आदित्य तिवारी, एक ऐसे व्यक्ति है, जो न तो बड़े नेता है और न ही कोई बड़े अधिकारी। फिर भी उन्होंंने समाजसेवा का उत्कृष्ट कार्य किया है।
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आदित्य तिवारी बिन्नी के साथ |
आज समाजसेवा का मतलब, नेतागिरी करना हो गया है। आम इंसान सोचता है कि वो तो समाजसेवा कर ही नहीं सकता। समाजसेवा करने के लिए समय और पैसा चाहिए और दोनों चीज उनके पास नहीं होती। क्योंकि आम जनता का पूरा समय पैसा कमाने में ही खर्च हो जाता है! ऐसे में ‘समाजसेवा’ शब्द एक फैशन की तरह इस्तेमाल होने लगा है। जो थोड़ी-बहुत समाजसेवा होती है, वो भी सिर्फ सोशल मीड़िया पर छा जाने के लिए। पहले कहा जाता था “नेकी कर कूएं में ड़ाल” लेकिन अब कूएं ही नहीं रहें। अत: अब ऐसा लगता है कि हर छोटी-मोटी नेकी सोशल मीड़िया पर अपलोड करने के लिए ही की जाती है।
लेकिन आज हम मिलेंगे एक ऐसे व्यक्ति से, जो न तो कोई नेता है, न हीं कोई बड़ा अधिकारी! फिर भी उसने देश के सामने समाजसेवा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है। इन सज्जन का नाम है ‘आदित्य तिवारी’, जो इंदौर, मध्यप्रदेश के रहनेवाले है और पुणे की एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते है।
क्या किया आदित्य तिवारी ने?
पहला कार्य-
आदित्य ने साल 2014 में एक अनाथालय में डाउन सिंड्रोम नाम की बिमारी से त्रस्त एक बच्चे (बिन्नी) को देखा। डाउन सिंड्रोम यह ऐसा वंशानुगत रोग है, जिसमें जींस की गड़बड़ी से बच्चों का दिमाग कमजोर हो जाता है। इससे बच्चें का शारीरिक एवं मानसिक विकास बुरी तरह से प्रभावित होता है। आदित्य उस बच्चें की मदद करने में जुट गए। तब वे 27 साल के और कुवांरे थे। भारतीय कानुन के मुताबिक 30 साल से कम उम्र का कोई भी इंसान बच्चा गोद नहीं ले सकता। तब उन्होंने बिन्नी की कस्टडी के लिए कानुनी लड़ाई लड़ी। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत कई मंत्रियों को सौ से ज्यादा पत्र लिखें। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी से भी ट्विटर के माध्यम से संदेश पहुंचाया। आखिरकार CARA (Child Adoption Resource Authority) ने सिंगल लोगों के लिए नियमों को बदल दिया। गोद लेनेवाले की आयुसिमा 30 से घटाकर 25 की गई। 1 जनवरी 2016 को आदित्य को बिन्नी की कस्टडी मिली। इस तरह आदित्य बनें देश के पहले सिंगल पैरेंट।
दूसरा कार्य
सभी कहते है कि शादी-ब्याह में पैसों की बहुत बरबादी होती है। हमें ज्यादा तामझाम न करते हुए साधे तरीके से शादी करनी चाहिए। लेकिन जब खुद की या खुद के बच्चों के शादी की बात आती है, तब हम कहते है कि शादी तो जिंदगी में एक ही बार होती है, फिर हम बिना तामझाम के शादी कैसे कर सकते है? ज्यादातर लोग तो कर्ज लेकर भी तामझाम से शादी करने में विश्वास रखते है। लेकिन आदित्य तिवारी ने शादी के कार्य में भी समाज की भलाई सोची! कल याने 16 जुलै 2016 को उनकी शादी हुई। आदित्य की शादी में बैंड-बाजा नहीं बजा और न ही किसी प्रकार का दिखावा था। इस शादी में अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, मुक-बधिर विद्यालय सहित अन्य स्थानों पर रहने वाले जरुरतमंद लोग भी शामिल थे। वहीं शादी के मौके पर उन्होंने जानवरों को भी दावत दी। चिड़ियाघर के जानवरों के एक दिन के खाने का खर्च देने के साथ कुछ गौशाला में पशु आहार पहुंचाया गया। जरुरतमंदों को करीब एक लाख रुपए की कॉपी-किताब और दवाएं बांटी गई।
वीर सपूत सिर्फ वो ही नहीं होते, जो सीमा पर दुश्मनों से लड़ते है। आज भारत को ऐसे ही वीर सपूतों की आवश्यकता है जो निस्वार्थ भाव से अपना कार्य करें। एक छोटा बच्चा जो कि डाउन सिंड्रोम जैसी घातक बिमारी से त्रस्त है, उस बच्चे को गोद लेने के लिए, एक कुंवारा लड़का कानुनी लड़ाई लड़कर उस बच्चें को गोद लेता है! खुद की शादी में जरुरतमंदों की सहायता करता है। क्या कहेंगे आप ऐसी निस्वार्थ सेवा को? मैं व्यक्तिश: भारत के इस वीर सपूत को उसके निस्वार्थ सेवा के लिए सलाम करती हूं। मैं ही क्यों, मुझे लगता है कि आप भी उन्हें अवश्य सलाम करेंगे!