जब भारत सरकार जन्म के पहले से लेकर मृत्यु के बाद तक हर कदम पर, हर तरह की सरकारी सहायता कराने के लिए वचनबद्ध है, तो भारत की आबादी दिन दूनी रात चौगुनी गती से क्यों नहीं बढ़ेंगी!!!

क्या आपको पता है कि हमारे देश की जनसंख्या लगातार क्यों बढ़ रही है? कुछ ही वर्षों में जनसंख्या के मामले में हम विश्व में नंबर वन क्यों बन जायेंगे? तो इसका मुख्य कारण है, हमारी सरकार! हमारे देश की सरकारी नीतियाँ!! आप कहेंगे कि सरकार का और जनसंख्या बढ़ने का क्या संबंध है? बिल्कुल सीधा सा संबंध है। हमारे देश की आम जनता को, बच्चों को पालने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। या यु कहिए, हमारे देश में आम जनता बच्चे पैदा करती है और बच्चों को पालती सरकार है!!
ऐसे लोगों के लिए सरकार हर बरस करोड़ों रुपए सब्सिडी के रुप में खर्च कर रहीं है, जो पांच-पांच, दस-दस तक बच्चे पैदा कर रहे है और अपने कर्मों से गरीब है। सरकारी सहायता से ही ये गरीब, ग़रीबों की फौज बढ़ा रहे है! जबकि आयकर भरनेवाले एक या दो बच्चों के माँ-बाप को, राशन की चीनी या मिट्टी के तेल से भी महरुम किया जाता है! खुद देश के जन प्रतिनिधि नहीं चाहते कि आबादी कम हो क्योंकि आज पैदा हुआ एक बच्चा 18 वर्ष बाद उनका वोटर बनेगा।
बच्चा पैदा होने के बाद ही नहीं, बच्चा पैदा होने के पहले ही “जननी सुरक्षा योजना” के तहत संस्थागत प्रसव होने पर प्रसुताओं को प्रसव के दौरान एवं प्रसवोत्तर देखभाल हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है। इसके अंतर्गत गर्भवती महिलाओं को प्रसव पुर्व तीन बार जांच, टीटेनस के टीके लगवाने एवं आयरन फोलिक एसिड की गोलियां उपलब्ध करवाने में केंद्र सरकार सहयोग करती है। सरकारी अस्पतालों मे प्रसव कराने वाली प्रसुती को अस्पताल से छुट्टी मिलते ही ग्रामीण क्षेत्रों में चौदह सौ रुपए और शहरी क्षेत्रों में एक हजार रुपए की सहायता राशि दी जाती है। इस प्रकार बच्चा पैदा होते ही उसकी माँ को सरकारी सहायता उपलब्ध करवाकर ये बता दिया जाता है कि जीवन की हर मुश्किल में भारत सरकार उसके साथ है।
बच्चा तीन साल का होते ही “महिला बाल विकास” मंत्रालय बच्चे को स्वस्थ बनाने में अपनी जिम्मेदारी निभाकर बच्चे के माता-पिता को फील गुड करा देता है। इसके बाद प्राथमिक शिक्षा विभाग बच्चे को गोद लेने की जिम्मेदारी निभाता है। “सर्व शिक्षा अभियान” के तहत जब तक बच्चा 14 साल का नहीं होता तब तक सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी जाती है। “मध्यान्ह भोजन योजना” के अंतर्गत कक्षा 1 से 5 तक, 15 अगस्त 1955 से प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले सभी बच्चों को 80 प्रतिशत उपस्थिति पर प्रतिमाह 03 किलोग्राम गेहूं या चावल दिए जाते थे। लेकिन यह खादान्य परिवार के लोगों में बट जाने के कारण 01 सितंबर 2004 से प्राथमिक विद्यालयों में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराया जाता है। मतलब 14 साल तक बच्चे की पढ़ाई-लिखाई, खाने-पीने की सभी व्यवस्था सरकार ही करेगी!
इन सब मुफ्त की योजनाओं के सहारे बच्चा कब 8 वी पास कर लेता है, माता-पिता को पता ही नहीं चलता! गरीब ग्रामीण बच्चों को उपकृत करने के लिए माध्यमिक शिक्षा विभाग भी 12 वी पास करवा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। यदि बच्चा पढ़ाई में अच्छा है और ओबीसी, एससी आदि आरक्षित कोटे से आता है तो केंद्र की प्रतियोगी परिक्षाओं की पूरी कोचिंग फ़ीस अब केंद्र सरकार वहन करती है। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर है, ऐसे बच्चों को ग्रॅज्युएशन करवाने के लिए सरकार उन्हें स्कॉलरशीप देकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। अब बारी आती है बेरोजगारी भत्ते की, जिसके सहारे दो-तीन साल आराम से कट जाते है। और युवाओं के छोटे-मोटे शौक भी पूरे हो जाते है। ऐसे युवा सरकार का बदला चुकाने के लिए उसकी जन सभाओं में जोर-शोर से हिस्सा लेते है एवं अपनी सारी शक्ति नेताजी की प्रतिष्ठा बढ़ाने में लगा देते है। जो युवा कम सक्रिय है, उनके लिए सरकार ने “मनरेगा” नाम की एक योजना का अविष्कार किया है। जिसके अंतर्गत इस योजना से जुडे सभी अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों को 100 दिन के लिए मुफ्त के सेवक मिल जाते है। कभी-कभी सोचने पर मजबूर हो जाती हूं कि 18 साल तक एड़ी-चोटी का जोर लगाकर, इतने पैसे खर्च कर कर भारत सरकार ऐसे कुशल कामगारों का निर्माण करती है, जो मनरेगा जैसी योजनाओं में साल में सिर्फ 100 दिन काम कर कर अपने-आप को धन्य समझते है! और सरकार भी इन्हें काम देकर अपनी पीठ थपथपाती है!! अब यदि कोई 100 दिन काम करकर भी जीवनयापन न कर सके तो, सरकार उन्हें मुफ्त सरकारी राशन, सब्सिडी वाला रसोई गैस, शौचालय बनाने के लिए सरकारी मदद और “इंदिरा आवास योजना” अंतर्गत मुफ्त घर देती है। चुनाव के समय तो इन लोगों की चांदी ही चांदी रहती है! मुफ्त में साड़ी, कंबल एवं दारू भी मिल जाती है। कई बार तो वोट के एवज में, नोटों से इनकी जेब तक भरी जाती है। इतना ही नहीं, हमारी सरकार तो जीवन के अंत समय में भी इनका साथ देती है। केंद्र या राज्य सरकार के किसी मजदूर की मृत्यु पर उसके अंतिम संस्कार के लिए भी सरकार आर्थिक सहायता देती है!
ऐसी और भी बहुत सारी योजनाएं केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जाती है जिनका उल्लेख यहां पर नहीं किया गया है। तो मेरे देशवासियों, अब आप ही बताइए, जब भारत सरकार जन्म के पहले से लेकर मृत्यु के बाद तक हर कदम पर, हर तरह की सरकारी सहायता कराने के लिए वचनबद्ध है, जनता को सिर्फ बच्चे पैदा भर करना होता है, बच्चों को पालने की जिम्मेदारी पूरी तरह से भारत सरकार निभाती है, तो भारत की आबादी दिन दूनी रात चौगुनी गती से क्यों नहीं बढ़ेंगी!!!
Keywords: population, government grants, grant
wah jyoti ji...aapne to bahut acche topic par likha hai....aapke har ek shabd se me sehmat hu.....yahi baat mere dimag me pichle 3 saal se hai ki hamari sarkaar logo ki help nahi kar rahi balki unhe nithalla bana rahi hai....jin baccho ki jimmedari parents par honi chaiye unhe sarkar utha rahi hai, jin baccho ki bajah se un baccho ka pita kuch work karta lekin ab veh free hai kyoki sarkar bacche ke liye sab kuch free me kar rahi hai....aur is prakar desh me garibi bhi bad rahi hai kyoki sarkar baccho ko doctor ya advocate to banati nahi balki ek majdoor bana kar chor deti hai....aur baad me deti hai 100 din rojgar ki garantee...yani 365 me keval 100 din yani veh keval jinda reh sake aur sarkar ko vote de sake.....me nafrat karta hu ese syestem se...dhanyavad aapka ki vyangya hi sahi lekin aapne baat bahut sacchi kahi hai.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, अमुल जी!
हटाएंJyoti Dehliwal ji आपने अपने आलेख में सरकार का और जनसंख्या बढ़ने का संबंध पर एक सुन्दर विचार आया है जिससे लोगों को गलत-सही का आकलन करने में मदद मिल सकती है|हम यहा सन १९९१ में भारत के विभन्न प्रान्तों की जनसख्या यदि भारत और पड़ोसी देश गोरखपुर से प्रकाशीत पस्तक से देना समूचित है -उत्तरप्रदेश १३९१ लाख में , बिहार८६४ ,पश्चिम बंगाल ६८१ ,महाराष्ट्र ७८९ ,आन्ध्र प्रदेश ६६५ ,मध्यप्रदेश ६६२ ,तमिलनाडु ५६९,कर्नाटक ४५० ,राजस्थान ४४०,गुजरात ४१३,उड़िसा ३१७,केरल २९१ ,असम २२४ ,पंजाब २०३ हरियाणा १६५ ,दिल्ली ९४ जम्बू-कश्मीर ७७ ,हिमांचल प्रदेश ५२ त्रिपुरा २८ मणिपुर १८ मेघालय १८ नागालैड१२, गोवा ११ ,अरुणांचल प्रदेश ८, पान्दुचेरी ८, मिजोरम ७, चंडीगढ़ ६,सिक्किम ४,अंडमान ३,दादर नगर हवेली १,और दमन -दीव में एक लाख जनसंख्या का आकडा रहा है |
जवाब देंहटाएंबहुत सारी योजनाएं केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जाने वाली बहुत सारी योजनाओं का आकलन भी समुचित नहीं हो पाने से केवल मेज थपथपाने जैसी दिखती हैं |
सुखमंगल जी, इस लेख में मेरा कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि कौन से राज्य की जनसंंख्या कितनी है! मैं सिर्फ यह बताना चाहती हूं कि हमारी सरकार खैरात में जनता को बहुत सारा बांंटती है जिससे जनता का भला होने की बजाय वो ज्यादा निक्कमी होती है। बच्चे पालने में आम जनता को कठिनाई न होने से वो ज्यादा बच्चे पैदा करती है ताकि उन्हें और ज्याद सब्सिडी मिलें! इन सब्सिडीयों के बदले यदी सरकार रोजगार दे तो वस्तव में जनता का भला हो सके!
हटाएंJyoti Dehliwal ji बहुत सही आप का सुझाव है |रोजगार पर विचार तो पहले की सरकारें भी करती रहीं परन्तु तत्कालीन प्रधान मंत्री माननीया इंदिरा गांधी जी ने जो बैन लगाया और आरक्षण लगा की खुलने का नाम ही नहीं लेना चाहती है | बेरोजगारों की फौज ह्म्मारे देश में तैयार बैठी है | पढ़ाई के नाम पर जनता का शोषण हुआ और कब चेतेगी सरकार आज आतंकी कश्मीर के लोगो को बहलाकर जो बनाया जाता रहा किसी से छिपा नहीं हाँ सरकार को रोजगार देना उसका परम कर्तब्य है | प्राचीन काल में राजा रजवाड़े द्वारा रोजगार देने की बातें हमारे इतिहास में है लेकिन आजतक जिसने गद्दी सम्हाली उसके समय में घोटाले सुनके को आते रहे कितनी रिक्ब्री हुई देश हित में प्रत्यक्ष जनता में होनी चाहिए या नही यह सरकार का काम हमसब समझकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते रहे हैं.... देश को आगे बढाने में नौजवानों का योगदान होता है इसे कौन कर दिखाएगा |
हटाएंJust awesome, through satire you have presented a deep thought, mind blowing logical analysis. strong and impressive post.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, ज्योतिर्मोय।
हटाएंBahut Achha likha Jyoti ji
जवाब देंहटाएंकोई सरकार अच्छे नागरिक चाहती ही नहीं है क्योंकि अच्छे नागरिकों में सोचने व अच्छा बुरा समझने की क्षमता विकसित होजाती है। सरकारों को आलसी, कामचोर ,नकारा नागरिकों की आवश्यकता होती है जो लालच में उन्हें वोट देदें।
जवाब देंहटाएंहकीकत से रूबरू कराता ... बहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंBehtareen vichaar aur lekh, Jyoti!
जवाब देंहटाएंMain khud iss baat se chakit hoon ki koi bhi sarkar parivar niyojan ko project kyon nahi banaati hai..har ek sarkar iss par khamosh kyon rahti hai...
Aap kitni bhi harit kranti/shwet kranti le aayen, agar khaane waale muh control nahi karenge toh hamesha bhukhe hi marenge:(:(
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-07-2016) को "आदमी का चमत्कार" (चर्चा अंक-2390) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद, शास्त्री जी!
हटाएंबहुत ही सार्थक आलेख की प्रस्तुति। पर देश में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का विकास ही नहीं हो पाया है। देश की सरकारे बच्चों को पालने का काम नहीं कर रही हैं बल्कि कुछ वोट हासिल करने के लिए पालने का दिखावा मात्र ही कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंजमशेद जी, बिल्कुल सही कहा आपने। सरकार यह सब सिर्फ वोट हासिल करने के लिए ही करती है।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 09 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयह बात बिलकुल सही है , की सरकार की योजनाओं में राष्ट्रनीति की जगह राजनीति अधिक दिखाई पड़ती है | क्योकि अब हमारा राष्ट्र ऐसी स्थिति में पहुँच गया है, की राष्ट्रनीति की बातें करके, या फिर इस ओर कोई कदम उठा के किसी भी पार्टी का सत्ता में रहना नामुमकिन है |
जवाब देंहटाएंआदरणीया ज्योति जी, आपका व्यंग्य-लेख तथ्यों एवं तर्कों पर आधारित है लेकिन जो कुछ भी आपने लेखबद्ध किया है, उसे सरकारें कागज़ों पर ही अधिक करती हैं, वास्तविकता में बहुत कम । विभिन्न तथाकथित जनहित योजनाओं का शोर जितना होता है, ठोस कार्य उसका अंशमात्र भी कठिनाई से ही हो पाता है । हाँ, उनके लिए नियत सार्वजनिक धन से नेताओं एवं सरकारी अमले की ज़ेबें अवश्य भर जाती हैं । जहाँ तक परिवार-नियोजन का प्रश्न है, आंतरिक आपातकाल (1975-1977) के समय में उसी पर बहुत अधिक बल दिया गया था जिसका परिणाम यह निकला कि सरकार के विरुद्ध लोगों का आक्रोश आगामी चुनाव में ऐसे फूटा कि सम्पूर्ण उत्तर भारत में सत्तारूढ़ दल का सफ़ाया हो गया । उसके उपरांत किस सरकार या राजनीतिक दल में यह साहस बच सकता था कि परिवार नियोजन के लिए लोगों को प्रोत्साहित करे ? अब परिवार नियोजन केवल शिक्षा द्वारा ही संभव है । लोग जितने अधिक शिक्षित हो रहे हैं, उतने ही वे अपने परिवार के आकार को सीमित रखने में रुचि ले रहे हैं । यह दुष्चक्र अशिक्षा-निर्धनता-अधिक संतानों का है जो टूटता नहीं । बाकी वोट-आधारित राजनीति से संबंधित आपके सभी विचार ठीक हैं लेकिन यह तो हमारे देश का लाइलाज रोग है ।
जवाब देंहटाएंजितेंद्र जी, सही कहा आपने। परिवार नियोजन सिर्फ और सिर्फ शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।
हटाएंJyoti ji आपके विचार सहमत योज्ञ रोजगार आवश्यक आवशयकता की पूर्ति कराता है परन्तु ग़रीबी के खात्मे तक संसोधन युक्त सहायता आवश्यक !
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख ज्योति जी। जनकल्याणकारी योजनाओं के नाम पर फ्री में सहायता और सब्सिडी उपलब्ध करवाने से ज्यादा बेहतर है कि ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए जाए।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख ज्योती जी बिलकुल सही लिखा में सहमत हूं आपके विचारों से
जवाब देंहटाएंज्योति आपने बहुत सटीक विषय पर लिखा है
जवाब देंहटाएंविचारणीय है
ज्योति जी आपने समस्या पर बिलकुल नए तरह से सोचने पर विवश किया है ... सार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक
जवाब देंहटाएंप्रतिस्पर्धा में ही
जवाब देंहटाएंलगे हगे हैं सारे ... देश समाज KI CHINTA किसी को नहीं है ... आपने सही कहा है ...
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंAtal Pension Yojana 2019 को लागु किया गया है क्योकि Atal Pension Yojana Online की वजह से जो लोग व्यवसाय कर रहे होते है या मजदूरी पर अपना गुजरान चला रहे होते है उन्हें अपने बुढ़ापे में कोई आर्थिक तकलीफ ना हो|
जवाब देंहटाएंsuccess storys and bussiness idias click here
जवाब देंहटाएं