फादर्स डे (16 जुन, रविवार ) पर मैं मेरे पापा से जूडी एक घटना शेयर कर रहीं हूं। जानिए, पापा ने अपनी जान की पर्वा किये बिना...अपनी बेटियों के भविष्य से भी डरे बिना...कैसे गांव के बेटी की इज्जत बचाई!!! यह घटना इतनी प्रेरणास्पद हैं कि जिसे जान कर हर इंसान को उन पर गर्व होगा!!
पिता हमेशा अपने बच्चों का ख्याल रखते आएं हैं...बच्चों के सामने एक आदर्श स्थापित करते आएं हैं...कुछ ऐसे ही हैं मेरे पापा...खुदा की नेमत हैं मेरे पापा...किसी की मदद करने हेतु वे हमेशा तत्पर रहते हैं...इतने कि कभी-कभी खुद के जान की पर्वा न करते हुए भी उन्होंने दूसरों की मदद की हैं! फादर्स डे (16 जुन, रविवार) पर मैं मेरे पापा से जूडी एक घटना शेयर कर रहीं हूं। यह घटना इतनी प्रेरणास्पद हैं कि जिसे जान कर हर इंसान को उन पर गर्व होगा!!
घटना बिलकुल फिल्मी स्टाइल में हुई थी, लेकिन हुई थी रीयल लाइफ में!
हम दहीगांव (ता. तेल्हारा, जि.आकोला, महाराष्ट्र) में रहते थे। 12 अगस्त 1982 की रात को लगभग दस बजे पापा बाइक से शेगांव से दहिगांव आ रहे थे। दहीगांव फाटे पर उन्हें दो साइकिल खड़ी दिखी। साइकिल के पास गांव की ही एक बेटी अपने पति, छोटा भाई और नौकर के साथ खड़ी दिखी। भाई और नौकर की उम्र लगभग 17-18 साल की होगी। उन्हें देख कर पापा ने बाइक रोकी। सभी एकदम घबराये हुए लग रहे थे। पापा को देखते ही वह महिला बोली, ''भाऊ, (पापा को सब भाऊ कह कर ही संबोधित करते हैं। यहां तक की मैं खुद भी शादी से पहले उन्हें भाऊ ही कहती थी। शादी के बाद ससुराल वाले हसेंगे यह सोच कर पापा बोलना शुरु किया था) हमें बचालो...वो लोग हमारा पिछा कर रहे हैं...प्लीज हमें बचालों....''
''कौन लोग पिछा कर रहे हैं? क्या बात हैं पूरी बात बताओ...''
''हम लोग तेल्हारा (दहीगांव फाटे से 7.5 कीलोमिटर दूर) पिक्चर देखने हेतु गए थे। जब हम टॉकीज के पास के होटल में नाश्ता कर रहे थे तो एक आदमी मुझे लगातार घुरके देख रहा था। उसे नजरअंदाज करके हमने नाश्ता किया और पिक्चर देखी। जैसे ही हम टॉकीज से बाहर निकले तो वहीं आदमी फ़िर से मुझे घूर रहा था। हम चारों दो साइकिल पर निकल पड़े। हम आधा कीलोमिटर दूर ही आएं थे तो एक जीप हमारे पिछे-पिछे आने लगी। उसकी स्पीड बहुत ही कम थी। गाड़ी में उसी आदमी को देख कर हम चारों को बहुत डर लग रहा था। थोड़ी देर में गाड़ी हमसे आगे निकल गई तो हमने चैन की सांस ली लेकिन ये क्या हम थोड़ी दूर ही आए थे, तो देखा कि वहां पर जीप खड़ी थी। वो फ़िर से हमारे पिछे-पिछे आने लगी। थोड़ी देर में जीप ज्यादा पिछे रह गई। हम लोग थार (एक छोटा सा गांव जो तेल्हारा से 3.5 कीलोमिटर दूर था) में रुके। क्योंकि वहां पर लाइट थी और कोई अनहोनी होने पर हमें वहां मदद मिल सकती थी। लेकिन जब थोड़ी देर तक गाड़ी नहीं आई तो हम लोगों ने फ़िर से अपना सफर शुरु किया। लेकिन ये क्या जीप फ़िर से आ गई। वो हमसे आगे नहीं जा रही थी। इन लोगों ने साइकिल की स्पीड बढ़ा दी ताकि जल्द से जल्द घर सही सलामत पहुंच जाएं। जीप हम से लगातार आंख-मिचौली खेल रही थी। कभी हमारे साथ तो कभी आगे तो कभी पिछे। जिस तरह हम लोग थार में रुके थे वैसे ही खापरखेड फाटे पर भी रुके। क्योंकि वहां पर भी लाइट थी।जब खापरखेड फाटे पर भी थोड़ी देर जीप नहीं आई तो हम लोग आगे निकले। लेकिन फ़िर से जीप हमारे पिछे-पिछे आने लगी। किसी तरह हम यहां दहिगांव फाटे तक पहुंचे हैं। अभी लगभग दस मिनट से जीप दिखाई नहीं दी हैं। हम लोग इस उम्मीद में यहां रुके हैं कि शायद कोई पहचान का मिल जाएं और हमें मदद मिल जाए। क्योंकि यदि हम एक बार फाटे से आगे निकल गए तो गांव तक (लगभग देढ कीलोमिटर) एक भी लाइट नहीं हैं। अंधेरे का फायदा उठाकर कहीं वो लोग हमें....भाऊ, प्लीज हमारी मदद करो...बस किसी तरह हमें सही सलामत घर तक पहूंचा दो...प्लीज...''
चारों भी बूरी तरह डरे हुए थे। महिला का पति खुद ही बहुत डरा हुआ होने से उससे किसी तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। भाई और नौकर भी हिम्मत वाले नहीं थे। महिला की नई-नई शादी हुई थी और वो बहुत सुंदर थी। इसलिए स्थिति को समझ कर पापा ने महिला को अपनी बाइक पर बैठाया और उसे कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए जब तक मैं न कहूं तब तक बाइक से उतरना नहीं। क्योंकि वो जो कोई भी होगा पापा की बाइक से महिला को उठाना उसके लिए कठीन होगा। पापा ने उसके पति और भाई को कहा कि तुम लोग मेरी गाडी की लाइट में आगे-आगे चलो। इस तरह ये लोग निकले ही थे कि वहीं जीप आ गई। दो-तीन मिनट तो जीप धीरे-धीरे पिछे आती रही फ़िर अचानक वो बाइक और साइकिल के सामने आडी हो गई। इन लोगों को भी रुकना पड़ा। पापा ने महिला से कहा कि मुझे कस के पकड ले ताकि कोई आसानी से उसे बाइक से उतार न पाएं।
गाडी में से तेल्हारा का एक शरीफ गुंडा और उसके तीन साथी बाहर आए। पापा उस शरीफ गुंडे को पहचानते थे और वो भी पापा को पहचानता था। क्योंकि हम लोगों का तेल्हारा में घर था। हमारा संयुक्त परिवार था। दादी जी, चाचाजी, भुवाजी और भैया लोग सब वहीं रहते थे। दहीगांव में खेती के लिए हम लोग यहां रह रहे थे।
गाडी में से तेल्हारा का एक शरीफ गुंडा और उसके तीन साथी बाहर आए। पापा उस शरीफ गुंडे को पहचानते थे और वो भी पापा को पहचानता था। क्योंकि हम लोगों का तेल्हारा में घर था। हमारा संयुक्त परिवार था। दादी जी, चाचाजी, भुवाजी और भैया लोग सब वहीं रहते थे। दहीगांव में खेती के लिए हम लोग यहां रह रहे थे।
गुंडे ने पापा से कहा, ''लडकी को छोड दे...हम लोग शाम से ही इन लोगों का पिछा कर रहे हैं। तू हमारे बीच में मत पड। हम तुझे कुछ नहीं करेंगे बस लडकी को हमारे हवाले कर दे।''
पापा ने कहा, ''चाहे कुछ भी हो जाए मैं इस लडकी को तेरे हवाले नहीं करुंगा।''
''क्या लगती हैं ये तेरी? जो तू इसके लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहा हैं?''
''ये मेरे गांव की बेटी हैं...मतलब मेरी बेटी हैं...मैं मेरी बेटी को कैसे...''
''सोच ले राधेश्याम...अपनी जिद छोड...नहीं तो अंजाम बूरा होगा!!''
हम लोग देखते-सुनते आएं हैं कि जब इंसान पर वासना का भूत सवार होता हैं तो वो सही-गलत, अच्छा-बूरा कुछ नहीं सोचता। वो लोग तो पूरी तैयारी से ही आए थे। ऐसे में वो पापा को भी जान से मार सकते थे! लेकिन पापा अपने जान की पर्वा किए बिना अपनी बात पर अडे रहे कि यदि तुझे लडकी होना तो तुझे पहले मुझे मारना होगा। मेरे जीते जी मैं तुझे लडकी को हाथ भी लगाने नहीं दूंगा। थोड़ी देर बहस होती रहीं।
वो धमकी देते हुए बोला, ''इसका अंजाम भुगतने तैयार रहना। तेरी भी दो-दो जवान बेटियां हैं। दोनों रोज पढाई के लिए तेल्हारा जाना-आना करती हैं। यदि कल को उनके साथ कोई हादसा हो गया तो मुझे मत कहना। इसलिए चुपचाप लड़की को छोड़ दे वरना कल को तेरी बेटियों के साथ कुछ भी हो सकता हैं!!''
''कल मेरी बेटियों के साथ बूरा न हो यह सोच कर आज मैं इस बेटी के साथ बूरा नहीं होने दे सकता। तुझे जो करना हैं कर ले लेकिन आज मैं मेरे जीते जी तुझे इस लडकी को हाथ लगाने नहीं दूंगा।''
ईश्वर ने न जाने तब उस गूंडे को कैसी सद्बुद्धी दी कि वो किसी को भी बिना कुछ करे चुपचाप गाडी में बैठने लगा। उसके साथी भी गाडी में बैठ गए। लेकिन जाते-जाते वो धमकी दे गया, ''इसका अंजाम भुगतने तैयार रहना। तेरी दो-दो जवान बेटियां हैं!! जब तुझे ही अपने जवान बेटियों की फिक्र नहीं हैं, तो...बस अब अंजाम के लिए तैयार रहना...!!''
इस तरह पापा ने अपनी जान की पर्वा किये बिना...अपनी बेटियों के भविष्य से भी डरे बिना...गांव की बेटी की इज्जत बचाई!!! पापा ने उन सभी को उनके घर तक पहुंचाया। उस दिन पापा वक्त पर नहीं पहुंचते तो न जाने क्या हो जाता? वो लोग उस महिला, महिला के पति, छोटा भाई और नौकर के साथ भी न जाने क्या करते? यदि हर इंसान पापा की तरह थोड़ी सी हिम्मत दिखाएं...सिर्फ़ अपने और अपने परिवार के बारे में न सोचे तो शायद बहुत सी बहू-बेटियों की इज्जत बच जाएं!!!!!!!!
ऐसे हैं मेरे पापा...मुझे मेरे पापा पर बहुत गर्व हैं। मुझे गर्व हैं कि वो मेरे पापा हैं और मैं उनकी बेटी हूँ। फिलहाल उनकी तबियत थोड़ी ख़राब चल रहीं हैं। फादर्स डे पर ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि उनको जल्द ही स्वास्थ्य लाभ हो और उनकी छत्रछाया हम पर बनीं रहे...
सुचना-
पापा को डायरी लिखने की आदत हैं। इसी आदत के चलते घटना की सही तारीख़ मिल पाई। नहीं तो इतने सालों बाद पापा खुद भी अंदाज से ज्यादा से ज्यादा साल बता पाते! अब पापा के हाथ बराबर काम नहीं करते इसलिए लिखते वक्त अक्षर बराबर नहीं आते लेकिन उन्होंने डायरी लिखना नहींं छोडा!
शत शत नमन आपके पापा को ज्योति । उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो ,ईश्वर से यही प्रार्थना है ।
जवाब देंहटाएंशुभा दी, क्या बात हैं... आपकी इतनी तीव्र और उत्साहवर्धक टिप्पणियां पढ़ कर बहुत खुशी होती हैं।
हटाएंशुरू से आखिर तक सांस रोक कर पढ़ा ...वाकई आपके पिता ने बहुत हिम्मत दिखाई , अगर ऐसे ही सभी लोग हिम्मत दिखाएं तो सब बेटियाँ सुरक्षित रहें | बहुत प्रेरणादायक संस्मरण ... आपके पिता को सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंवंदना दी,ऐसे मामलों में डर के साये में कैसे जीते हैं यह हम पिक्चरों में देखते हैं। लेकिन मेरे परिवार ने इसको जीया हैं। हम दोनों बहनों को विशेषकर ठंड के दिनों में जब अंधेरा जल्दी हो जाता हैं यदि बस मिलने में देरी होने की वजह से घर आने में थोड़ी सी भी देरी हो जाती तो मम्मी पापा को किसी अनिष्ट की आशंका से घबराहट होने लगती। इस घटना के के बाद के 5-6 महीने बहुत ही मुश्किलों भरे थे।
हटाएंव्वाह....
जवाब देंहटाएंहिम्मते मर्दां मदद दे खुदा
सादर
शुरू से लेकर आखिर तक रोचक संस्मरण। बहुत हिम्मत दिखाई आपके पिताजी। ऐसा प्रेरक संस्मरण साझा करने के लिए आभार। आपके पिताजी को सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15 -06-2019) को "पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक- 3367) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
मेरी रचना को 'चर्चा मंच' में शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
हटाएंआपके पापा को सत सत नमन ज्योति जी ,भगवान उन्हें जल्द से जल्द स्वस्थ करे आपके पापा के हिम्मत ने एक लड़की की लाज बचाई ,उनकी बेटियों के साथ कुछ बुरा हो ही नहीं सकता था।
जवाब देंहटाएंकामिनी दी,उसने हैम दोनों बहनों को तो कुछ नहीं किया। लेकिन हमारे परिवार को मानसिक रूप से बहुत टॉर्चर किया। जब देखो तब उसके धमकी भरे फोन आते थे। हम लोगों के मन में इतनी दहशत बैठ गई थी कि फोन की घंटी बजने पर फोन उठाने की हिम्मत नहीं होती थी!!
हटाएंघटना के दूसरे ही द8न पापा ने हमसे पूछा था कि क्या तुम्हारी हिम्मत हैं तेल्हारा जाना आना करने की? तब पापा की हिम्मत देख कर ही मुझे भी हिम्मत आ गई थी। दूसरे यदि हम डर कर जाना आना बंद कर देते तो उस गांव की किसी भी बेटी को कोई भी माँ बाप तेल्हारा पढ़ने के लिए नहीं भेजते!इसलिए भी हिम्मत रखना जरूरी था।
Padhte samay hi Aisa lag Raha tha ki pata Nahi aage kya hoga.bahut hi himmat hona aise dusro ki help Karne ke liye.very inspiring.
जवाब देंहटाएंAap bahut khushkismat h ki aapko ese father mile jinhone problems se drne nhi unhe face krna sikhaya.
जवाब देंहटाएंUmmeed h aapki family me sabhi ese honge.
आपने पिता के ऊपर बहुत सुन्दर लेख लिखा है|
जवाब देंहटाएंProud of your father. Very well written
जवाब देंहटाएंकाश की आज भी समाज में ऐसे लोग होते जो अकेले भी खड़े रहने का साहस कर सकें तो बहुत कुछ सुधार संभव है समाज में ... नमन है आपके पिता जी को ...
जवाब देंहटाएंgReat very inspiring
जवाब देंहटाएंऐसी महा योगी पुरूषों को शत-शत नभन। बहुत प्रेरणादायी और आत्म विश्वास का हौसला देती बहुत शानदार संस्मरण पितृ दिवस कीकी हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंHe really did an wonderful work, salute to his courage, mental strength and good intention.
जवाब देंहटाएंThis incident took place even when i did not take birth,there is always an extra charm of listening such real real life stories those are so old.
i really liked his his habit of writing diary and still he is continuing.
आपके पापा जैसे लोगों की बहुत ज़यादा ज़रूरत है हमारे समाज को I ऐसे लोग जो डर की आँख में आँख डाल के बात करते हैं वो डर को मात देते हैं I एक साहसी व्यक्तित्व को प्रणाम !
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