अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने से पहले...हम महिलाओं को खुद को सम्मान देना सीखना होगा। यदि हम स्वयं को इज्जत देंगे तभी जमाना हमारी कदर करेगा।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने से पहले...हम महिलाओं को खुद को सम्मान देना सीखना होगा। शायद यह वाक्य पढ़ कर कई महिलाओं को अचरज हो रहा होगा कि ''महिलाओं को खुद को सम्मान देना सीखना होगा'' मतलब क्या हैं इस बात का? क्या हम महिलायें खुद ही खुद को सम्मान नहीं देती? हां, यह सच हैं। भई, पुरुष हमें सम्मान न दे...यह बात तो एक बार समझी जा सकती हैं, क्योंकि वो पुरुष हैं। इसलिए ही तो आज भी मर्दों की लड़ाई में गालियां माँ-बहनों की ही दी जाती हैं! लेकिन आज भी ज्यादातर महिलायें खुद को या दूसरी महिलाओं को जाने-अनजाने अपमानित करती हैं और उसमें उन्हें कुछ भी अनुचित प्रतित नहीं होता। आइए, जानते हैं कैसे हम महिलायें अपने आप को कमतर मानती हैं...
• ईश्वर उसकी गोद भर दे...चाहे बेटी ही दे दे!!
यह वाक्य हम कई बार सुनते हैं...ताज्जुब की बात यह हैं कि इसमें हमें कुछ गलत भी नहीं लगता! क्या आपको लगा? एक बार फ़िर से पढ़िए...लगा कुछ गलत? यदि हां, तो सबसे पहले मैं आपको बधाई देती हूं कि आपके मन में नारी के लिए सम्मान की भावना अभी भी जागृत हैं! ईश्वर उसकी गोद भर दे...चाहे बेटी ही दे दे!! क्या निहितार्थ छुपा हुआ हैं इस वाक्य में? यहीं न, कि चाहिए तो बेटा ही लेकिन ईश्वर यदि बेटा नहीं देता हैं तो कम से कम बेटी तो दे दे! ईश्वर खाने को यदि पूरी रोटी नहीं देता हैं तो कम से कम आधी तो दे दे! बेटा न सही हम बेटी पर ही संतोष मान लेंगे! जैसे कि बेटी ना हुई कोई सांत्वना पुरस्कार हो गया जो किसी को मिलने पर हम कहते हैं, ''चलिए, कुछ ना मिलने से अच्छा हैं कुछ तो मिला!'' क्या इसका मतलब यह नहीं हुआ कि हम बेटियों को कमतर आंकते हैं?
• गणेश जी की आरती में 'बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया...'
गणेश जी की आरती लगभग हर हिंदू परिवार में गाई जाती हैं। उसमें अंधन को आंख देत, कोढिन को काया। के बाद यह लाइन आती हैं...बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।। क्या आपको इस 'बांझ' शब्द में कुछ अपमानजनक नहीं लगा? जो महिला माँ नहीं बन पाई, समाज उसे बांझ कह कर पुकारता हैं। लेकिन जो पुरुष पिता नहीं बन पाया, समाज उसे क्या कह कर पुकारता हैं? मुझे गूगल पर सर्च करने पर भी ऐसे पुरुष के लिए कोई शब्द नहीं मिला! मुझे एक बात बताइए, क्या बच्चा न होने के लिए हर बार औरत ही जिम्मेदार होती हैं? कई बार तो कमी मर्द में होती हैं, और जिंदगी भर औरत पर ही बांझ होने का ठप्पा लगा रहता हैं! ये जागरुक मर्द तो डॉक्टर के पास जाने की जरुरत भी नहीं समझते! महिलायें खुद भी अपनी बहू को तो डॉक्टर के पास ले जाती हैं लेकिन बेटे को डॉक्टर के पास चलने नहीं कहती!! क्या यह नारी का अपमान नहीं हैं? आरती में भी हम औरत को बांझ कह कर उसे अपमानित करते हैं। हम सालों से बिना सोचे समझे जो लिखा हैं वैसा गाते चले आ रहे हैं। अत: मुझे लगता हैं कि इस लाइन को हम ऐसे गा सकते हैं...संस्कारित संतान देत, निर्धन को माया...यहां पर संस्कारित पुत्र ही क्यों मांगे, संतान मांगे ना!!
• छम्मकछल्लो शब्द
स्त्री की सुंदरता की व्याख्या करता हुआ 'छम्मकछल्लो' यह शब्द उन स्त्रियों के लिए प्रयोग में लाया जाता हैं, जो नाच गाकर अपनी आजीविका चलाती हैं। लेकिन कई बार फिल्मों में या आम बोलचाल की भाषा में भी लोग इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे ही एक बार एक महिला के अदालत में शिकायत करने पर महाराष्ट्र के ठाणे की अदालत ने कहा कि किसी भी महिला के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करना उसका अपमान करने के बराबर हैं। और इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को कानूनन सजा हो सकती हैं। कहने का तात्पर्य यहीं हैं कि यदि हम महिलायें खुद जागरुक रहकर इस तरह के अपमानजनक शब्दों का प्रयोग बंद करेगी तब ही हमारा महिला दिवस मनाने का असली मकसद कामयाब हो पाएगा। और किसी महिला को ऐसे अपमानजनक शब्द के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ेगा।
• किसी महिला या लड़की के कपड़ों को देख उसे चरित्रहीन होने का सर्टिफिकेट देना
महिलाओं को पूरी आजादी है कि वे क्या पहनना चाहती हैं और क्या नहीं, कहां जाना चाहतीं हैं और कहां नहीं, किस से बात करना चाहती हैं और किस से नहीं। आप इस आधार पर कभी भी किसी महिला पर चरित्रहीन होने का आरोप नहीं लगा सकती। लेकिन होता यहीं हैं कि जब हम महिलायें खुद किसी दूसरी महिला को ऐसे कपडों में देखती हैं तो उस पर चरित्रहीन होने का आरोप लगा देती हैं। दरअसल नारी शरीर कितना दिखाए या कितना छिपाए, यह महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि कामभावना मस्तिक में जन्म लेती है और तरंगे सारे शरीर को झंकृत कराती है। जब यह कहा गया कि लैला तो सांवली और असुंदर है, तब जबाब आया कि मजनू की आंखो से देखो तो उसकी सुंदरता नजर आएगी। मेरा यह कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं हैं कि महिलायें नग्नता परोसे लेकिन सिर्फ कपडों के आधार पर किसी को चरित्रहीन भी न कहे।
• किसी महिला के योग्यता पर सिर्फ़ इसलिए शक न करे कि वो एक महिला हैं
कुछ पुरुषों की आदत होती है कि वे महिलाओं को प्रोत्साहित करने के बजाय उन्हें बारबार कहते रहते हैं कि तुम से नहीं हो पाएगा तुम रहने दो। पुरुष कितनी भी रफ ड्राइविंग करें लेकिन जब महिलाएं ड्राइविंग करते हुए थोड़ी सी भी गलती करतीं हैं तो ताने मारने लगते हैं कि समझ नहीं आता कि महिलाएं क्यों ड्राइव करती हैं, उन के लिए तो पिछली सीट ही ठीक है! ऐसा व्यवहार पुरुष करें तब तक तो समझा जा सकता हैं। लेकिन कई बार हम महिलायें खुद ही ऐसा कहती हैं कि अमुक काम करना महिलाओं के बस की बात नहीं हैं। क्यों भई, क्यों नहीं हैं महिलाओं के बस की बात? यदि महिलायें ठान ले तो वे कुछ भी कर सकती हैं! अत: मेरी आप सभी से विनंती हैं कि किसी महिला के योग्यता पर सिर्फ़ इसलिए शक न करे कि वो एक महिला हैं!
• सोशल मीड़िया पर हाथ में पैड लेकर फोटो शेयर करना
हमेशा स्त्रीत्व को ही कमज़ोर निशाना बनाया जाता है। बलात्कार के विरोध में बनी फिल्मों में भी औरत को इतना कमज़ोर दिखाया जाता है की जब चाहे बिस्तर पे पटक दो...?? लोगों का उद्देश्य सिर्फ स्त्रीत्व को भुनाना है। जबसे सोशल मीड़िया पर अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमॅन’ की चर्चा होने लगी थी तभी से सोशल मीड़िया पर हाथ में पैड लेकर फोटो शेयर करने वाले पुरुषों की बाढ़ सी आ गई थी। इस संदेश के साथ कि शर्म नहीं गौरव कीजिए स्त्रीत्व पर। माना कि पैड महिलाओं के लिए अत्यंत आवश्यक हैं लेकिन पैड हाथ में लेकर फोटो खिंचवाकर ये पुरुष आखिरकार साबित क्या करना चाहते थे? जरा सोचिए, यदि कोई महिला/लड़की गुप्त रोगों के जागरुकता के नाम पर हाथ में कंडोम लेकर फोटो खिंचवाकर सोशल मीड़िया पर शेयर करेगी तो पुरुषों को कैसा लगेगा? क्या समाज के ठेकेदार उक्त महिला/लड़की पर उंगली नहीं उठायेंगे? कितनी महिलायें शामिल होंगी इस अभियान में? यहां बात किसी फिल्म की नहीं, सोच की हो रहीं हैं जहां सामाजिक मुद्दों में भी अश्लीलता ढूंढी जाती हैं!! हम महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने से पहले यह बात समझनी होगी।
• ये है मेरी साली, आधी घरवाली!
एक बार मेरे एक किस्सा पढ़ने में आया कि एक दुल्हे ने अपनी साली का परिचय यह कह कर किया, ''ये है मेरी साली, आधी घरवाली!'' तब दुल्हन ने भी अपनी हाजीरजबाबी का परिचय देते हुए अपने देवर का परिचय यह कह कर किया, ''ये है मेरे देवर, आधे पति-परमेश्वर!!'' तब दुल्हे की हालत देखने लायक हो गई थी। सही हैं, जब पुरुष साली को आधी घरवाली कह सकते हैं तो हम महिलायें देवर को आधा पतिपरमेश्वर क्यों नहीं कह सकती? यदि महिलाओं के ऐसा कहने पर पुरुषों को मिर्ची लगती हैं तो पुरुषों ने भी तो महिलाओं के लिए ऐसे गलत शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए न!!
इस तरह हम महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने से पहले यह बात समझनी होगी कि यदि हम स्वयं को इज्जत देंगे तभी जमाना हमारी कदर करेगा। हमें हमारे दैनंदिन जीवन में भी, आम बोलचाल में भी स्वयं को इज्जत देनी होगी... तभी सही मायने में हमारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना सार्थक होगा।
इस तरह हम महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने से पहले यह बात समझनी होगी कि यदि हम स्वयं को इज्जत देंगे तभी जमाना हमारी कदर करेगा। हमें हमारे दैनंदिन जीवन में भी, आम बोलचाल में भी स्वयं को इज्जत देनी होगी... तभी सही मायने में हमारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना सार्थक होगा।
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सार्थक चिंतन ...
जवाब देंहटाएंनारी को पहले नारी का सम्मान करना सीखना होगा ... जागना होगा पुरुष सत्ता के खेल से बाहर आना होगा ...
वाह्हह...खरी.खरी...बहुत सुंदर लेख ज्योति जी...।
जवाब देंहटाएंआप के द्वारा लिखे गये प्रेरक शब्द सच में एक अलग उत्साह का जागरण और प्रतिनिधित्व कर रहे है।
सदैव की भाँति सराहनीय अभिव्यक्ति👌👌
Bahut accha likhthi hai aap.
जवाब देंहटाएंSukhriya share karne ke liye :)
बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBilkul sahi kaha aapne.hame pehle khud ko ijjat dena sikhna hoga.
जवाब देंहटाएंवाह!ज्योति जी कमाल का लेख लिखा है आपने....
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक....
महिलाएं खुद को इज्जत देना सीखे....
आरती से लेकर विज्ञापन तक हर गलती को तर्क सहित सामने रखा है...
बहुत ही लाजवाब....
बेहतरीन सार्थक चिन्तन के लिए बहुत बहुत बधाई....
धारा के विरुद्ध प्रभावशाली हस्तक्षेप करता आलेख।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आयाम प्रस्तुत किए गए हैं जिन पर गंभीरता से चिंतन मनन आवश्यक है।
सार्थक आलेख.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन के लिए बधाई स्वीकारें।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-03-2018) को ) "फसलें हैं तैयार" (चर्चा अंक-2902) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
मेरी रचना चर्चा मंच में शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद,राधा जी।
हटाएंVery potential writing,you have covered up some naked truths of our society, really even i dont have the courage to write in these issues...salute to you.
जवाब देंहटाएंSharing it in Twitter and G+
and yes its also true that...aksar yeh dekha jaata hai ke ladkiyan hi ladkiyon ke baare me bura kaheti hai woh bhi ladko se zyada...
Aaj hi kisi blogger ne ek post me(Bengali me likha hai unhone) isi baat ko likha hai.
इतने प्रेरणादाई शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, ज्योतिर्मय।
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जाकी रही भावना जैसी.... : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद,सेंगर जी।
हटाएंजय श्री राम. समय आगया है जागने और जगाने का महिलाओ को कमजोर समझना गलत है नारी पराशक्ति का स्वरुप है यदि उग्गर हूँ जाये तो माँ शमशान काली का रूप धारण केर शान भर में परले ला सकती है समय है नारी के प्रति अपनी घृणित रूढ़िवादी सोच बदलने का नया सवेरा उदय होगा जल्दी ही होगा " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ " नारी के साथ वर्तमान में हो रहे अभद्र व्यवहार को रोकने में सहयोग करो आप को भी समाज इस महान कार्य के लिए याद करेगा | ज्योति जी मुझे आप की पोस्ट अच्छी लगी आशा है भवियशे में भी आप और सकरातमक परिवर्तनशील पोस्ट्स पब्लिश करेगी आशा करता हु आप मेरी ब्लॉग पोस्ट रीड करेगी पोटैटो नेस्ट डिलीशियस वेजीटेरियन फ़ूड ऑफ़ इंडिया http://www.indiatourfood.com/2018/03/worldfamous-delicious-spicy-vegetarian-snack-potatonest-soulful-recipe.html " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ "
जवाब देंहटाएंजी ज्योति जी आपने सही कहा महिला दिवस मनानेसे पहले हम औरतों को स्वयं को सम्मान देना सीखना होगा तभी ज़माना हमारी क़द्र करेगा ।
जवाब देंहटाएंThanks for this nice and useful article.
जवाब देंहटाएंVery useful informations for all.
बिना लाग लपेट के सीधे -सीधे शब्दों में बहुत खरी -खरी बात कही आपने ज्योति जी , सही है महिलाओं को पहले खुद को व् एक दूसरे को सम्मान देना सीखना होगा फिर पुरुषों से इसकी अपेक्षा करें |
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