जिंदगी के उस निर्णयात्मक क्षण के बारे में कि कैसे अपने दिल की सुनते हुए, समझौता न करते हुए मैं आगे बढी ...और कैसे अपने आत्मविश्वास से सफर तय किया...!
BlogAdda की तरफ से ब्लॉगर्स के लिए एक स्पर्धा आयोजित की गई है।
जिसमें ब्लॉगर्स को एक ब्लॉग पोस्ट लिखना है। जिसमें उन्हें अपनी जिंदगी के उस निर्णयात्मक क्षण के बारे में बताना है कि कैसे वे अपने दिल की सुनते हुए, समझौता न करते हुए आगे बढे और कैसे अपने आत्मविश्वास से उन्होंने यह सफर तय किया!
अत: मैं मेरी जिंदगी के उस क्षण के बारे में बता रही हूं।
यह घटना 1980 की है, जब मैं कक्षा 10 में थी। एक गणेशोत्सव मंडल की
ओर से बड़े पैमाने पर खुली वादविवाद स्पर्धा आयोजित की गई थी। शहर में विभिन्न जगहों पर बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए थे। स्पर्धा का विषय था ''वर्तमान समय में देश समाजवाद की ओर अग्रेसर है या नहीं?'' मुझे स्पर्धा में भाग लेना था। इसके पहले मैंने किसी वादविवाद स्पर्धा में भाग लेना तो दूर की बात, किसी भी वादविवाद स्पर्धा में श्रोता बन उपस्थित भी नहीं थी। ताकि पता चल सके कि वादविवाद स्पर्धा किस चिड़िया का नाम है? कैसे एक-दूसरे के मुद्दों का खंडन किया जाता है। और सबसे बड़ी बात मुझे समाजवाद का मतलब भी पता नहीं था। मैंने स्कूल लायब्ररी में समाजवाद के ऊपर जो कुछ भी मुझे मिल सकता था वो सब ढूंढने की कोशिश की। मुद्दे तैयार किए। पिताजी से स्पर्धा में भाग लेने हेतु अनुमति लेने गई तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि तुझे आता है तो ले ले! इस तरह अपने तैयार किए हुए मुद्दे भी मैं किसी को दिखा नहीं पाई।
स्पर्धा के दिन मैं मेरी एक सहेली के साथ नियत समय से एक घंटा पहले शिवाजी स्कूल के मैदान पर (जहां स्पर्धा होने वाली थी) पहुँच गई। पूरा मैदान लोगों से खचाखच भरा हुआ था। किसी वादविवाद स्पर्धा के लिए इतना विशाल जन समुदाय मैंने मेरी जिंदगी में दोबारा नहीं देखा। कम से कम 2500-3000 लोग होंगे। आयोजकों के पास नाम लिखने गई तो उन्होंने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैंने कुछ बहुत बड़ी गलत बात कह दी हो!
"तुम इस स्पर्धा में भाग नहीं ले सकती!"
"क्यों अंकल, ये स्पर्धा तो सबके लिए खुली है न। फिर मैं इसमे भाग क्यों नहीं ले सकती?"
"तुझे पता है, इस स्पर्धा में कौन-कौन भाग ले रहा है?"
"नहीं।"
"इस स्पर्धा में विभिन्न राजनितिक पार्टियों के नेतागण, वकील, विश्वविद्यालयीन विद्यार्थी भाग ले रहे है। "
"अंकल, ये लोग भाग ले रहे है इसका ये मतलब तो कदापि नहीं हो सकता न कि मैं भाग नहीं ले सकती!"
"अरे बाबा, तू अभी बहुत छोटी है इसलिए बोल रहा हूं! तुझे तो समाजवाद का मतलब भी पता नहीं होगा! चली आई भाग लेने!"
"अंकल, प्लीज मेरा नाम लिख लीजिए। मैंने पिछले 10-12 दिनों से स्पर्धा के लिए बहुत मेहनत की है। आप लोगों ने अपने विज्ञापन में 'खुली वादविवाद स्पर्धा' क्यों लिखा? कक्षा दसवी या कक्षा बारवी के ऊपर वालों के लिए लिखना था। अब तो आपको मेरा नाम लिखना ही पड़ेगा।"
इस तरह बड़ी मशक्क़त के बाद आयोजकों ने मेरा नाम लिखा। वो भी इस हिदायत के साथ कि अभी स्पर्धा चालू होने में वक्त है। तब तक तू अच्छे से सोच ले और नाम वापस ले ले! मेरी सहेली कहने लगी कि "सही में तू नाम वापस ले ही ले। अरे, इतने बड़े-बड़े लोगों में तू क्या बोलेंगी? फालतू में सब मजाक उड़ाएंगे। अपमानित होने से तो अच्छा है क़ि नाम वापस ले ले। " इतने में मंच पर बैठने के लिए स्पर्धकों के नामों की घोषणा होने लगी। मंच पर स्पर्धकों को बैठने के लिए दाई और बाई ओर खुर्चियां लगाई गई थी। एक तरफ विषय के पक्ष में बोलने वाले और दूसरी ओर विषय के विपक्ष में बोलने वाले। मुझे विपक्ष में बोलना था। अभी तक मुझे घबराहट नहीं हुई थी। लेकिन अब मंच पर इतने बड़े-बड़े लोगों को देखकर मैं मन ही मन डर गई। मंच पर ऐसे स्पर्धक भी थे जिन्हें मैं दादाजी कह कर पुकारती थी। मेरे नाम की घोषणा हुई। मैंने मन ही मन सोचा की जब ऊखल में सर दे ही दिया है तो मूसल से क्या डरना? जो होगा सो होगा। मैं मंच पर जाकर बैठ गई।
असली परीक्षा की घडी तो अब शुरू हुई। मंच पर लगभग 24-25 स्पर्धक थे। सभी की निगाहें मेरे ऊपर ही केंद्रित थी। जैसे मैं एक प्राणी संग्रहालय का अजूबा हूं। चारों ओर से व्यंगों की बरसात होने लगी!
"क्या, ये छुटंकी भाग लेगी?"
"अरे पता है, इसने आयोजको से कहा है कि तुमने अपने विज्ञापन में 'खुली वादविवाद स्पर्धा' ऐसा लिखा है इसलिए मुझे भाग लेने से नहीं रोक सकते।''
"आयोजकों ने तो इसकी जिद के आगे थक कर नाम लिख लिया। फिर भी उन्हें विश्वास है कि मंच पर इतने बड़े-बड़े दिग्गजों को देख कर वह खुद ही नाम वापस ले लेगी!"
"लेकिन इसको समाजवाद का मतलब भी पता होगा क्या?"
"हम कितनी उत्सुकता से इस स्पर्धा का इंतजार कर रहे थे लेकिन इस लड़की की वजह से सब मजा किरकिरा हो जाएगा। क्योंकि वादविवाद स्पर्धा में जो एक समा बंधता है वो इसके कारण टूट जाएगा।"
"ऐसा करते है सबके पहले इसी को बोलने देते है ताकि बाद में हम अच्छे से लिंक बना कर रख सके!"
"इसको पहले बोलने दिया न, तो पूरी पब्लिक उठ कर भाग जाएगी!"
यह सब सुन-सुन कर मेरा हौसला टूटने लगा। सभी को मैं कबाब में हड्डी की तरह चुभ रही थी। मन ही मन लगने लगा कि कहीं वास्तव में मैं कुछ गलत तो नहीं कर रही? इतने सारे लोगों में एक भी व्यक्ति ऐसा न था जो कहता कि "कोई बात नहीं उसकी इच्छा है तो भाग लेने दो। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, हमारे 5-7 मिनट ही तो बर्बाद होंगे!"
इतने में एक आवाज और आई,
"ऐ लड़की, क्यों माँ-बाप का नाम ख़राब करती है? कितनी जिद्दी लड़की है, कैसे संस्कार दिए है माँ-बाप ने! जो इतने सारे लोगों की बात नहीं मान रही है!"
जैसे ही माँ-बाप के नाम की बात हुई मेरा निर्णय और मजबूत हो गया। कोई मुझे कुछ भी बोले तो चलेगा लेकिन माता-पिता को...!
स्पर्धा शुरू हो गई। 3-4 स्पर्धकों की बारी हो गई। मेरा ध्यान वो लोग क्या बोल रहे है इस ओर बिलकुल भी नहीं था। कुछ स्पर्धक अभी भी मुझे नाम वापस लेने के लिए कह रहे थे। मैं तो मन ही मन अपने मुद्दों को याद कर रही थी! मन में थोड़ा डर था कि कहीं मैं बीच में ही अटक गई तो? क्योंकि अब मेरे माता-पिता की इज्जत का भी सवाल था।
मेरे नाम की घोषणा हुई। अंदर ही अंदर घबराते हुए लेकिन ऊपर से आत्मविश्वास से भरी हुई हूं, ऐसा दिखाते हुए मैंने माइक हाथ में लिया। डर के मारे पैर कंपकंपा रहे थे। हाथों को तो मैंने पूरी मजबूती से जकड़ रखा था ताकि सबको को ये न लगे की मैं डर रही हूं। जैसे ही मैंने बोलना शुरू किया, मुझे नहीं पता कि मेरी उम्र का जादू था या मेरी आवाज का या मेरे मुद्दों का, लेकिन इतने विशाल मैदान में निशब्द शांतता पसर गई। मेरे हर मुद्दे पर तालियों की गड़गड़ाहट होने लगी। और अंत में तालियों की इतनी बरसात हुई, इतनी बरसात हुई कि असली बरसात को भी शर्म आ जाए!!
सभी की बारी ख़त्म होने पर मुझे विपक्ष का नेता चुना गया। मुझे पक्ष वालों के मुद्दों का खंडन करने के लिए एक मौका और दिया गया।
और अंत में जब निकाल घोषित हुआ तो मेरा पहला नंबर आया।
तो ऐसा था मेरा स्पर्धा में भाग लूं या न लूं से विजेता होने तक का सफर।
My Journey from 'OR' to 'AND'
मैं GilletteVenus की आभारी हूं जिन्होंने मुझे यह संधि दी कि अपनी यह प्रेरणादायक घटना सबको बता सकू।
(स्पर्धा के नियमों के मुताबिक ब्लॉग पोस्ट में खुद की एक फोटो लगानी है इसलिए खुद की फोटो लगाई है।)
"This post is a part of #UseYourAnd activity at BlogAdda in association with Gillette
Venus".
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (16.01.2015) को "अजनबी देश" (चर्चा अंक-1860)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंMujhe bhi padh kar gouravwanit anubhav ho raha hai....iss pratiyogita me aap safal ho... Shubhkamnayein dil se
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी पोस्ट लिखी है आपने आदरणीय ज्योति जी
जवाब देंहटाएंInspirational
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है !!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेरणादाप्रद जानकारी ....
जवाब देंहटाएंआपने जो स्पर्धा के लिए आत्मविश्वास दिखाया वो वाकई कबीले तारीफ़ है.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
iwillrocknow.blogspot.in
सुंदर और प्रेरणादायी
जवाब देंहटाएंअनुपम...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
अच्छी प्रस्तुती .
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास
म्हणत, लगन और हिम्मत हो तो हर काम आसान हो जाता है .. आपने ये सब किया ... आप सफल हुयीं ...
जवाब देंहटाएंजब मन में आत्मविश्वास और जीत का ज़ज्बा हो तो हर कठिनाई सर झुका देती है...बहुत प्रेरक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरणादायी लेख प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसंकोच पर साहस की विजय । बहुत अच्छा.
जवाब देंहटाएंमै आपकी लेखनी को बहुत ही विचारोत्तेजक पाता हूँ. आपके ब्लॉग में आपने सामयिक विषयों पर काफी सूक्ष्मता से अपने विचार रखें हैं.
हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, साकेत जी!
हटाएंबहुत ही प्रेरक और साहस जगाने वाला !
जवाब देंहटाएंشركة تسليك مجاري بالدمام
जवाब देंहटाएंشركة كشف تسربات المياه بالدمام
जवाब देंहटाएंشركة مكافحة حشرات بالدمام
شركة كشف تسربات المياه بالخبر
شركة مكافحة حشرات بالخبر
شركة تنظيف بالدمام
شركة تنظيف منازل بالدمام
شركة تنظيف بالخبر
شركة تنظيف منازل بالخبر
شركة تنظيف فلل بالدمام
شركة تنظيف شقق بالدمام
شركة تنظيف فلل بالخبر
شركة تنظيف شقق بالخبر
شركة تنظيف خزانات بالدمام
شركة تنظيف خزانات بالخبر