने के कुछ नियम कायदे होते हैं जिनका निर्वहन आवश्यक है सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ! विवाह संस्कार निश्चित रूप से समाज में संयम, नैतिकता और जीवन मूल्यों को बनाए रखने के लिए एक समुचित व्यवस्था है ! लिव इन में रहने का अर्थ इसके नियमों को अस्वीकार कर दायित्वों से पलायन करने की चेष्टा है जो किसी भी प्रकार से उचित नहीं ! फिर एक समझदार इंसान और जंगली जानवरों में क्या अंतर रह जाएगा ! लिव इन की प्रथा को मान्यता देकर हम समाज में स्त्रियों और बच्चों की स्थिति को फिर से दयनीय और असुरक्षित बना रहे हैं ! एक स्वस्थ समाज में हर प्राणी भयमुक्त होता है और स्वयं को सुरक्षित समझता है लेकिन लिव इन रिलेशनशिप की व्यवस्था को अपनाने के बाद समाज का यह ढाँचा बिलकुल चरमरा जाएगा और हर व्यक्ति तनावग्रस्त, असुरक्षित और भयभीत रहेगा ! यह व्यवस्था तो जंगल के जानवरों से भी गयी गुज़री है ! जंगली जानवर जहाँ चाहे और जिसके भी साथ चाहे सम्बन्ध बना कर उस बात को भूल जाते हैं यह एक नैसर्गिक क्रिया की तरह है लेकिन तेज़ दिमाग वाला आदमी तो स्त्री की अश्लील वीडियो बना कर यहाँ उनका और अधिक मानसिक, दैहिक और आर्थिक शोषण करने से भी नहीं चूकता !
जवाब देंहटाएंसाधना दी, वा...व्व...आपने तो बहुत ही अच्छे से लिव इन के बारे में बताया कि एक स्वस्थ समाज में हर प्राणी भयमुक्त होता है और स्वयं को सुरक्षित समझता है लेकिन लिव इन रिलेशनशिप की व्यवस्था को अपनाने के बाद समाज का यह ढाँचा बिलकुल चरमरा जाएगा और हर व्यक्ति तनावग्रस्त, असुरक्षित और भयभीत रहेगा! यह व्यवस्था तो जंगल के जानवरों से भी गयी गुज़री है! जंगली जानवर जहाँ चाहे और जिसके भी साथ चाहे सम्बन्ध बना कर उस बात को भूल जाते हैं यह एक नैसर्गिक क्रिया की तरह है लेकिन तेज़ दिमाग वाला आदमी तो स्त्री की अश्लील वीडियो बना कर यहाँ उनका और अधिक मानसिक, दैहिक और आर्थिक शोषण करने से भी नहीं चूकता!
हटाएंबहुत ही सही विश्लेषण किया हैं आपने।
आज के सन्दर्भ में सार्थक लेख ज्योति जी !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-11-2019) को "राह बहुत विकराल" (चर्चा अंक- 3512) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंYou have covered up all the necessary and practical details.
जवाब देंहटाएंTruly i did not know that so many legal issues are attached with it.
बहुत अच्छा लेख ज्योति जी। मैं यह मानती हूँ कि लिव इन का रिश्ता एक तरह की सौदेबाजी ही है। प्रेम पर आधारित नहीं। यदि मित्रों की तरह साथ रहना हो,या एक दूसरे को समझने के लिए साथ रहना हो तो भी शारीरिक संबंधों की हद तक नहीं जाने में ही दोनों की भलाई है।
जवाब देंहटाएंआपका यह लेख प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में भी छपना चाहिए।
हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, मीना दी।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 07 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख लिखा ज्योति जी। आजकल के बच्चे इसे अपना स्टेटस समझने लगें हैं। बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंतुलनात्मक रूप से आपने इस बात को बाखूबी उठाया है ... मुझे नहीं लगता हमारा समाज अभी ऐसी किसी भी बात के लिए तैयार है ... अभी तक मुझे भी इस बारे में कोई अच्छाई नहीं नज़र आई ... अपने जीवन को और कठिन और काम्प्लेक्स कर देते हैं हम खुद ही ... सीधा सादा जीवन अच्छा रहता है यही ठीक है ...
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी की बात का समर्थन करता हूँ, मेरी भी वही राय है
जवाब देंहटाएंAaj ke samay ka behtarin lekh live in ka rishta n to garimaPurna hai n hi tarkpurn
जवाब देंहटाएंbahut hi jaruri hai aaj ke yuvao ke liye yah post...........
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील मुद्दे को आपने उठाया है ज्योति जी।
जवाब देंहटाएंBohut achcha laga
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंReally nice so lovely thanks such a lot for sharing this post, I appreciate your work.It was an excellent informative post.Go such a large amount of helpful and informative links.Loved your writings also. construct of the subject was well discussed. like to return here again.Bangla Shayari Please find our website content.