मदर्स डे आ रहा हैं। मैं सोच रही हूं कि इस बार मम्मी को कुछ स्पेशल गिफ्ट दिया जाएं...कुछ ऐसा जिससे मम्मी का जीवन ख़ुशियों से भर जाएं...'' शिल्पा ने कहा। जानिए शिल्पा ने ऐसा कौन सा अनुठा गिफ्ट दिया अपनी मम्मी को कि उनका जीवन ख़ुशियों से भर गया।
''दिपक, मदर्स डे आ रहा हैं। मैं सोच रही हूं कि इस बार मम्मी को कुछ अनुठा गिफ्ट दिया जाएं...कुछ ऐसा जिससे मम्मी का जीवन ख़ुशियों से भर जाएं...'' शिल्पा ने कहा।
''लेकिन ऐसा कौन सा गिफ्ट देंगे हम? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं।''
''पापा गए तब से मम्मी कितनी उदास रहने लगी हैं। हम दोनों को वो माँ के साथ-साथ बाप का भी प्यार दे रही हैं। उन्होंने कभी भी हमें पापा की कमी महसूस नहीं होने दी। वो अपने सारे फर्ज बराबर पूरे कर रही हैं। लेकिन मुझे लगता हैं कि हम अपना फर्ज निभाने में थोड़े पीछे रह गए हैं।''
''दीदी, आप ऐसा कैसे कह रही हैं। हम भी तो मम्मी को पूरा मान-सम्मान दे रहे हैं। जैसा वो चाहती हैं, हम वैसा ही करते हैं।''
''लेकिन हम उनका दुख कम हो इसके लिए कोई कोशिश भी नहीं कर रहें हैं।''
''मैं आपका मतलब समझा नहीं।''
''हमें उनका अकेलापन कैसे दूर हो ये सोचना चाहिए। मैं अपनी नौकरी में और तू अपनी पढ़ाई में इतना व्यस्त रहते हैं कि चाहकर भी मम्मी को ज्यादा समय नहीं दे पाते। मम्मी दिन भर चकरघिन्नी की तरह काम करती रहती हैं ताकि उन्हें अकेलापन महसूस न हो।''
''हम कर ही क्या सकते हैं दीदी? पापा को तो वापस नहीं ला सकते!''
''नए पापा तो ला सकते हैं!''
''ये क्या कह रही हो दीदी? आप होश में तो हो? 55 साल की उम्र में शादी?''
''उम्र बढ़ जाएं तो ख़ुशी का, प्रेम का हक नहीं छिन जाता। इंसान किसी भी उम्र में दूसरी शादी कर सकता हैं।''
''मैं मेरे पापा की जगह दूसरे किसी पुरुष को नहीं देख सकता!''
''क्यों नहीं देख सकते? जब ताऊजी की बेटी अमिता की मृत्यु हो गई थी तब मम्मी ने ही आगे होकर जीजाजी की दूसरी शादी करवाई थी। कैसे देखा होगा उन्होंने बेटी की जगह किसी दूसरी महिला को? क्या तुमने कभी सोचा कि तब ताऊजी-ताईजी और मम्मी-पापा ने कितना बड़ा दिल किया होगा?''
''वो बात अलग हैं। जीजाजी की ख़ुशी के लिए और बच्चों के लालन-पालन हेतु ये तो करना ही पड़ता हैं।''
''माँ-बाप ने क्या बच्चों की खुशी के लिए सोचने का ठेका ले रखा हैं? सब फर्ज सिर्फ़ माँ-बाप के ही होते हैं? बच्चों के कोई फर्ज नहीं होते? बच्चों के जिंदगी में प्रेम न हो तो ये बड़े दुख की बात हैं, लेकिन माँ की जिंदगी में प्रेम नहीं हैं, ये हम कभी क्यों नहीं सोच पाते? मम्मी ने कभी अपने लिए कुछ नहीं चाहा, लेकिन क्या हम उनके लिए कुछ नहीं चाह सकते? वो हमें निस्वार्थ भाव से प्रेम करती हैं, क्या हम कभी उनका प्रेम लौटा पाते हैं? क्या ये हमारा फर्ज नहीं हैं कि हम ये सोचे कि मम्मी ये पूरी जिंदगी अकेले कैसे काटेगी? प्यार से इतना खाली जीवन, इतना बंजर दिल होने पर भी हमारे लिए इतना सारा प्यार कैसे जुटा पाती होगी वो? हम ये क्यों नहीं सोच पाते कि माँ, सिर्फ माँ नहीं हैं; एक औरत भी हैं और इंसान भी। सुख-दुख, अकेलापन उन्हें भी महसूस होता होगा। हमसे बढ़कर संसार में उनके लिए कुछ नहीं हैं। लेकिन अब हम बड़े हो गए हैं। अत: ये हमारा कर्तव्य हैं कि हम ये सोचे कि हमारी मम्मी को भी हक हैं जिंदगी में वो सारी खुशियां पाने का जिससे वो वंचित हैं।''
''आप सही कह रही हो, दीदी। लेकिन इस उम्र में उनसे कौन शादी करेगा?''
''तुझे प्रमोद अंकल कैसे लगते हैं?''
''प्रमोद अंकल, पापा के खास दोस्त? वो तो बहुत ही नेक इंसान हैं। लेकिन क्या वे शादी के लिए हां करेंगे? क्योंकि वे आंटी से बहुत प्यार करते थे।''
''प्रमोद अंकल, पापा के खास दोस्त? वो तो बहुत ही नेक इंसान हैं। लेकिन क्या वे शादी के लिए हां करेंगे? क्योंकि वे आंटी से बहुत प्यार करते थे।''
''प्यार तो मम्मी भी पापा से बहुत करती थी और करती हैं। लेकिन अब न ही पापा इस दुनिया में हैं और न ही आंटी। मम्मी और अंकल दोनों ही अपने जिंदगी का अकेलापन ढोते हुये अपना-अपना फर्ज निभा रहे हैं। यदि हम उन दोनों को मिला दे तो?''
''हां, दीदी, आज ही हम अंकल से मिल कर इस विषय पर बात करते हैं।''
दोनों भाई-बहन अंकल से मिलने उनके घर जाते हैं, जो कि उसी शहर में थोड़ी सी दूरी पर हैं। थोड़ी सी औपचारिकता वाली बाते होने पर वे सीधे मुद्दे की बात पर आते हैं।
''अंकल, आंटी के जाने के बाद क्या आपको अकेलापन महसूस नहीं होता? कैसे रहते हैं आप अकेले?''
''बच्चों, कुछ बातों पर इंसान का वश नहीं रहता। अब तो अकेले जीवन जीने की आदत सी हो गई हैं। फ़िर भी कभी-कभी ये अकेलापन खाने को दौड़ता हैं। खैर, थोड़ी सी जिंदगी बची हैं वो भी जैसे-तैसे कट ही जाएगी।''
''जैसे-तैसे क्यों? यदि आप चाहो तो अच्छे से भी कट सकती हैं!''
''तुम्हारा तात्पर्य क्या हैं?''
''जवानी में काम में समय चला जाता हैं। लेकिन इस उम्र में ज्यादा काम भी नहीं कर सकते। इसलिए इस उम्र में जीवनसाथी की ज्यादा जरुरत होती हैं। आप दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते?''
''क्या कह रहे हो तुम? लोग हसेंगे मुझ पर! मेरे बेटा-बहू क्या सोचेंगे? बुढ़ापे में बुढ़ऊ को जवानी चढ़ रही हैं?''
''आंटी को गए चार साल हो गए हैं। इन चार सालों में आपके बेटा-बहू अमेरिका से एक बार भी आपसे मिलने नहीं आएं हैं। चार साल में जिन बच्चों को आपसे मिलने तक की फुरसत नहीं मिली, उनके बारे में सोच कर आप अपनी जिंदगी क्यों बरबाद करते हैं। आपको भी हक हैं हंसी-खुशी से रहने का।''
''हां, बच्चों...बात तो सही हैं। लेकिन आजकल अच्छे-अच्छे जवान कुंवारे बैठे हैं, उन्हें लड़कियां नहीं मिल रही हैं, तो मुझ बुढ़ऊ से कौन शादी करेगा?''
''क्या आप हमारी मम्मी से शादी कर सकते हैं?''
''क्या? ये कैसे संभव हो सकता हैं? वो मेरे दोस्त की पत्नी हैं। क्या ऐसा करना दोस्त के साथ नाइंसाफी नहीं होगी?''
''हमारे पापा फौज में थे। देश के लिए उन्होंने अपने आप को बलिदान कर दिया। उन्होंने कभी अपने खुशी की परवाह नहीं की। वे तो हर भारतवासी को ख़ुश देखना चाहते थे। मम्मी में तो उनकी जान बसती थी। पापा की आत्मा मम्मी को दुखी देख कर अवश्य दुखी होती होगी। वो मम्मी को आपके साथ खुश देखेंगे तो हमें पूरा यकीन हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिलेगी।''
''क्या तुम्हारी मम्मी इस रिश्ते के लिए हां करेंगी?''
''यदि आप इस रिश्ते के लिए हां करते हैं तो मम्मी को हम मना लेंगे।'' युवा बच्चों से इतनी बड़ी बात सुनकर भावातिरेक में प्रमोद अंकल की आंखों से अश्रु निकल आएं। उन्होंने उठकर दोनों भाई-बहनों को गले लगाया और कहा, ''अवश्य ही तुम्हारे मम्मी-पापा ने बहुत पुण्य किए होंगे तभी उन्हें तुम्हारे जैसी संतान प्राप्त हुई!''
प्रमोद अंकल तो मान गए। अब समस्या थी कि मम्मी से कैसे बात करें? दूसरे दिन मदर्स डे था। दूसरे दिन दोनों ने मम्मी से कह दिया, ''मम्मी आज आप कुछ भी काम नहीं करेंगी। घर के सभी काम हम दोनों मिल कर पूरे करेंगे। आपका मदर्स डे का गिफ्ट हम आपको शाम को देंगे। लेकिन हमारा एक अनुरोध हैं कि वो आपको स्विकार करना पड़ेगा।''
''ऐसा कौन सा गिफ्ट देने वाले हो तुम लोग, जिसके लिए तुम्हें लग रहा हैं कि मैं वो अस्विकार भी कर सकती हूं!''
''वो हम शाम को ही बतायेंगे।''
दिपक और शिल्पा ने पूरा डिनर तैयार किया। ड्राइंग रूम को सजाया। नियत समय पर जब डोअर बेल बजी, तो शिल्पा ये कह कर दरवाजा खोलने जाने लगी कि, ''इंतजार की घडियां खत्म। हमारा मदर्स डे का गिफ्ट आ गया।'' उनकी मम्मी दरवाजे की तरफ अचरज से देखने लगी। देखा तो प्रमोद भाई साहब। उसे कुछ भी समझ में नहीं आया, क्योंकि उनके हाथों में कोई गिफ्ट नहीं था। वो दोनों बच्चों की तरफ सवालियां नजरों से देखने लगी।
बच्चों ने अंकल की ओर इशारा करके कहा, ''मम्मी अंकल ही हैं हमारा मदर्स डे का गिफ्ट।''
''मैं कुछ समझी नहीं।''
''मम्मी, पापा के जाने के बाद आप कितनी अकेली हो गई हैं। हमने आपको कई बार अकेले में आसूं बहाते हुए देखा हैं। हम दोनों चाहते हैं कि आप प्रमोद अंकल से शादी कर ले।''
''पागल तो नहीं हो गए तुम दोनों? जब तुम दोनों की शादी की उम्र हो रही हैं, तो इस उम्र में मैं शादी करूंगी? मैं तुम्हारे पापा को नहीं भूल सकती।''
थोड़ी देर तक दोनों भाई-बहन मम्मी को समझाते हैं। ''बच्चों, लोग क्या सोचेंगे कि बुढापे में, भगवान का नाम जपने की उम्र में बुढ़िया को खुद के शादी की पड़ी हैं!''
''लोग क्या सोचेंगे ये भी यदि हम ही सोचने लगे तो लोगों को सोचने के लिए क्या बचेगा?''
''उम्रदराज होने पर यदि पुरुष पुनर्विवाह करता हैं तो समाज उसे कुछ नहीं बोलता। लेकिन यदि कोई महिला इस उम्र में पुनर्विवाह करती हैं तो समाज उसे ताने मार मार कर जीने नहीं देता।''
''समाज की चिंता आप मत करीये। समाज को जबाब हम दे देंगे। क्या आपको प्रमोद अंकल पसंद नहीं हैं?''
''प्रमोद जी बहुत अच्छे हैं। लेकिन...''
थोड़ी देर तर्क-वितर्क होते रहे। ''हम थोड़ी देर ऊपर टेरेस पर जा रहे हैं। वैसे तो आप दोनों एक-दूसरे को सालों से जानते हैं। फ़िर भी आप दोनों आपस में विचार-विमर्श कर लीजिए। फ़िर अपना निर्णय बता दीजिएगा।'' शिल्पा ने कहा।
''मतलब ये कि जैसे कि माँ-बाप लड़के-लड़की को आपस में मिलने के लिए समय देते हैं, वैसा समय तुम लोग हमें दे रहे हो!'' मम्मी ने कहा।
''बिल्कुल सही कहा आपने। सिर्फ़ अभी के लिए हम दोनों आप दोनों के अभिभावकों का रोल ही अदा कर रहे हैं।'' ऐसा कह कर दोनों भाई-बहन टेरेस पर चले जाते हैं।
थोड़ी देर बाद शिल्पा ने पूछा, ''मम्मी, क्या आपको हमारा मदर्स डे का गिफ्ट स्विकार हैं?'' उनके मम्मी के चेहरे पर शर्म की ऐसी लाली छाई कि एक नवयौवना भी क्या शरमाएगी! खुशी, प्यार ये सब भावनाएं उम्र की मोहताज नहीं हैं। उनकी मम्मी खुशी से उन दोनों को अपनी बाहों में समेट लेती हैं। सचमुच, इतना अच्छा, इतना अनुठा...मदर्स डे का गिफ्ट शायद ही किसी ने अपनी माँ को दिया होगा!!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 08 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंमदर्स डे पर अच्छा गिफ्ट।
अच्छा उपहार मदर डे पर...पुरुष तो दूसरा विवाह करते ही हैं क्यों न ये अधिकार महिलाओं को भी मिले....।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक कहानी।
इस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
हटाएंसुधा देवरानी जी माफ़ी चाहूंगा लेकिन हर पुरुष एक एक जैसा नही होते है , कुछ मंद बुद्धि और छोटी सोच वाले पुरुषो के वजह से महिला को की भावना को ठेश पहुचती हैतो इसका मतलब यह भी नही की सारे पुरूष बेकार है
हटाएंमाफ़ी चाहूंगा अगर मेरी बातों से आपको कोई ठेस पंहुचा हो,
आदित्य,सुधा दी ने अपनी टिप्पणी में यह नहीं कहा हैं कि पुरुष बेकार होते हैं। उनका कहना सिर्फ इतना ही हैं कि यदि पुरुष पुनर्विवाह कर सकते हैं तो महिलाओं को भी यह अधिकार मिलना चाहिए।
हटाएंबहुत खूब ! बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर लघु-कथा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंवाह!ज्योति ,बहुत खूबसूरत उपहार दिया बच्चों नें ।सही बात है सभी को अपनी जिंदगी सँवारने का पूरा अधिकार है । सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंकहानी एक नए और सार्थक दृष्टिकोण को रखती है ... बहुत अक्स्च्ची लगी कहानी विशेष दिवस पर ...
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -5 -2020 ) को " ईश्वर का साक्षात रूप है माँ " (चर्चा अंक-3699) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी।
हटाएंक्षमा चाहती हूँ आमंत्रण में मैंने दिनांक गलत लिख दिया हैं ,आज 12 -5 -2020 की प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत हैं। असुविधा के लिए खेद हैं।
हटाएंअच्छी कहानी ।
जवाब देंहटाएंज्योति जी नई रवायतों का स्वागत होना चाहिए ... नई कहानी की नई विधा .. बहुत खूब रही
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को ब्लॉग के किसी एडमिन ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंBahut achhe
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कहानी है ज्योति जी | काश , आज बच्चे अपना निजी स्वार्थ त्याग कर माता - पिता की ख़ुशी के बारे में सोचें | दीपक और शिल्पा की पहल को सलाम | हार्दिक स्नेह के साथ --
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