हम इंसान अपने-आप को सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मानते है। लेकिन आइए, हम यहां पर पशु-पक्षियों के चुनिंदा गुणों पर नजर डालते है, जिनसे हम कुछ न कुछ सीख सकते है।
खान-पान
इंसान से ज्यादा समझदार तो जीव-जंतु जगत के अन्य प्राणी है। जितनी उम्र लिखवाकर आए है, अक्सर पुरी जिते है। नपा-तुला खाते है, नपा-तुला पीते है। मांस खाने वाला घास नहीं खाता और घास खाने वाला मांस नहीं खाता! बहुत सारे मांसाहारी प्राणी दूसरे प्राणियों को खाते है लेकिन वे सब के सब खुदको निरोगी रखना जानते है। हमको पता है कि कुत्ता घास नहीं खाता लेकिन यदि हमारे द्वारा फेंके गए बासी भोजन से उसका पेट खराब हो जाए तो उसे घास खाते हुए देखा जा सकता है। घास खाकर वह उल्टी करकर अपने आप को तंदुरुस्त कर लेता है। ये तो कमबख्त हम इंसान है जो कहते है खाए जाओ, खाए जाओ...! हम इन प्राणियों से खान-पान की आदते सीख सकते है।
उड़ने का मैनेजमेंट फंडा
आज टेक्नोलॉजी में महारत हासिल करने के बाद भी एकाध पक्षी के हवाई-जहाज से टकराने से अपघात होने की बात हम अक्सर सुनते है। लेकिन आकाश में सैकडों परिंदे साथ-साथ उड़ते हुए भी कभी नहीं टकराते। आखिर परिंदों की इस सफल उड़ान के पिछे उनका कुछ न कुछ तो मैनेजमेंट फंडा होगा! हम परिंदों से उड़ने का मैनेजमेंट फंडा सीख सकते है।
सरहदी सीमा
यह कितनी अजीब बात है कि हजारों मील दूर से परिंदे अपनी हिफाज़त वाले मौसम की जगहों पर पहुंच जाते है। उनके लिए कोई सरहद नहीं है! हम इंसान सिर्फ कहते है, "वसुधैव कुटुंबम्" लेकिन वास्तव में इसे चरितार्थ करते है नादान और अनाड़ी परिंदे! कुदरत ने धरती पर सरहदे नहीं बनाई, ये इंसान की बनाई हुई है और इन इंसानी सरहदों पर हमेशा बंदुके तनी रहती है। अलग-अलग देश ही क्यों, हमारे देश में तो प्रांतों की भी अपनी-अपनी सरहदे है! हजारों इंसान भूख से मरते है और हर मुल्क अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा फौजों पर खर्च करता है। हम परिंदों से सरहदी सीमा न बनाने की भावना सीख सकते है।
टीमवर्क की भावना
कई बार हम हंसों के समूह को अंग्रेजी के अक्षर v के आकार में उड़ते हूए देखते है। जब समूह का कोई पक्षी पंख फड़फड़ाता है तो ठीक पिछे उड़ रहे पक्षी के लिए उड़ान भरना आसान हो जाता है। अकेला पक्षी जितनी दूर उड़ सकता है, v के आकार में पुरा समूह उससे कई गुणा ज्यादा दूर तक उड़ सकता है। जब सबसे आगे उड़ने वाला हंस थक जाता है, तो वह v के आकार में पीछे आ जाता है और दूसरा हंस उसकी जगह ले लेता है। अर्थात मुश्किल काम करते समय अदला-बदली करने से लाभ होता है। पिछे उड़ रहे हंस, आगे उड़ने वाले हंस को प्रोत्साहन की ध्वनी निकालकर तेज उड़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है। हम इंसान पिछे से क्या कहते है? यदि हम इंसानों में थोड़ी सी भी टीमभावना हो तो हम क्या नहीं कर सकते है?
निस्वार्थ कर्म
हम पक्षियों को तिनका-तिनका जमा करकर घोंसला बनाते हुए देखते है। कितनी मेहनत से वे एक-एक तिनके से घोंसला बनाते है, अपने अंड़ो की देखभाल करते है लेकिन इसलिए नहीं कि इन अंडों में से जो बच्चें निकलेंगे, वो बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे! हम एक-एक दाना जमा करकर बच्चों को खिला रहें है और बच्चे बड़े होकर फुर्र हो जाएंगे यह बात उन्हें पता है, फिर भी निस्वार्थ कर्म करते रहते है। इसी तरह फुलों का एक-एक बुंद मधुर रस इतनी मेहनत से संचय कर, मधुमक्खी वह रस दूसरों को समर्पित कर देती है। अत: पक्षियों से एवं मधुमक्खी से हम निस्वार्थ कर्म का गुण हम सीख सकते है।
मुसीबत में एक-दूसरे के काम आना
हम अकसर देखते है कि सड़क पर एक घायल इंसान मदद की गुहार करता रहता है और लोग अनदेखा कर चले जाते है। लेकिन यदि एकाध हाथी किसी मुसीबत में फंस जाए तो उसकी एक चिंघाड़ सुनकर आस-पास के सभी हाथी सहायता के लिए दौड़े चले आते है। इसी तरह यदि हम एक कौए को जख्मी कर दे तो थोड़ी ही देर में सहायता के लिए ढ़ेर सारे कौए वहां जमा हो जाते है। इस तरह हम हाथीओं से एवं कौओं से मुसीबत में एक-दूसरे के काम आने का गूण सीख सकते है।
मील-बांटकर खाना
खाने की छोटी से छोटी चीज भी कौए अकेले नहीं खाते। कांव-कांव करकर अपने संगी-साथियों को बुलाकर सब मिलकर खाते है। हम कौओं से मील-बांटकर खाने का गुण भी सीख सकते है।
भीड़ का नियंत्रण
सैकड़ों भेडों को एक चरवाहा इशारे से हांकता है किंतु जब इंसान भीड़ बनता है तो अपना विवेक खो देता है। आपने कभी सुना है कि भगदड़ में भेड़ों की मौते हुई है? परंतु हमारे धार्मिक स्थानों पर, कुंभ मेलों में और मक्का में भी अनेक बार ज्यादा भीड़ के कारण सैकड़ों मौते हुई है! भीड़ में भी खुद को सुरक्षित रखकर और दूसरों को नुकसान न पहुंचाते हुए कैसे चला जाए, यह हम भेड़ों से सीख सकते है।
लक्ष्य की प्राप्ति
बिल्ली को यदि कहीं चुहे दिखाई दे जाएं तो वह उन्हें लक्ष्य बनाकर आस-पास ही कहीं शांती से बैठ जाती है। अपनी मौजुदगी का एहसास भी नहीं होने देती। उसकी दृष्टी उस स्थान पर जमीं रहती है जहां से चुहों को निकलना है। जैसे ही चुहे बाहर आते है बिल्ली पुरी ताकत से उन पर झपट कर अपना लक्ष्य पा लेती है। इस प्रकार सतर्क रहकर, मौके को झपटने को हमेशा तत्पर रहकर हमें लक्ष्य की प्राप्ती हो सकती है। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्राणों की भी परवाह न करने का गुण हम पतंगे से भी सीख सकते है।
दूरदृष्टी एवं हार न मानना
इतना ही नहीं छोटी से छोटी चींटी से भी हम हार न मानने का एवं दूरदृष्टी का गूण सीख सकते है! पशु-पक्षियों के उपरोक्त सभी गुणों पर गौर करने पर ऐसा लगता है कि शायद ये पशु-पक्षी भी हमारी ही तरह अपनी बातचीत में किसी के गलती करने पर यह न कहते हो कि "इंसान कहीं का!!!
Fantastic post, thanks Jyotiji
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-04-2016) को "मुँह के अंदर कुछ और" (चर्चा अंक-2311) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने ज्योती जी
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