आज पुरुष और नारी समानता का युग होने के बावज़ूद, अभी भी नारी अत्याचार की इतनी घिनौनी कुप्रथाएं मौजूद है कि जिन्हें जानकर आप दाँतों तले उंगली दबा देंगे।

भारत हो या कोई और देश, इतिहास गवाह है कि अपने स्वार्थ सिद्धी के लिए समाज में ऐसे कितने ही नियम बनाए जाते है, जो प्रथा कहलाते है और इसका ख़ामियाज़ा सिर्फ महिलाओं को झेलना पड़ता है। आज पुरुष और नारी समानता का युग होने के बावज़ूद, अभी भी नारी अत्याचार की इतनी घिनौनी कुप्रथाएं मौजूद है कि जिन्हें जानकर आप दाँतों तले उंगली दबा देंगे।
सेंट्रल अफ्रीकी देश ब्रिटेन के कॅमरुन में 10 साल से कम उम्र वाली लड़कियों के स्तनों को कोयले पर गर्म किए पत्थर से या हथौड़े से दबा कर चपटा कर दिया जाता है, ताकि वे विकसित न हो सकें! इसे वहां पर “ब्रेस्ट आइरनिंग” का नाम दिया गया है। इससे लड़कियों को बहुत ही दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इतना ही नहीं, इससे ब्रेस्ट कैंसर, खुजली, घाव, तेज बुखार, ब्रेस्ट इंफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है और स्तनपान कराने में भी दिक्कत आती है। कैमरुन में तकरीबन 50% लड़कियाँ ब्रेस्ट आइरनिंग का शिकार होती है। लड़कियों की ब्रेस्ट आइरनिंग कोई और नहीं बल्कि उनकी माँ ही करती है। इन लोगों का मानना है कि अगर किशोरियों के ब्रेस्ट टिश्यू निकाल दिए जाएं तो वे कम आकर्षक होंगी और इससे उन्हें रेप और यौन उत्पीडन से बचाया जा सकेगा!
क्यों पढ़ कर ही रोंगटे खड़े हो रहे है न? कैसे सहती होगी इतनी दर्दनाक प्रक्रिया को वो मासूम लड़कियाँ? वो भी सिर्फ और सिर्फ इसलिए ताकि वो सुंदर ना दिखे एवं कोई उनका बलात्कार ना करें! ज़ाहिर है, ब्रेस्ट आइरनिंग से इस धारणा को बढावा मिलता है कि लड़कियों का शरीर ही अपने आप में सेक्सुअल है और यौन हमलों के मामलों में पुरुषों की कोई भी गलती नहीं होती! सबसे गौर करने वाली बात यह है कि यह कुप्रथा उस देश ब्रिटेन में है जिसे हम विकसित कहते है!!
पत्नी या पानी वाली बाई!!

कहा जाता है कि कोई भी नारी सब कुछ सह सकती है लेकिन अपने प्यार को, अपने पति को किसी और के साथ नहीं बांट सकती। भारत में इस्लाम को छोड़कर अन्य किसी भी धर्म में बहुविवाह की कुप्रथा मान्य नहीं है। लेकिन महाराष्ट्र के ठाणे जिले के शहापुर तहसील के एक गांव देंंगमाल में ऐसा हो रहा है। वजह भी बहुत ही अजीब है।
बलात्कार पीड़िता को ही दोषी समझना
यहां पर एक पुरुष की एक नहीं बल्कि दो या तीन पत्नियाँ होती है। दरअसल ये गांव भी महाराष्ट्र के उन 19 हजार गांवो में से एक है, जहां पानी नहीं है और ज्यादातर सुखे जैसे ही हालात रहते है। घर की जरुरत के लिए पानी का इंतजाम करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं पर ही होती है। यहां पानी करीब छ: किलोमीटर दूर से भरकर लाना पड़ता है। और पानी भरकर लाने के लिए ही यहां लोग शादियाँ करते है। पानी के लिए लाई गई इन दुल्हनों को “पानी बाई” कहा जाता है। अगर किसी व्यक्ति की पत्नी पानी लाने में असमर्थ है, तो वो व्यक्ति दूसरी शादी कर लेता है, जिससे पानी लाया जा सके। अगर दूसरी पत्नी भी बीमार पड़ जाए, तो वो तीसरी शादी कर लेता है। पानी लाने का काम चुनौतियों भरा होता है। एक महिला के पास 15-15 लीटर के दो घड़े होते है, जिन्हें अपने सर पर एक के उपर एक रखकर संतुलित करना होता है। तपती गर्मी के दिनों में पथरीले रास्तों पर छ: किलोमीटर दूर का सफर तय करने में 8 से 10 घंटे लग जाते है। ऐसे में घर में बच्चों को अकेला भी नहीं छोड़ा जा सकता एवं घर के अन्य काम भी निपटाने होते है। अत: मज़बूरी में महिलाएं खुद अपने पति को दूसरी शादी करने की अनुमति दे देती है। इस गांव के रहने वाले सखाराम भगत (उपर चित्र में दिखाए गए) ने भी तीन शादियां की हैंं। भगत की पहली पत्नी तुकी को पत्नी का दर्जा मिला है बाकि की दो पानी वाली बाई कहलाती है। आज भी ज्यादातर तलाक की वजह यहीं रहती है कि "पति का दूसरी औरत के साथ संबंध है!" और यहां पर महिलाएं खुद ही अपने लिए सौत लाती है! क्या कहेंगे इस मजबूरी या कुप्रथा को??
क्या कोई बलात्कार की शिकार लड़की के दु:ख को समझ सकता है? नहीं, क्योंकि जा के पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर परायी। न मेहंदी की रस्म होती है, न संगीत की रात होती है, न बैंड़बाजा होता है, न वरमाला पड़ती है और न ही फेरे होते है, फिर भी वो कन्या से औरत बन जाती है। ज़बरदस्ती करनेवाला शान से घूमता है और जिस के साथ ज़बरदस्ती होती है वह सिर नीचा किए, अपराधबोध से ग्रस्त घर में छिपती है। उसे इतना अपराधबोध कराया जाता है कि उसे अपने-आप से ही घृणा होने लगे! कुदरत का यह कैसा न्याय है? नारी की क्या गलती है? मौखिक सहानुभुती प्रकट करनेवाले तो बहुत आते है लेकिन हार्दिक संवेदना महसूस करनेवाला कोई नहीं होता।
हालात, परिस्थितियां, घटनाएँ चाहे कुछ क्यों ना हों, हर प्रकार की नकारात्मक स्थितियों का सामना सिर्फ और सिर्फ नारी को ही क्यों करना पड़ता है? यूं तो दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड ने दुनिया भर की नजरें भारतीय स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों पर गड़ा दी है। लेकिन आज भी भारत में हजारों की संख्या में ऐसी स्त्रियां मौजूद है, जो निर्भया के दर्द को झेल रही है। वे जीवित तो है लेकिन एक मुर्दा शरीर की तरह! हर पल ईश्वर से अपने मरने की दुआ कर रही है। इंतहा तो तब हो जाती है, जब खाप पंचायते या क़ानून स्वयं ही बलात्कारी को बलात्कार पीड़िता से विवाह करने को कह कर न्याय की जीत हो गई ऐसा मानते है। यहां पर भी पीड़िता के मन का ख्याल नहीं रखा जाता। उसे ज़िंदगी भर बलात्कारी के साथ रहने को मजबूर कर कर उस भयानक हादसे को याद रख कर, घाव को हरा रख कर जीवन जिने को मजबूर किया जाता है। कुछ देश इससे भी चार कदम आगे है। वे बलात्कार पीड़िता को ही दंड देते है! उदाहरण के लिए सउदी अरब व मोरक्को में ऐसा ही होता है। तर्क यह दिए जाते है कि वह महिला पुरुषसाथी के बगैर घर से क्यो निकली?
इस तरह की और भी कई कुप्रथाएं आज भी मौजूद है। स्त्रियों की दुर्दशा और उनके साथ होते अत्याधिक अमानवीय बर्ताव के बाद भी इस कठोर मर्दवादी समाज का दिल पता नहीं क्यों नहीं पसिजता??
हालात, परिस्थितियां, घटनाएँ चाहे कुछ क्यों ना हों, हर प्रकार की नकारात्मक स्थितियों का सामना सिर्फ और सिर्फ नारी को ही क्यों करना पड़ता है? यूं तो दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड ने दुनिया भर की नजरें भारतीय स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों पर गड़ा दी है। लेकिन आज भी भारत में हजारों की संख्या में ऐसी स्त्रियां मौजूद है, जो निर्भया के दर्द को झेल रही है। वे जीवित तो है लेकिन एक मुर्दा शरीर की तरह! हर पल ईश्वर से अपने मरने की दुआ कर रही है। इंतहा तो तब हो जाती है, जब खाप पंचायते या क़ानून स्वयं ही बलात्कारी को बलात्कार पीड़िता से विवाह करने को कह कर न्याय की जीत हो गई ऐसा मानते है। यहां पर भी पीड़िता के मन का ख्याल नहीं रखा जाता। उसे ज़िंदगी भर बलात्कारी के साथ रहने को मजबूर कर कर उस भयानक हादसे को याद रख कर, घाव को हरा रख कर जीवन जिने को मजबूर किया जाता है। कुछ देश इससे भी चार कदम आगे है। वे बलात्कार पीड़िता को ही दंड देते है! उदाहरण के लिए सउदी अरब व मोरक्को में ऐसा ही होता है। तर्क यह दिए जाते है कि वह महिला पुरुषसाथी के बगैर घर से क्यो निकली?
इस तरह की और भी कई कुप्रथाएं आज भी मौजूद है। स्त्रियों की दुर्दशा और उनके साथ होते अत्याधिक अमानवीय बर्ताव के बाद भी इस कठोर मर्दवादी समाज का दिल पता नहीं क्यों नहीं पसिजता??
Keywords:crime against women, customs, customs and traditions, Rape, balatkar, samuhik balatkar, Women empowerment in hindi, sashaktikaran
बहुत ही दर्दनाक है ,आज भी नारी के लिये कुप्रथाएं
जवाब देंहटाएंहर बार नारी ही सतायी जाती है क्यों ?
हम शहरों मे रह रहे लोग इन कुप्रथाओं से अनजान हैं।
रितु, नारी पर अत्याचार सिर्फ गांवों में ही होते है ऐसा नहीं है। शहरों में भी आज भी नारी सुरक्षित नहीं है। पढे-लिखें लोगों में थोड़ी बहुत जागरुकता आने से यह प्रमाण कम जरुर हुआ है।
हटाएंबहुत ही सही विश्लेषण !
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-06-2016) को "मौसम नैनीताल का" (चर्चा अंक-2379) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, मेरी रचना शामील करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
हटाएंजितना दर्दनाक है उतना ही सभ्य समाज में अमान्य है ऐसी प्रथा का होना ... शर्म की बात ही विश्व आगे बढ़ रहा है और ऐसी परम्पराएं भी ...
जवाब देंहटाएंइसके खिलाफ ब्रिटेन ने भी कुछ नही किया............
जवाब देंहटाएंआशा जी, यही तो विडम्बना है।
हटाएंउफ्फ्ग अद्भुत अमानवीय एवं शर्मनाक .. सभ्य समाज का असभ्य चेहरा
जवाब देंहटाएंबेहद शर्मनाक .... निंदनीय, आभार आपका इस पोस्ट के लिए ... .
जवाब देंहटाएंबेहद शर्मनाक .... निंदनीय, आभार आपका इस पोस्ट के लिए ... .
जवाब देंहटाएंOh....Bahut hi azeeb aur sharmnaak gahtnayen hain yeh....in par turant action lena chaiye....aapke teesre point par mai kehna chaunga ki hame apni mansikta badalne ki jarurat hai....kharab mansikta ka shikar samaj hi ese kadam uthata hai....
जवाब देंहटाएं“ब्रेस्ट आइरनिंग” तो क्रूरता की पराकाष्ठा है तथा वो मा भी कैसी मा होगी जो अपनी बेटी के साथ ऐसी क्रूरता कर सकती थी। मैं तो ऐसा सोच कर भी सिहर उठती हूं.
जवाब देंहटाएंपढ़ कर रोंगटे खड़े हो गये वह भी माँ द्वारा किया गया क्रूरतम व्यवहार
हटाएंमहाराष्ट्र में ठाणे जिले की इस घटना से साफ़ पता लगता है, की आज़ादी के 69 सालों बाद भी सरकार लोगों को आधारभूत सुविधाएँ मुहैया कराने में नाकाम हुई है|यदि सरकार उस गांव में कहीं से भी पानी का इंतज़ाम करे तो इस कुप्रथा को रोका जा सकता है |
जवाब देंहटाएंO M G ! world`s developed country has this kind of shrink thinking about women. so shame we should respect women.
जवाब देंहटाएंबहुत अजीब परंपरा है ऐसे परंपरा को सब महत्व क्यों देते है जो दुसरो को दुखी करे।
जवाब देंहटाएंMe pinky mera to kahna yani he kab tak
जवाब देंहटाएंKi mahila par jo atiya char Ho rha he uski sabse badi jad apn mahila hi he apan atiya char sahte hate he magar uske khilaf hm mahila abhi nhi khadi hoti or jo hona chahti he bah mahila hmesa is liye ruk jati he kyu ki uske sath koi khada nhi hota me to yahi kahugi agar is atiya char band Karna he to sath deo mera me ap Sab ka sath chahti hu. Me har mahila se har saas se yahi kahugi ki jo atiya char ap logo ne sahe ap aap ki bahu ko na sahne de us ka sath de .....agar ap Sab .mera sath de sakti he to mujhe rpl de or mujh se a kar Mile Indore me
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने कि हम महिलाओं को पीडित महिलाओ का साथ देना होगा। आपने कहा कि जो आपकी मदद करना चाहता हैं वो आपसे इंदौर में आकर मिले। देखिए, जो महिला आपकी मदद करना चाहती हैं उसके लिए भी इंदौर आकर आपसे मिलना मुमकिन नहीं हैं। क्योंकि महिलाओं की अपनी मर्यादाएं होती हैं यह बात एक महिला होने के नाते आप अच्छी तरह समझ सकती हैं।
हटाएंबहुत शिक्षाप्रद लेख. समाज अब भी नहीं जागेगा तो अब कब जागेगा. बहुत अफसोसजनक!
जवाब देंहटाएंऐसी कुप्रथाओ से तो भरा पड़ा है ये विश्व ,लेकिन सारी कुप्रथाओ में एक बात समान रूप से देखने को मिलेगी कि -नारी पर अत्याचार कोई और नहीं स्वयं नारी ही कर रही हैं.ब्रेस्ट आइरनिंग की कुप्रथा में एक माँ ही अपनी बेटी के स्तन जलती हैं ,वैसे ही एक सांस जब खुद बहु होती है तो उस वक़्त जो उसकी सास ने उस पर जुल्म और पवंदिया किए होती हैं वही वो अपने बहु को देती है ,जिस दिन औरत के दिल में ये संकल्प आ जाये कि -"मेरे साथ जो हुआ मैं अपनी आने वाली पीढ़ी के साथ ऐसा नहीं होने दूगीं "उसी दिन औरतो पर अत्याचार होने बंद हो जायेगे ,कहने को तो पढ़े लिखे समाज मे ये अब काम हो रहा है लेकिन ये सिर्फ ऊपरी सच्चाई है हक़ीक़त नहीं। आज भी बलात्कार की बात छोड़े अगर चाइल्ड एब्यूज की घटनाये होती है तो सबसे पहले एक माँ ही कहती है "चुप रहो बेटा ,ये बात किसी को नहीं कहना "जब माँ ही बेटी का साथ नहीं देगी उसपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएगी तो और कौन उसका साथ देगा। गरीब और लाचार माँ तो असमर्थ होती है ,मैं पढ़ी लिखी और समर्थ माँ की बात कर रही हूँ। लाखो में एक माँ आवाज़ उठाती हैं। आप का लेख बहुत दर्दनाक था लेकिन ज्योति जी आवाज़ तो औरतो को ही उठानी होगी ना ये काम अगर पुरुष करेंगे तो भी हम एक लाचारी के अहसास से दबे ही रहेंगे। धीमी गति में ही सही जागरूकता तो हो रही है औरतो में तभी तो हम आप आज इस विषय पर खुल के बात कर पा रहे हैं ,सादर स्नेह आप को।
जवाब देंहटाएंसही कहा कामीनी दी कि जब पढ़ी लिखी नारी अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठायेंगी तब तक ऐसी घटनाएँ नहीं रुक सकती।
हटाएंबहुत ही दर्दनाक दिल दहला देने वाली घटना की जानकारी दी आपने ऐसा भी होता है जानकर आश्चर्य भी हुआ और दुख भी यह यातनाएं नारी के जीवन में ही लिखीं हैं और इसको अंजाम देने वाले उनके अपने ही होते है
जवाब देंहटाएं