यदि ईश्वर है तो दिखाई क्यों नहीं देता? यदि ईश्वर है तो संसार में इतना दुख क्यों है? सृष्टि को एवं इंसान को ईश्वर ने बनाया तो ईश्वर को किसने बनाया?
कई बार मन में सवाल उठता है कि ईश्वर है या नहीं। जब हम देखते है कि सुई से लेकर हवाईजहाज तक हर चीज को बनाने वाला कोई न कोई है, तो हम मानने लगते है कि इस दुनिया को बनाने वाला भी कोई न कोई मतलब ईश्वर होगा! जैसे किसी राज्य को उसका मुख्यमंत्री चलाता है, किसी देश को उसका प्रधानमंत्री चलाता है...ठीक वैसे ही पूरी दुनिया को चलाने वाला...कोई न कोई मतलब ईश्वर जरूर होगा। इस तरह हम कहते है कि ईश्वर है।
लेकिन दूसरे ही पल हमारे मन में ईश्वर को लेकर कई सवाल पैदा हो जाते है जैसे
यदि ईश्वर है तो दिखाई क्यों नहीं देता?
यदि ईश्वर है तो संसार में इतना दुख क्यों है?
सृष्टि को एवं इंसान को ईश्वर ने बनाया तो ईश्वर को किसने बनाया?
इन सवालों के बराबर जबाब न मिलने से हम सशंकित हो जाते है कि वास्तव में ईश्वर है या नहीं। आइए, जानते है इन तीन सवालों के जबाब जिससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि ईश्वर है या नहीं...
यदि ईश्वर है तो दिखाई क्यों नहीं देता?
एक बार भगवान बुध्द से किसी ने पूछा, 'ईश्वर है या नहीं?' बुध्द ने उस व्यक्ति से पूछा, 'क्या तुम सूर्य को मानते हो?' उस व्यक्ति ने कहा, 'यह कैसा सवाल है? सूर्य तो साक्षात है। पूरी पृथ्वी को रोशनी और ऊर्जा देता है।'
बुध्द ने कहा, 'ईश्वर को मानने या न मानने का सवाल क्यों उठा? इसलिए कि ईश्वर सुर्य की तरह प्रत्यक्ष नहीं दिखता है? आप ईश्वर को भी बुद्धि से ढूंढने निकले हो। बुद्धि सिर्फ उन्हीं चीजों को मानती है, जो दिखती है।
इंसान अपनी सीमित बुद्धि से सोचता है कि ईश्वर मानव के समान है, इसलिए दिखना चाहिए। वास्तव में जो दिखाई दे वह तो सीमित हो जाता है और ईश्वर असीमित है। वैसे भी ईश्वर कोई वस्तु नहीं है जो दिखाई दे! जब सब कुछ ईश्वर में समाया है, तो उसे हम कैसे देख सकते है?'
संसार में विभिन्न चीजें है, जो दिखाई नहीं देती किंतु इंसान उनके अस्तित्व पर पूरा विश्वास करता है। जैसे
दूध में मक्खन होता है, किंतु दिखाई नहीं देता।
किसी व्यक्ति की मौत होने पर हमें विश्वास रहता है कि उसके शरीर से आत्मा निकल गई है। क्या हमने कभी किसी के शरीर से आत्मा को निकलते हुए देखा है?
जब हम बिजली का स्विच ऑन करते है तो पूरा घर प्रकाशमान हो जाता है और जब हम बिजली का स्विच ऑफ करते है तो प्रकाश चला जाता है। क्या आपने कभी प्रकाश को आते और जाते देखा है?
दुनिया के किसी भी व्यक्ति को चीनी खिलाइए फ़िर उससे पूछिए चीनी कैसी लगी? तो वह कहेगा कि मीठी है। फ़िर उससे पूछिए, मीठी कैसी होती है? तो पूरी दुनिया में एक भी व्यक्ति इस मीठेपन को व्यक्त नहीं कर पायेगा।
इसी तरह ईश्वर को भी अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता।
यदि ईश्वर है तो संसार में इतना दुख क्यों है?
हम ईश्वर को पिता मानते है। तो सहज ही मन में सवाल उठता है कि पिता के होते हुए बच्चे दुखी क्यों है? जरा सोचिए, क्या हम हमारे बच्चों को दुखी देख सकते है, नहीं न। लेकिन फ़िर भी हमारे बच्चे दुखी है कि नहीं? कभी किसी की अपघात में अकाल मृत्यु हो जाती है, तो कभी किसी का तलाक हो जाता है, तो कभी कोई आतंकियों की गोली का शिकार हो जाता है। अभी तो लाखों लोग कोरोना से अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए। क्या कोई पिता अपने ही बच्चों के भाग्य में इतना दुख लिख सकता है?
सच्चाई यह है कि यदि ईश्वर हमारा भाग्य लिखता तो हमारा भाग्य सुनहरा ही होता।
लेकिन वास्तव में इंसान ने अपने मन में जो मान्यताएं पाल रखी है, वो ही गलत है। एक तरफ हम मानते है कि ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता...जो कुछ हो रहा है वो उसकी मर्जी से हो रहा है। और दूसरी तरफ हम यह मानते है कि जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान। दोनों ही मान्यताएं एक दूसरे से विपरीत है। जो इंसान हर बात के लिए तर्क करते है वो भी एक मिनट के लिए भी यह नहीं सोचते कि ये दोनों चीजें एक साथ कैसे हो सकती है?
पहली मान्यता के अनुसार जो कुछ हो रहा है वो ईश्वर की मर्जी से हो रहा है...मतलब हर बात के लिए (चाहे वह अच्छी हो या बूरी) जिम्मेदार ईश्वर है...जैसा ईश्वर हमसे करवाते है वैसा हम करते है...किसी भी बात के लिए हम जिम्मेदार नहीं है...चाहे हम किसी का मर्डर ही क्यों न कर दे...जिम्मेदार ईश्वर है!! दूसरी मान्यता के अनुसार जो कुछ हो रहा है, वो मेरे कर्मों का फल है...मतलब मैं जिम्मेदार हूं...ईश्वर का इसमें कोई रोल नहीं है!!
है न दोनों मान्यताएं एकदूसरे से विपरीत! इसलिए जब भी जीवन में संकट आते है, तो हम कहते है कि ईश्वर ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया और जब भी जीवन में अच्छे पल आते है, तो हम कहते है कि ये हमारे कर्मो का फल है।
जरा सोचिये, यदि हमारा बच्चा कोई बहुत बड़ी गलती करे, तो थोड़ी देर के लिए हम उससे नाराज रहेंगे...उसे डांटेंगे...उसकी पिटाई भी कर देंगे...लेकिन उसे ऐसी कड़ी सजा देने से बचेंगे जिससे उसे ज्यादा तकलीफ़ हो। जब हम हमारे बच्चे को कड़ी सजा नहीं दे सकते तो फिर ईश्वर अपने बच्चों को कड़ी सजा कैसे दे सकता है? वो अपने ही बच्चों को दुख कैसे दे सकता है? वैसे भी यदि ईश्वर अपने बच्चों का भाग्य लिखता तो हम सबका भाग्य एक जैसा होता! लेकिन वास्तविकता यह है कि हम सब के कर्म अलग अलग होने से हम सबका भाग्य भी अलग अलग है।
ईश्वर और हमारा रिश्ता वास्तव में माता पिता और बच्चे के रिश्ते जैसा होता है। हम हमारे बच्चे को राय दे सकते है...बिना शर्त प्यार कर सकते है...लेकिन बच्चे का कर्म हम नहीं कर सकते। इसलिए बच्चे का भाग्य हम नहीं लिख सकते!
इसी तरह ईश्वर का है। ईश्वर हमें सही कर्म करने का ज्ञान और शक्ति देते है...लेकिन कर्म हमें करना है। और हमारे कर्मो के अनुसार ही हमें सुख दुख मिलते है। ईश्वर हमें सुख दुख नहीं देते। वो हमारे अपने कर्मो का फल रहता है।
प्राकृतिक आपदा जैसे कि भूकंप या बाढ़ से जब एक साथ हजारों लोगों की मौत होती है तब मन में सवाल आता है कि क्या इतने सारे लोगों ने एक साथ बुरे कर्म किए थे? नहीं, एक साथ इतने सारे लोगों ने बुरे कर्म नहीं किए थे। ऐसे वक्त ये कहावत ही काम करती है कि गेहूं के साथ घुन भी पीसे जाते है।
दुख हमारा दुश्मन नहीं है। दुख हमें जगाता है, हमारे भीतर विवेक और प्रतिभा को पैदा करता है जिससे हम उस दुख से मुक्त होने का उपाय ढूंढते है। उसी से हमारा समस्त विकास होता है। पशु और पक्षियों ने दुख से मुक्त होने का उपाय नहीं किया इसलिए आज तक उनका विकास नहीं हो पाया है। प्राणियों में सिर्फ़ मनुष्य जाति ही विकसित हुई है इसका कारण है सुख दुख का संयोग। यदि वे कष्ट न होते तो हमारी बुध्दि भी विकसित न होती। हम भी जानवरों की तरह ही होते! इस तरह दुख हमारी विकास प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है।
सृष्टि को एवं इंसान को ईश्वर ने बनाया तो ईश्वर को किसने बनाया?
दुनिया में जितनी भी वस्तुएं बनी हुई है उनको और इस ब्रह्मांड को भी किसी न किसी ने बनाया ही होगा, लेकिन जिसने ब्रह्मांड बनाया है उस ईश्वर को किसने बनाया? वेद और पुराणों के अनुसार, बनाया उसे जाता है जिसमें बनावट हो। ईश्वर अर्थात भगवान में कोई बनावट ही नहीं, तो उन्हें कौन बनाएगा? जब ईश्वर निराकार है तो उन्हें बना हुआ या पैदा हुआ कैसे माना जा सकता है। अगर मैं आपसे पूछूं कि एक शर्ट को किसने बनाया? तो आप कहेंगे दर्जी ने बनाया है। आप यह नहीं कहेंगे कि लोहार ने बनाया है। क्योंकि शर्ट में जो बनावट दिखती है, जो कला दिखती है, उसका कलाकार दर्जी है, लोहार नहीं। यानी कि कला से कलाकार का पता चलता है। और जब परमात्मा यानी ईश्वर निराकार है उसमें कोई बनावट ही नहीं है, उसमें कोई कला ही नहीं है, किसी की कला उसमें दिखाई नहीं देती तो उसका कोई कलाकार कैसे हो सकता है। इसलिए ईश्वर को किसी ने नहीं बनाया है वह हमेशा से हैं।
जैसे ऊर्जा और आत्मा पैदा नहीं होती। आत्मा अमर है और ऊर्जा न नष्ट नहीं होती है और न ही ऊर्जा को पैदा किया जा सकता है। ऊर्जा सिर्फ रूपांतरित होती है। इसी तरह ईश्वर अमर हैं। वह कभी नष्ट नहीं होते हैं इसलिए वह कभी पैदा भी नहीं होते हैं।
ईश्वर अर्थात भगवान हमेशा से हैं। वह अनादि हैं, निराकार हैं, सर्वव्यापक हैं, ईश्वर को किसी ने नहीं बनाया है।
रेलगाड़ी के उदाहरण से यह अच्छे से समझा जा सकता है। यदि आपसे पूछा जाएं कि रेलगाड़ी के 28 वे डब्बे को कौन खिंचता है तो आप कहेंगे 27 वा डब्बा। 27 वे डब्बे को कौन खिंचता है तो 26 वे डब्बा। 26 वे डब्बे को कौन खिंचता है तो 25 वा डब्बा। इस तरह पहले डब्बे को कौन खिंचता है तो आप कहेंगे कि इंजन। लेकिन इंजन को कौन खिंचता है इस सवाल का जबाब देते नहीं आएगा। क्योंकि इंजन एक शक्ति के द्वारा खिंचा जाता है। इस शक्ति को किसने बनाया यह सवाल कोई नहीं पूछता। इसी तरह ईश्वर एक स्वयंभु और स्वयंसिध्द शक्ति है। उसे बनाया या निर्मित नहीं किया जा सकता।
सच ये है कि इंसान सोचता हैं कि ईश्वर हैं या नही लेकिन...ये कभी नहीं सोचता कि मैं इंसान हूं या नही!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
हटाएंगहन विवेचन ।
जवाब देंहटाएंबहुत तार्किक सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
बधाई
सार्थक और उपयोगी विश्लेषण।
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गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
सुन्दर मननशील आलेख।
जवाब देंहटाएंअध्यात्मिक तथा ओजस्वी चिंतन के लिए हार्दिक शुभकामनायें प्रिय ज्योति जी..
जवाब देंहटाएंसार्थक विश्लेषण। और अंतिम पंक्ति "इंसान यह नहीं सोचता कि मैं इंसान हूं या नहीं!!" भी गजब है। एक सुंदर और उपयोगी आलेख के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सारगर्भित चिन्तनपरख लेख...
जवाब देंहटाएंभगवान है या नहीं इसमें उलझने से पहले ये सोचें कि हम इंसान है...बहुत सटीक।
Nicely said.. .
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