नागरिकता संशोधन कानून को सही या गलत बताने वालों के अपने-अपने तर्क-वितर्क हैं। जनिए, नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर एक आम नागरिक का क्या मनोगत हैं और विरोध प्रदर्शन के नाम पर अपनी ही संपत्ति का विनाश क्यों हो रहा हैं?
नागरिकता संशोधन कानून को सही या गलत बताने वालों के अपने-अपने तर्क-वितर्क हैं। समर्थकों का कहना हैं कि इससे पाकिस्तान, बांग्ला देश और अफ़गानिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, जैन, पारसी और ईसाईयों को प्रताड़ना से राहत दिलाई जाएगी। इस कानून के विरोधियों का मानना हैं कि इससे धार्मिक आधार पर विभेद बढेगा।
यहां पर मैं यह कानून सही हैं या गलत इसकी गहराई में न जाकर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर एक आम नागरिक का क्या मनोगत हैं, वो इस कानून को किस नज़रिए से देखता हैं और विरोध प्रदर्शन के नाम पर अपनी ही संपत्ति का जो विनाश हो रहा हैं, क्या वो सही हैं…यह बताना चाहती हूं। क्योंकि देश के एक आम नागरिक को वास्तव में CAA में क्या हैं यह नहीं पता। उसे नहीं पता कि इससे किसका फ़ायदा होगा और किसका नुकसान होगा।
पहले हम इस कानून को समर्थको की नजरों से देखेंगे। उनके अनुसार इस कानून से अल्पसंख्यकों को धार्मिक प्रताड़ना से राहत मिलेगी। इंसानियत के नाते सरकार का यह कदम सही लगता हैं। लेकिन पहली गौर करने की बात यह हैं कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश हैं। यहां की आम जनता आपस में मिलजुल कर रहती हैं। स्कूलों में हिंदू-मुस्लिम बच्चे एक साथ बैठ कर पढ़ते हैं, ट्रेनों और बसों में हिंदू-मुस्लिम साथ-साथ बैठ कर सफर करते हैं, होटलों में एक साथ बैठ कर भोजन करते हैं। होटल में भोजन करनेवाला यह नहीं सोचता कि खाना एक हिंदू ने बनाया हैं कि मुस्लिम ने! आज भी कई मुस्लिम दीवाली पर अपने हिंदू दोस्त के घर बधाई देने आते हैं, तो ईद पर हिंदू दोस्त मुस्लिम के घर सेवई खाने जाते हैं। इसलिए ही तो हम कहते हैं कि,''हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
आपस में सब हैं भाई-भाई!'' मतलब यह कि देश की आम जनता के मन में धार्मिक भेदभाव नहीं हैं। ये तो सियासत हैं जो नए-नए क़ानूनों से जनता को आपस में लडवाती हैं। मुझे कानून का ज्ञान नहीं हैं! मुझे नहीं पता की नागरिकों को किस आधार पर देश की नागरिकता दी जाती हैं! लेकिन एक आम नागरिक की हैसियत से मुझे लगता हैं कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर नागरिकता देने का कानून नहीं होना चाहिए। यदि धर्म के आधार पर नागरिकता दी गई, तो शायद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में जिस तरह संस्कृत भाषा के गौरव फ़िरोज खान का विरोध हुआ...जोमैटो कंपनी के फूड डिलिवरी बॉय का गैर हिंदु होने से जो विवाद हुआ...इस तरह के धर्म पर आधारित विवाद बढ़ते जायेंंगे और इससे देश की धार्मिक एकता को ख़तरा पैदा होगा। देश में अराजकता फैलेगी। हमें इस बात का शुक्र मानना चाहिए कि फिलहाल CAA पर संघर्ष हुडदंगियों और पुलिस के बीच हैं। लेकिन कल्पना कीजिए कि यदि आगे चल कर यह दंगे धर्म आधारित दंगो पर आ जायेंगे तो देश की स्थिति क्या होगी? एक शेर हैं,
''सभी का खून शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़े ही हैं!!''
एक आम नागरिक होने के नाते मुझे लगता हैं कि देश की कुछ प्राथमिकताएं ऐसी हैं जो इस कानून को लागू करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। यह बात स्पष्ट करने के लिए मैं पहले कुछ सरकारी आंकड़े बताना चाहुंगी।
''सभी का खून शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़े ही हैं!!''
एक आम नागरिक होने के नाते मुझे लगता हैं कि देश की कुछ प्राथमिकताएं ऐसी हैं जो इस कानून को लागू करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। यह बात स्पष्ट करने के लिए मैं पहले कुछ सरकारी आंकड़े बताना चाहुंगी।
• नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 60 करोड़ भारतीय गंभीर जल संकट से ग़ुज़र रहे हैं। साफ़ पानी नहीं मिलने के कारण हर साल दो लाख भारतीय मर जाते हैं।
• देश में बेरोज़गारी की दर वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 61 फीसदी पर पहुंच गई। बेरोज़गारी की यह दर 45 साल में सबसे ज्यादा हैं।
• अंतरराष्ट्रीय सड़क संगठन (आईआरएफ) के मुताबिक दुनियाभर के सड़क हादसों में जो मौतें होती हैं, इसमें भारत की हिस्सेदारी 10% से ज्यादा हैं। भारत में सड़कों की हालत इतनी ख़स्ता हैं कि साल 2016 में 1,50,785 लोग सड़क हादसे में मारे गए।
• राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के मामले थानों में पंजीकृत होते हैं।
अब आप ही बताइए जब हमारे देशवासियों को पीने के लिए साफ़ पानी की कमी हैं…बेरोजगारी दर बढ़ रहीं हैं…देश के सड़कों की हालत ख़स्ता हैं…महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं…उन पर बलात्कार कर उन्हें जिंदा जला दिया जा रहा हैं...तो ऐसे में क्या हमें नागरिकता संशोधन कानून से पहले इन समस्याओं पर ध्यान देना ज़रुरी नहीं हैं?
विरोध प्रदर्शन के नाम पर अपनी ही संपत्ति का विनाश क्यों?
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के नाम पर दिल्ली की हिंसा में 1500 करोड़ डूब गए तो अकेले रेलवे को 90 करोड़ का नुकसान हुआ। 15 लोगों की मौत हुई तो कई घायल हुए। इतनी सारी संपत्ति का जो नुकसान हुआ वो संपत्ति किसकी थी? भाजपा की या कॉंग्रेस की? हिंदुओं की या मुस्लिमों की? मेरे देशवासियों, ये संपत्ति न ही भाजपा की थी और न ही कॉंग्रेस की थी। न ही किसी हिंदू की थी और न ही किसी मुस्लिम की। ये संपत्ति थी हम सब की! आप और हम सब मिल कर रात-दिन मेहनत कर के, पसीना बहा कर, पैसा कमा कर सरकार को जो टैक्स देते हैं उसी टैक्स से बनी हुई यह संपत्ति थी। तो विरोध प्रदर्शन के नाम पर हम अपनी ही संपत्ति को नुकसान कैसे पहुंचा सकते हैं?
किसी विषय पर असहमती होने पर आंदोलन, धरना प्रदर्शन करके अपना विरोध जताना सही हैं। लेकिन इसमें हिंसा का तड़का लगाना सरासर गलत हैं। यदि घर के बड़े-बुजुर्गों का कोई फैसला हमें नामंज़ूर होता हैं तो क्या हम हमारे घर के खिड़की-दरवाज़े तोड़ देते हैं? हमारे घर को जला देते हैं? नहीं न? फ़िर यदि देश के बड़े-बुजुर्ग याने की सरकर का कोई फ़ैसला यदि हमें नामंजूर हैं, तो हम हमारे ही देश की संपत्ति, बसे, ट्रेन, पुलिस चौकी आदि क्यों जलाते हैं? इन सरकारी संपत्ति की नुकसान भरपाई कोई भी पार्टी अपनी जेब से नहीं करती। सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई भी सरकार ज़रुरी वस्तुओं के दाम बढ़ा कर और टैक्स बढ़ा कर ही करती हैं। मतलब सरकार का या किसी भी पार्टी का कुछ नहीं बिगडता हैं। जेब हमारी ही खाली होती हैं। ये सब बाते आम जनता को भी पता हैं। लेकिन पता होने के बावजूद आम जनता ये बात समझना नहीं चाहती! जैसे सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानीकारक हैं यह पता होते हुए भी लोग सिगरेट पीते हैं ठीक उसी तरह सरकारी संपत्ति का नुकसान मतलब हमारी संपत्ति का नुकसान यह जानते-समझते हुए भी दंगो में करोड़ों की संपत्ति स्वाहा हो जाती हैं। यह देख कर मेरे जैसे एक आम नागरिक का मन दुखी हो उठता हैं क्योंकि यदि इतने करोड़ रुपए देश के विकास में लगते तो देश की तस्वीर बदल जाती!!!
इस कानून के विरोध में होने वाले दंगो में जिन 15 लोगों की जाने गई उन लोगों को भी शायद ही पता होगा कि CAA क्या हैं, वे किस लिए लड रहे हैं और वो लोग बेमौत क्यों मरे! क्या बीत रहीं होगी उनके परिवार वालों पर? किसी का भाई, किसी का बेटा और किसी का सुहाग दंगो की भेट चढ़ गया! कौन हैं इतनी मौतों का जिम्मेदार? क्या वास्तव में किसी को भी इतने सारे लोगों की मौत का दु:ख हैं?
इन दंगों में जख़्मी होने वाले और मरने वाले लोग कौन हैं? जाहीर हैं ये लोग दंगा करवाने वालों के बच्चे तो नहीं हैं। क्योंकि उनके बच्चे तो विदेशों में उंची तालीम हासील कर रहे हैं। दंगा करवाने वालों की नजरों में उनकी जान किमती हैं। लेकिन जो लोग दंगा कर रहे हैं उनके जान की किमत फूटी कौड़ी भी नहीं। मरते हैं तो मरे अपनी बला से! इसलिए मेरे भाइयों, किसी के बहकावे में आकर अपने जान की बली न दे। आप ही बताइए, जब नागरिकता संशोधन कानून भारत के नागरिकों के लिए हैं ही नहीं तो फ़िर इससे किसी भी भारतीय की नागरिकता को ख़तरा कैसे हो सकता हैं? नेता लोग जनता को भेड़-बकरी समझते हैं, जिधर हांक दिया चल देंगे। लेकिन क्या हमारे पास खुद का विवेक नहीं हैं? यदि हैं तो हमें पहले किसी भी बात का विस्तृत अध्ययन करना चाहिए फ़िर सोचना चाहिए कि क्या हमे इसका विरोध करना चाहिए? यदि विरोध करना हैं तो उसका तरीका क्या होगा ताकि अपना विरोध प्रकट भी हो जाए और किसी का नुकसान भी न हो! भगवान बुद्ध ने कहा था, ''अप्प दिपो भव'' अर्थात खुद ही दीपक बनो! यदि कोई नेता या व्यक्ति हमको अपने इशारे पर नचाता हैं, तो हममें और जानवरों में क्या अंतर रह जाएगा? जंगल का राजा शेर अपनी बुद्धी का इस्तेमाल नहीं करता इसलिए ही सर्कस में अदने से इंसान के इशारे पर उसे नाचना पड़ता हैं। ईश्वर ने हम इंसानों को बुद्धी दी हैं। उस बुद्धी का इस्तेमाल कीजिए। दंगो में अपनी ही संपत्ति को नुकसान पहूंचाकर अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाडी मत मारिए!
हमारे यहां जनशिकायतों का निवारण करने हेतु कोई उचीत व्यवस्था न होने से लोगों के मन में धारणा बन गई हैं कि हिंसा किए बिना सरकार किसी भी बात की ओर ध्यान नहीं देगी। लेकिन भाइयों, हम ये क्यों भूल जाते हैं कि महात्मा गांधी ने सालों पहले अंग्रेजों को अहिंसा के रास्ते से ही भारत से ख़देडा था। इसलिए किसी भी किंमत पर हमें हिंसा का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए। किसी बात में हमारी विचार भिन्नता हो सकती हैं, लेकिन नैतिकता से भिन्नता नहीं होनी चाहिए।
ज्योति जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ! नागरिकता बिल का समर्थन भी स्पॉन्सर्ड है और उसका विरोध भी !
दोनों तरफ़ से किराए के गुंडे और भाड़े के टट्टू दिखाई दे रहे हैं.
पुलिस आन्दोलनकारियों के सर तोड़ रही है तो इसके विरोधी संपत्ति तोड़ रहे हैं.
लेकिन ये लोग हम शान्ति-प्रेमी नागरिकों का और भारत माता का दिल भी तोड़ रहे हैं.
एक तरफ़ से ज़ुल्म हो रहा है, दूसरी तरफ़ से नादानी और शरारत हो रही है.
इस समय ही नहीं, किसी भी सरकार को हमेशा ही, देश की ज्वलंत समस्याओं के निराकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए लेकिन हमारे देश की किसी भी सरकार ने शायद ही इस पर कभी ध्यान दिया है.
गोपेश भाई, यहीं तो हमारी विडंबना हैं कि हमारी कोई भी सरकार मुलभुत समस्याओं पर अपना ध्यान केंद्रित करने की बजाय वोट बैंक की तरफ़ ही ज्यादा ध्यान देती हैं!! ऐसा लगता हैं कि सभी चोर-चोर मौसेरे भाई हैं!!
हटाएंAs usual very informative and potential write up,logo ko uksaaya jaa raha hai aur bina jane aur soche woh sab react kar rahe hai...
जवाब देंहटाएंबिडम्बना है बहुत से लोग बिना समझे ही उछल कूद करने आ जाते हैं सड़कों पर और तोड़-फोड़ करने लगते है, ऐसे लोगों पर उस सम्पत्ति की भरपाई के लिए दंड का कठोर प्रावधान करना चाहिए और नहीं तो जेल में सड़ाने रख छोड़ना चाहिए
जवाब देंहटाएंबहुत सही सामयिक प्रस्तुति
कविता दी,आज भी कई लोगों की सोच यहीं होती है कि वो सरकारी संपत्ति हैं मतलब सरकार है। इसलिए ही अपने खून पसीने की कमाई से दिए गए टैक्स से बनी संपत्ति को हानि पहुचाते हैं।
हटाएंमेरा मत कुछ भिन्न है इस विषय पर ... समस्याओं का निवारण जरूरी है ये तो होना ही चाहिए ... पर बिना जाने किसी भी क़ानून को गलत मान लेना, तोड़-फोड़ करना कहाँ तक उचित है ... फिर देश की पार्लियामेंट में क़ानून पास हुआ तो कोई तो मान होना चाहिए ... इनके ऊपर कोर्ट है उसका भी मान जरूरी है ... बाकी अफवाहों पर ध्यान न दे कर अगर अप इस कानून को पढ़ें तो कुछ कहीं गलत नजात नहीं आता ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर भाई,मुझे कानूनी प्रक्रिया की पूरी जानकारी नहीं हैं। लेकिन एक आम नागरिक होने के नाते देश में सौहाद्र बनाए रखने के लिए और देश के सभी नागरिक आवास में प्रेम से रहे इसलिएमुझे लगता हैं कि धर्म के आधार पर नागरिकता कानून नहीं बनना चाहिए।
हटाएंहिंसा और तोड़फोड़ से सिर्फ नुकसान ही होता है इससे कभी कोई समाधान नहीं हो सकता ...पर किराए के टट्टुओं से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं वे तो खुद अपने ही नहीं देश के भला क्या होंगे... सही कहा सरकारी सम्पत्ति किसी राजनैतिक पार्टी की नहीं बल्कि हमारी ही मेहनत की कमाई है किसी कानून का मान नही करते तो ना सही अपना नुकसान तो ना करो...।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचारणीय लेख।