जब सांप दूध पी ही नहीं सकते, सांपों के लिए दूध जहर समान है, दूध पीकर वे तड़प-तड़प कर मरते है, तो नागपंचमी के दिन उन्हें दूध क्यों पिलाया जाता है?
राजस्थानी समाज के लोग सावन (Sawan) महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी (Naag Panchmi) मनाते है, तो महाराष्ट्रीयन लोग सावन महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी मनाते है।
सदियों से नागपंचमी के दिन सांपों को दूध पिलाने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि दूध पिलाने से नाग देवता प्रसन्न होते है, घर में अन्न-धन का भंडार रहता है। लेकिन अफसोस कि लोग इस वास्तविकता से अनजान है कि सांप दूध पी ही नहीं सकते। दूध उनके लिए जहर समान है। तो सवाल यह आता है कि जब सांपों के लिए दूध जहर समान है, तो उन्हें दूध क्यों पिलाया जाता है?
नाग पंचमी के दिन सांप को दूध क्यों पिलाते है?
पुरानी मान्यता के अनुसार एक बार शाप के कारण नागलोग जलने लगा था तब नागो पर दूध डाल कर उनकी जलन को शांत किया गया था। उस दिन सावन की पंचमी तिथी थी। तभी से पंचमी तिथी पर नागो को दूध से नहलाने की परंपरा शुरु हुई थी। इंसान में पुण्य कमाने की लालसा बहुत ही ज्यादा है। पुण्य कमाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है। सांपो को दूध पिलाने का मामला इसी बात का सशक्त उदहरण है। इंसान ने सोचा जब सांपो को दूध से नहलाने से पुण्य मिलता है, तो उन्हें दूध पिलाने से और ज्यादा पुण्य मिलेगा। अपने अधुरे ज्ञान की वजह से ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं था कि सांप दूध नहीं पीते। हालांकि सपेरों को यह बात समझ में आ गई थी। लेकिन अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए उन्होंने लोगों की पुण्य कमाने की लालसा और अज्ञानता का लाभ उठा कर अपना धंधा चलाने के लिए इस बात में चुप्पी साध ली। इस तरह नाग पंचमी के दिन सांप को दूध पिलाने की परंपरा शुरु हो गई, जो आज भी जारी है।
कई लोग नाग पंचमी पर कालसर्प दोष का पूजन करते है और नाग की दहनादि क्रिया करते है। जन्मकुंडली में एक दोष होता है, जिसे सर्प दोष होता है। वास्तव में सर्पदोष का सांपों से कोई संबंध ही नहीं है। कालसर्प दोष राहू-केतु से संबंधित दोष है। राहु का मुख सर्प समान होने से इसे सर्प दोष या कालसर्प दोष कहते है। इसलिए कालसर्प दोष के चक्कर में कभी भी सांप को प्रताडित नहीं करना चाहिए।
सांपों के लिए दूध जहर समान क्यों है?
दूध तो बहुत दूर की बात है, सांप तो पानी भी बहुत कम पीते है। सांप उनकी पानी की जरुरत अपने शिकार के शरीर में उपस्थित पानी से करता है। सांप कोल्ड ब्लडेड रेप्टाइल वर्ग का जीव है, जो मांसाहारी होता है। सांप मेंढक, चुहा, पक्षियों के अंडे और अन्य छोटे-छोटे जीवों को खाकर अपना पेट भरते है। दूध सांप का प्राकृतिक भोजन नही है। सांप के आमाशय या आंत में दूध पचा सकने वाले रसायन का निर्माण ही नहीं होता। अत: वे दूध को पचा ही नहीं सकते। कोई भी प्राणी जिस भोजन का पाचन नहीं कर सकता उसका वो सेवन भी नहीं करता। यदि वो सेवन करना चाहे भी तो सांपों के गाल लचीले न होने से वह तरल पदार्थों को मुंह में खींच नहीं सकता। निचले जबड़े से जुड़ी बहुत सी त्वचा की सिकुडन स्पंज की तरह पानी को शोषित कर मुंह में डालती है। लेकिन दूध पानी की तुलना में गाढ़ा होने से वो दूध नहीं पी पाते। यदि सांप को जबरदस्ती दूध पिलाया जाएं तो उनकी आंत में संक्रमण होकर दूध उनके लिए जहर समान कार्य करता है। दूध पीने के कुछ समय बाद सांप की मृत्यु हो जाती है। दूध पीने के कितने समय बाद सांप की मृत्यु होगी यह समय तय नहीं है। अलग-अलग सांपों के लिए यह समय अलग-अलग होता है।
नाग पंचमी को सांप दूध क्यों पीते है?
लोगों के अंधविश्वास का फायदा उठा कर अपना धंधा चलाने के लिए सपेरे नाग पंचमी के कई दिन पुर्व से सांपों को भुखा रखते है, ताकि वो नाग पंचमी के दिन दूध पी ले। बहुत दिनों से भुखा-प्यासा सांप ‘मरता क्या न करता’ की तर्ज पर थोड़ा सा दूध पी लेता है लेकिन तुरंत ही अपना मुंह हटा लेता है। लेकिन सपेरे को तो आज के दिन उन्हें बार-बार दूध पिलाना है। जब सपेरे दूसरी-तीसरी बार दूध पिलाते है, तो वे सांप की सांस नली पर दबाव डालते है जिसके कारण उनकी सांस नली बंद हो जाती है। उनके फेफडे का ऑक्सीजन समाप्त होने लगता है। जब सपेरा सांप के मुंह को दूध के पात्र में डालता है तो सांस खिंचने के साथ थोड़ा सा दूध उसके फेफड़ों में भर जाता है। दूध का पात्र थोड़ा सा खाली हो जाता है और हम लोग खुश हो जाते है कि सांप ने दूध पी लिया, हमें नाग देवता का आशिर्वाद मिल गया! लेकिन वास्तव में हम नाग देवता को मौत की मुंह में धकेलते है और वो भी हर्षित मन से!!
इसका मतलब साफ़ है कि हम सांपों को दूध नहीं एक तरह का जहर ही पिलाते है जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। अत: अब आप खुद ही निर्णय लीजिए कि नाग पंचमी को हमें सांपों को दूध पिलाना चाहिए या नहीं?
निवेदन-
इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से मैं आप सभी सुधी पाठकों से नम्र निवेदन करती हूं कि जब हम सभी देवी-देवताओं और नवग्रहों की पूजा प्रतिकों के माध्यम से करते है तो हम नाग देवता की पूजा भी प्रतिक के माध्यम से क्यों नहीं कर सकते? हमें धातु से निर्मित या फिर चित्र के माध्यम से अपनीं पूजा अपने देवता को समर्पित करनी चाहिये। ईश्वर नें प्रकृति हम सब के लिये बनायी है। हमें पुण्य प्राप्ति हेतु किसी भी जीव की हत्या करने का अधिकार नहीं है। हमें यह बात घर-घर पहुंचानी होगी कि हम सब संकल्प लेंगे कि आगामी ‘नाग पंचमी’ से हम नाग देवता की पूजा प्रतिकात्मक रुप से ही करेंगे और अपनी पूजा के लिए किसी भी नाग की मृत्यु का कारण नहीं बनेंगे।
दोस्तों, यदि आप मेरी बात से सहमत है, तो इस ब्लॉग पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि लोगों को इस सच्चाई का पता चले कि सांप के लिए दूध जहर समान होता है और हमें सांप को दूध नहीं पिलाना चाहिए।
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Very nice Jankari mili so Thanks dodi
जवाब देंहटाएंन जाने ऐसी कितनी ही मान्यताएँ हैं समाज में ...
जवाब देंहटाएंकभी न कभी इनका ख़ात्मा होगा ...
सही कहा आपने,मैम। वक्त के साथ प्रथाओं को इस तरह बदलने की जरूरत है कि किसी को नुकसान न हो। यह जानकारी काफी लोगों के काम आएगी।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिलाबागसिंह जी।
हटाएंबहुत उपयोगी और विचारणीय आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय लेख लिखा है आपने आदरणीय ज्योति दी.
जवाब देंहटाएंअज्ञानता के चलते इंसान क्या कुछ नहीं कर गुज़रता है.समाज को चेताता बेहतरीन लेख .
सादर
इसी तरह की दसियों मान्यताएं चली आ रही हैं जो अपना मूल रूप और उद्देश्य खो चुकी हैं पर निभाई जाती जा रही हैं बिना सोचे-समझे व औचित्य जाने
जवाब देंहटाएंSahi baat hai Bharat jaisa desh jaha har riwaz ke piche ek riti jak ek reason hai ek acha karan hota hai, Jiska hum sbhi ko samman krna chahiye wha kuch aise examples bhi hai Jinka sabhi bhartiyo ko tyaag karna hoga. Snakes ka lungs me milk atak jati hai. aur intestine bhi Kharab ho jati hai isse. People should understand this. But shuruaat hum sbhi ko karni hogi batakr, Samjhakr, parityga k.
जवाब देंहटाएंBilkul sahi kaha aapane.
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