सच्चे दिल से माफ़ी मांगने और देने से रिश्तों में आई कड़वाहट दूर होकर रिश्ते सुधरने लगते है। जानिए, एक माँ बेटे के रिश्ते में आई कड़वाहट कैसे दूर हुई...
शिल्पा के पति को गुजरे दो ही महीने हुए थे। लेकिन दो महीने में ही उसके बेटा और बहू का उसके प्रति रवैया एकदम बदल गया था। पहले जो बेटा-बहू मम्मी-मम्मी कहते नहीं थकते थे, हर बात में उसकी राय लेते थे, उसका ख्याल रखते थे, पति के जाने के बाद उन्हीं बेटा-बहू के लिए वो सिर्फ़ एक नौकरानी भर रह गई थी। नौकरानी और वह भी मुफ्त की।
वे लोग शिल्पा से काम तो दुनियाभर का करवा लेते और बदले में देते बचा खुचा बासी खाना। बहू तो जब देखो तब ताने ही मारती रहती। जब खुद का जाया बेटा ही ताने मारने में पीछे नहीं रहता तो बहू को क्या दोष दे! शिल्पा को कई बार लगता कि घर छोड़ कर कहीं चली जाऊ। लेकिन 63 साल की उम्र में जाए तो कहां जाए? यहीं सोच कर बेटा-बहू के सभी अत्याचार चुपचाप सहन कर रहीं थी।
आज अनिल (बेटा) ने बटर स्कॉच आइसक्रीम लाई। 6 साल के सुदीप (पोता) को पता था कि बटर स्कॉच आइसक्रीम दादी को बहुत पसंद है। दोपहर का वक्त था। शिल्पा गेहूँ साफ कर रहीं थी। सुदिप आइसक्रीम लेकर दादी के पास आता है। और दादी को आइसक्रीम खाने को कहता है। शिल्पा मना कर देती है।
"खाओ न दादी माँ। आपको तो बटर स्कॉच आइसक्रीम बहुत पसंद है।"
"नहीं बेटा। अब मुझे आइसक्रीम ही पसंद नहीं है। तुम खाओ।"
"दादी माँ, मुझे पता है कि मम्मी पापा आपको अच्छा खाने नहीं देते। और खूब डांटते भी है।"
"नहीं बेटा। ऐसी कोई बात नहीं है। मैं अब बूढ़ी हो गई हूँ न। इसलिए अब मेरे से काम बराबर होता नहीं। मेरे से गलतियां हो जाती है। तुमसे गलती होती है, तो मम्मी पापा तुम्हें डांटते है न। बस वैसे ही मुझ से गलती होने पर मुझे डांट देते है। रहा आइसक्रीम का सवाल तो इस उम्र में आइसक्रीम खाने से मुझे खांसी हो जाएगी इसलिए वो मेरे लिए आइसक्रीम नहीं लाये।"
"दादी माँ, सिर्फ़ एक चम्मच आइसक्रीम खाने से तो आपको खांसी नहीं होगी न। प्लीज एक चम्मच आईसक्रीम खालो न"
सुदीप इतनी प्यार से बोल रहा था तो शिल्पा मना नहीं कर पाई। लेकिन वो मन ही मन बहुत डर रहीं थी कि यदि बेटा या बहू ने मुझे आइसक्रीम खाते हुए देख लिया तो घर में तूफान आ जाएगा। आखिर जिसका डर था वही हुआ।जैसे ही सुदीप शिल्पा को आइसक्रीम खिलाने लगा उतने में अनिल ने देख लिया।
"आपको इतनी भी समझ नहीं कि बच्चों की चीजें नहीं खानी चाहिए। आपने बच्चों को खिलाना चाहिए कि बच्चों की चीजें खुद ही खानी चाहिए? मैं ने बच्चों के लिए आइसक्रीम लाई थी।"
"वो सुदीप ने जबरदस्ती..." अपने आंसुओं को किसी तरह रोक कर इतना ही कह पाई शिल्पा।
"याद रखना आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए!"
आवाज सुनकर अनिता (शिल्पा की बहू) भी आ जाती है। वो भी दो-चार जली-कटी सुना देती है। सुदीप के सामने हुए इस अपमान से शिल्पा अपने आपको बहुत अपमानित महसूस करती है। सुदीप भी डर जाता है।
गेहूँ साफ करने के बाद वो अपने कमरे में आ जाती है। वो सोचने लगती है कि ऐसा क्या करूँ जिससे मेरी गलती का प्रायश्चित हो। सचमुच मुझे बच्चों की आइसक्रीम नहीं खाना चाहिए थी। क्योंकि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन सुदीप की नजरों में अपने पापा की कीमत कम नहीं होना चाहिए। लेकिन गलती तो हो गई। अब क्या करूं? हे राम मुझे कोई रास्ता दिखाओ...मन ही मन ऐसी प्रार्थना करते हुए वो अपनी राम नाम लिखने वाली कॉपी ले कर बैठ जाती है।
वो ऐसा सोच रहीं थी कि उसे दीपा (उसकी पोती) की आवाज सुनाई देती है। वो सुदीप से कहती है, "भैया, कल मेरे से एक वाक्य लिखने में गलती हो गई थी। तो मैडम ने वो वाक्य मुझे 50 बार लिखने बोला है।"
शिल्पा बहुत देर तक कॉपी में कुछ लिखती है और लिखते लिखते ही सो जाती है। थोड़ी देर बाद बाहर से आकर अनिल माँ को आवाज लगाता है।
"माँ...माँ...?" जबाब अनिता देती है।
"सोई होगी अपने कमरे में! सोने के सिवा काम ही क्या है बुढ़िया को!"
अनिल माँ के कमरे में जाता है तो देखता है कि माँ सोई हुई है। पास ही में माँ की राम नाम लिखने वाली कॉपी खुली हुई रखी थी। शायद शिल्पा लिखते लिखते थक कर सो गई होगी। अचानक अनिल की नजर कॉपी पर जाती है तो उसे दिखता है कि कॉपी में राम नाम की जगह और ही कुछ लिखा हुआ है। वो पढ़ने लगता है। शिल्पा ने लिखा था, "अनिल बेटा मुझे माफ़ कर दे। मैं आगे से कभी भी आइसक्रीम नहीं खाऊँगी!" यहीं दो वाक्य कई बार लिखें हुए थे।
न जाने क्या सोच कर अनिल गिनती लगाता है, तो उसे पता चलता है कि ये दो वाक्य पूरे 50 बार लिखे हुए थे। अचानक उसे उसका बचपन याद आ जाता है कि माँ कैसे कई बार उससे गलती होने पर भी पापा की डांट से उसे बचाती थी। कैसे उसे गलती सुधारने कहती थी। माँ हमेशा कहती थी कि यदि हमसे कोई गलती हुई है तो उस गलती को कबूल करने की हिम्मत हम में होनी चाहिए। और हमें उस गलती के लिए प्रायश्चित भी करना चाहिए। यह सब याद आते ही अनिल की आंखों से आंसू बहने लगते है। वो राम नाम लिखने वाली कॉपी में कुछ लिखता है।
लिखना होने पर जैसे ही वो जाने लगता है उतने में शिल्पा की नींद खुल जाती है।
"अनिल तुम? कुछ काम था क्या बेटा?"
अनिल माँ के हाथ में राम नाम लिखने वाली कॉपी दे कर फूट-फूट कर रोने लगता है। शिल्पा कॉपी देखती है तो उसमें अनिल ने लिखा था, "माँ, मुझे माफ़ कर दो। मैं ने आपसे बहुत गलत तरीके से बात की है। आगे से मुझ से ये गलती कभी नहीं होगी।"
ये एक ही बात अनिल ने भी कई बार लिखी थी। शिल्पा ने गिनती की तो पूरे 50 बार! दो महीने से माँ बेटे के रिश्ते में जो खटास आई हुई थी, वो खटास गलती पर प्रायश्चित करने से, माफ़ी मांगने से अचानक मिठास में बदल गई। यदि सच्चे दिल से माफी मांगी और दी जाए तो कोई भी रिश्ता अटूट ही बना रह सकता है!!
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०७-०१ -२०२२ ) को
'कह तो दे कि वो सुन रहा है'(चर्चा अंक-४३०२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
हटाएंबहुत सुन्दर बहुत मर्म स्पर्शी
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी एक रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नववर्ष मंगलमय हो।
मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, श्वेता दी।
हटाएंबहुत ही मार्मिक वही देश पर सी लघु कथा आपने बिल्कुल सही कहा अगर सच्चे दिल से माफी मांगी जाए तो रिश्ते में आई हुई कितनी भी खटास मिठास में बदल जाती है!
जवाब देंहटाएंबशर्ते वही गलती दोबारा ना दोहराई जाए नहीं तो माफी की भी कोई कीमत नहीं रह जाती है माफी (Sorry) एक शब्द मात्र बनकर रह जाता है!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक कहानी आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रिय ज्योति जी
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली कहानी, वाह ज्योति जी
जवाब देंहटाएंआज के समाज में कुछ ऐसी भी औलादे हैं, जो मां बाप को खाने के लिए भी मोहताज कर देती हैं, यथार्थ पर चोट करती आपकी ये कहानी समाज में ऐसे ही औलाद की मानसिकता पर कुठाराघात है,
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंसादर
वाह मंत्रमुग्ध करने वाली अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ह्रदयस्पर्शी कहानी
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी कहानी...
जवाब देंहटाएंकाश बच्चे बूढ़े माँ बाप की कदर करना सीखें।