प्रियंका, वास्तव में दोष हम सबका हैं, जो तुम्हें उन दरिंदो से नहीं बचा पाए! लेकिन अब फ़िर से कोई निर्भया, कोई प्रियंका इस तकलीफ़ से न गुज़रे इसके लिए इन दो उपायों से लग सकता हैं बलात्कारियों पर अंकुश!!
प्रियंका, तुम्हारा दर्द, तुम्हारी चीखें, तुम्हारा लहू, तुम्हारे आँसू और तुम्हारा चकनाचूर विश्वास...इस देश का हर संवेदनशील इंसान महसूस कर रहा हैं। लेकिन प्रियंका, कहते हैं न कि जाके पाँव न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई!! ठीक वैसा ही हाल पूरे देशवासियों का हैं। तुम जिस तकलीफ़ से गुज़री उसकी हम सब सिर्फ़ कल्पना कर सकते हैं...और सिर्फ़ कल्पना ही करते हैं...क्योंकि असली पीड़ा तो जिस पर बीती हैं वहीं जान सकता हैं! वास्तव में दोष हम सबका हैं, जो तुम्हें उन दरिंदो से नहीं बचा पाए! लेकिन अब फ़िर से कोई निर्भया, कोई प्रियंका इस तकलीफ़ से न गुज़रे इसके लिए तो हम प्रयास कर ही सकते हैं...मेरे हिसाब से दो उपाय हैं जिनको यदि अमल में लाया जाए तो बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश लग सकता हैं...!! और यही तुम्हें सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी!
पहला- कडे कानून लागू कर उनका सख़्ती से पालन किया जाए
प्रियंका हो या निर्भया दुष्कर्म के आरोपियों को बचाने के प्रयासों के कारण ही बलात्कारियों की हौसला अफजाई होती हैं। बलात्कारियों को विश्वास हो गया हैं कि हमारे देश का कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अभी तक निर्भया के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सजा नहीं दी गई हैं। फास्ट ट्रैक कोर्ट से सजा मिलती हैं, तो अपील पर अपील के कारण दोषी बचता रहता हैं। क्या ऐसे नरपिशाचों को दया याचिका का अधिकार होना चाहिए? यदि आरोपी नाबालिग हैं तो भी उसे सजा में छूट क्यों मिलनी चाहिए? दुष्कर्म करते वक्त क्या उसकी उम्र कम नहीं थी? फ़िर सजा के वक्त उसकी उम्र का ख्याल रखने में क्या तुक हैं? जब पीड़िता ने दुष्कर्मी की शिनाख़्त कर ली हो, आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया हो, तो फैसलों में लंबा वक्त क्यों लगना चाहिए? एक सप्ताह के भीतर सिर्फ़ फैसला ही नहीं तो सजा भी दी जानी चाहिए।
प्रियंका के दोषियों को जला कर ही मारना चाहिए...वो भी सबके सामने...बिल्कुल लाइव टेलीकास्ट होना चाहिए वो दृश्य ताकि ऐसी घिनौनी हरकत करने की सोचने वाले लोगों के दिलों में इतना डर बैठे कि वे ऐसी हरकत करने की सपने में भी न सोच सके!! सिर्फ मोमबत्तियां जलाने से कुछ नहीं होगा। हमें सरकार पर इतना दबाव बनाना होगा कि आरोपियों को जल्द से जल्द और सिर्फ और सिर्फ जिंदा जलाने की ही सजा मिले। ताकि उन्हें भी तो महसूस हो कि जिंदा जलते वक्त कितना दर्द होता हैं। मुझे तो लगता हैं कि इन लोगों को लाइव टेलीकास्ट करते हुए पहले आधा जलाया जाए फिर आग बुझा दी जाए। उनके तड़पते हुए दृश्यों को बार बार हर रोज चैनलों पर दिखाया जाए...तीन चार दिनों बाद फिर उन्हें लाइव टेलिकास्ट करते हुए पूरा जलाया जाए। ताकि इन दृश्यों को देख देख कर अपराधी सपने में भी दोबारा किसी भी बेटी को गलत नजर से देखने से भी डरे। मुझे कानूनों का ज्ञान नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि ऐसा करना कानूनन संभव हैं या नहीं लेकिन मुझे लगता हैं कि हर संवेदनशील इंसान ऐसा सोचेगा। और इस तरह जिंदा जलते हुए...तडपते हुए अपराधियों का दृश्य बार-बार देखने से अपराधियों के मन में डर बैठेगा।
मैं अभी परिवार के साथ दुबई यात्रा पर गई थी। वहां पर क्राइम रेट शून्य हैं। इसका कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि वहां पर हर जगह याने हर सडक पर, हर बस में, हर टैक्सी में, हर दुकान में, हर होटल में सी सी टी वी कैमेेेरे लगे हुए हैं। यदि कोई व्यक्ति कोई भी अनुचित हरकत करता हुआ दिखता हैं तो उस पर तुरंत कारवाई होती हैं। सजा इतनी कठोर हैं कि इंसान की रुह कांप जाए। इसलिए वहां पर क्राइम रेट शुन्य हैं। कहने का तात्पर्य यह हैं कि दुबई के लोग ज्यादा सभ्य हैं ऐसा नहीं हैं! सभी के मन में कानून एवं सजा का डर हैं।
हमारे देश के पास इतना पैसा नहीं हैं कि हम हर जगह सी सी टी वी कैमेरे लगा सके लेकिन क़ानून का तो कडाई से पालन कर ही सकते हैं...अपराधियों के मन में कानून का डर तो पैदा कर ही सकते हैं!! सत्ता झपटने के लिए जो लोग नियम-क़ानूनों की अनदेखी कर सकते हैं, क्या वे लोग रात भर जाग कर सबके दस्तख़त करा कर अपराधियों को जल्द से जल्द कठोर सजा नहीं दे सकते? आखिर कब तक हम हमारी बेटियों को यूं ही जिंदा जलते हुए देखते रहेंगे?
तेलंगाना के गृहराज्य मंत्री मोहम्मद महमूद अली ने कहा कि गलती डॉक्टर की ही थी कि उसने अपनी बहन को फोन किया यदि वो 100 नंबर पर यानी पुलिस के फोन करती तो बच सकती थी। काश, हमारी पुलिस प्रियंका के मन में अपने प्रति इतना विश्वास पैदा कर सकती कि अनहोनी की आशंका होने पर उसे पुलिस को फोन करने का ख्याल मन में आता!!
दूसरा- लड़कों की परवरिश का तरीका बदलना होगा!!
प्रियंका रेड्डी अकेली नहीं जली हैं, साथ ही में जली हैं उन दरिंदों के माता-पिता की परवरिश! ऐसी घटनाओं पर हम सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर कर देते हैं, कैंडल मार्च निकाल लेते हैं और समाज को दोष देते हैं। लेकिन समाज तो हम लोगों से ही बनता हैं न! ये दरिंदे हमारी ख़राब परवरिश का ही नतीज़ा हैं न? हम बच्चों की परवरिश ही इस तरीके से करते हैं कि लड़कों के मन में यह बात घर कर जाती हैं कि वे श्रेष्ठ हैं...महिलायें चीज हैं...उपभोग की वस्तु हैं!! शायद आप कहेंगे कि हम तो हमारे बच्चों को खास कर लड़कों को यह नहीं बोलते कि महिलायें उपभोग की वस्तु हैं। हम लोग प्रत्यक्ष रूप से यह बात नहीं कहते लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से उनके मन में यह भाव पैदा कर देते हैं। जैसे,
• जब घर में बेटे के पैदा होने पर जश्न मनाया जाता हैं और बेटी को पैदा होने के लिए भी इजाज़त लेनी पड़ती हैं...
• जब हमारे घर में बेटी को आश्रिता की तरह पाला जाता हैं...
• जब हम लड़कों को पैदाइशी तौर पर हर सुविधा देते हैं। हर तरह की स्वतंत्रता देते हैं। उनके उठने-बैठने, खाने-पीने, घूमने-फिरने, कहीं भी जाने-आने की पूरी स्वतंत्रता देते हैं। लेकिन लड़कियों पर ढेर सारी बंदिशे लगाते हैं। लड़कियाँ तो जोर से हंस भी नहीं सकती! उन्हें उनके उठने-बैठने के तरीके पर, चलने के तरीके पर, हर बात के लिए टोका जाता हैं...ये सब देख कर लड़कों के मन में श्रेष्ठता का भाव पनपता हैं...
• जब हम लड़कियों को हर चीज सिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन लड़कों को लड़कियों से बात करने की तमीज भी नहीं सिखाते...
• जब हम घर बेटी को तन ढकने और बेटों को मर्द बनने की शिक्षा देते हैं...
• जब हम लड़कियों को लडकी की तरह नहीं लड़कों की तरह पालने का दंभ भरते हैं...
• जब पिता बात बेबात माँ का अपमान करता हैं...
ये सब छोटी-छोटी बातें ही लड़कों के मन में ये भाव पैदा करती हैं कि वे श्रेष्ठ हैं और लड़कियां उपभोग की वस्तु हैं! हमें लड़कों की परवरिश का ये तरीका बदलना होगा। तभी बलात्कारियों पर अंकुश लग सकता हैं।
सूचना
हैदराबाद रेप केस का नाम बदलकर अब दिशा रेप केस कर दिया गया हैं। प्रियंका से दिशा नाम करने से क्या प्रियंका का दर्द कम हो जाएगा? चारों आरोपियों का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया हैं।
तेलंगाना के गृहराज्य मंत्री मोहम्मद महमूद अली ने कहा कि गलती डॉक्टर की ही थी कि उसने अपनी बहन को फोन किया यदि वो 100 नंबर पर यानी पुलिस के फोन करती तो बच सकती थी। काश, हमारी पुलिस प्रियंका के मन में अपने प्रति इतना विश्वास पैदा कर सकती कि अनहोनी की आशंका होने पर उसे पुलिस को फोन करने का ख्याल मन में आता!!
दूसरा- लड़कों की परवरिश का तरीका बदलना होगा!!
प्रियंका रेड्डी अकेली नहीं जली हैं, साथ ही में जली हैं उन दरिंदों के माता-पिता की परवरिश! ऐसी घटनाओं पर हम सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर कर देते हैं, कैंडल मार्च निकाल लेते हैं और समाज को दोष देते हैं। लेकिन समाज तो हम लोगों से ही बनता हैं न! ये दरिंदे हमारी ख़राब परवरिश का ही नतीज़ा हैं न? हम बच्चों की परवरिश ही इस तरीके से करते हैं कि लड़कों के मन में यह बात घर कर जाती हैं कि वे श्रेष्ठ हैं...महिलायें चीज हैं...उपभोग की वस्तु हैं!! शायद आप कहेंगे कि हम तो हमारे बच्चों को खास कर लड़कों को यह नहीं बोलते कि महिलायें उपभोग की वस्तु हैं। हम लोग प्रत्यक्ष रूप से यह बात नहीं कहते लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से उनके मन में यह भाव पैदा कर देते हैं। जैसे,
• जब घर में बेटे के पैदा होने पर जश्न मनाया जाता हैं और बेटी को पैदा होने के लिए भी इजाज़त लेनी पड़ती हैं...
• जब हमारे घर में बेटी को आश्रिता की तरह पाला जाता हैं...
• जब हम लड़कों को पैदाइशी तौर पर हर सुविधा देते हैं। हर तरह की स्वतंत्रता देते हैं। उनके उठने-बैठने, खाने-पीने, घूमने-फिरने, कहीं भी जाने-आने की पूरी स्वतंत्रता देते हैं। लेकिन लड़कियों पर ढेर सारी बंदिशे लगाते हैं। लड़कियाँ तो जोर से हंस भी नहीं सकती! उन्हें उनके उठने-बैठने के तरीके पर, चलने के तरीके पर, हर बात के लिए टोका जाता हैं...ये सब देख कर लड़कों के मन में श्रेष्ठता का भाव पनपता हैं...
• जब हम लड़कियों को हर चीज सिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन लड़कों को लड़कियों से बात करने की तमीज भी नहीं सिखाते...
• जब हम घर बेटी को तन ढकने और बेटों को मर्द बनने की शिक्षा देते हैं...
• जब हम लड़कियों को लडकी की तरह नहीं लड़कों की तरह पालने का दंभ भरते हैं...
• जब पिता बात बेबात माँ का अपमान करता हैं...
ये सब छोटी-छोटी बातें ही लड़कों के मन में ये भाव पैदा करती हैं कि वे श्रेष्ठ हैं और लड़कियां उपभोग की वस्तु हैं! हमें लड़कों की परवरिश का ये तरीका बदलना होगा। तभी बलात्कारियों पर अंकुश लग सकता हैं।
सूचना
हैदराबाद रेप केस का नाम बदलकर अब दिशा रेप केस कर दिया गया हैं। प्रियंका से दिशा नाम करने से क्या प्रियंका का दर्द कम हो जाएगा? चारों आरोपियों का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया हैं।
Bilkul sahi kaha aapne.aise darindo ko aisi hi saja milni chahiye aur wo bhi jald se jald.ya Mai to ye hi kahungi ki isse bhi kadi saja milni chahiye.
जवाब देंहटाएंपूर्ण समर्थन
जवाब देंहटाएंSahi kaha àpne aisi hi Dana milni chahiye in darindoko Mera puts samarthan hài
जवाब देंहटाएंVery true.
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारोत्तेजक लेख.....
जवाब देंहटाएंसही कहा लड़को की परवरिश का तरीका बदलना होगा एवं दरिंदों को कठोर सजा देने पर समाज में कानून का भय पैदा करके भी कुछ हद तक शायद सुधार हो....मैं आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ
पर ये एनकाउंटर वाली सजा कुछ हजम नहीं हुई
सुधा दी, दोषियों को हमारे यहां सजा बराबर न मिलने से लोगों में गुस्सा हैं। जब यह इनकाउंटर हुआ तो उसके परिणामो के बारे में न सोचते हुए दोषियों को सजा तो मिली यह सोच कर ज्यादातर लोग खुश हुए। दोषियों को सजा तो मिलनी चाहिए लेकिन इस तरह नहीं।
हटाएंज्योति जी, सही कहा आपने त्वरित न्याय, कठोर दण्ड सही परवरिश व सामाजिक विचारशीलता इस समस्या के सही हल हैं। पर असलियत बिल्कुल विपरीत है ।
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