क्रिसमस डे के दिन तुलसी पूजन करने से हमारा...पर्यावरण का...समस्त मानव जाति का और समस्त प्राणी जगत का नुकसान होगा! यहीं कड़वी सच्चाई है दोस्तों!!
25 दिसंबर क्रिसमस डे के दिन न तो तुलसी का पौधा लगाया जाता है न ही पौधे में फूल आते है। न ही इस दिन तुलसी माता का जन्म हुआ था और न ही उनकी शादी हुई थी! फ़िर क्रिसमस डे के दिन तुलसी पूजन क्यों? कड़वी सच्चाई ये है कि क्रिसमस डे के दिन तुलसी पूजन करने से हमारा...पर्यावरण का...समस्त मानव जाति का और समस्त प्राणी जगत का नुकसान होगा! आप यहीं सोच रहे है न कि मैं ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हूंं...तुलसी पूजन करने से हमारा और समस्त प्राणी जगत का नुकसान कैसे होगा? तो थोड़ा सा वक्त निकाल कर यह पोस्ट पूरी पढिएगा। फ़िर खुद फैसला किजिएगा कि क्रिसमस डे के दिन हमें तुलसी पूजन करना चाहिए या नहीं।
क्रिसमस के दिन तुलसी पूजन करने की शुरुवात कैसे हुई?
पूरी दुनिया में 25 दिसंबर को प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है। ईसाई समुदाय का यह सबसे बड़ा त्यौहार है। जिस तरह हिंदू दिवाली की तैयारी एक महीने पहले से करते है ठीक उसी तरह ईसाई समुदाय के लोग क्रिसमस की तैयारी एक महीने पहले से करते है। मतलब जिस तरह दिवाली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है ठीक उसी तरह क्रिसमस ईसाइयों का सबसे बड़ा त्यौहार है। हिंदू दिवाली का त्यौहार तारीख के हिसाब से नहीं तिथि के हिसाब से कार्तिक मास की अमावस्या को मनाते है और ईसाई क्रिसमस का त्यौहार तारीख के हिसाब से 25 दिसंबर को मनाते है। सदियों से ऐसा ही होता आ रहा है। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि क्रिसमस डे के दिन तुलसी पूजन करने संबंधी पोस्ट सोशल मीडिया पर छाने लगी?
दरअसल साल 2014 में धर्मगुरु आसाराम बापू ने क्रिसमस डे के दिन, क्रिसमस डे का विरोध करने के लिए तुलसी पूजन दिवस (Tulsi Pujan Divas) की शुरुआत की। आसाराम के अनुयायी सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट करके इसे प्रमोट कर रहे है। जिससे क्रिसमस के पास आते ही तुलसी पूजन दिवस ट्रेंड होने लगता है। आसाराम बापू के कहने पर ही हर वर्ष 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाने की शुरुआत हुई। बता दू की आसाराम बापू फिलहाल बलात्कार के एक मामले में जेल में बंद है!
विरोध की राजनीति-
• इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमने 25 दिसंबर को क्रिसमस डे मनाया या तुलसी पूजन दिवस। फर्क पड़ता है गलत धारणा और कुतर्क से! विरोध की राजनीति से!! जब हम किसी भी बात का विरोध करते है, तो हमारे मन में एक तरह की वैमनस्य की भावना, नफरत की भावना प्रबल होती है। क्रिसमस डे का विरोध करने से हमारे मन में ईसाइयों के प्रति नफरत की भावना पैदा होगी और ईसाइयों के मन में हिंदुओं के प्रति नफरत की भावना पैदा होगी। एक तरफ़ तो हम 'वसुधैव कुटुंबम' की बात करते है और दूसरी तरफ एक धर्म के लोगों के मन में दूसरे धर्म के लोगों के प्रति नफरत की भावना पैदा कर रहे है! क्या यह उचित है?
• क्रिसमस डे को तुलसी पूजन दिवस मनाने का एक भी वाजिब तर्क नहीं है सिवाय इसके कि क्रिसमस डे का विरोध करना है! क्यों करना है हमें क्रिसमस डे का विरोध? क्या ईसाइयों ने कभी दिवाली का विरोध किया है? यकीन मानिए यदि सोशल मीडिया की भ्रामक पोस्ट्स देख कर हिंदू क्रिसमस डे के दिन तुलसी पूजन दिवस मनाने लगेंंगे तो वह दिन दूर नहीं जब ईसाई दिवाली के दिन उनके धर्म का कोई पूजन दिवस मनाने लगेंगे। आगे चल कर कहीं ऐसा न हो कि हम 'जीसस के मरण' दिन को 'मिहिर पूजन दिवस' मनाने लगे! क्योंकि दोनों के मरने की असल तारीख इतिहासकारों को पता नहीं है। एकता कपूर को भी नहीं!
• सोशल मीडिया पर एक पोस्ट देखी थी, ''ना तुम ईसाई, न मैं ईसाई, फ़िर क्यों क्रिसमस की बधाई?" मैं कहना चाहती हूं कि मैं हिंदू हूं। लेकिन मैं मेरे पडोस में जो ईसाई परिवार रहता है उन्हें क्रिसमस की बधाई देती हूं और वे भी दिवाली के दिन मुझे बधाई देते है। दोनों पडौसियों के धर्म अलग-अलग होने से हमारे मन में एक-दूसरे के प्रति कोई वैमनस्य नहीं है। लेकिन यदि क्रिसमस के दिन तुलसी पूजन की परंपरा शुरू हुई तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे मन में एक-दूसरे के प्रति वैमनस्य की भावना पैदा होगी।
• सोचिए, क्रिसमस ट्री के विरोध में तुलसी का पौधा खड़ा करेंंगे तो भारतीय लोग भावनात्मक रूप से यकीनन तुलसी को ही महत्व देंगे। जबकि किसी भी धर्मशास्त्र, वेद, पुराण में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि 25 दिसंबर को तुलसी पूजन करना चाहिए। ये पूजन सिर्फ़ और सिर्फ़ क्रिसमस का विरोध करने के लिए किया जा रहा है।
• अच्छा हुआ दिन में सिर्फ़ 24 घंटे ही होते है। नहीं तो इस तकनीकी युग में लोग हर दिन दो त्यौहार मनाने लगेंंगे। क्रिसमस को तुलसी पूजन दिवस, वैलेंटाइन को मातृ-पितृ पूजन दिवस, बकरीद को बकरी पूजन दिवस और बैसाखी को विकलांग पूजन दिवस! ऑलिंपिक में पूजा करने के मामले में यदि गोल्ड मेडल दिया जाता तो यकीनन वो हम भारतीयों को ही मिलता! क्योंकि हम जितने देवी-देवताओं की पूजा करते है, उतने देवी-देवताओं की पूजा पूरे विश्व में कहीं नहीं की जाती! हम गंगा मैया की पूजा करते है...लेकिन असल में पूजा कर करके हमने गंगा मैया को इतना प्रदुषित कर दिया है कि गंगा की सफाई के लिए हमें करोड़ों रूपयों की योजनाये बनानी पड़ रहीं है फ़िर भी आज तक गंगा स्वच्छ नहीं हो पा रही है। विदेशी लोग नदियों की पूजा नहीं करते लेकिन यह कड़्वी सच्चाई है कि उन्हें नदियों को साफ़ करने के लिए एक भी योजना नहीं बनानी पड़ती। क्योंकि वे लोग नदियों में कोई भी कचरा या कारखानों का वेस्ट नहीं डालते।
• ये तस्वीर क्रिसमस के दिनों में बहुत सारे लोग शेयर कर रहे है। लेकिन ज़रा सोचिए कि जिस तरह हम ईसाइयों का पवित्र ड्रेस पहने बच्चों को जोकर कह कर उनका मजाक उड़ा रहे है कल को वो भी हमारे नन्हें बच्चों को कान्हा के रूप में देख कर उनको जोकर कह कर मजाक उडायेंगे तब क्या होगा? तब हमारी भावनाएं आहत होगी! होगी ना! तो फ़िर हम आज उनकी भावनाएं क्यों आहत कर रहे है?
• मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि हम लोगों को बदला लेने में सुकून क्यों मिलता है? मुझे एक फिल्म का राखी का डायलॉग याद आता है जिसमें वो कहती है कि ''मेरे करन-अर्जुन आएंगे...मेरे करन-अर्जुन आएंगे...'' क्यों आएंगे तो बदला लेने के लिए! सोचिए एक माँ ने अपने दो बेटों की परवरिश ही इस तरह से कि वे बड़े होकर बदला ले सके! बदला लेने से माँ की आत्मा को तो शांति मिल जाएगी लेकिन उन दो बच्चों का भविष्य क्या होगा? वे तो पूरी जिंदगी सिर्फ़ नफरत की आग में जलते रहे! नफरत की आग में जलते रहने से क्या उनकी खुद की जिंदगी नर्क नहीं बनी? नफरत की राजनीति करने से नुकसान हमारा ही होगा।
मानती हूं अंग्रेजों ने हम पर दो सौ साल तक राज किया। हमको गुलाम बना कर रखा। आज भी हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते इसलिए बदला लेने के लिए हम उनके त्यौहारों को हड़पना चाहते है। लेकिन जरा सोचिए, जिन अंग्रेजो ने हम पर अत्याचार किए वे तो कब के उपर चले गए। अब हम जिनका विरोध कर रहे है वे हमारे ही भारतवासी मतलब भाई है। क्योंकि हम ही कहते है न कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हम सब है भाई-भाई। फिर हम हमारे ही भाईयों की भावनाओं को आहत क्यों करना चाहते है?
हम भूल जाते है 99.99 प्रतिशत हिंदू हर दिन अपने घर में तुलसी की पूजा करते है! जब हिंदू साल के 365 दिन बिना नागा तुलसी की पूजा करते ही है तो अलग से वो भी 25 दिसंबर को ही तुलसी पूजन क्यों?
• अलग-अलग धर्मों के लोग अपनी-अपनी मान्यता अनुसार जश्न मनाते है तो इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे जब अल्पसंख्यक लोग तुलसी का पौधा लगाना बंद कर देंगे या उन्होंने यदि तुलसी के पौधे की बराबर देखभाल नहीं की तो तुलसी (हमारी देवी) की देखभाल न करने का दोष उन पर थोप कर उन पर हमले हो सकते है। मतलब साफ़ है कि पवित्र तुलसी अगली गाय बनने के लिए पूरी तरह तैयार है!!
• एक पोस्ट ऐसी भी देखी कि प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब लगाने की बजाए 24 घंटे ऑक्सिजन देनेवाली माता तुलसी का पूजन करे! ये पोस्ट देख कर कोई भी तुलसी पूजन का समर्थन करेगा। लेकिन यदि हम गहराई से सोचे तो क्या हम हिंदू हमारे त्योहारों पर, जन्मदिन या सालगिरह पर प्लास्टिक के फूलों से सजावट नहीं करते? करते है न! फ़िर यदि इसाइयों ने की तो क्या बिगड़ गया?
यदि हम ऐसी तस्वीरें देख कर जिस क्रिसमस के पेड़ की ईसाई लोग पूजा करते है उसे काटेंगे तो सोचिए कि जिस तुलसी के पौधे की हिंदू पूजा करते है उसे ईसाई लोग नहीं काटेंगे?
माना कि तुलसी का पौधा 24 घंटे ऑक्सीजन देता है, पर्यावरण के दृष्टिकोण से वो बहुत अहम भी है लेकिन हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि 25 दिसंबर को तुलसी पूजन करने से पर्यावरण को रत्ती भर भी फायदा नहीं पहुंचने वाला है। क्योंकि वैसे भी हम हर दिन तुलसी की पूजा करते ही है!
लेकिन यदि हिंदूओं ने सिर्फ़ क्रिसमस का विरोध करने के लिए तुलसी पूजन करना आरंभ किया तो धीरे धीरे जो तुलसी अभी सभी धर्मों की है वो सिर्फ़ हिंदुओं की होकर रह जाएगी! अभी ईसाई लोग तुलसी की पूजा नहीं करते है लेकिन तुलसी के औषधीय गुणों के कारण वे भी तुलसी अपने घर में लगाते है। लेकिन विरोध की राजनीति के कारण न्यूटन के सिद्धांत के अनुसार क्रिया की प्रतिक्रिया तो होगी ना! सोचिए यदि ईसाइयों ने अपने घरों में तुलसी लगाना बंद कर दिया तो हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा की नहीं? तुलसी कम घरों में लगेगी तो पर्यावरण कम शुुध्द होगा। इससे समस्त प्राणीजगत का नुकसान होगा कि नहीं?
असलियत यहीं है कि तुलसी को अपने गुणों का प्रसार करने की आवश्यकता है ही नहीं। अर्थहीन सक्रियता से उसके गुण कम नहीं होंगे। आज तुलसी के गुणों से हम भारतीय भली-भांति परिचित है। इसलिए सोशल मीड़िया पर कितनी भी भ्रामक पोस्ट आए उन पर आंख मुंद कर विश्वास करने से पहले दो मिनट विचार करिए फ़िर उस पर अमल करें। यदि आप सोशल मीडिया कि हर बात को मानते रहे तो जानेंगे कब? जब जानने का अवसर मिलेगा तब तक भावनाएं आहत होना शुरू हो जाएगी। इसलिए पहले जानो फ़िर मानो!
अत: जागो देशवासियों जागो...फूट डालो और राज करो की कूटनीति अंग्रेजों की थी। वो ही कूटनीति हमारे साधु-संत अपना रहे है। इसलिए पहले जानो फ़िर मानो!
जरूरी नहीं है कि आप मेरी बात से सहमत ही हो। मेरा कहना इतना ही है कि कोई भी बात मानने से पहले उसे जानने की कोशिश जरूर करनी चाहिए ताकि भविष्य में हमें पछताना न पड़े।
आपके विचार ठीक हैं। मुझे मेरे अन्य धर्मावलम्बी मित्र दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं जबकि मैं एवं मेरी धर्मपत्नी अपने मुस्लिम मित्रों को ईद की, ईसाई मित्रों को क्रिसमस की तथा सिख मित्रों को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं। हमने अपने निवास में सदा तुलसी का पौधा लगाकर रखा किन्तु जब हम एक ऐसे घर में रहे जिसके साथ एक लॉन (बाग़ीचा) भी था तो उसमें हमने क्रिसमस ट्री भी लगाया। संकीर्ण मनोवृत्ति से समाज का केवल अहित ही हो सकता है। अतः उदार दृष्टिकोण ही उचित है।
जवाब देंहटाएंजितेंद्र भाई, बहुत दिनों बाद आपको ब्लॉग पर देख कर खुशी हुई। आपने सही कहा कि संकीर्ण मनोवृत्ति से समाज का केवल अहित ही हो सकता है। यही बात हम जैसे ब्लॉगर्स को लोगो को समझानी है कि अब फुट डालो और राज करो कि राजनीति नहीं चलेगी।
हटाएंआपने हर वो बात और सवाल किये जो मेरे मन में दो तीन साल से हर बार क्रिसमस के आते सोशल मीडिया पर तरह तरह की पोस्ट देख कर उठते! दी आपने हर वो सवाल प्रभावी ढंग से खड़े किए जिनकी सख्त जरूरत है! शायद ये लेख पढ़कर कुछ लोगों के दिमाग़ की बत्ती जल जाए! अगर ये लेख अखबार में प्रकाशित हो जाता तो बहुत लोगों को जागरुक किया जा सकता था खैर, मै खुद इस पर लेख लिखना चाहती थी पर व्यस्तता और कुछ कारणों के के चलते लिख नही पाई पर अपने सभी लोगों के साथ साझा करके उनके दिमाग़ में भरे कचरे को निकालने की इक छोटी सी कोशिश जरूर करूंगी! किसी को बुरा लग सकता तो किसी को बहुत अच्छा भी! इसलिए जो इस लेख के समान मत रखते उन्हें इसलिए की वे दूसरे तक पहुंचा सके और जो नहीं रखते उन्हें तो करना ही है... ! इस महत्वपूर्ण और बहुत ही सार्थक लेख के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद दी🙏ऐसा लग रहा है जैसे आपने मेरे हिस्से का काम कर दिया हो..💜❤
जवाब देंहटाएंमनीषा, मेरी कोशिश यहीं है मेरे देशवासी बिना वजह आपस मे न लड़े। मैं वक आम इंसान हूं... मुझे पता है मेरे लेख लिखने से क्रिसमस का विरोध करने वाले लोग क्रिसमस का विरोध करना नहीं छोंड़ेगे। लेकिन मुझे इतना पूरा विश्वास है कि यदि उन्होंने पूरा लेख पढ़ा तो कम से कम कुछ लोग ही सही विरोध करने से पहले सोचेंगे जरूर। और मैं बस यहीं चाहती हूं कि लोगो के दिमाग की बत्ती जले।
हटाएंइतनी सविस्तर टिप्पणी के लिए धन्यवाद मनीषा।
बहुत ही सराहनीय और विचारणीय विषय उठाया है ज्योति जी आपने ।
जवाब देंहटाएंहमारी संस्कृति मूल्यों को बढ़ाने के लिए और भी साकारात्मक रास्ते हैं । मेरा मानना है कि हमें कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिसे किसी भी धर्मावलंबी को चोट पहुंचे ।
बिल्कुल सही कहा आपने ज्योति जी धर्म निरपेक्षता जरूरी है हमें सभी धर्मों का आदर करते हुए उनके रीति रिवाजों और त्योहारों का भी सम्मान करना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक एवं सार्थक लेख ।