शिल्पा की मम्मी शिल्पा को बहुत प्यार करती थी। लेकिन अपने अंतिम समय में उन्होंने शिल्पा को याद क्यों नहीं किया? क्या थी राज की बात? दिल को छुती भावनाप्रधान कहानी...
इमेज- गूगल से साभार
''शिल्पा, मम्मी की तबियत सिरियस हैं। जल्दी से आ जा।'' अजय भैया का फोन आया तो तत्काल में आरक्षण करवाकर मायके पहूंची। मम्मी को ब्लड कैंसर था। डॉक्टर ने जबाब दे दिया था। डॉक्टरों ने मम्मी को घर ले जाने कह दिया था ताकि वो घर के सुकून वाले माहौल में रहे। कमज़ोरी के कारण मम्मी उठने-बैठने में असमर्थ थी। कमज़ोरी तो इतनी थी कि वो अपने मन से करवट तक नहीं ले पाती थी। लेकिन वैसे पूरे होश में थी। ज्यादा जोर से बोल नहीं पा रही थी लेकिन धीरे-धीरे सब बाते कर रही थी। नीम-बेहोशी की हालत में कभी-कभी किसी को आवाज़ लगा देती थी।
मुझे देख कर मम्मी की आँखों में चमक आ गई। ''मैं तेरा ही इंतजार कर रही थी।'' मम्मी ने कहा। दो-तीन परिचित महिलायें मम्मी की तबियत देखने आई हुई थी। मैं मम्मी के पास ही बैठी थी। मम्मी ने धीरे-धीरे पुकारा, ''अजय...अजय...''
वो महिलायें कहने लगी, ''अजय और अंजू (मेरी भाभी) दोनों ही इनका बहुत ख्याल रखते हैं। कहा जाता हैं कि आखरी वक्त इंसान को जो व्यक्ति ज्यादा प्यारा होता हैं, इंसान उसी को याद करता हैं और उसी को आवाज़ लगाता हैं।''
ये सुन कर न जाने क्यों मुझे बहुत बुरा लगा। दिल में बार-बार यहीं सवाल आ रहा था कि मम्मी, जो मुझे बहुत प्यार करती थी, अजय भैया को भी अक्सर यह शिकायत रहती थी कि मम्मी-पापा तुझे ज्यादा चाहते हैं। वो मम्मी अपने अंतिम समय में मुझे कैसे भूल गई? मुझे अंदर ही अंदर यह बात खाए जा रही थी। इतने में मम्मी की आवाज़ आई ''अंजु…अंजु...''
ये सुन कर न जाने क्यों मुझे बहुत बुरा लगा। दिल में बार-बार यहीं सवाल आ रहा था कि मम्मी, जो मुझे बहुत प्यार करती थी, अजय भैया को भी अक्सर यह शिकायत रहती थी कि मम्मी-पापा तुझे ज्यादा चाहते हैं। वो मम्मी अपने अंतिम समय में मुझे कैसे भूल गई? मुझे अंदर ही अंदर यह बात खाए जा रही थी। इतने में मम्मी की आवाज़ आई ''अंजु…अंजु...''
ये क्या जो भाभी मम्मी से सीधे मुंह बात नहीं करती थी, उस भाभी को मम्मी अपने अंतिम समय में याद कर ही हैं! मैं ने मन ही मन सोचा कि हो सकता हैं मम्मी घर के सभी सदस्यों को याद कर रही होगी इसलिए हो सकता हैं थोड़ी देर बाद मेरा भी नाम ले ले! मुझे भी याद कर ले। मैं पूरे समय मम्मी के पास ही रहती थी। लेकिन इस बीच मम्मी ने एक बार भी मेरा नाम नहीं लिया। मम्मी, सिर्फ़ मेरी मम्मी ही नहीं थी, तो सबसे अच्छी सहेली थी। हम दोनों एक-दूसरे से अपने मन की हर बात शेयर करते थे...वो कई बार भैया-भाभी के ख़राब बर्ताव को लेकर फोन पर दुखी होती थी। ऐसी स्थिति में मम्मी की ज़ुबान पर मेरा नाम न होकर भैया-भाभी का नाम होना...यह बात मुझे पच नहीं रही थी। मैं मन ही मन सोचने लगी...मम्मी, क्या मैं आपकी लाडली बेटी नहीं रहीं? क्या अब आपको मेरी याद तक नहीं आती? इतने सालों तक मैं अपने आप को सबसे ज्यादा आपके करीब महसूस करती थी क्या वो सब झूठ था? प्लीज मम्मी, सिर्फ़ एक बार...सिर्फ़ एक बार तो अपनी ज़ुबान से मेरा नाम ले लो...प्लिज, मुझे भी तो याद कर लो...मेरा मन न जाने क्यों एक तरह से भीख मांगने की मुद्रा में आ गया था। जैसे मम्मी के सिर्फ़ एक बार मेरा नाम पुकारने से मुझे कोई ख़ज़ाना मिलने वाला था! खैर, मेरी किस्मत में वो नहीं था। इसी तरह की स्थिति में मम्मी ने दो दिन और निकाले और हम सबको छोड़ कर चली गई! इस बीच मम्मी ने कई बार अजय भैया और अंजू भाभी का नाम पुकारा लेकिन मेरा नाम भुल कर भी उनकी ज़ुबान पर नहीं आया! मैं अपने आँसू रोक ही नहीं पा रही थी। यह निर्णय मैं खुद नहीं ले पा रही थी कि मुझे ज्यादा दुख मम्मी को खो देने का था या मम्मी ने मेरा नाम नहीं पुकारा इस बात का था! मैं अपने आँसू रोक ही नहीं पा रही थी। मैं यह बात पति देव को भी बता नहीं सकती थी क्योंकि वो मुझे ही गलत कहने लगते कि ज़रुरी हैं क्या कि मम्मी ने तुझे याद करना ही चाहिए था?
मैं अपने आप को किसी भी तरह से समझा नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसा क्यों? आखिरकार मुझसे जब रहा ही नहीं गया तो जब एक बार पापा अकेले दिखे तो मैं ने उनसे यह बात पूछी तो उनकी आँखों में पानी आ गया।
''बेटा, तेरी मम्मी मजबूर थी!''
''पापा, बेटी को याद करने में भी कैसी मजबूरी? मैं कुछ समझी नहीं।''
''माँ-बाप के लिए सभी बच्चे समान होते हैं। वैसे तो वो सभी बच्चों को एक जैसा ही प्यार करते हैं लेकिन जिन बच्चों का व्यवहार माँ-बाप के प्रति अच्छा होता हैं, जो बच्चे माँ-बाप की कदर करते हैं, माँ-बाप भी उन बच्चों को ज्यादा प्यार करते हैं। इसी मायने में हम दोनों तुझ से ज्यादा प्यार करते हैं। तेरी मम्मी हर काम बहुत दूर का सोच कर करती थी। उसका ये बर्ताव भी उसी दूरदर्शिता का परिणाम हैं। इसके पीछे बहुत बड़ी राज की बात हैं।''
''कैसा राज पापा? और यदि मम्मी मुझ से प्यार करती थी तो मम्मी ने अंतिम समय में मुझे याद क्यों नहीं किया? वो बार-बार भैया-भाभी को ही पूकार रही थी। इसका तो यहीं मतलब हुआ न कि वो भैया-भाभी को ही ज्यादा प्यार करती थी?''
''नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं हैं। तीन-चार दिनों से क्या तू ने अपने भैया-भाभी के बर्ताव में कुछ फ़र्क महसूस नहीं किया?''
''मतलब?''
''मतलब, क्या तू ने यह महसूस नहीं किया कि पहले की तुलना में वे तेरे मम्मी से और मुझ से थोड़ा अच्छे से बर्ताव कर रहे थे?''
''हां, मुझे ऐसा लगा तो सही लेकिन मैं ने सोचा कि मम्मी की बीमारी की वजह से उनके बर्ताव में यह फर्क आया होगा।''
''नहीं बेटा, ये फ़र्क तेरी मम्मी के तेरा नाम न पुकार कर उन लोगों के नाम पुकार ने से आया हैं! बेटा, शादी के बाद तेरी अपनी घर-गृहस्थी हैं। तू यहां आकर ज्यादा दिन तो नहीं रह सकती और हम लोग भी तेरे ससुराल में आकर ज्यादा दिन नहीं रह सकते! जब हमारे पास अजय-अंजू ही रहने वाले हैं तो हमें उन्हें खुश रखना पड़ेगा न! बेटा, चाहे तो तू इसे हमारा स्वार्थ कह ले लेकिन अजय-अंजू के अहं को ठेस न पहुंचे, वो लोग खुश रहे...इसलिए मम्मी ने सबके सामने तेरा नाम अपनी जुबान पर आने नहीं दिया! ताकि उसके जाने पर वो लोग मेरा भी ख्याल अच्छे से रखे। अभी उनके मन में यह बात बैठ गई हैं कि मम्मी-पापा उन्हें ही ज्यादा प्यार करते हैं, शिल्पा को नहीं! तू तो समझदार हैं। तेरी मम्मी को विश्वास था कि जब मैं तुझे राज की बात बताउंगा तो तू उसकी मजबूरी समझ जायेगी।''
मेरे मन में जो सवालों के बादल छाए हुए थे वो पूरी तरह छंट गए। बाप रे, इतनी दूर की सोच! वा...व्व...मम्मी, मान गई आपको! बहुत अच्छा किया मम्मी आपने! लोग तो सिर्फ़ यह बोल कर रह जायेंगे कि मम्मी मुझ से नहीं, भैया-भाभी से ज्यादा प्यार करती थी। लेकिन यदि इस एक बात से उनके अहं की संतुष्टि होकर वो आपकी अच्छे से देखभाल करेंगे तो मुझे भी अपने मन को समझाना ही होगा।
''बेटा, तेरी मम्मी मजबूर थी!''
''पापा, बेटी को याद करने में भी कैसी मजबूरी? मैं कुछ समझी नहीं।''
''माँ-बाप के लिए सभी बच्चे समान होते हैं। वैसे तो वो सभी बच्चों को एक जैसा ही प्यार करते हैं लेकिन जिन बच्चों का व्यवहार माँ-बाप के प्रति अच्छा होता हैं, जो बच्चे माँ-बाप की कदर करते हैं, माँ-बाप भी उन बच्चों को ज्यादा प्यार करते हैं। इसी मायने में हम दोनों तुझ से ज्यादा प्यार करते हैं। तेरी मम्मी हर काम बहुत दूर का सोच कर करती थी। उसका ये बर्ताव भी उसी दूरदर्शिता का परिणाम हैं। इसके पीछे बहुत बड़ी राज की बात हैं।''
''कैसा राज पापा? और यदि मम्मी मुझ से प्यार करती थी तो मम्मी ने अंतिम समय में मुझे याद क्यों नहीं किया? वो बार-बार भैया-भाभी को ही पूकार रही थी। इसका तो यहीं मतलब हुआ न कि वो भैया-भाभी को ही ज्यादा प्यार करती थी?''
''नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं हैं। तीन-चार दिनों से क्या तू ने अपने भैया-भाभी के बर्ताव में कुछ फ़र्क महसूस नहीं किया?''
''मतलब?''
''मतलब, क्या तू ने यह महसूस नहीं किया कि पहले की तुलना में वे तेरे मम्मी से और मुझ से थोड़ा अच्छे से बर्ताव कर रहे थे?''
''हां, मुझे ऐसा लगा तो सही लेकिन मैं ने सोचा कि मम्मी की बीमारी की वजह से उनके बर्ताव में यह फर्क आया होगा।''
''नहीं बेटा, ये फ़र्क तेरी मम्मी के तेरा नाम न पुकार कर उन लोगों के नाम पुकार ने से आया हैं! बेटा, शादी के बाद तेरी अपनी घर-गृहस्थी हैं। तू यहां आकर ज्यादा दिन तो नहीं रह सकती और हम लोग भी तेरे ससुराल में आकर ज्यादा दिन नहीं रह सकते! जब हमारे पास अजय-अंजू ही रहने वाले हैं तो हमें उन्हें खुश रखना पड़ेगा न! बेटा, चाहे तो तू इसे हमारा स्वार्थ कह ले लेकिन अजय-अंजू के अहं को ठेस न पहुंचे, वो लोग खुश रहे...इसलिए मम्मी ने सबके सामने तेरा नाम अपनी जुबान पर आने नहीं दिया! ताकि उसके जाने पर वो लोग मेरा भी ख्याल अच्छे से रखे। अभी उनके मन में यह बात बैठ गई हैं कि मम्मी-पापा उन्हें ही ज्यादा प्यार करते हैं, शिल्पा को नहीं! तू तो समझदार हैं। तेरी मम्मी को विश्वास था कि जब मैं तुझे राज की बात बताउंगा तो तू उसकी मजबूरी समझ जायेगी।''
मेरे मन में जो सवालों के बादल छाए हुए थे वो पूरी तरह छंट गए। बाप रे, इतनी दूर की सोच! वा...व्व...मम्मी, मान गई आपको! बहुत अच्छा किया मम्मी आपने! लोग तो सिर्फ़ यह बोल कर रह जायेंगे कि मम्मी मुझ से नहीं, भैया-भाभी से ज्यादा प्यार करती थी। लेकिन यदि इस एक बात से उनके अहं की संतुष्टि होकर वो आपकी अच्छे से देखभाल करेंगे तो मुझे भी अपने मन को समझाना ही होगा।
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आख़िरकार ये राज़ खुल ही गया कि हमारे देश में औरत जिए या मरे, उसको बस, एडजस्ट ही करना पड़ता है.
जवाब देंहटाएंगोपेश भाई,आपकी बात सोलह आने सच हैं। लेकिन औरत करे तो क्या करे इस कहानी में शिल्पा की अपनी मजबूरी थी। वो चाह कर बजी माता पिता को अपने पास नहीं रख सकती थी। और पुरानी सोच के कारण माता पिता भी उसके साथ नहीं रहना चाहते थे। लेकिन हर औरत चाहती हैं कि उसके माता पिता खुश रहे....इसलिए ऐसी ढेर सारे एडजस्टमेंट करती रहती हैं।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-10-2019) को "रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने" (चर्चा अंक- 3504) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंअच्छी और सामवेदनशील कहानी ...
जवाब देंहटाएंकी सत्य जीवन के आपसी ख़ुशियों और समाज के लिए करते हैं इंसान ... प्रेम का प्रगतिकटन नहि है तो प्यार नहि ... ऐसा में नहि सोचता ...
Bahut achchi aUr samvedsnshil kahani dil ko achchi gayi tv
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति बहन, ये कथा उसी दिन पढ़ ली थी पर लिख ना पायी | मन भावुक हो गया ये कहानी पढ़कर | मन के रिश्ते कितने अजीब हैं और उनकी विवशताएँ उनसे भी ज्यादा अजीब | नारी मन कितना बन्धनं में बंधा होता है उसे कोई कहाँ जान पाता है ? माँ बेटी की विवशताएँ मन गीला कर गयी | आभार और शुक्रिया इस भावपूर्ण कथा के लिए |
जवाब देंहटाएंरेणु दी,हर नारी चाहती हैं कि उसके मायके और ससुराल दोनों ही तरफ के लोग खुश रहें। और इसी सोच के चलते उसे न चाहते हुए भी अपने आप से कई समझौते करने पड़ते हैं।
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