आज बच्चों के उम्मीद से थोड़े से भी कम अंक आने पर वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और कुछ बच्चे तो आत्महत्या भी कर लेते हैं। उन्हीं बच्चों के नाम एक ऐसा मार्मिक खत जो हर बच्चें को पढ़ना चाहिए।
अनेक शुभाशिर्वाद एवं ढेर सारा प्यार!
अक्सर किसी भी स्टूडेंट की काबिलियत का पैमाना उसके मार्क्स को माना जाता हैं। अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए अच्छे मार्क्स होना बहुत ज़रुरी भी हैं। लेकिन यदि तुम्हारे कुछ मार्क्स कम आएं हैं तो उसके लिए निराश हो कर डिप्रेशन का शिकार होना या आत्महत्या करने की सोचना सरासर गलत हैं। क्योंकि किसी एक परीक्षा में फेल होने से जिंदगी खत्म नहीं होती। फेल सब होते हैं। कोई स्कूल की परीक्षा में, कोई अपने ऑफ़िस में तो कोई बिज़नेस में। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हम जिंदगी का साथ छोड़ दे। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी ने भी कहा था कि ''अगर आप FAIL हो जाएं तो कभी भी हार न माने क्योंकि F.A.I.L. का अर्थ होता हैं ‘First Attempt In Learning’ मतलब सीखने की आपकी पहली कोशिश।''
मार्क्स से कोई मार्स तक नहीं पहुँचता हैं।
बच्चों, निराश मत होना। सिर्फ़ अंकों के बल पर जीवन नहीं चलता। कामयाबी के फल सिर्फ़ अंकों के पेड़ पर नहीं लगते। यह जिंदगी की आख़िरी परीक्षा नहीं थी। जिंदगी में आगे कई परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा। शायद उन परीक्षाओं में तुम हीरे की तरह चमक जाओ! कभी भी अपनेआप को औसत मत समझों। यदि तुम स्कूल में टॉपर नहीं आ पाएं तो कोई बात नहीं। अभी तो हृदय को फौलाद बनाने के दिन हैं...हंसने और गुनगुनाने के दिन हैं...अभी तो तुम्हारे सामने आगे बढ़ने के लिए कई नई दिशाएं बाहें फैलाएं तुम्हारा इंतजार कर रहीं हैं...आइंस्टीन अपनी कक्षा में टॉपर नहीं थे। लेकिन उस वक्त टॉपर कौन था ये आज किसी को भी याद नहीं हैं...याद हैं तो आइंस्टीन!! मार्क्स से कोई मार्स तक नहीं पहुंचता। ज्ञान, गति और गुणवत्ता बनाए रखनी पड़ती हैं। थ्री इडियट्स का एक डायलॉग हैं- ''बच्चे काबिल बनो काबिल, कामयाबी तो साली झक मार के पीछे भागेगी।''
तुम इस धरती पर बेवजह नहीं आएं हो!!
बच्चों, यदि हताशा में हर कोई मरने की बात करने लगे, तो फ़िर हमारा मनुष्य होना कहां तक सार्थक हैं? तुम्हारे माता-पिता को तुमसे बहुत अपेक्षाएँ हैं...वे तुम से बहुत प्यार करते हैं...तुम जिंदगी में आगे बढ़ो इसलिए उन्होंने अपनी हर खुशी को नज़रअंदाज़ किया हैं...तुम भी अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहते हो न...लेकिन यदि सिर्फ़ एक परीक्षा में नंबर कम आने पर तुम जिंदगी को ही दाव पर लगा दोगे तो क्या तुमने सोचा हैं कि तुम्हारे माता-पिता पर क्या बीतेगी? कोई भी माता-पिता नहीं चाहते कि एक परीक्षा में कम नंबर आने पर उनके बच्चे आत्महत्या करे! अभी हाल ही में पढ़ने में आया कि मध्यप्रदेश के सागर जिले में एक पिता ने 10 वी में बेटे के 4 विषय में फेल होने पर बेटे का मनोबल न टूटे, वो कोई गलत कदम न उठाएं...इसलिए ढोल नगाडे बजवाकर मिठाइयां बांटी। इस घटना से तुम समझ सकते हो कि माता-पिता कितने डरे हुए हैं! इसलिए आगे आने वाली परीक्षा में तुम नए जोश के साथ तैयारी करना...उस में तुम अवश्य सफल होंगे...याद रखों तुम इस देश की अनमोल धरोहर हो...युवा शक्ति हो..प्रकृति भी बेवजह कुछ नहीं करती। उसने कुछ खास कार्य करने के लिए तुम्हें धरती पर भेजा हैं। तुम इस धरती पर बे वजह नहीं आएं हो!! परीक्षा के नतीजे तुम्हारा सहीं मुल्यांकन नहीं कर सकते! मैं तुम लोगों को यह बताना चाहती हूं कि ये नतीजे उन सभी चीजों का सहीं मुल्यांकन नहीं कर सकते जो तुमको विशेष बनाती हैं। जिन लोगों ने ये पेपर्स तैयार किए हैं वे लोग तुम को जानते-पहचानते नहीं हैं। वे नहीं जानते कि तुम बहुत अच्छे क्रिकेटर हो...सिंगर हो...अभिनेता हो! तुम्हारा कोई एक खास हुनर तुम को खास बनाता हैं। अपने उस खास हुनर को उभारकर तुम जिंदगी में बहुत आगे बढ़ सकते हो। आज की परीक्षा प्रणाली में मछलियों को पेड़ पर चढ़ने कहा जाता हैं। इसलिए दोष परीक्षा प्रणाली का हैं, तुम्हारा नहीं!!
मार्क्स से कोई मार्स तक नहीं पहुँचता हैं।
बच्चों, निराश मत होना। सिर्फ़ अंकों के बल पर जीवन नहीं चलता। कामयाबी के फल सिर्फ़ अंकों के पेड़ पर नहीं लगते। यह जिंदगी की आख़िरी परीक्षा नहीं थी। जिंदगी में आगे कई परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा। शायद उन परीक्षाओं में तुम हीरे की तरह चमक जाओ! कभी भी अपनेआप को औसत मत समझों। यदि तुम स्कूल में टॉपर नहीं आ पाएं तो कोई बात नहीं। अभी तो हृदय को फौलाद बनाने के दिन हैं...हंसने और गुनगुनाने के दिन हैं...अभी तो तुम्हारे सामने आगे बढ़ने के लिए कई नई दिशाएं बाहें फैलाएं तुम्हारा इंतजार कर रहीं हैं...आइंस्टीन अपनी कक्षा में टॉपर नहीं थे। लेकिन उस वक्त टॉपर कौन था ये आज किसी को भी याद नहीं हैं...याद हैं तो आइंस्टीन!! मार्क्स से कोई मार्स तक नहीं पहुंचता। ज्ञान, गति और गुणवत्ता बनाए रखनी पड़ती हैं। थ्री इडियट्स का एक डायलॉग हैं- ''बच्चे काबिल बनो काबिल, कामयाबी तो साली झक मार के पीछे भागेगी।''
तुम इस धरती पर बेवजह नहीं आएं हो!!
बच्चों, यदि हताशा में हर कोई मरने की बात करने लगे, तो फ़िर हमारा मनुष्य होना कहां तक सार्थक हैं? तुम्हारे माता-पिता को तुमसे बहुत अपेक्षाएँ हैं...वे तुम से बहुत प्यार करते हैं...तुम जिंदगी में आगे बढ़ो इसलिए उन्होंने अपनी हर खुशी को नज़रअंदाज़ किया हैं...तुम भी अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहते हो न...लेकिन यदि सिर्फ़ एक परीक्षा में नंबर कम आने पर तुम जिंदगी को ही दाव पर लगा दोगे तो क्या तुमने सोचा हैं कि तुम्हारे माता-पिता पर क्या बीतेगी? कोई भी माता-पिता नहीं चाहते कि एक परीक्षा में कम नंबर आने पर उनके बच्चे आत्महत्या करे! अभी हाल ही में पढ़ने में आया कि मध्यप्रदेश के सागर जिले में एक पिता ने 10 वी में बेटे के 4 विषय में फेल होने पर बेटे का मनोबल न टूटे, वो कोई गलत कदम न उठाएं...इसलिए ढोल नगाडे बजवाकर मिठाइयां बांटी। इस घटना से तुम समझ सकते हो कि माता-पिता कितने डरे हुए हैं! इसलिए आगे आने वाली परीक्षा में तुम नए जोश के साथ तैयारी करना...उस में तुम अवश्य सफल होंगे...याद रखों तुम इस देश की अनमोल धरोहर हो...युवा शक्ति हो..प्रकृति भी बेवजह कुछ नहीं करती। उसने कुछ खास कार्य करने के लिए तुम्हें धरती पर भेजा हैं। तुम इस धरती पर बे वजह नहीं आएं हो!! परीक्षा के नतीजे तुम्हारा सहीं मुल्यांकन नहीं कर सकते! मैं तुम लोगों को यह बताना चाहती हूं कि ये नतीजे उन सभी चीजों का सहीं मुल्यांकन नहीं कर सकते जो तुमको विशेष बनाती हैं। जिन लोगों ने ये पेपर्स तैयार किए हैं वे लोग तुम को जानते-पहचानते नहीं हैं। वे नहीं जानते कि तुम बहुत अच्छे क्रिकेटर हो...सिंगर हो...अभिनेता हो! तुम्हारा कोई एक खास हुनर तुम को खास बनाता हैं। अपने उस खास हुनर को उभारकर तुम जिंदगी में बहुत आगे बढ़ सकते हो। आज की परीक्षा प्रणाली में मछलियों को पेड़ पर चढ़ने कहा जाता हैं। इसलिए दोष परीक्षा प्रणाली का हैं, तुम्हारा नहीं!!
फेल होना पाप कतई नहीं हैं!!
तुम्हें यह जानना चाहिए कि इतिहास ऐसे किस्सों से भरा पड़ा हैं कि कई लोग ऐसे हैं कि जो स्कूल की परीक्षा में फेल हो गए लेकिन जिंदगी की परीक्षा में अव्वल आएं! उन्होंने अपनी कबिलियत से इतिहास रच दिया!!
सचिन तेंदुलकर- सचिन तेंदुलकर पढ़ाई में फिस्सडी रहें हैं। सिर्फ़ दसवीं तक शिक्षा हासिल करनेवाले सचिन को दुनिया आज क्रिकेट का भगवान मानती हैं।
सचिन तेंदुलकर- सचिन तेंदुलकर पढ़ाई में फिस्सडी रहें हैं। सिर्फ़ दसवीं तक शिक्षा हासिल करनेवाले सचिन को दुनिया आज क्रिकेट का भगवान मानती हैं।
थॉमस एडिसन- थॉमस एडिसन की टीचर ने उन्हें मंदबुद्धि कह कर स्कूल से निकाल दिया था। उनकी माँ ने उन्हें घर पर पढ़ाया। आज उनके नाम 1093 आविष्कार हैं।
विस्टन चर्चिल- विस्टन चर्चिल छठवीं क्लास में फेल हो गए थे। लेकिन बाद में उन्हें नोबल पुरस्कार मिला और वे दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने।
इसलिए सिर्फ़ एक परीक्षा में उम्मीद से कम अंक आने पर अपने आप को नालायक मत समझो...डिप्रेशन का शिकार मत हो या कोई गलत कदम मत उठाओं...नए जोश के साथ अगली परीक्षा की तैयारी करों...फ़िर देखों सफलता कैसे तुम्हारे कदम चुमती हैं!!
अवतार फिल्म का एक गाना हैं, ''यारों उठो, चलो, भागो, दौड़ो, मरने से पहले जीना न छोड़ो .............''
डिसक्लेमर-
मेरे कहने का यह मतलब कदापि नहीं हैं कि तुम मेहनत ही न करों। थ्री इडियट्स का वहीं डायलॉग मैं फ़िर दोहराउंगी- ''बच्चे काबिल बनो काबिल, कामयाबी तो साली झक मार के पीछे भागेगी।''
बहुत सुंदर प्रस्तुति ज्योती बहन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ज्योति जी.
जवाब देंहटाएंजीवन में सफलता-असफलता तो लगी रहती हैं. ज़रुरत लगन की है, मेहनत की है और इमानदारी से कोशिश करने की है. और परीक्षा में अधिक अंक लाने से ही जीवन में सफलता के सभी दरवाज़े-खिड़कियाँ नहीं खुला करते.
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/05/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
मेरी रचना को 'पांच लिंकों का आनंद' में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, कुलदीप भाई।
हटाएंबहुत ज़रूरी खत ! और ये खत बच्चों की हर पीढ़ी के लिए सार्थक है I
जवाब देंहटाएंबहुत महत्वपूर्ण।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/05/2019 की बुलेटिन, " मजबूत इरादों वाली अरुणा शानबाग जी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को 'ब्लॉग बुलेटिन' में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, शिवम भाई।
हटाएंप्रेरणास्पद आलेख। मैंने इसे अपनी क्लास के ग्रुप में शेयर किया है। सादर एवं सस्नेह।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट को अपने क्लास के ग्रुप में शेयर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मीना दी। यदि इस लेख के जरिए मैं सिर्फ एक बच्चे की भी जान बचा पाई तो मुझे बहुत खुशी होगी।
हटाएंबहुत सुन्दर सार्थक और सटीक खत बच्चों के नाम....वाकई बच्चों की असफलता बच्चे और माँ-बाप के लिए कई चिंताएं पैदा कर रही है....ऐसे में लगातार बच्चों की आत्महत्या जैसी खबरें सुनकर दिल दहल जाता हैं आधुनिक शिक्षा प्रणाली की खांमिया और पेरेंट्स की अपेक्षाएं बच्चों को अवसादग्रस्त बना रही हैं ऐसे में आपका लेख बच्चों और पैरेंट्स दोंनो को राह दिखाने वाला है सही कहा आपने एक असफलता से जीवन के सारे दरवाजे बन्द नहीं होते....साथ ही ऐसी महान विभूतियों के नाम जो पढ़ने में अब्बल न होकर भी व्यक्तिविशेष बन गये बच्चों को सम्बल प्रदान करने वाला उदाहरण है।बहुत ही लाजवाब लेख के लिए हार्दिक बधाई ज्योति जी !
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, सुधा दी। आपके इन्ही स्नेह भरे शब्दों से मुझे और बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती हैं।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19 -05-2019) को "हिंसा का परिवेश" (चर्चा अंक- 3340) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
मेरी रचना को 'चर्चा मंच' में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
हटाएंगहन विषय पर बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंज्योति बहन आपका आलेख आज के इस प्रतिस्पर्धा वाले युग में निराशा से घिरे बच्चों के लिये सूर्य किरण है। हर प्रबुद्ध माता पिता को इसे सकारात्मक दृष्टि से लेकर अपने बच्चों को पढ़ाना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सटीक और यथार्थ उदाहरण देकर लेख को और भी प्रभावी बना दिया है आपने।
सस्नेह साधुवाद।
अप्रतिम विषय चयन।
आपके ऐसे प्रोत्साहन पर शब्दों से बहुत प्रेरणा मिलती हैं दी।
हटाएंBahut hi Sundar Likha Gaya hai.bahut bahut badhai aapko
जवाब देंहटाएंGood to see you have discussed on such an important topics that often leaves tremendous negative effect on the student's mind but in this era, where everyone is trying their level best to be at the front row, i really wonder how many parents will actually apply theses in real life.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणादायक आलेख
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