जानिए, एक कामवाली बाई कितनी मजेदार तरीके से अपनी काम करने की शर्तें बताती हैं और बुद्धिमत्ता पुर्ण बातें करके अपनी सारी शर्तें मनवा लेती हैं....
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इमेज- गूगल से साभार |
मुझे काम वाली बाई रखना था तो इस बारे में सोसायटी के वॉचमन से बात करने पर उसने एक कामवाली बाई को भेजा। मैं ने सोचा कि काम पर लगाने से पहले उससे सब बातें तय कर लूं जैसे कि क्या महिना लेगी...कितने बजे आएगी...ज्यादा छुट्टियाँ तो नहीं लेगी...आदि। मैं उससे कुछ पुछती उसके पहले ही वो शुरु हो गई, ''मैडम जी, कहीं पर भी काम पर लगने से पहले मैं कुछ बातें clear कर लेती हूं...क्योंकि कोई-कोई मैडम लोग बाद में बहुत झिक-झिक करती हैं। मेरी पाँच शर्तें हैं यदि वो मान्य हो तो...''
मैं ने उससे पूछा, ''क्या हैं तेरी शर्तें?'' मेरी पहली शर्त यह हैं कि आप टाइम को लेकर झिक-झिक नहीं करेगी। ''मतलब?'' ''मतलब यह कि मैं आपकेे साहब की तरह ऑफ़िस में काम नहीं करती कि जहां पर आने-जाने का सही टाइम पता लगाने के लिए मशीन पर अंगूठा लगाना पड़ता हैं। मैं अपने मर्ज़ी की मालिक हूँ। घर का काम खत्म कर…सजधज कर...काम पर आते वक्त रास्ते में जो दूसरी मेड सर्वेंट मिलती हैं उनसे इधर-उधर की ख़बरे जानकर फ़िर काम पर आउंगी। वो क्या हैं आप लोग टी व्ही और अखबार से जो ख़बरे जानते हैं, क्या होता हैं उनमें? अमुक हीरोइन ने #Metoo के अंतर्गत अमुक हीरो पर इल्जाम लगाया...दीपवीर के शादी के रिसेप्शन में कौन-कौन आया...तीन महीने की बच्ची पर बलात्कार हुआ...राम मंदिर बनने की सुनवाई फ़िर टली...आप लोगों को ये तो पता होता हैं कि प्रधानमंत्री आज कौन से देश के दौरे पर हैं…लेकिन आपको ये पता नहीं होता कि पड़ोस में क्या चल रहा हैं? हमारा मेड सर्वंट का न्यूज़ चैनल बहुत तेज हैं। पूरी सोसायटी में आज किस घर में कौन सी सब्जी बनी हैं...कौन सी सास अपनी बहू को सताती हैं और कौन सी बहू अपने सास-ससुर को घर का बोझ समझती हैं, किसका किसके साथ लफ़डा चालू हैं इन सब बातों की पूरी ख़बरे अपने लोकप्रिय चैनल से सुनने के बाद ही मैं काम पर आउंगी। मुझ पर टाइम पर आने का कोई बंधन नहीं होगा।''
उसकी बातें मुझे रोचक लग रही थी। मैं ने उससे पूछा, ''तेरी दूसरी शर्त क्या हैं?'' ''जब भी मैं मांगूंगी तब आपको मुझे advance देना होगा। अब मैं advance मांग रही हूँ तो दो-चार सौ रुपए का तो मांगूंगी नहीं। आखिर मेरी भी कोई prestige हैं! ज्यादा नहीं, पाँच-छ: हजार का advance तो आपको देना ही होगा। लेकिन इस रकम में से मैं हर महीने केवल दो-तीन सौ रुपए ही कटवा पाउंगी। क्योंकि बाकि के खर्च भी तो देखने पड़ते हैं न! यदि आपको मुझ पर विश्वास हैं तो देना नहीं तो मैं चली...मुझे काम की कोई कमी नहीं हैं। बेरोजगार तो पढ़े-लिखे लोग होते हैं, हम अनपढो को रोजगार की कोई कमी नहीं रहती। एक काम ढूंढो तो सतरा सौ साठ घरों का काम मिलता हैं!''
इतना सारा advance और वो भी कब तक लौटाएगी इसकी भी कोई ग्यारंटी नहीं...मुझे ये शर्त मंजूर तो नहीं थी लेकिन उसकी बात करने की स्टाइल और अपने काम के प्रति अभिमान देख कर मुझे उसकी पूरी शर्तें जानने की उत्सुकता होने लगी। मैं ने उससे उसकी तीसरी शर्त पुछी। ''आप लोग कहते हो न कि आज का जमाना औरत और आदमी के समानता का हैं। हम औरते भी आज़ाद हैं। इसलिए औरतों को अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनने की आज़ादी मिलनी चाहिए।''
''हाँ, बिलकुल बराबर हैं। महिलाओं को अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनने की आज़ादी मिलनी ही चाहिए।''
''वो 204 नं. (फ्लैट) वाली मैडम हैं न, उनके यहां मैं उन्हीं का दिया हुआ ब्लाउज पहन कर काम करने गई थी। तो वो मैडम मेरे उपर गुस्सा हो गई। तू इतना लो कट का ब्लाउज पहन कर काम पर क्यों आई? घर में मेरे पति देव और मेरा जवान बेटा भी हैं। उनके सामने तू इतने लो कट का ब्लाउज पहन कर कैसे काम कर सकती हैं? आप बताओ मैडम जी, जब वो खुद इतने लो कट का ब्लाउज पहन कर यहाँ-वहाँ हर जगह घूमती हैं, ऑफिस जाती हैं, तो क्या उन पर अन्य मर्दों की नजर नहीं पड़ती? जब उन्हें लो कट का ब्लाउज पहनने की आज़ादी हैं तो हम मेड सर्वेंट लो कट का ब्लाउज क्यों नहीं पहन सकती? इसलिए मेरे कपड़े पहनने के तरीके को लेकर आपको कभी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।''
''हाँ, बिलकुल बराबर हैं। महिलाओं को अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनने की आज़ादी मिलनी ही चाहिए।''
''वो 204 नं. (फ्लैट) वाली मैडम हैं न, उनके यहां मैं उन्हीं का दिया हुआ ब्लाउज पहन कर काम करने गई थी। तो वो मैडम मेरे उपर गुस्सा हो गई। तू इतना लो कट का ब्लाउज पहन कर काम पर क्यों आई? घर में मेरे पति देव और मेरा जवान बेटा भी हैं। उनके सामने तू इतने लो कट का ब्लाउज पहन कर कैसे काम कर सकती हैं? आप बताओ मैडम जी, जब वो खुद इतने लो कट का ब्लाउज पहन कर यहाँ-वहाँ हर जगह घूमती हैं, ऑफिस जाती हैं, तो क्या उन पर अन्य मर्दों की नजर नहीं पड़ती? जब उन्हें लो कट का ब्लाउज पहनने की आज़ादी हैं तो हम मेड सर्वेंट लो कट का ब्लाउज क्यों नहीं पहन सकती? इसलिए मेरे कपड़े पहनने के तरीके को लेकर आपको कभी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।''
महिलाओं की आज़ादी के दृष्टिकोण से उसकी ये शर्त वाजिब थी। लेकिन अंग प्रदर्शन किसी के लिए भी सही नहीं हैं यह जानते हुए भी मैं ने उससे बहस न करते हुए उसकी चौथी शर्त पुछी। ''काम करते वक्त यदि मेरा पसंदीदा कोई सीरियल आ रहा हो तो फूल स्पीड में पंखा चला कर मैं सीरियल देखुंगी फ़िर बाद में काम करुंगी। क्योंकि घर में तो मेरे पास सीरियल देखने का टाइम ही नहीं रहता! इसलिए मैं जहां पर काम करती हूं वहीं पर सीरियल देख लेती हूं। दिन भर तो मैं गर्मी में ही काम करती हूं अब क्या टी व्ही भी गर्मी में ही देखुंगी? इसलिए आप मुझे फुलस्पीड में पंखा लगाने देगी। टी व्ही पर आने वाले विज्ञापनों से मेरा सामान्य ज्ञान बढ़ता हैं। इससे मुझे पता चलता हैं कि बर्तन घसने वाले किस पाउडर में सौ निंबुओं की शक्ति हैं और किस डिटर्जंट में दस हाथों की धुलाई का दम हैं! ये सारे विज्ञापन मेरे जैसी मेड सर्वेंट के लिए ही तो बने हैं ताकि हमें कम मेहनत करनी पड़े और हमारे हाथ मुलायम बने रहे। मैं जिस ब्रांड की साबुन और डिटर्जेंट आपको लाने बोलुंगी वो आपको लाकर देना पड़ेगा!!
अब तो मेरा सर चकराने लगा। लेकिन हिम्मत करके मैं ने पूछा, तेरी पांचवी और आख़िरी शर्त भी बता दे।
''मैडम जी, मैं 'सिक्स डेज वीक' पर ही काम करुंगी।''
''घरेलू कामों में भी कभी 'सिक्स डेज वीक' का नियम लागू होता हैं क्या?'' ''क्यों नहीं लागू हो सकता? साहब जी भी तो 'सिक्स डेज वीक' पर ही काम करते हैं न! तो मैं क्यों नहीं कर सकती? मुझे भी घर के कामों के लिए…बच्चों के साथ समय बिताने के लिए...enjoy करने के लिए…हफ्ते में एक दिन छुट्टी चाहिए न!''
''मैडम जी, मैं 'सिक्स डेज वीक' पर ही काम करुंगी।''
''घरेलू कामों में भी कभी 'सिक्स डेज वीक' का नियम लागू होता हैं क्या?'' ''क्यों नहीं लागू हो सकता? साहब जी भी तो 'सिक्स डेज वीक' पर ही काम करते हैं न! तो मैं क्यों नहीं कर सकती? मुझे भी घर के कामों के लिए…बच्चों के साथ समय बिताने के लिए...enjoy करने के लिए…हफ्ते में एक दिन छुट्टी चाहिए न!''
मैं सोच में पड़ गई...बाकि सभी शर्तों से ये शर्त मंज़ूर करने में मुझे कठिनाई महसूस होने लगी क्योंकि घर के अन्य लोगों को तो इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि कामवाली बाई आई या नहीं। लेकिन कामवाली बाई के न आने पर घर के काम हर गृहिणी को हनुमान जी की पुंछ की तरह बढ़ते ही नजर आते हैं! लेकिन अन्य कोई विकल्प न देख मैं ने कहा, ''ठीक हैं...लेकिन फ़िर बाकि ज्यादा छुट्टियाँ मत मारना।''
''बाकि छुट्टियाँ ज्यादा मत मारना से आपका क्या मतलब हैं? आप लोगों के तीज-त्योहार होते हैं तो क्या हमारे नहीं होते? त्योहार के दिन मैं आपके यहाँ काम करने आउंगी तो मेरे घर के त्योहार का क्या होगा? होली, दिवाली, पोला, नागपंचमी, काजल तीज जैसे त्योहारों पर तो छुट्टी बनती ही हैं!''
''बाकि छुट्टियाँ ज्यादा मत मारना से आपका क्या मतलब हैं? आप लोगों के तीज-त्योहार होते हैं तो क्या हमारे नहीं होते? त्योहार के दिन मैं आपके यहाँ काम करने आउंगी तो मेरे घर के त्योहार का क्या होगा? होली, दिवाली, पोला, नागपंचमी, काजल तीज जैसे त्योहारों पर तो छुट्टी बनती ही हैं!''
हे भगवान, महीने में चार दिन न आना तो fix हैं ही...उपर से बड़े-बड़े त्योहारों पर भी नहीं आएगी तो मैं अकेली सारे काम कैसे करुंगी? मैं ऐसा सोच ही रही थी कि वो कहने लगी, ''इस के अलावा जब घर में कोई बीमार पड़ा या मैं खुद बीमार पड़ गई तब और शादी-ब्याह या मौत-मिट्टी में जाना हो तब तो मुझे छुट्टी लेनी ही पड़ेगी। आप ये मत सोचिए कि मैं छुट्टी लेने के बहाने बता रही हूं। मैं ठहरी अंगूठा छाप...मुझे कहां आते हैं बहाने मारने के तरीके! मेरी ये सभी शर्तें आपको मंज़ूर हो तो मैं आपके यहां काम करुंगी...नहीं तो ऐसी दो टके की नौकरी को तो मैं अपनी जूती की नोक पर रखती हूं! मुझे नौकरी की कोई कमी नहीं हैं...रखना हो तो रखों, नहीं तो मैं चली...''
मैं मन ही मन सोचने लगी कि वा...व्व... क्या बात हैं? मेरे से ज्यादा power तो इसके पास हैं! मुझे तो अपने खुद के ही घर में घर के सभी सदस्यों के हिसाब से काम करना पड़ता हैं। कोई भी काम ऐसा नहीं जो मैं मेरी शर्तों पर कर सकती हूं। यहां तक की सब्जी भी बनानी हो तो सबकी पसंद का ख्याल रख कर ही सब्जी बनाती हूँ। अब तो हालत यह हो गई हैं कि मेरी पसंद की सब्जी कौन सी हैं यदि यह सवाल मुझ से कोई पूछे तो मैं जल्दी से जबाब नहीं दे पाउंगी। एक ये काम वाली बाई हैं जो कह रही हैं कि वो अपनी शर्तों पर काम करेंगी!!
खैर, घर का इतना सारा काम करना मेरे बस की बात नहीं थी। मरती क्या न करती? इसलिए मैं ने कहा, ''ठीक हैं, मुझे तुम्हारी सभी शर्तें मंज़ूर हैं। आज से ही काम शुरु कर दे।''
ठीक किया न मैं ने???
ठीक किया न मैं ने???
बाप रे..खतरनाक है, कामवाली के खतरनाक शर्त और मजबूर मालकिन...विचारणीय:)
जवाब देंहटाएंवाह!!ज्योति !!मजा आ गया पढकर। बहुत ही रोचक शैली में आपनें हम सबकी समस्या को प्रस्तुत किया है ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-12-2018) को "गिरोहबाज गिरोहबाजी" (चर्चा अंक-3175) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत रोचक व्यंग ज्योति जी , वैसे तो आजकल कामवालियों की डिमांड सुरसा के मुँह की तरह बढती जा रही है ऐसे में इस व्यंग को हकीकत बनने में शयद ज्यादा समय ना लगे :) , कामवाली की एक बात बहुत पसंद आई हमअनपढ़ लोगों को काम की कोई कमी नहीं .....
जवाब देंहटाएंसच कहा सखी 👌
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर 👌
जवाब देंहटाएंHa ha ha ...Very interesting post, i agree with some of the points she mentioned, like...they also deserve leave during festivals.
जवाब देंहटाएंLoved the presentation.
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 5 दिसंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं.
काम वाली बाई और इतनी दमदार शर्तें.... लाजवाब व्यंग लिखा है आपने ज्योति जी सही कहा
जवाब देंहटाएंबेरोजगार तो पढे लिखे लोग हैं ....
जिन दिनो ज्यादा जरूरत है उन दिनों भी छुट्टी..
फिर भी सही किया कामवाली रखकर...
चलो इसी तरह की मोहल्ले भर की खबरें सुनाकर अपडेट तो करेगी...
बहुत ही सुन्दर व्यंग लिखा है आपने ...
मेरी रचना को "पांच लिंको का आनंद" में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, पम्मी दी।
जवाब देंहटाएंमैं तो यही कह सकती हूँ कि सही किया । यदि ये कामवालियाँ हमारे काम नहीं करें तो हमारा नौकरी करना भी कठिन ही होगा।
जवाब देंहटाएंसटीक ज्योति जी महिला उत्थान और प्रगति की बात हम औरते ही तो ज्यादा बढ चढ कर कर रही हैं तो मेड भी अपनी स्वेच्छा के तहत पूर्ण आजाद है।
जवाब देंहटाएंधार दार व्यंग सहज भाषा प्रवाह।
प्रिय ज्योति जी -- बहुत रोचक अंदाज में लेख लिखा है आपने | काम वाली बाई के पराक्रम और स्वाभिमान के तो क्या कहने!!!!! मज़बूरी का नाम शुक्रिया |सस्नेह --
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