इतनी महंगी साड़ी लेने की तुम्हारी हैसियत हैं क्या? क्या तुम्हारे माँ-बाप ने लेकर दिए थे तुम्हें कभी इतने महंगे कपड़े?'' साड़ी की किंमत 4000 रुपए देख कर प्रदीप ने उपेक्षा से शिल्पा से कहा।
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इमेज-गूगल से साभार |
मॉल में बारिश की सेल में दोनों खरेदी करने आएं थे। वास्तव में प्रदीप की तनख्वाह के हिसाब से साड़ी की किमत ज्यादा नहीं थी। असल बात यह थी कि शिल्पा के पापा की छोटी सी किराणा की दुकान थी। उसके पापा मध्यमवर्गिय श्रेणी में आते थे और प्रदीप उच्चवर्गिय श्रेणी में। इसी बात का प्रदीप को बहुत घमंड था। वो शिल्पा को नीचा दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता था। हर छोटी से छोटी बात में वो शिल्पा को इस बात का एहसास जरुर करवाता था कि वो गरीब घर से आई हैं! आज भी शिल्पा को इसी बात का एहसास करवाते हुए उसने यह बात कही।
शिल्पा अपमान का घूंट पीकर आगे बढ़ गई। प्रदीप का इस तरह ताना मारना उसे अंदर तक लहुलूहान कर गया। वैसे उसके लिए यह कोई नई बात नहीं थी। उसकी शादी को पांच साल हो गए थे। इन पाँच सालों में न जाने कितनी बार सास-ससुर, नणंद और पतिदेव ने ऐसे ताने मारे...लेकिन फ़िर भी न जाने क्यों आज उसकी सहनशक्ति जवाब दे गई। प्रदीप ने अपने लिए जींस और टी शर्ट्स लिए। जब वे लोग बिलिंग काउंटर पर आएं तो प्रदीप के अकेले के कपड़ों का बिल हुआ 26,250 रुपए! पेमेंट करने से पहले प्रदीप बोला, ''जाओ शिल्पा, तूम भी अपने लिए वो साड़ी ले लो...तूम भी क्या याद करोगी कि किस रईस से पाला पड़ा हैं, जो इतनी महंगी साडी पहनने मिल रही हैं! जाओ...ले..लो...साडी!''
काउंटर वाले सेल्स बॉय की तरफ़ देख कर प्रदीप बोला, ''बीवी को नाराज नहीं कर सकते न? होम मिनिस्टर हैं वो घर की! साड़ी महंगी हैं तो क्या हुआ खरीदनी तो पडेगी!''
शिल्पा को चुपचाप खड़ा देख कर प्रदीप ने फ़िर कहा, ''अरे, जाओ न...ले आओ अपने पसंद की साडी...मैं नाराज नहीं हौउंगा...मैं ने यूं ही थोड़ा सा मजाक किया था...तूम तो बुरा मान गई!''
शिल्पा ने दृढता से कहा, ''नहीं, मुझे नहीं लेनी कोई साडी! आप बिलिंग करवाकर गाडी के पास आ जाइयेगा। मैं वहीं जा रही हूं।''
इतना कह कर शिल्पा वहां से चली गई। जब प्रदीप वापस आया तो उसने देखा कि शिल्पा की आंखे सूजी हुई हैं। मतलब वो रोई हैं! गाडी चलाते हुए उसने कहा, ''तूम तो हर बात को सीरियसली ले लेती हो! तुम्हें तो पता हैं मेरी मजाक करने की आदत हैं...मैं ऐसे ही कुछ भी बोल देता हूं...मेरे मन में थोडे ही कुछ रहता हैं। मैं तो तूम से बहुत प्यार करता हूं। मैं हरदम तुम्हारे पसंद की चीजे खरीदकर देता हूं कि नहीं? फ़िर यदि एकाध बार मैं ने मजाक में कुछ कह दिया तो कौन सा पहाड टूट गया? इतनी सी बात पर रोने-धोने की क्या बात हैं? तुम से तो बात करना ही बेकार हैं! पति हूं तुम्हारा! क्या मुझे इतना भी हक नहीं कि अपनी पत्नी से थोड़ी सी हंसी मजाक कर लूं?''
''देखिए, हैसियत की बात अक्सर वो लोग करते हैं, जो प्यार का मोल पैसे में लगाते हैं! आप कहते हो न कि आप मुझ से बहुत प्यार करते हो...तो यह कैसा प्यार हैं आपका, जो आपकी पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता? मैं ने ये कभी नहीं कहा कि आप मुझे मेरी पसंद की चीजे दिला कर नहीं देते। लेकिन चीजे दिलाते वक्त आप एहसान जरुर जताते हैं। जैसे घर को सुचारू रुप से चलाना, घर में बच्चों से लेकर बुजुर्गों का ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी हैं, ऐसा कर कर मैं किसी पर एहसान नहीं करती; ठीक वैसे ही मेरी जरुरत की चीजे दिलवाना आपका फ़र्ज हैं। चीजे दिलवाकर आप मुझ पर कोई एहसान नहीं करते। रहीं बात सस्ती और महंगी चीजों की तो मेरे माता-पिता गरीब थे तो उन्होंने अपनी हैसियत के हिसाब से मुझे चीजे दिलवाई। लेकिन मुझे इस बात पर गर्व हैं कि उन्होंने कोई भी चीज दिलवाते वक्त एहसान नहीं जताया और इतनी गरीबी में भी हम दोनों भाई-बहनों की सभी जरुरते पूरी की। मेरे माता-पिता गरीब हैं यह बात आपको एवं आपके परिवार वालों को पहले से ही पता थी। यदि आपको गरीबी से इतनी ही नफरत हैं तो न करते मुझ से शादी! किसी अमीर घराने की लडकी से शादी करते! मम्मीजी-पापाजी ने ही कहा था न कि उन्हें पैसा नहीं चाहिए...उन्हें तो बस लड़की सुंदर और सुशील चाहिए जो पूरे घर को घर बना कर रखे। फ़िर अब क्यों घर के सभी लोग बात-बात में मेरे माता-पिता की गरीबी का उपहास उडाते हैं? मुझे ताने मारते हैं? रहीं बात आज महंगी साड़ी खरीदने के हैसीयत की तो प्रदीप, अब मैं आपकी पत्नी हूं और इस नाते मेरी हैसियत वहीं हैं जो हैसियत आपकी हैं। मेरी हैसियत वो नहीं हैं, जो हैसियत मेरे माता-पिता की हैं। मैं कहना तो नहीं चाहती हूं लेकिन कहने की मजबूरी हैं कि वास्तव में मेरे माता-पिता की हैसियत आपके माता-पिता से कहीं ज्यादा अच्छी हैं! क्योंकि मेरे माँ-बाप तो सिर्फ़ पैसों से गरीब हैं...लेकिन अपनी गरीबी के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं! ये तो अपको भी पता हैं कि आप लोगों के इतने ताने सुनने के बावजूद मैं चुप रहती हूं। मैं ने आज तक घर में किसी को भी पलट कर जवाब नहीं दिया। लेकिन आपके माँ-बाप ने तो आपको मैनर्स ही नहीं सिखाये हैं...आपकी पत्नी आपकी हमसफर हैं, उसका सम्मान करना चाहिए यह तक नहीं सिखाया! इस पैमाने पर मेरे माता-पिता की हैसियत आपके माता-पिता से कई गुना उंची हैं!!!''
प्रदीप को शिल्पा से ऐसे जवाब की कतई आशा नहीं थी। वो चुपचाप गाड़ी चलाता रहा। शिल्पा को विश्वास हो गया कि अब कभी भी प्रदीप शिल्पा के माता-पिता की हैसियत को लेकर उसे ताना नहीं मारेगा!!
Bahut sahi.aise logo ko aisa hi jawab milna chahiye.usne Shanti se apni baat bhi rakh di aur hamesha ke liye sabak bhi de Diya.
जवाब देंहटाएंBahut badhiya àchcha sabak Mila parayo ke samne insult karñe ka
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-09-2019) को "अपना पुण्य-प्रदेश" (चर्चा अंक- 3446) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंसंबंध कितने भी आत्मीय हो, आत्मसमर्पण भी हम क्यों न करें ,परंतु आत्म सम्मान को बनाएं रखें। यही जीवन की पाठशाला से आखिरी बार सीख कर मैं अभी बाहर निकला हूँ और आपकी यह कहानी भी बिल्कुल वैसी है ।
जवाब देंहटाएंकिसी से स्नेह का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने मान, सम्मान एवं स्वाभिमान को गिरवी रख दें।
सुंदर और सार्थक रचना के लिये आभार।
बहुत सुंदर और गहरी बात सच जब आत्म सम्मान पर कोई बार बार प्रहार करे तो संस्कारी से संस्कारी भी बोल उठता है बहुत सटीक शब्दों में शिल्पा ने सब कुछ आखिर कह दिया जो शायद उसे काफी पहले कह देना था ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत प्रभावी कथानक ज्योति बहन।
सही कहा कुसुम दी कि आत्मसम्मान की रक्षा हेतु कभी कभी कड़ा रुख अपनाना ही पड़ता हैं।
हटाएंबहुत बढ़िया प्रसंग, अपने आत्मसम्मान के लिए शिल्पा ने सही कदम उठाया.
जवाब देंहटाएंशिल्पा ने सही किया आत्मसम्मान से बड़ा कुछ नहीं । बहुत सुन्दर कहानी
जवाब देंहटाएंसार्थक अंत वाली अच्छी कहानी , हर महिला को यह याद रखना चाहिए की उसका आत्मसम्मान भी कीमती है और इसे नीचा करने का हक़ किसी को नहीं
जवाब देंहटाएंVery nice story, you have wonderfully explained the "Manners" and "teachings of parents" through the voice of Shilpa.
जवाब देंहटाएंसंस्कारों के नाम पर शरीफ घरानों की बेटियां अक्सर अपने मान सम्मान की बलि चढ़ा देती हैं। उनकी चुप्पी सामने वाले के हौसलों को और अधिक बढ़ावा देती हैं । यदि पहले ही अवसर पर, जो सही है केवल वही होने दिया जाए तो ये नौबतनहीं आती। मेरा मानना है कि कारण चाहे कुछ भी हो (डर, संस्कार), जब मुद्दा अपने सम्मान का हो तो महिलाओ को खास चौकसी बरतनी चाहिए....शिल्पा के माध्यम से ज्योति जी आपने बहुत अच्छा संदेश दिया....आपको बधाई!
जवाब देंहटाएंसही कहा प्रीति दी कि अपने आत्मसम्मान हेतु हमें ही सचेत रहना होगा। यदि महिलाएं चुपचाप सहन करती रही तो सभी लोग उसका फायदा उठाते हैं।
हटाएंबहुत अच्छी कहानी ...
जवाब देंहटाएंसंस्कार ज्यादा जरूरी हैं एक अच्छा इंसान रहने के लिए ... पैसा आणि जानी चीज़ है ...
इस कहानी के माध्यम से एक कड़ा और अच्छा सन्देश दिया है ... हर संस्कारी को ये दृढ़ता दिखानी जरूरी है ...
Bahut achchhi kahani.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सीख देती कहानी...अपने माता-पिता का अपमान सुनने के बाद चुप्पी साधने वाली बहुएं ससुरालियों को बहुत संस्कारी लगती हैं....और उसकी सहनशीलता की परीक्षा भी बार बार लेते हैं उसके मांबाप की हैसियत याद दिलाकर....।परिवार की सुख शान्ति के लिए सहना ठीक है पर इतना भी क्या सहना कि अपने मन की सुख शान्ति चली जाय....ऐसे में बोलना परम आवश्यक है ठीक शिल्पा की तरह...
जवाब देंहटाएंलाजवाब कहानी।
संवेदनशील सबक़ देती रचना/घटना ... मार्मिक भी ...
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