दुबई यात्रा के दौरान अपने मातृभुमि से बेइंतहा प्यार करने वाली मैं यह कहने को क्यों मजबुर हुई कि काश, मेरा भारत देश दुबई जैसा होता!! ऐसा क्या था दुबई मेंं...
मैं परिवार के साथ 27 नवंबर 2019 से 3 दिसंबर 2019 दुबई यात्रा पर थी। हम छ: लोग (मैं, पतिदेव, बेटा, बेटी, दामाद और बेटी की बेटी) थे। हम लोग दुबई, आबू धाबी, शारजाह आदि राज्यों में घुमे। लगभग 400-450 किलोमीटर के भ्रमण में हर वक्त मुंह से वा...व्व...निकल रहा था और दिमाग में एक ही बात आ रही थी कि काश, मेरा भारत देश ऐसा होता...! मुझे मेरे मातृभूमि से प्यार नहीं हैं और मैं वहां की चकाचौंध से प्रभावित होकर ऐसा कह रही हूं, ऐसा बिल्कुल नहीं हैं। जिसके पास जितना पैसा होगा वो उतनी ही आलीशान इमारतें बनाएगा...उतने ही सुख-सुविधा के साधन जमा करेगा। मुझे जिन बातों ने प्रभावित किया वो बताने से पहले दुबई के बारे में थोड़ा सा जान लेते हैं...
दुबई UAE यानि संयुक्त अरब अमीरात में है और अमीरात का मतलब एक तरह से स्टेट ही होता है और UAE में कुल 7 ऐसे स्टेट हैं जिसमें Dubai भी एक हैं। यह फारस की ख़ाडी के दक्षिण में अरब प्रायद्वीप पर स्थित हैं। यहां की मुद्रा दिरहम (1 दिरहम याने फिलहाल भारत के 20 रुपए) हैं, जिसे AED लिखा जाता हैं। दुबई को निम्न तरीके से जाना जा सकता हैं-
• 1966 - इसी साल दुबई में तेल खोजा गया। जिसके बाद तेल की बढती डिमांड की वजह से समय के साथ दुबई अमीर होता चला गया।
• 1971 - UAE यानि के यूनाइटेड अरब अमीरात की स्थापना हुई जिसमे सातों अमीरात को शामिल किया।
• 1996 - दुबई वर्ल्ड कप का पहली बार आयोजन किया गया जो कि घोड़ों की रेस का खेल था।
• 1999- बुर्ज अल-अरब नाम का होटल खोला गया जो कि दुनिया का पहला सेवेन स्टार होटल हैं, जो समुद्र में खड़ा हैं।
• 2003- एक बहुत बड़ा और शानदार प्रोजेक्ट को लाँच किया गया जिसके तहत दुबई में 200 कृत्रिम द्वीप बनाये जाने थे और दुनिया की सबसे ऊंची ईमारतो का निर्माण किया जाना था।
• 2006- शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकदूम दुबई के राजा बने।
• 2010- बुर्ज खलीफा दुनिया की सबसे ऊंची ईमारत के तौर पर दर्ज की गयी। जिसकी ऊंचाई 828 मीटर हैं जिसमें 165 मंज़िलें हैं।
• दुबई में स्थानीय लोग 20% ही हैं। 80% लोग विदेशी हैं।
• यहां आतंकवाद जैसी कोई चीज नहीं हैं। यहां टैक्सी चालक भी मासीक एक लाख (भारतीय मुद्रा में) कमाते हैं।
• यहां के खजूर एवं खजूर की चॉकलेट्स प्रसिद्ध हैं। यहां सोना भी बहुत हैं। सोने के बाजार (जिसे Gold souk कहा जाता हैं) में सोने के गहने ऐसे रखे हैं जैसे आलू-प्याज की दुकाने हो! सड़क से चलते हुए ही हमें कांच की दिवारों में सजे भारी-भारी गहने देखने मिलते हैं।
• यहां पीने के पानी की बहुत कमी हैं। इसलिए भारत के जैसे यहां पर कही भी प्याऊ नहीं मिलेंगे। फाइव स्टार होटल भी अपने लंच या डिनर में ढेर सारे शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन दे देंगे...ड्राय फ्रूट दे देंगे लेकिन पीने का पानी नहीं देते। सिर्फ़ ब्रेकफास्ट में पानी देते हैं। हमने एक बार होटल में पानी मंगाया तो वो डेढ लीटर की एक बोटल 300 रुपए की मिली। सुपरमार्केट में डेढ लीटर की एक बोटल 60 रुपए की मिली। लेकिन यदि हम सुपरमार्केट से एक साथ 6 बोटल का पैक लेते हैं तो वो 90 रुपए में मिलेगा।
• दुबई भाग्यशाली हैं जिसे शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकदूम जैसे बहुत अच्छे शासक मिले!
इनका कहना हैं, कुछ भी असंभव नहीं हैं, सर्वश्रेष्ठ से कुछ भी कम नहीं!
इनका स्लोगन हैं, In Dubai we do not wait things to happen, we make them happen!
इनका संकल्प हैं, ये जो करेंगे वह दुनिया में एकलौता होगा या नम्बर एक होगा। इसी सोच के चलते आज दुबई कई मामलों में नम्बर एक हैं! ऐसी सोच यदि भारतीय शासकोंं की हो जाएं तो भारत फ़िर से सोने की चीडिया वाला देश बन जाएगा!
अब देखिए कुछ तस्वीरे...
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दुनिया की सबसे उंची इमारत बुर्ज खलीफा |
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बुर्ज ख़लीफ़ा का म्युजिकल फाउंटेन |
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दुबई की हवाई तस्वीर |
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होटल अटलांटिस जहां हम एक दिन रुके थे |
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होटल अटलांटिस के कमरे से बाहर का दृश्य |
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पीछे दिखाई देता दुनिया का पहला सेवेन स्टार होटल बुर्ज अल-अरब |
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एयर कंडिशन बस स्टॉप |
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गोल्ड सुक (जहां पर रस्ते पर चलते हुए कांच की दिवारों से सोने के गहने दिखते हैं।) |
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महल के सामने बने 19 सोने के घोडे ( सन 2000 से हर साल एक घोडा बनाया जा रहा हैं।) |
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शेख जायद ग्रांड मस्जिद |
अब जानते हैं कि मैं दुबई से प्रभावित क्यों हुई...
• स्वच्छता-
भारत में स्वच्छता अभियान का सिर्फ़ प्रचार करने में एक साल में करोड़ों रुपये ख़र्च हो रहे हैं। फ़िर भी जहां देखो वहां गंदगी नजर आती हैं। सरकार ने जगह-जगह कचरा पेटी लगवाई हैं। लेकिन कचरा, कचरा पेटी में कम और कचरा पेटी के बाहर ज्यादा दिखता हैं! UAE के 400-450 किलोमीटर के सफर में हमें एक भी कचरा पेटी ऐसी नहीं मिली, जिसके बाहर कागज का एक टुकड़ा भी हो! कहीं भी कचरे का ढेर नहीं मिला। हमारे यहां तो बड़े-बड़े मंदिरों और आलिशान होटलो के बाजू में कचरे का ढेर दिखाई देता हैं। यहां पर कोई भी सड़क पर या कोने में थुकता नहीं हैं। दुबई की इमारतों पर कुछ भी लिखना कानूनन अपराध हैं। बहुत स्वच्छता होने से हमें वहां पर एक भी मच्छर या मख़्खी नहीं दिखी। हमें तो गाने बनाने पड़ते हैं कि स्वर्ग में कहां से आये मच्छर...!! इतनी स्वच्छता देख कर मन में यहीं सवाल आ रहा था कि ये लोग भी तो खाते-पीते हैं, पहनते-ओढते हैं...फ़िर भी कहीं पर कचरा क्यों नहीं हैं? काश, मेरा भारत भी इतना ही स्वच्छ होता!
• प्रदुषण एवं ट्राफ़िक नियम-
दुबई की सड़को पर लोग कम और गाड़िया ज्यादा दिखती हैं। ज्यादातर फोर व्हिलर ही दिखती हैं, वो भी बीएमडब्ल्यू, फरारी और मर्सिडीज जैसी महंगी-महंगी। पूरी यात्रा में हमने सिर्फ़ 5-6 बार ही बाइक देखी, वो भी कोरियर सर्विस वालों की! शहर के अंदर भी चार-चार, छ:-छ: लेन की सडके हैं। शहर की व्यस्ततम सड़कों पर भी कारे 60-80% की स्पीड में दौडती हैं। इसके बावजूद हमें एक बार भी हॉर्न की आवाज सुनाई नहीं दी। वहां पर हॉर्न बजाना अगले का अपमान समझा जाता हैं। वहां पर बहुत सारे पब और ढेरों क्लब हैं लेकिन वहां का नियम हैं कि आप अपनी पूरी पार्टी क्लब के अंदर करे। सड़क पर कुछ भी उलटी-सीधी हरकत नहीं कर सकते। इससे किसी भी व्यक्तिगत समारोह से सड़के जाम नहीं होती। सभी लोग अपनी-अपनी लेन में और निर्धारित स्पीड में गाड़ी चलाते हैं। सड़कों पर कही भी एक भी गड्डा नहीं दिखा। सभी लोग ट्राफ़िक नियमों का कड़ाई से पालन कर रहे थे। यदि गलती से किसी ने रेड सिग्नल पार कर लिया तो इतना ज्यादा फाइन हैं (गाइड के मुताबिक 4000 दिरहम याने 80,000 रुपए) कि कोई भी रेड सिग्नल पार करने की हिम्मत नहीं करता! बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज चलाने वाले भी पैदल चलने वालों का सम्मान करते हैं। हमारे साथ कई बार ऐसा हुआ कि ज़ेबरा क्रासिंग पर सड़क पार करने के लिए जैसे ही हम फूटपाथ से सड़क पर पैर रखने लगे कि उधर से सौ की स्पीड में आती हुई गाड़ी देख कर हमने डर के मारे अपने पैर पीछे ले लिए ताकि पहले गाड़ी चली जाए। लेकिन हमें यह देख कर सुखद आश्चर्य होता था कि इतनी स्पीड में आती हुई गाड़ी भी रुक जाती थी और ड्रायव्हर हमें पहले सड़क पार करने के लिए इशारा करता था। व्यस्ततम चौराहों पर भी हमें सड़क पार करने में जरा सा भी डर नहीं लगा। भारत में तो सड़क पार करते हुए डर लगता रहता हैं कि कहीं कोई ठोक न दे!
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निर्माणाधिन इमारत |
• कड़े कानून एवं कड़ी सुरक्षा व्यवस्था
दुबई में हर जगह (जैसे कि हर सड़क पर, हर बस में, हर कार में, हर होटल में) सी सी टी वी कैमरे लगे हुए हैं। किसी भी प्रकार की थोड़ी सी भी गडबड़ी होने पर दो मिनट में पुलिस घटनास्थल पर पहूंच जाती हैं। पीड़ित को मदद करती हैं और दोषी चाहे वह कितना भी रसुखदार हो, बिना पक्षपात के तुरंत सजा मिलती हैं। इसलिए वहां पर क्राइम रेट शुन्य हैं। दुबई के शाषक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकदूम बिना सुरक्षा के सड़क पर चलते हैं! ट्रैफ़िक सिग्नल ग्रीन होने का इंतजार करते हैं...इसे कहते हैं सभी के लिए समान कानून!!
• ईमानदारी-
निर्धारित होटल पहुंचने पर कमरा मिलने में दो-तीन घंटे की देरी थी। हमें बाहर जाकर लंच लेना था। ऐसे में सवाल था कि सामान कहां रखे? पूछने पर बताया गया कि आप अपना सामान होटल की लॉबी में खूले में ही छोड़ कर जा सकते हैं। कोई भी आपके सामान को हाथ नहीं लगाएगा। काश, ऐसी ईमानदारी भारत में भी देखने मिलती!
• महिलाओं की सुरक्षा-
दुबई में आधी रात को अकेली महिला कम से कम कपड़ों में और कई किलो सोना पहन कर सड़क पर बेखौफ़ होकर घूम सकती हैं। काश, मेरे भारत में भी महिलायें इतनी ही सुरक्षित होती!
• स्लम एरिया का नामोनिशान नहीं-
पूरे सफ़र में हमें कहीं भी स्लम एरिया नहीं दिखा। एक भी भिखारी नहीं दिखा। टैक्सी वाले से पुछने पर उसने बताया कि यहां पर हर इंसान काम करता हैं इसलिए कोई गरीब नहीं हैं और भीखारी भी नहीं हैं।
तो दोस्तो, अब आपकी समझ में आ ही गया होगा कि मुझे दुबई की किन बातों ने प्रभावित किया! मुझे प्रभावित किया हैं, वहां की स्वच्छता ने...लोगों के सिविक सेंस ने...लोगों की इमानदारी ने...वहां की सुरक्षा व्यवस्था ने...वहां के कडे कानूनों ने...!! हम कश्मीर को उसकी प्राकृतिक सुंदरता के कारण धरती का स्वर्ग कहते हैं। लेकिन आतंकवाद और गलत सरकारी नीतियों के कारण कश्मीर की हालात आप सभी को पता हैं। दुबई जाकर मुझे ऐसा लगा धरती का स्वर्ग यहीं हैं। उनके पास प्राकृतिक कुछ भी नहीं हैं। न ही पीने के लिए पानी और न ही खाने के लिए अनाज! फ़िर भी उन्होंने अपनी सुझबुझ और कडे सरकारी नियमों से ये मुकाम हासिल किया हैं। काश, यदि यहां पर भी दुबई जैसे कड़े कानून बना कर उनका सख़्ती से पालन होता...शासक दुरदर्शी होते...तो मेरा भारत देश भी दुबई जैसा होता...क्योंकि दुबई के लोग ज्यादा सभ्य हैं ऐसा नहीं हैं! वहां के कड़े कानून और मिलने वाली कड़ी सजा के कारण ही वो ऐसा बना।
सुंदर सुखद यात्रा विवरण.. भारत भारत ही रहेगा बदलाव की उम्मीद वहाँ की जाती है जहाँ लोग स्वयं उत्सुक हों बदलने के लिए.यहाँ तो हर छोटी बात पर वैचारिक बहस आंदोलन और सौ तरह के नाटक।
जवाब देंहटाएंखैर अपनी माटी की सोंधी खुशबू में अपने सम विषम विचारों वाले परिजनो के साथ जीना हमारी समृद्ध संस्कृति और सभ्यता ही बहुमूल्य है यही सोचकर खुश होना चाहिए।
सही कहा श्वेता दी कि हमें अपनी माटी की सोंधी खुशबू में अपने सम विषम विचारों वाले परिजनो के साथ जीना हमारी समृद्ध संस्कृति और सभ्यता ही बहुमूल्य है यही सोचकर खुश होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंयहीं सोच कर खुश रहते भी हैं। लेकिन फ़िर भी ये दिल ही हैं जो सपने देखने लगता हैं...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-12-2019) को "नारी का अपकर्ष" (चर्चा अंक-3545) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंसर्वप्रथम आपका सपरिवार दुबई घुमने की मुबारकबाद आपको .. आपके जीवंत यात्रा-वृत्तांत ने मानस-पटल को बहुत हद तक तृप्त करने की कोशिश की है।
जवाब देंहटाएंआपकी भारत के साथ तुलनात्मक लेखनी और भी अच्छी लगी। काश ! मैं भी आनन्द ले पाता इस सौंदर्य और सफाई का।
हम केवल सोशल मिडिया पर "सभ्यता और संस्कृति" का ढोल पिटते रहते हैं। हमारे यहाँ यतायात के नियमों के विरुद्ध जुर्माना बढ़ाने पर हमारा बुद्धिजीवी वर्ग उतेजित हो जाता है।
हम मंदिरों और पूजन के नाम पर ही तो चारों ओर आधी से ज्यादा गंदगी फैलाने में सभ्यता/ संस्कृति का ढोल पीटते नहीं थकते हैं।
बदलाव तो संभव है , कही भी , कभी भी , किसी भी चीज की, बस मानसिकता बदलने की जरुरत है। एक उम्मीद के साथ ...
धन्यवाद सुबोध भाई। हम भारतीयों को मानसिकता बदलने की ही तो जरूरत है। यदि हम अपनी मानसिकता बदल लें तो हमारा भारत भी दुबई जैसा स्वच्छ और शून्य क्राइम रेट का हो सकता हैं।
हटाएंज्योति जी, मेरी बड़ी बेटी का परिवार साढ़े सात साल से दुबई में है. हम लोग भी वहां गए हैं और आगे भी जाएँगे. दुबई के अनुशासन, सफ़ाई और समृद्धि देख कर मन में यह ज़रूर आता है कि काश हमारा देश भी ऐसा होता. क़ानून तो सब जगह होते हैं लेकिन सुचारू रूप से उनका क्रियान्वयन हर जगह एक सा नहीं हो पाता. हमारे देश में क़ानून की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं और दुबई में उसकी इबादत की जाती है.
जवाब देंहटाएंगोपेश भाई,सही कहा कि सवाल कानून क्रियान्वयन का ही हैं।
हटाएंबहुत सुंदर यात्रा वृतान्त एवं चित्रण
जवाब देंहटाएंहमारा देश भी कभी ऐसा हो!
दुबई की बहुत सुखद यात्रा वृतांत ,ज्योति जी हम बस काश ....... ही कह सकते हैं ,लेकिन एक सुखद सपने देखकर उसे पूरा करने की रत्तीभर भी प्रयास अपनी तरफ से तो कर ही सकते हैं न ,बहुत सुंदर आलेख ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंकामिनी दी, मेरा यहीं मानना हैं कि हम दूसरों को नहीं सुधार सकते लेकिन खुद तो सुधर सकते हैं। मेरी यहीं कोशिश रहती हैं कि मैं जो बजी कार्य करू नैतिक दृष्टि से, पर्यावरण की दृष्टि से सही हो।
हटाएंI felt like reading a research article than a travel story...very informative, it was really nice to go trough this post.
जवाब देंहटाएंNice pictures and good to see your entire family.
दुबई को आपकी नज़र से देखना अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंजीवन का एक लम्बा समय वहां गुज़ारा है और आज भी किसी न किसी बहाने उसकी बातों से जुडा महसूस करता हूँ ...
अच्छी लगी आपकी कलम दुबई के बारे में ...
दिगम्बर भाई,आप भाग्यशाली हैं, जो बार बार इतने अच्छे देश में आपका जाना आना लगा रहता हैं।।
हटाएंदुबई यात्रा के लिए आपको बहुत बधाई I ये लेख एक तथय्परक दृष्टिकोण के साथ बढ़िया तुलनात्मक अध्ययन है I सही है भारत और भारतीय दुनिया की हर अच्छी चीज़ से बहुत कुछ सीख सकते है....क्यूंकी नया और अच्छा अपनाना हीं तो विकास है !
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