दिन भर घर का पूरा काम करने के बाद भी शिल्पा की सास शिल्पा को ताने दे रही थी। फ़िर ऐसा क्या हुआ कि उनमें अचानक बदलाव आ गया और वो खुद ही शिल्पा की मदद करने तैयार हो गई?
शिल्पा ड्राइंग रुम में पोंछा लगा रहीं थी। सास-ससुर और दोनों बच्चे ड्राइंग रुम में ही थे। ''चाय लो, गरमा गरम चाय; चाय लो, गरमा गरम चाय...'' ऐसा कहते हुए हाथ में चाय का ट्रे लेकर प्रमोद (शिल्पा के पति) ने ड्राइंग रुम में प्रवेश किया। शिल्पा को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। इन्होंने और चाय बनाई? असंभव! क्योंकि शादी को ग्यारह साल हो गए थे लेकिन आज तक उसने प्रमोद को चाय बनाते नहीं देखा था। चाय बनाना तो दूर की बात वो तो सोकर उठते थे तो कभी अपनी चादर भी तह करके नहीं रखते थे।
''प्रमोद, चाय तू ने बनाई?'' सासुजी ने पूछा।
''हां मम्मी, जरा पी करके तो बताओ कि चाय कैसी बनी हैं?''
''हे राम, मैं ये क्या देख और सुन रही हूं! शिल्पा, तूझे जरा भी शर्म-लाज कुछ हैं कि नहीं? तुझ से चाय बनाके नहीं हो रही थी तो मुझे बता देती। अभी तो मेरे हाथ पैरों में दम हैं। मैं ही बना देती चाय! ये आजकल की बहुएं भी न बिल्कुल ही कामचोर होती हैं और लाज-शर्म तो जैसे बेच ही दी इन लोगों ने! मुझे देख, शादी को 45 साल हो गए लेकिन मजाल हैं कि कभी तुम्हारे ससुरजी से कोई काम करवाया हो! आज तक इन्होंने कभी अपने हाथ से पानी तक लेकर नहीं पीया! मैं ने मेरे बेटे से भी कभी काम नहीं करवाया और तू उससे चाय बनवा रहीं हैं!''
शिल्पा को काटो तो खुन नहीं। वो मन ही मन सोचने लगी कि आज इनको क्या हो गया हैं? क्यों बनाई इन्होंने चाय? अब मम्मीजी और पापाजी मुझ पर बार-बार ताने कसेंगे। चाय बना कर जरुर इन्होंने मेरी थोड़ी सी मदद कर दी लेकिन जितना समय चाय बनाने में लगता उससे ज्यादा समय तो मुझे ताने सुनने पडेंगे।
''मम्मी-पापा बताओं न चाय कैसी बनी हैं? शिल्पा आओ, तुम भी पहले चाय पी लो, फ़िर पोंछा लगा लेना। नहीं तो चाय ठंडी हो जायेगी।'' प्रमोद ने कहा।
सास-ससुर का तमतमाया चेहरा देख कर शिल्पा की पोंछा छोड़ कर चाय पीने की हिम्मत नहीं हो रही थी। जब प्रमोद ने दोबारा आवाज लगाई तब जाकर शिल्पा ने चाय पी। चाय वास्तव में बहुत लजीज बनी थी। पर एक चाय के कारण घर में जो कोहराम मचने वाला था उसकी आशंका मात्र से शिल्पा डर रही थी।
जब चाय के कप लेकर शिल्पा किचन में गई तो प्रमोद भी उसके पीछे पीछे किचन में गया। शिल्पा ने नाराज होते हुए प्रमोद से कहा, ''आपको क्या आवश्यकता थी चाय बनाने की? पोंछा लगाने के बाद मैं चाय बनाने ही वाली थी। अब मम्मीजी-पापाजी मेरे उपर ताने कसेंगे।'' ''शिल्पा, कूल डाउन। सिर्फ़ चाय ही नहीं अब तो मैं जितना हो सकेगा हर काम में तुम्हारी मदद करुंगा।''
''क्या मतलब?
मतलब यह कि अभी कोरोना वायरस के लॉकडाउन की वजह से मेरी छुट्टियां हैं। आज लॉकडाउन का सातवा दिन हैं। जब लॉकडाउन हुआ था तो मैं ने सोचा था कि परिवार के साथ समय बिताउंगा। मम्मी-पापा और बच्चों के साथ तो मैं समय बिता रहा हूँ। लेकिन मैं देख रहा हूं कि तुम्हारे पास तो समय ही नहीं हैं।''
''सॉरी जी, आज से मैं काम और जल्दी जल्दी खत्म करने की कोशिश करुंगी।''
''मैं समझ रहा हूं कि तुम भी हमारे साथ समय बिताना चाहती हो लेकिन अभी मैं और बच्चे सभी घर पर रहने से हम लोग थोड़ा सा देर से सोकर उठते हैं। जिस कारण तुम्हारा पूरा रुटीन गडबड़ हो रहा हैं और उपर से कामवाली बाई भी नहीं आ रही हैं। मैं पिछले छः दिनों से देख रहा हूं कि तुम्हें एक मिनट की भी फुरसत नहीं मिल रहीं हैं। रात होते-होते थकान के मारे तुम्हारा चेहरा उतर जाता हैं। चाय-नाश्ता, खाना, बर्तन-कपड़े. झाडू-पोंछा, पापा-मम्मी की दवाई आदि देना आखिर तुम अकेली क्या-क्या करोगी? इसलिए मैं ने फैसला किया हैं कि जब तक लॉकडाउन हैं और कामवाली बाई नहीं आ रही हैं कम से कम तब तक मैं जहां तक हो सकेगा हर काम में तुम्हारी मदद करुंगा। आज नाश्ते में पोहा ही बना रही हो ना? मैं पोहे के लिए आलू-प्याज काट देता हूं।''
''लेकिन मम्मीजी-पापाजी क्या सोचेंगे?''
''उनको मैं समझा दूंगा।'' ऐसा कह कर प्रमोद आलू-प्याज काटने लगा। इतने में शिल्पा की सास किचन में आई और प्रमोद को आलू प्याज काटते देख कर आग बबूला होने लगी। वे ज्यादा कुछ बोलती इतने में ही सास के मोबाइल पर शिल्पा की नणंद का फोन आ गया। सास कि आवाज सुनाई दी, ''क्यों, क्या हुआ बेटा, तू रो क्यों रही हैं?'' ऐसी आवाज सुन कर शिल्पा और प्रमोद दोनों का ही ध्यान बातचीत की ओर गया।
''ऐसा कैसे कर सकते हैं तेरे सास-ससुर? तू भी हांड मांस की ही बनी हैं...जब कामवाली बाई भी नहीं आ रही हैं, तो अकेली जान झाडू-पोछा, बर्तन-कपड़ा, खाना बनाना और घर के बाकि के काम...कितने काम करेगी तू? दामादजी घर पर हैं तो तेरी थोड़ी बहुत मदद तो उन्होंने भी करना चाहिए। दे दामादजी को फोन दे। मैं उनसे बात करती हूं........तू ही दामादजी से बात करने मना कर रही हैं तो मैं क्या कर सकती हूं? तेरी सास की भी उम्र कोई ज्यादा थोड़े ही हैं। वो भी मेरे बराबरी की 60 के लगभग ही होगी? वो भी तो थोड़ा बहुत काम कर ही सकती हैं! तेरी सास को थोड़ा सा समझना चाहिए.......देख बेटा धीरज रख...थोड़े दिन की ही बात हैं...लॉकडाउन खत्म होने पर काम वाली आ ही जायेगी।''
सास की बातों से सब बात समझ में आ ही गई थी। फ़िर भी प्रमोद ने माँ से पूछा, ''मम्मी, क्या हुआ दिप्ती को? वो रो क्यों रही थी?''
''क्या बताऊं बेटा, उसकी सास तो बहू को नौकरानी से भी बदतर समझती हैं। अब कामवाली नहीं आ रही हैं तो अकेली जान कितना काम करेगी?'' इतना बोलते ही शायद सास को अपनी गलती का एहसास हो जाता हैं। इसलिए विषयांतर करते हुए वो प्रमोद से बोली, ''आलूओं में स्टार्च होता हैं इसलिए उनको काटने के बाद पानी में डालना। शिल्पा, आज पोहे मैं बनाती हूं। वैसे भी तेरे ससुरजी कह रहे थे की आज उन्हें मेरे हाथ के बने पोहे खाना हैं।'' मम्मी में आया सुखद बदलाव देख कर प्रमोद शिल्पा की ओर देख कर मंद-मंद मुस्कराने लगा।
जरूरी है ये बदलाव ज्योति । बहुत सुंदर लघुकथा 👌
जवाब देंहटाएंअभी इन दिनों लॉकडाउन के दौरान कई घरों में आपकी कहानी के पात्र अवतरित हो रहे हैं ..समसामयिक पात्रों का शब्द-चित्रण ...☺
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (08-04-2020) को "मातृभू को शीश नवायें" ( चर्चा अंक-3665) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंसुन्दर लघु-कथा। यह बदलाव आना बेहद जरूरी है तभी घर की गाड़ी सही चल सकेगी।
जवाब देंहटाएंVery nice story...kabhi kabhi jab apno par beet tee hai tanhi kuchh logo ko sahi maine me samajhme aati hai.
जवाब देंहटाएंवाह!!!बहुत ही सुन्दर लघुकथा.... ऐसे बदलाव आयें तो घर स्वर्ग बन जाये।
जवाब देंहटाएंहनुमान जंयती के शुभ पर्व की अनेकानेक मंगलकामनाएं
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर लघुकथा... हनुमान जयंती की ढेरों शुभकामनाएँ आपको 🌺
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी को हर काम मिलजुल कर करना ही असल ग्रहस्त है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी शिक्षाप्रद कहानी है ...
शिक्षाप्रद कथा 👌👌👌
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१३ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, श्वेता दी।
हटाएंअंत भला तो सब भला
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तति
इस लॉकडाउन में बहुत से घरों में बहुतरे परिवर्तन हो रहे हैं अब देखना ये हैं कि ये परिवर्तन स्थाई हैं या अस्थाई ,सुंदर संदेश देती कहानी ज्योति जी ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंज्योति जी बहुत अच्छा लिखते है आप, पर मुझे तो यह लग रहा है कि इस प्रकार का बदलाव लगभग सभी घरों में आया है। और मेरी तो क्या सभी की यह प्रार्थना होनी चाहिए की यह बदलाव तो लॉकडाउन के बाद भी इसी तरह जारी रहे, तभी असली मायने में बदलाव, बदलाव कहलायेगा।
जवाब देंहटाएंसधन्यवाद
👍🏻👍🏻🙏🏻🙏🏻💐💐
सही कहा आपने की यदि यह बदलाव लॉकडाउन के बाद भी इसी तरह जारी रहे, तभी असली मायने में बदलाव, बदलाव कहलायेगा।
हटाएंVery nice
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