दहेज़ शब्द नारी से इस कदर जुड़ गया है जैसे इंसान से सांस! आज भी प्रति घंटे एक महिला दहेज़ की बली चढ़ रही है। तो इन दहेज़ बली की कुछ घटनाओं की असलियत कुछ और भी है।
हम कहते है कि नर और नारी दोनों समान है। तो इसका मतलब हुआ लड़का = लड़की लेकिन कालांतर में न जाने ऐसा क्या हुआ कि,
लड़का = लड़की + दहेज़ हो गया! दहेज़ शब्द नारी से इस कदर जुड़ गया है जैसे इंसान से सांस! जैसे सांस लिए बिना इंसान जी नहीं सकता वैसे ही दहेज़ के बिना नारी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। आश्चर्य तो तब होता है जब पढ़े-लिखें, सुशिक्षित लोग भी दहेज़ की कामना रखते है।
दहेज़ के ही कारण लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती, चाहकर भी अपने सपनों को हकीकत में बदल नहीं पाती, उडान भरने से पहले ही उनके पंख काट दिए जाते है! क्योंकि उनके माता-पिता के पास दहेज़ के लिए पर्याप्त पैसा नहीं रहता! शादी होने के बाद, कुछ साल पहले तक दहेज़ रूपी दानव कई दहेज़ बली लेता था। लेकिन अब लड़कियों की शादी की उम्र में बढ़ोतरी के कारण, शिक्षा के कारण लडकियां ससुराल वालों के अत्याचार का प्रतिकार कर पा रही है। दहेज़ हत्या को रोकने के लिए कानून में 'आईपीसी की धारा 498ए' है। जिसके मुताबिक विवाहित महिला को प्रताडित करने वाले पति और उसके रिश्तेदारों को तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है। यह एक गैर जमानती अपराध माना गया है। इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस कानून के कारण भी ससुराल पक्ष में भय व्याप्त हो गया है। इसके बावजूद, आज भी प्रति घंटे एक महिला दहेज़ की बली चढ़ रही है। तो इन दहेज़ बली की कुछ घटनाओं की असलियत कुछ और भी है।
लड़का = लड़की + दहेज़ हो गया! दहेज़ शब्द नारी से इस कदर जुड़ गया है जैसे इंसान से सांस! जैसे सांस लिए बिना इंसान जी नहीं सकता वैसे ही दहेज़ के बिना नारी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। आश्चर्य तो तब होता है जब पढ़े-लिखें, सुशिक्षित लोग भी दहेज़ की कामना रखते है।
दहेज़ के ही कारण लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती, चाहकर भी अपने सपनों को हकीकत में बदल नहीं पाती, उडान भरने से पहले ही उनके पंख काट दिए जाते है! क्योंकि उनके माता-पिता के पास दहेज़ के लिए पर्याप्त पैसा नहीं रहता! शादी होने के बाद, कुछ साल पहले तक दहेज़ रूपी दानव कई दहेज़ बली लेता था। लेकिन अब लड़कियों की शादी की उम्र में बढ़ोतरी के कारण, शिक्षा के कारण लडकियां ससुराल वालों के अत्याचार का प्रतिकार कर पा रही है। दहेज़ हत्या को रोकने के लिए कानून में 'आईपीसी की धारा 498ए' है। जिसके मुताबिक विवाहित महिला को प्रताडित करने वाले पति और उसके रिश्तेदारों को तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है। यह एक गैर जमानती अपराध माना गया है। इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस कानून के कारण भी ससुराल पक्ष में भय व्याप्त हो गया है। इसके बावजूद, आज भी प्रति घंटे एक महिला दहेज़ की बली चढ़ रही है। तो इन दहेज़ बली की कुछ घटनाओं की असलियत कुछ और भी है।
दहेज़ के केसेस की असलियत
कुछ शिक्षित युवतियों ने गृह कलह के कारण, कुछ ने पति की आय से असंतुष्ट होकर, कुछ ने मात्र विवाह जैसे जंजाल से मुक्ति पाने के लिए दहेज़ जैसे केस बनाए ताकि वह ससुराल वालों पर हावी हो सके! कुछ युवतियां स्वयं चाहती है कि उन्हें मायके से ज्यादा से ज्यादा मिले ताकि ससुराल में उनका मान बढे! बहु हत्या का एक कारण जिसे बाद दहेज़ बली ही कहा जाता है नारी का पाक कला में विशेषज्ञ न होना भी है। अपने यहां तो हालात यह भी है कि यदि लड़के वाला कह दे कि शगुन का एक रुपया ही काफी है, तो लड़की वाला खुद ही सोच लेता है कि जरुर लड़के में कुछ कमी होगी!!
दहेज़ जैसी कुप्रथा समाप्त करने के लिए धारा '498A' लागु की गई। लेकिन इस धारा का प्रयोग असंतुष्ट पत्नियां ढाल के रूप मे न कर एक हथियार के रूप मे कर रहीं हैं। धारा 498A में 93.6% मामलों में चार्ज शीट दर्ज की जाती है जबकि दर्ज़ मामलों में केवल 15% ही सच पर आधारित होते हैं. पश्चिम बंगाल में धारा 498ए के मामले पिछले दो सालों में 11 फीसदी की दर से बढ़े हैं। वहीं दूसरी तरफ इन मामलों में अपराध सिद्ध होने की दर 6.3 फीसदी से गिरकर 4.4 फीसदी ही रह गई है।
झूठी शिकायत होने पर भी किसी सज़ा का ना मिलना उल्टे गुजारे भत्ते का इनाम दिया जाना झगडालू लड़कियों और उनके परिवार वालों को निडर बना रहा है. लड़की वाले लड़के वालों की बेबसी का लाभ उठाते हुए मुंह फाड़ कर लड़के की हैसियत से कहीं अधिक हर्जाना देने को मज़बूर करतें है। सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज़ विरोध क़ानून के दुरूपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में पुलिस स्वत: ही अभियुक्त को गिरफ्तार नहीं कर सकती।
मेरा यह सब कहने का यह मतलब कदापि नहीं है कि दहेज़ के सभी केसेस झूठे होते है या अब दहेज़ के कारण नारी पर अत्याचार होना पूरी तरह बंद हो गया है। लेकिन ज्यादातर मामलों में लड़की की शादी तक दहेज़ लड़की का जीवन बर्बाद करने में एक अभिशाप साबित हो रहा है तो शादी के बाद लड़कियां दहेज़ का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में कर रही है।
मेरा यह सब कहने का यह मतलब कदापि नहीं है कि दहेज़ के सभी केसेस झूठे होते है या अब दहेज़ के कारण नारी पर अत्याचार होना पूरी तरह बंद हो गया है। लेकिन ज्यादातर मामलों में लड़की की शादी तक दहेज़ लड़की का जीवन बर्बाद करने में एक अभिशाप साबित हो रहा है तो शादी के बाद लड़कियां दहेज़ का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में कर रही है।
दहेज़ उन्मूलन के उपाय
1) अपनी बेटियों को शिक्षित करें।
2) उन्हें अपने कैरियर के लिए प्रोत्साहित करे।
3) उन्हें स्वतंत्र और जिम्मेदार होना सिखाए।
4) अपनी बेटी के साथ बिना किसी भेदभाव के समानता का व्यवहार करे।
5) युवाओं को समाज को यह सन्देश देने की आवश्यकता है कि वो दहेज़ की लालसा नहीं रखते है। बल्कि वो ऐसा जीवन साथी चाहते है जो पत्नी, प्रेयसि,और एक मित्र के रूप में हर कदम पर उसका साथ दे।
आमिर खान के कार्यक्रम "सत्यमेव जयते" का तीसरा एपिसोड दहेज़ पर था। इस प्रकार के कार्यक्रम के माध्यम से समाज में जागरूकता पैदा की जा सकती है। क्योंकि आज के युवा वर्ग को जैसा हम दिखाएंगे, सिखाएंगे और पढ़ाएंगे वो ही जाकर हमारा भविष्य बनेंगे। आइए, हम सब मिलकर दहेज़ प्रथा के खिलाफ आवाज उठाए और प्रतिज्ञा ले कि,
"ना दहेज़ लेंगे और ना ही दहेज़ देंगे।''
वरदान के रूप में दहेज़
बिहार के शेखपुरा जिले के एक गांव में एक युवक ने दहेज़ के रूप में 250 पौधे लगाने की शर्त रखकर पर्यावरण की रक्षा के लिए नया सन्देश देने की कोशिश की है। यदि आज का पढ़ा-लिखा युवक इस तरह के दहेज़ मांगने लगेगा तो निश्चय ही नारी का, समाज का और देश का भविष्य उज्वल होगा!
1) अपनी बेटियों को शिक्षित करें।
2) उन्हें अपने कैरियर के लिए प्रोत्साहित करे।
3) उन्हें स्वतंत्र और जिम्मेदार होना सिखाए।
4) अपनी बेटी के साथ बिना किसी भेदभाव के समानता का व्यवहार करे।
5) युवाओं को समाज को यह सन्देश देने की आवश्यकता है कि वो दहेज़ की लालसा नहीं रखते है। बल्कि वो ऐसा जीवन साथी चाहते है जो पत्नी, प्रेयसि,और एक मित्र के रूप में हर कदम पर उसका साथ दे।
आमिर खान के कार्यक्रम "सत्यमेव जयते" का तीसरा एपिसोड दहेज़ पर था। इस प्रकार के कार्यक्रम के माध्यम से समाज में जागरूकता पैदा की जा सकती है। क्योंकि आज के युवा वर्ग को जैसा हम दिखाएंगे, सिखाएंगे और पढ़ाएंगे वो ही जाकर हमारा भविष्य बनेंगे। आइए, हम सब मिलकर दहेज़ प्रथा के खिलाफ आवाज उठाए और प्रतिज्ञा ले कि,
"ना दहेज़ लेंगे और ना ही दहेज़ देंगे।''
वरदान के रूप में दहेज़
बिहार के शेखपुरा जिले के एक गांव में एक युवक ने दहेज़ के रूप में 250 पौधे लगाने की शर्त रखकर पर्यावरण की रक्षा के लिए नया सन्देश देने की कोशिश की है। यदि आज का पढ़ा-लिखा युवक इस तरह के दहेज़ मांगने लगेगा तो निश्चय ही नारी का, समाज का और देश का भविष्य उज्वल होगा!
अच्छा लिखा है आपने और बेशक कुछ दुरूपयोग होता है कानून का मगर ये धीरे धीरे रुक जायेगा और समाज को सबक सिखाना भी तो जरूरी है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट ज्योति जी
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख।
जवाब देंहटाएंकल नेट की समस्या के चलते कमेंट नहीं हो पाये थे।
कल 07/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत सुन्दर,समाज में जागरूकता आणि जरुरी है ,लड़कियों में आत्म विश्वास यदि आ जाता है तो वे दहेज़ के भेड़ियों को शादी से साफ़ इंकार कर सकती हैं,आखिर में उन् लोभियों को अपने विचार बदलने ही होंगे
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख...
जवाब देंहटाएंhttp://prathamprayaas.blogspot.in/- बिना हाथों की पहली महिला पायलेट – “जेसिका कॉक्स”
Yes, your observations are very valid. Also when dowry is a crime, alimony is not. In fact alimony is encouraged. Contribution of women in a marriage is never determined. Today they have only benefits without any specific contribution. They can't be punished for anything they do in a family. That is why we see such attrocities happening..
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट । दुरूपयोग के मामले वाकई विचारणीय हैं
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट । दुरूपयोग के मामले वाकई विचारणीय हैं
जवाब देंहटाएंधनलोलुप ही दहेज को अभिशाप या हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंदहेज के कानून का किसी को परवाह नहीं ।
जागरूक करती प्रस्तुति ।
है तो ये अभिशाप ही ... हाँ इसका प्रयोग गलत तरीके से कर के नारी ही धोखे में रहेगी आने वाले समय में ...
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा ,लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है ऐसी कुप्रथा कमजोर होती जा रही हैं।
जवाब देंहटाएंदहेज सच में बेहद चिंता का विषय है और जब तक हमारी युवा पीढ़ी अपनी सोच नहीं बदलेगी तब तक यह कुप्रथा उन्हें विरासत में मिलती रहेगी ऐसे ही चलता रहेगा कभी कभी निर्दोष लोगों को भी बिना वजह अपमानित किया जाता है दहेज की आड़ में बहुत सुंदर और सार्थक लेख लिखा आपने ज्योती जी
जवाब देंहटाएंदहेज़ वर्तमान समाज का एक कुत्सित चेहरा प्रस्तुत करता है, जब प्रकृति ने सबको सामान रूप से बनाया तो यह समाज इस रूप में kaise बन गया सोचनीय है.. आपकी शोच और लेखन के लिए आपको साधुवाद ...
जवाब देंहटाएंhttps://www.parachhaee.com/
उम्दा पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी लेख है ज्योति बहन। दहेज प्रथा तो सदैव से अभिशाप रही है पर आपने सच लिखा आज नारी संरक्षण के कड़े कानूनों के तहत इस नाम भर का दुरुपयोग कर महिलाएं और उनके परिवार वाले बहुत अनैतिकता फैलाए हुवे हैं और सच सामने भी नही आ पाता ना बराबर गवाहों का इंतजाम हो पाता है और कई निर्दोष भी नारियों के अत्याचार की बलि चढते हैं।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन।
दहेज एक लालच का कीड़ा है | जो हमारे समाज को हानि पहुंचा रहा है, हमारे समाज में दहेज नाम का कुछ होना नहीं चाहिए | लेकिन फिर भी कुछ लोग हैं तो इसे बढ़ावा देते हैं और लड़कियों को तंग करते हैं |
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