यदि आप जिंदगी में कुछ अच्छा करना चाहते है...आपकी सोच अच्छी है...और इरादे नेक है...तो अंधश्रद्धा छोडिए...अंगदान या देहदान कीजिए...!!

हम ज़िंदगी भर अपने-आप को कोसते रहते हैं कि ज़िंदग़ी में कुछ अच्छा करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पाएं! काश, हम भी कुछ अच्छा कर पाते...काश, हम भी दान धर्म कर कर पुण्य कमा पाते...! क्या आपके मन में भी कभी-कभी ऐसे विचार आते है? यदि हां, तो अंधविश्वास छोडिए...अंगदान या देहदान कीजिए...!
अंगदान एवं देहदान में अंतर
शरीर के उपयोगी अंग जैसे आंखों की कॉर्निया, लीवर, हड्डी, त्वचा, फेफड़े, गुर्दे, दिल, टिश्यू इत्यादि का दान करना अंगदान कहलाता है। जबकि अपना संपूर्ण शरीर मेडिकल प्रयोग या अध्ययन हेतु दान देने को देहदान कहते है। एक शोध के अनुसार ब्रेन डेड व्यक्ति के दिल, फेफड़े समेत कुल 25 ऑर्गन किसी जरूरतमंद व्यक्तियों की मदद हो सकती है, तो देहदान से चिकित्सा में विकास से पूरी मानव जाती लाभान्वित हो सकती है।
अंगदान या देहदान सर्वश्रेष्ठ दान है
अंगदान से जीवन मिलता है। सिर्फ़ भगवान ही नहीं, हम भी किसी को जीवन दे सकते है! यह सभी दानों में सर्वश्रेष्ठ है। अंगदान के बिना देश में हर वर्ष 10 लाख मौते होती है। भारत में हर वर्ष जितने अंगो की आवश्यकता होती है उनमें से केवल 4% ही उपलब्ध हो पाते है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार पश्चिमी देशों में 70-80% अंगदान होता है जबकि भारत में यह आंकड़ा सिर्फ़ 0.01% का है। आप ही सोचिए...जिस देश में एक कबुतर की जान बचाने के लिए राजा शिबि ने अपने जीवित शरीर को गिद्ध के लिए परोस दिया था, असुरो से रक्षार्थ महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियां दान कर दी थी, राजा ययाति के पुत्र पुरु ने अपना यौवन पिता को दान में दिया था, दानवीर कर्ण ने जीते जी अपने कवच-कुंडल दान में दिए थे, उसी भारत देश के लोग अंगदान या देहदान के मामले में इतने उदासीन कैसे हो सकते है? यदि महर्षि दधीचि जैसे धर्मज्ञ अपनी अस्थियां दान कर सकते है तो हमें डरने का कोई कारण नहीं है।
क्या हम इतने स्वार्थी है?
जरा सोचिए, यदि हमने अंगदान नहीं किया तो हमारा शरीर, क्या तो जलाया जाएगा या फ़िर दफ़नाया जाएगा। दोनों ही परिस्थिति में हमारे शरीर को तो नष्ट होना ही है। वो शरीर हमारे या हमारे परिवार वालों के कुछ भी काम नहीं आएगा। साथ ही किसी और के भी कुछ भी काम नहीं आएगा। ये तो यहीं बात हुई कि यदि कोई चीज हमारे काम की नहीं है तो हम उसे जलायेंंगे, दफनायेंगे या कुछ भी करेंगे लेकिन किसी को भी उसका उपयोग नहीं करने देंगे! क्या आज का पढ़ा-लिखा इंसान इतना स्वार्थी है?
शांति से मरना चाहते है तो अंगदान या देहदान करें
कहा जाता है कि मरते वक्त इंसान के आंखों के सामने उसकी जिंदगी के अत्यधिक सु:ख और दु:ख के पल किसी चल चित्र की भांती आते है। ऐसे में यदि हमने अंगदान या देहदान का संकल्प लेकर इसकी जानकारी अपने परिवार को दी है तो अंतिम समय में हम एक अजीब सी शांति महसूस करेंगे कि मरते-मरते भी हम पुण्य कमा रहें है! हम मरने के बाद भी किसी के काम आयेंगे! अत: यदि शांति से मरना चाहते है, तो अंगदान कीजिए।
अंगदान या देहदान के प्रति हमारी भ्रांतियां
• अंगदान या देहदान करने से मुक्ति नही मिलेगी
सभी धर्म यह बात मानते है कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है। भगवान के घर में भ्रष्टाचार नहीं होता! स्वर्ग में हमारे साथ सिर्फ़ हमारे अच्छे कर्म ही जायेंगे! अंगो की आवश्यकता स्वर्ग में नहीं है! अत: यहां पृथ्वी पर अंगो को जलाने के बजाय उन्हें दान दीजिए। कहा जाता है कि पुण्य कर्मों की लिस्ट बड़ी होने पर ही हमें मुक्ति मिलती है। अंगदान या देहदान से पुण्यकर्मों की लिस्ट बढ़ने से हमें अवश्य ही मुक्ति मिलेगी।
• जिस अंग का हम दान कर रहे है अगले जन्म में हम उस अंग से वंचित रह जायेंगे
सभी धर्मो के अनुसार आत्मा अमर है। आत्मा एक पुराने शरीर को छोड कर दूसरे नए शरीर को धारण करती है, जैसे हम पुराने कपड़े छोड़ कर नए कपड़े पहनते है। यदि यह सच है तो शरीर का कोई भी अंग आत्मा के चोले की एक इकाई मात्र है, जैसे कपड़े का कॉलर या बटन! यदि हमारे शरीर को हम इस दृष्टिकोन से देखे तो जैसे आजकल महिलाओं द्वारा अपनी पुरानी साडियों की लेस या कसीदाकारी के फुल काट कर नए साडियों में लगाने से पुरानी साडियों का कुछ नहीं बिगडता है (क्योंकि वो तो वैसे भी किसी काम की नहीं थी) लेकिन नए साड़ी की सुंदरता में चार चाँद लग जाते हैं। ठीक वैसे ही हमारे द्वारा किए गए अंगदान से हमारा कुछ भी नुकसान नहीं होगा लेकिन किसी और के जिंदगी में चार चाँद लग जाएंगे। अत: यदि कोई इंसान इस जन्म में अपना दिल और किडनी दान में देता है तो भी अगले जन्म में उसकी आत्मा जो भी शरीर धारण करेगी उसके शरीर में भी दिल और किडनी ज़रूर रहेगी।
• अंगदान से पूरा शरीर विकृत हो जाता है
अंगदान में किसी मृत शरीर के उपयोगी अंगों को निकालकर शरीर को सही रूप में परिजनों को वापस दे दिया जाता है। अत: इससे शरीर विकृत नहीं होता।
• हम हमारे अपनों की लाश की चिरफ़ाड होते कैसे देख सकते है
मुझे एक बात बताइए...मरनेवाला व्यक्ति चाहे हमारा कितना भी निकट संबंधी हो...हमें हमारी जान से भी ज्यादा प्यारा हो...एक बार प्राण निकलने के बाद हम उसे जल्द से जल्द जलाना या दफ़नाना चाहते है की नहीं? यदि जलते वक्त हमारे अपनों के शरीर को दर्द नहीं होता तो अंगदान की शल्यक्रिया से उसे दर्द कैसे हो सकता है? हम इतनी नादानी भरी सोच कैसे रख सकते है कि शल्यक्रिया से एक मृत शरीर को दर्द हो सकता है!
अंगदान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
• कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल के दौरान अपने अंग दान करने की प्रतिज्ञा ले सकता है। इन अंगदाताओं को डोनर कार्ड प्राप्त होगा, जिसके माध्यम से वह अंगदान कर सकते हैं।
• आमतौर पर व्यक्ति की मौत के बाद ही अंगदान किया जाता है, लेकिन कुछ अंगदान जीवित व्यक्ति के भी किए जा सकते है। जैसे एक किडनी, एक फेफड़ा, लीवर और आंतों का एक हिस्सा।
• अंगदान बहुत कम लोग कर पाते है क्योंकि यह ‘ब्रेन डेड’ होने पर ही किया जा सकता है।
• किसी भी व्यक्ति कि नैसर्गिक मृत्यु होने पर वह टिश्यु दान कर सकता है।
• किसी भी अंग को डोनर के शरीर से निकालने के बाद 6 से 12 घंटे के अंदर ट्रांसप्लांट कर देना चाहिए। कोई भी अंग जितना जल्दी प्रत्यारोपित होगा, उस अंग के काम करने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है।
• कोई भी व्यक्ति चाहे, वह किसी भी उम्र, जाति, धर्म और समुदाय का हों, वह अंगदान कर सकता है।
• कैंसर, हेपेटाइटीस बी, एड्स, एच.आई.वी. पॉजिटिव जैसे बीमारी में अंगदान नहीं किया जा सकता।
• अंगदान करते वक्त परिजनों का कोई खर्च नहीं होता।
ऐसे कर सकते है अंगदान
• कई एनजीओ और अस्पतालों में अंगदान से संबंधित काम होता है। इनमें से कही भी जाकर हमें एक ऑर्गन डोनेशन का रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरना होगा। हम निम्न वेबसाइट पर जाकर फॉर्म भर सकते है एवं मन में कुछ भी शंकाएं होने पर इन वेबसाइट पर जाकर उन्हें पुछ भी सकते है। (जैसे कि www.notto.nic.in का टोल फ्री नम्बर है 1800 11 4770)
1) www.mohanfoundation.org
1) www.mohanfoundation.org
• अपने परिवार को इसकी जानकारी ज़रूर दीजिए। क्योंकि हमारे मरने के बाद यह काम हमारे परिवार वालों को ही करना है। यदि हम फॉर्म नहीं भी भरते है तो भी यदि हमने हमारी अंगदान की इच्छा परिजनों को बता दी है तो वो अस्पताल में फोन कर सकते है।
ऐसे कर सकते है देहदान
• देहदान नैसर्गिक मौत होने पर ही संभव है। क्योंकि अपघात में मृत्यु होने पर या लावारिस शव का पोस्टमार्टम करना ज़रुरी होता है। पोस्टमार्टम के बाद शव एक माह भी सुरक्षित नहीं रखा जा सकता जबकि बिना पोस्टमार्टम के मृतदेह को वर्षों तक सुरक्षित रख सकते है।
• देहदान की इच्छा हम वसीयत में भी कर सकते है। यह कानून द्वारा मान्य है।
• देहदान की इच्छा हम वसीयत में भी कर सकते है। यह कानून द्वारा मान्य है।
• देहदान करने का फॉर्म किसी भी मान्यता प्राप्त कॉलेज के एनाटॉमी विभाग से ही प्राप्त किया जा सकता है। ये फॉर्म अन्य जगहों पर नहीं मिलता।
• मृत्यु के बाद, देहदान जल्द से जल्द कर देना चाहिए ताकि बॉडी ख़राब न हो।
• यदि अपघात के कारण शरीर क्षत-विक्षत हो गया हो, शरीर किसी बडी शल्यक्रिया के कारण ख़राब हो गया हो तब ऐसी स्थिती में अस्पताल मृत शरीर लेने से इंकार कर सकते है।
• वास्तव में, अंगदान या देहदान करने से हमें दोबारा जिंदगी जीने का मौका मिलता है! इसलिए, अंत में सिर्फ़ इतना ही कहना चाहती हूं कि यदि आप चाहते है कि मरने के बाद भी आप किसी न किसी रूप में इस दुनिया में जीवित रहे…तो अंधविश्वास छोडिए...अंगदान या देहदान कीजिए...।
विशेष सुचना
• नैसर्गिक मौत होने की स्थिती में हम टिश्युदान या देहदान में से सिर्फ़ एक ही कर सकते है। टिश्यु में दोनों कॉर्निया, हड्डी, त्वचा, हृदय वाल्व, रक्त वाहिकाएं, नस और कण्डरा आते है।
जज्बे को सलाम-
एक ब्रिटिश लेखक रॉयस यंग को 19 वे हफ्ते में पता चल गया था कि बच्चा बिना ब्रेन का है, कुछ दिन ही जिंदा रहेगा। फिर भी उनकी पत्नी केरी ने उस बच्चे को जन्म दिया, ताकि उसके अंग डोनेट किए जा सके। सचमुच ऐसा कोई सुपर वुमन ही कर सकती है। उनके जज्बे को सलाम।
• वास्तव में, अंगदान या देहदान करने से हमें दोबारा जिंदगी जीने का मौका मिलता है! इसलिए, अंत में सिर्फ़ इतना ही कहना चाहती हूं कि यदि आप चाहते है कि मरने के बाद भी आप किसी न किसी रूप में इस दुनिया में जीवित रहे…तो अंधविश्वास छोडिए...अंगदान या देहदान कीजिए...।
विशेष सुचना
• नैसर्गिक मौत होने की स्थिती में हम टिश्युदान या देहदान में से सिर्फ़ एक ही कर सकते है। टिश्यु में दोनों कॉर्निया, हड्डी, त्वचा, हृदय वाल्व, रक्त वाहिकाएं, नस और कण्डरा आते है।
जज्बे को सलाम-
एक ब्रिटिश लेखक रॉयस यंग को 19 वे हफ्ते में पता चल गया था कि बच्चा बिना ब्रेन का है, कुछ दिन ही जिंदा रहेगा। फिर भी उनकी पत्नी केरी ने उस बच्चे को जन्म दिया, ताकि उसके अंग डोनेट किए जा सके। सचमुच ऐसा कोई सुपर वुमन ही कर सकती है। उनके जज्बे को सलाम।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (27-04-2017) को पाँच लिंकों का आनन्द "अतिथि चर्चा-अंक-650" पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना चर्चाकार का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंसही कहा ज्योति जी शरीर तो वैसे भी नश्वर है ,शरीर से आत्मा निकल जाने के बाद हमारे शरीर को या तो जल दिया जाता है दफ़न कर दिया जाता है, तो फिर क्यों न इस नश्वर शरीर के अंग दान करके किसी अन्य के जीवन का कारण बने ।
जवाब देंहटाएंसही कहा रितु जी। लेकिन हम लोग अन्धविश्वास के शिकार होकर अंगदान या देहदान करने में हिचकिचाते है।
हटाएंVery informative post covering all the aspects related to these types of donations.
जवाब देंहटाएंअंगदान महादान
जवाब देंहटाएंसहमत आपकी बात से ... असंख्य इंसानों का जीवन बच सकता है और आप भी इसी बहाने अपने चाहने वालों के दिल में रह सकते हैं ... अंगदान महादान ...
जवाब देंहटाएंमैं आपकी इस आर्टिकल से 100% सहमत हूँ। हमें अंगदान का अनुसरण करना चाहिए। :)
जवाब देंहटाएंWe should follow this. Thanks for sharing this awesome article.
अंगदान वाकई महादान हे। सभी जरुरी जानकारीयुक्त बेहतरीन पोस्ट। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंye ek bhut hi mahaan kaam ha shi likha h aap ne
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’समानान्तर सत्ता स्थापित करते नक्सली : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, सेंगर जी।
हटाएंNice Post
जवाब देंहटाएंवाह आपने कितना अच्छी जानकारी को शेयर किया थैंक्स ज्योति जी
जवाब देंहटाएंज्योंति जी आपने बिल्कुल सही कहा कि अंगदान इस जहां का सर्वश्रेष्ठ दान है और अंगदान से हम भी किसी को जीवन दान दे सकता है । आपके लेख से अंगदान से जुडी कई महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली । धन्यवाद ज्योंति जी इस बेहतरीन लेख को हमारे साथ शेयर करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंअंगदान से बढ़ कर कोई दान नहीं क्योकि अंग दान ज़िन्दगी दान देना है जिससे दुनिया में इंसानियत का परिचय देती है और डोनर अगर दुनिया में न भी हो पर उसका वजूद ज़िन्दा रहता है
जवाब देंहटाएंसृजनात्मक सोच व लेखनी आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंअंगदान सर्वश्रेष्ठ दान है | जनता को सन्देश देने व् एक नेक काम के प्रति उनकी रूचि जगाने वाली आपकी यह पोस्ट बेहद सार्थक व्है लोकोपयोगी है
जवाब देंहटाएंAapne Bahut Achi Post Likhi Hai
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी , आपके इस आह्वान से मन को अपार हर्ष और संतोष हुआ | आपने मानो मेरी ही मन की बात लिख दी | ये बात अलग शायद इतने प्रभावी ढंग से मैं अपनी बात कह भी ना पाती | जो लोग इस पुन्य संकल्प को लेते हैं उनके परिवार और निकट सम्बन्धियों को जरुर उनकी इच्छा पूरी करने में सहयोग करना चाहिए क्योकि मरने वाला संकल्प कर सकता है , अंगदान नहीं कर सकता | ये काम पीछे रहे परिवार को ही करना पड़ेगा | आपके ब्लॉग पर प्रेरक लेखों की कमी नहीं पर ये लेख अद्भुत प्रेरणा भरा है |आपने सभी बिन्दुओं को बहुत बढिया तरीके से शब्दांकित किया है | सस्नेह शुभकामनाएं चेतना और सजगता का आह्वान करते लेख के लिए |और वो लोग वन्दनीय हैं जो किसी प्रियजन की मौत का दुःख भूलकर किसी दूसरे के कल्याण के लिए अंगदान की पहल करते हैं |
जवाब देंहटाएंरेणु दी,सही कहा आपने कि जीते की हम सिर्फ संकल्प लेकर परिवार वालों को इसकी जानकारी भर दे सकते हैं। क्योंकि मारने के बाद हम कुछ भी नहीं कर सकते। करना परिवार वालों को ही हैं। मैं ने मेरे परिवार वालों को बता दिया हैं। मुझे विश्वास है कि वे लोग मेरी अंतिम इच्छा जरूर पूरी करेंगे।
हटाएंउत्तम विचारों से युक्त महत्वपूर्ण लेख।
जवाब देंहटाएंज्योति, हमारी भ्रांतियां,हमारी कूपमंडूकता और इन से भी ऊपर हमारी संवेदनशून्यता, हमको अंगदान से विमुख करती हैं.
जवाब देंहटाएंतुमने सोए हुओं को जगाने का प्रयास किया है.
सत्य कहा है आपने सखी, अंगदान से बढ़कर कोई दान नहीं,जो दूसरों को नया जीवन दे सके ,ऐसे कार्यों के प्रति समाज में जागरूकता अत्यंत आवश्यक है।आपका लेख इस दिशा में भ्रांतियां नष्ट कर लोगों की चेतना को जाग्रत करने में अहम भूमिका निभाएगा।
जवाब देंहटाएं