''मम्मी, 55 साल की उम्र में आपको ये कौन से नये-नये शौक लग गए हैं? क्या आपको अपनी उम्र का थोड़ा सा भी लिहाज नहीं? पापा के जाने का आपको कुछ भी दुख नहीं?
जैसे ही शिल्पा ने घर में कदम रखा, बेटे और बहु ने उसे अजीब नज़रों से देखा। जैसे वो कोई गलत काम करके लौटी हो! उनकी नज़रों को नज़रअंदाज़ करके हॉल के सोफे पर बैठ कर वो मैगज़ीन के पन्ने पलटने लगी। उसे ऐसा करते देख उसके बेटे मनीष का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने तमतमाते हुए शिल्पा से कहा, ''मम्मी, ये सब क्या हो रहा है?''
''क्या हुआ मनीष? तू इतने गुस्से में क्यों हो?''
''आप मुझ से ही पूछ रही हो कि क्या हुआ? क्या आपको पता नहीं कि आजकल आप कैसा बर्ताव कर रही हैं?''
''तू क्या बोल रहा है? मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जो भी बोलना है सीधे-सीधे और स्पष्ट बोल!''
''मम्मी, 55 साल की उम्र में आपको ये कौन से नये-नये शौक लग गए हैं? क्या आपको अपनी उम्र का थोड़ा सा भी लिहाज नहीं? खुद का न सही कम से कम हमारे बारे में कुछ सोच लेती! सब हंसते हैं हम पर कि तुम्हारी मम्मी को इस उम्र में ये सब करना क्या शोभा देता है? पापा को गए चार महीने हो गए हैं, लेकिन आप अभी भी बिंदी लगाती हैं और पायल-बिछिया पहनती हैं! इन सबसे आपका मन नहीं भरा तो आपको स्टेज पर गाना गाने का शौक चढ़ा है! क्या आपको पापा के जाने का कुछ भी दुख नहीं? आप जब देखो तब मोबाइल में व्यस्त रहती हैं। दो वक्त खाना खाओ और शांति से रहो! तुम्हारी बहू बोल रही थी कि उसकी सहेलियाँ उसका मज़ाक उडाती हैं कि जिस उम्र में तेरी सास को भजन कीर्तन करना चाहिए उस उम्र में उन्हें गाने का शौक चढ़ा हैं! मम्मी, क्या आपको इस उम्र में ये सब शोभा देता हैं? आज तो आप सुबह से ही ग़ायब थी। कहां गई थी आप? किसी को कुछ बताया भी नहीं और आप फोन भी नहीं उठा रहीं थी। हम सब को आप की कितनी फ़िक्र हो रहीं थी! आखिर क्यों करती हो आप ऐसा?''
शिल्पा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था। लेकिन उसने अपने गुस्से पर काबू किया और बोली, ''टी.वी. पर जो 'सीनियर सुपरस्टार' स्पर्धा होने वाली हैं उसके लिए (50 साल के उपर की महिलाओं के लिए) पहले राउंड में तो मेरा सिलेक्शन हो गया था। आज फाइनल ऑडिशन था। मैं ने चार दिन पहले ही इस बारे में तुम दोनों को बताया था। लेकिन दोनों ने ही सुन कर भी अन सुना कर दिया। तब मैं क्या करती? मुझे लगा था कि मेरे बेटे-बहू मेरी खुशी में शामिल होंगे। वे समारोह में मेरे साथ आयेंगे...आयोजकों ने भी विशेष तौर पर कहा था कि अपने बच्चों को साथ लाना। लेकिन तुम लोगों को तो तुम्हारे पापा के जाने के बाद मैं एक बोझ लगती हूं। ऐसे में मैं किसको क्या बता कर जाती? रहीं बात बिंदी लगाने की और पायल-बिछिया पहनने की तो तेरे पापा को मेरा यहीं रुप पसंद था। उन्हें मेरा सुना माथा बिल्कुल पसंद नहीं था। वे चाहते थे कि मैं हमेशा बिंदी लगा कर, बिछिया-पायल आदि सभी चीजें पहन कर रहूं।''
''पर अब तो पापा नहीं हैं न? फ़िर अब क्यों आप ये सब पहनती हैं?''
''तेरे पापा की आत्मा जब मुझे बिना बिंदी लगाए हुए और बिना पायल, बिछिया पहने हुए देखेगी तो क्या उन को दुख नहीं होगा? मैं ने पूरी जिंदगी उनकी खुशी का ख्याल रखा हैं तो अब मैं कैसे उन्हें दुखी कर सकती हूं? मेरी शादी 21 साल की उम्र में हो गई थी। 44 साल से मैं लगातार पायल-बिछिया पहन रहीं हूं। अब मुझे इन चीजों की आदत हो गई हैं। यदि मैं ये न पहनू तो मुझे कुछ अधूरा-अधूरा लगता हैं। तू ही बता बेटा, लोग क्या कहेंगे यह सोच कर मैं अपने मन को कब तक और कितना मारूं? जब बहू ने सलवार और जींस पहनना शुरु किया था तब बुवाजी के टोकने पर तू ने ही कहा था न कि नारी को भी अपनी इच्छा से जीने का हक हैं। वो क्या पहने और क्या न पहने इसका निर्णय लेने का अधिकार नारी को होना चाहिए! तेरे पापा के जाने से क्या मैं नारी नहीं रही, जो मुझे अपनी मर्ज़ी से जीने का हक नहीं हैं? मुझे बचपन से ही गाना गाने का शौक था। बचपन में अपनी कला को निखारने का मौका नहीं मिला और जवानी जिम्मेदारियों की भेट चढ़ गई। कभी अपने शौक के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिला। पिछले दो साल में तो तेरे पापा ने भी कई बार कहा कि माँ-बाबूजी तो रहे नहीं और बच्चे भी बड़े हो गए हैं तो अब तुम अपना गाने का शौक पूरा कर सकती हो...लेकिन इनकी बीमारी के चलते मुझे वक्त ही नहीं मिला। जाने से एक दिन पहले भी इन्होंने कहा था कि शिल्पा, तुम समाज की पर्वा मत करना...मेरी बहुत इच्छा हैं कि तुम अपने टैलेंट से अपनी एक अलग पहचान बनाओ... इनके जाने के बाद तीन महीने मैं ने कैसे काटे मुझे मालूम हैं। क्या तुम दोनों दस मिनट भी कभी मेरे पास आकर बैठे? कभी मेरा अकेलापन दूर करने की कोशिश की? मैं कहां गलत हूं बेटा? इंसान जिंदगी की आख़िरी सांस तक इंसान ही रहता हैं। तू बचपन से देखता आ रहा हैं कि मुझे सादगी ही पसंद हैं। मेरी कई सहेलियाँ तो सलवार भी पहनती हैं। लेकिन उम्र का लिहाज कर मैं कभी सलवार नहीं पहनती। मैं हर चीज उम्र का लिहाज कर के ही कर रहीं हूं। फिर तुझे मेरे पायल-बिछिया पहनने से और गाना गाने से एतराज़ क्यों हैं?''
''तुम्हारी बहू भी तो घरेलू महिला हैं, वो जवानी में कुछ नहीं कर रहीं, तो तुम्हें बुढ़ापे में गाना गाने की क्या जरुरत हैं?''
''कौन से ग्रंथ में लिखा हैं कि उम्र के एक पड़ाव पर इंसान ने कुछ काम नहीं करना चाहिए? उम्र बढ़ने से इंसान की ख्वाहिशे तो नहीं मर जाती? इंसान को जिंदगी जीने के लिए सिर्फ़ दो वक्त का भोजन ही नहीं चाहिए तो भोजन के साथ-साथ इंसान में शौक पूरे करने की भी अभिलाषा होती हैं। हर इंसान को लगता हैं कि उसकी अपनी एक अलग पहचान हो! बहू को किटी पार्टियों और घुमने-फिरने से ही फ़ुरसत नहीं हैं और उसमें जो भी टैलेंट हैं वो उस टैलेंट का उपयोग नहीं करती तो इसमें मेरा तो कोई कसूर नहीं हैं न? रही बात मोबाइल में व्यस्त रहने की, तो ये बात तुम्हें सोचनी चाहिए कि बेटा-बहू और पोता-पोती के होते हुए मुझे आभासी दुनिया की जरुरत क्यों महसूस होती हैं? अरे तुम लोगों से तो अच्छे मेरे आभासी दोस्त हैं जो एकाध दिन भी मैं ऑनलाइन न दिखी तो फ़िक्र करते हैं। फोन करके पूछते हैं कि तबियत ठीक हैं कि नहीं? बेटा, मुझे अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का पूरा हक हैं। अब मुझे मेरे ही बच्चों से यह सीखने की जरुरत नहीं हैं कि मुझे कैसे जीना चाहिए! मैं तो गाना भी गाउंगी और पायल-बिछिया भी पहनूंगी!! ऊपर वाले ने तो सिर्फ़ मेरा जीवन साथी छीना पर मेरी बिंदी, मेरा शृँगार, मेरा लाल रंग और मेरा अभिमान छीनने वाले तुम कौन होते हो? अपने जीवन साथी के जाने के बाद, ज़िंदा तो मैं बस नाम को ही थी पर मुझे मारने वाले तुम कौन होते हो? यदि तुम्हें मेरा व्यवहार पसंद नहीं हैं तो तुम अपना इंतज़ाम कहीं और कर लो। ये घर मेरे नाम हैं इसलिए मैं तो कहीं और जाउंगी नहीं।''
शिल्पा के ऐसा कहते ही बेटे और बहू के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी।
बेटे ने आख़िरी दाँव चला कर देखा, ''आप इस उम्र में अकेली कैसे रहेगी?''
''तुम्हारे साथ होते हुए भी तो मैं अकेली ही हूं! क्योंकि तुम लोगों के पास तो मेरे लिए वक्त ही नहीं हैं! तुम लोग नहीं रहोगे तो मैं सहेलियों को निसंकोच घर में बुला सकुंगी और मैं भी उनके यहां जा सकूंगी। इससे मेरा अकेलापन बेहतर ढंग से दूर हो जायेगा। मुझे इनकी पेंशन मिलती हैं। उस से मेरा गुजारा हो जाएगा। जब हाथ-पैर नहीं चलेंगे तब एक काम वाली ज्यादा रख लूंगी...लेकिन मैं अपने ही बच्चों की बंदिशों में नहीं रहूँगी! मैं ने अपनी बहू को कभी बंदिशों में नहीं रखा फ़िर मैं सास होकर बंदिशों में क्यों रहूँ?'' ''आपको जैसा रहना हैं वैसे रहो...’’ ऐसा कह कर बेटा मुंह बना कर चला गया।
शिल्पा सोचने लगी कि अच्छा हुआ कि इन्होंने घर मेरे नाम किया, नहीं तो आज मेरे ही बेटे-बहू मेरा क्या हाल करते न मालूम! माँ–बाप यदि नई जनरेशन से कदम से कदम मिला कर न चलें तो पुराने ख्यालात के कहलाते हैं और यदि अपनी मर्जी से जीना चाहते हैं तो ये उनको शोभा नहीं देता!! ये कैसी मानसिकता है नई जनरेशन की?
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व्वाहहहहह...
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता जन्म सिद्ध अधिकार है
समझाईश देती कहानी..
काश, लोग इसे हकीकत में बदल पाते
सादर...
बेहद हृदयस्पर्शी कहानी ज्योति जी
जवाब देंहटाएंसार्थक और मार्मिक कथा।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 07 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा ज्योति आपने ,सभी को अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार होता है ,ओर ये नई पीढी के लोग खुद अपनी मरजी से जीना चाहते हैं ,पर माँ -बाप की भावनाओं को नही समझते । जरूरत है इस सोच को बदलने की ओर सिर्फ महिलाओं के लिए ही ये बंधन क्यों ?
जवाब देंहटाएंविचारणीय पक्ष सामने रखती कहानी ... सहजता से जीने के लिए आपसी समझ जरूरी है
जवाब देंहटाएंकहानी के माध्यम से सही सन्देश दिया है आपने ...
जवाब देंहटाएंबच्चों की गुलामी से अच्छा है अपने जीवन को सहज और जैसी इच्छा हो उसी अनुसार जीना चाहिए ... कहानी समाज की सोच को नै दिशा देती है ... बहुत अच्छी कहानी ....
Very nice
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (११-०९-२०२०) को 'प्रेम ' (चर्चा अंक-३८२२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,अनिता दी।
हटाएंबहुत ही सुन्दर सटीक और शिक्षाप्रद कहानी...
जवाब देंहटाएंअपनी कला और हुनर को किसी भी उम्र में जब समय मिले बढ़ा और दिखा सकते हैं.....।बेटे की गुलामी क्यों झेले माँ....।
सुधा दी, आजकल कई बेटों को लगता है कि हम कमा रहे है, तो जैसा हम कहेंगे माँ बाप को रहना पड़ेगा।
हटाएंकिसी भी रचनात्मक कार्य के लिए या अपना कोई शौक पूरा करने के लिए कोई उम्र निर्धारित नहीं होता वो तो हमने ही खुद पर पवंदिया लगा रखी है। हाँ,हर पीढ़ी में उम्र बढ़ने के साथ साथ बच्चे जरूर ये कोशिश करते है कि -अब माँ-बाप हमारी मर्जी और सहूलियत के हिसाब से जिए जो गलत है। बहुत ही अच्छी और शिक्षाप्रद कहानी। सादर नमन ज्योति जी
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक कहानी
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