इस बार गणपति उत्सव पर हम प्रण करें कि गणेश जी के कई गुणों में से कम से कम एक गुण तो भी हम अंगीकार करें तभी हमारा गणेशोत्सव मनाना सार्थक रहेगा।
सभी देवों में प्रथम पूजनीय गणेश जी से, उनके स्वरूप से हम बहुत कुछ सीख सकते है। गणेश जी धर्म, जाति, मजहब और देश की सीमाओं से भी परे है। सिर्फ़ हिंदू ही नहीं तो मुस्लिम परिवार भी अपने घर गणपति विराजमान करते है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक समेत कई राज्यों में गणपति उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
आइए, इस बार गणपति उत्सव मनाने के साथ-साथ हम प्रण करें कि गणेश जी के कई गुणों में से कम से कम एक गुण तो भी हम अंगीकार करें तभी हमारा गणेशोत्सव मनाना सार्थक रहेगा। तो आइए जानते है कि हम गणेश जी से क्या-क्या सीख सकते है-
• माता-पिता की सेवा करना और मिले हुए संसाधनों में ही खुश रहना-
आपको वो कहानी तो याद होगी जिसमें गणेश जी पृथ्वी की परिक्रमा करने की बजाय अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा करते है। जब पृथ्वी की परिक्रमा करनी थी तब गणेश जी सोच में पड़ गए क्योंकि उनका वाहन तो चुहा था। अब चुहे पर बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा करना तो संभव नहीं था! तब उन्होंने अपने बुद्धि कौशल का उपयोग करते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करने की बजाय अपने माता-पिता की परिक्रमा की और विजेता घोषित हुए। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें संसाधनों की कमी का रोना न रोकर अपनी बुद्धिमत्ता से सीमित संसाधनों में कामयाबी हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए। दूसरे, जीवन में माता-पिता का स्थान सबसे ऊपर है। हमें उनकी सेवा करनी चाहिए।
• अपने आप से प्रेम करना-
गणेश जी का सिर हाथी का होने के बावजूद उनके मन में कभी भी अपने स्वरूप को लेकर हीन भावना नहीं आई। इस बात से हमें यह सीख मिलती है कि हम मोटे है, पतले है, काले है या गोरे है इससे हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए कि हम जैसे भी है सर्वश्रेष्ठ है। हमें खुद से प्यार करना सीखना चाहिए। यकीनन इससे हमारी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आएगा।
• हर हालात में जिम्मेदारी को निभाकर चीजों का सदुपयोग करना-
महर्षि वेदव्यास द्वारा महाभारत की रचना करते वक्त महर्षि जी ने बोलना शुरू किया और गणेश जी ने लिखना। लेकिन बीच में ही उनकी कलम टूट गई। उस वक्त दूसरा कोई होता तो रूक जाता। लेकिन गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़ा और उसकी कलम बनाकर लिखना चालू रखा। इससे हमें यह सीख मिलती है कि जब भी हमें कोई जिम्मेदारी सौंपी जाती है तो किसी भी तरह का विघ्न आने पर रुकना नहीं चाहिए। क्योंकि हमारी इज्जत हमारे काम से ही होती है। जिस तरह उन्होंने टूटे हुए दांत को कलम बनाया ठीक उसी तरह हमें भी चीजों का सदुपयोग करना सीखना चाहिए।
• अपने आत्मसम्मान की रक्षा करना-
जब भगवान विष्णु जी के शादी की बारात में गणेश जी को नहीं ले जाया गया तब नारद मुनि के कहने पर उन्होंने चूहों को आदेश दिया कि बारात के रास्ते पर गड्ढे कर दे। चूहों के गड्ढे करने पर रथ का पहिया जमीन में धंस गया। तब जिस व्यक्ति को रथ का पहिया ठीक करने बुलाया गया उसने सर्वप्रथम 'श्री गणेशाय नम:' बोल कर गणेश जी नाम लिया और कहा कि शायद आपने गणेश जी का स्मरण नहीं किया इसलिए ही पहिया जमीन में धंसा है। तभी से किसी भी कार्य के शुरू करने से पहले गणेश जी स्मरण किया जाता है। जिस तरह गणेश जी ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा की ठीक उसी तरह हमें भी अपने आत्मसम्मान की रक्षा करनी चाहिए।
• कर्तव्यपरायणता-
एक बार माता पार्वती जी ने गणेश जी को जिम्मेदारी दी कि मैं स्नान करने जा रहीं हू किसी को भी अंदर मत आने देना। गणेश जी बाहर पहरा देने लगे। थोड़ी देर बाद भगवान शिव आए और अंदर जाने लगे। गणेश जी ने शिव जी को अंदर जाने से रोका। दोनों में काफी बहस हुई। तब शिव जी ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर काट दिया। मतलब अपनी जान की बाजी लगा कर भी उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन किया। हमें भी गणेश जी की तरह अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
उपरोक्त बातें तो हम उनके व्यवहार से सीख सकते है। लेकिन उनके शरीर के कई अंगों से भी हम बहुत कुछ सीख सकते है। आइए जानते है कि गणेश जी के कौन से अंग से हम क्या सीख सकते है-
• बड़ा सिर-
अंग विज्ञान के अनुसार बड़े सिर वाले व्यक्ति नेतृत्व करने में योग्य होते है। गणेश जी का बड़ा सिर हमें यह ज्ञान देता है कि हमें अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए।
• छोटी आंखें-
गणेश जी की छोटी आंखें हमें यह सीख देती है कि हर चीज को सूक्ष्मता से देख परख कर ही कोई निर्णय लेना चाहिए जिससे व्यक्ति को कोई धोखा नहीं दे सकता।
• सूप जैसे बड़े कान-
गणेश जी के कान सूप जैसे बड़े है इसलिए उन्हें गजकर्ण एवं सूपकर्ण भी कहा जाता है। बड़े कान हमेशा चौकन्ना रहने का संदेश देते है। सूप जैसे कानों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जिस तरह सूप बुरी चिजों को छांटकर अलग कर देता है, उसी तरह जो भी बुरी बातेंं हमारे कानों तक पहुंचती है, उन्हें बाहर ही छोड़ देना चाहिए। बुरी बातों को अपने अंदर नहीं आने देना चाहिए।
• लंबी सूंड-
हमेशा हिलती डुलती रहने वाली गणेश जी की सूंड, हमें जीवन में हर पल सक्रिय रहने की सीख देती है। जो व्यक्ति सक्रिय रहता है उसे कभी दुख और गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता।
• बड़ा पेट-
गणेश जी का बड़ा पेट हमें यह ज्ञान देता है कि भोजन के साथ-साथ हमें हर अच्छी और बुरी बातों को भी पचाना सिखना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करता है वह हमेशा खुशहाल रहता है।
बहुत बढ़िया लेख सखी
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 1.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4539 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिलबग भाई।
हटाएंवाह! गणेश जी से सीखने योग्य कितना कुछ है
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर सीख देती बातें। हाँ, आत्मसम्मान वाली बात से मैं इतना सहमत नहीं हूँ लेकिन बाकी चीजें सटीक हैं।
जवाब देंहटाएंगणेश जी से सुंदर सीख...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शिक्षाप्रद लेख
वाह!!!