जब कोई महिला यौन शोषण का शिकार होती हैं तो यौन शोषण एक बार ही होने पर भी उसके घाव ताउम्र रहते हैं। यौन शोषण की भयावहता वो ही समझ सकता हैं जो इससे गुजरा हैं...जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई...!!!
आजकल मीटू से संबंधित सोशल मीडिया पर जो बेतुके पोस्ट आ रहे हैं जैसे कि गर्लफ्रैंड ने रेस्टॉरंट का बिल नहीं भरा या पत्नी 4-5 रोज से लौकी की सब्जी बना कर खिला रहीं हैं, यह भी #shetoo के अंतर्गत आना चाहिए ...दाद देनी पड़ेगी ऐसी पोस्ट्स लिखने वाले के दिमागिया दिवालेपन की!! क्या रेस्टॉरंट का बिल भरने का दर्द या लौकी की सब्जी खाने का दर्द और यौन शोषण का दर्द एकसमान हैं? सच हैं, जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई...!!
क्या हैं #MeToo अभियान?
• दुनिया को #MeToo शब्द अमेरिका की तराना बुर्क ने दिया। 2006 में न्यूयार्क में एक पीड़ित लड़की से बात करते हुए उन्होंने कहा था, ''तुम अकेली नहीं हो। यह मेरे साथ भी हुआ हैं।'' इसके लिए उन्होंने 'मीटू' शब्द का इस्तेमाल किया। एक साल पहले 15 अक्टूबर 2017 को हॉलिवुड अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने ट्वीट किया था कि ''अगर आप किसी यौन शोषण का शिकार हुई हैं तो मेरे ट्वीट के जबाब में मीटू लीखिए।'' अगले ही दिन इस पर 5 लाख से ज्यादा ट्वीट किए जा चुके थे। भारत में मिस इंडिया रही तनुश्री दत्ता ने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान कहा- 2009 में फिल्म 'हॉर्न ओके प्लीज' के सेट पर नाना पाटेकर ने उनका शोषण किया। उनके इस खुलासे के बाद भारत में इस अभियान ने जोर पकड़ा। उसके बाद कई नामी हस्तियों पर #मीटू अभियान के तहत आरोप लग चुके हैं। जिनमें- अभिनेता आलोकनाथ, निर्देशक साजिद खान और सुभाष घई, पत्रकार विनोद दुआ, विदेश राज्यमंत्री एम जे अकबर, लेखक चेतन भगत, कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती शामिल हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार सितंबर के अंत तक 1.9 करोड बार मीटू को ट्वीटर पर इस्तेमाल किया जा चुका हैं। यानी हर दिन लगभग 55 हजार 319 ट्वीट्स मीटू से जुड रहे हैं।
• #MeToo अभियान पुरुषों के खिलाफ महिलाओं की मुहिम कतई नहीं है और न ही यह समूचे पुरुष समाज को कटघरे में खड़ा करने वाला अभियान है। यह मुहिम एक सभ्य समाज बनाने की है, एक सुरक्षित समाज बसाने की है, एक स्वस्थ्य वातावरण में हमारी बच्चियां, हमारी महिलाएं सांस ले सके, ऐसा माहौल बनाने की है। किसी भी बदलाव की शुरुआत तभी होती है, जब उस पर सार्थक चर्चा होती है, बातचीत होती है और प्रारंभिक स्तर पर इस मामले में #मीटू अभियान की शुरुआत सही दिशा में होती प्रतीत हो रही है। इस अभियान के समर्थन में पुरुष समाज का भी सामने आना एक बड़े बदलाव का संकेत है।
• #मीटू अभियान एक-दूसरे को ये एहसास दिलाने के लिए हैं कि यदि आपने ये दर्द सहा हैं तो आप अकेली नहीं हैं, मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ हैं...मैं तुम्हारे साथ हूं!!
• वास्तव में #मीटू में दोनों जेंडर आते हैं।
• वास्तव में #मीटू में दोनों जेंडर आते हैं।
#मीटू अभियान की आलोचना-
दो कारणों से मीटू अभियान की आलोचना की जाती हैं।
पहला- इन लोगों ने तब शिकायत क्यों नहीं की जब वास्तव में घटना हुई थी? तो इसका जबाब हैं कि शिकार हुई महिलाएं आरोपी की तुलना में कमजोर स्थिति में थी और हमारी पुलिस प्राय: कमजोरों का साथ नहीं देती। और ऐसे ज्यादातर मामले अकेले में होते हैं तो शिकार महिला सबूत कहां से लायेंगी? रेप, छेड़छाड़, गलत तरीके से छुना, घुरना, अश्लील इशारे करना, फब्तियां कसना इनसे ज्यादातर महिलाओं को रुबरु होना पड़ता पड़ता हैं। लेकिन वे आवाज़ नहीं उठा पाती। क्योंकि उनके अपने ही उन्हें गलत ठहरा देते हैं! कटघरे में खड़ा करते हैं। तुमने छोटे कपड़े क्यों पहने? रात को अकेली बाहर जाने की क्या जरुरत थी? सोशल मीडिया पर फोटो क्यों पोस्ट की? मर्द तो कुत्ता हैं, कुत्ते को हड्डी डालोगे तो वो आएगा ही...मर्द, मर्द होता हैं...तुम्हें संभल कर रहना चाहिए था आदि। समाज के इसी रवैये के कारण, अपनी कमजोर स्थिति के कारण और नौकरी जाने के डर से पहले महिलाओं ने इसकी शिकायत नहीं की। लेकिन अब जब दूसरी महिलाओं को आरोप लगाते देख उनसे प्रेरणा लेकर बाकि महिलाएं भी आगे आकर अपने उपर हुए अत्याचार की बात बता रही हैं।
शायद इन लोगों को नहीं पता कि कानून ने भी महिलाओं को अपने साथ हुए अपराध की शिकायत किसी भी वक्त करने का अधिकार दिया हैं। पुलिस यह कह कर उन्हें नहीं लौटा सकती कि शिकायत काफ़ी देर से की जा रहीं हैं।
शायद इन लोगों को नहीं पता कि कानून ने भी महिलाओं को अपने साथ हुए अपराध की शिकायत किसी भी वक्त करने का अधिकार दिया हैं। पुलिस यह कह कर उन्हें नहीं लौटा सकती कि शिकायत काफ़ी देर से की जा रहीं हैं।
दूसरा- बदला लेने या कुछ हासिल करने के उद्देश्य से बड़े लोगों पर आरोप लगाए जा रहे हैं। कुछ मामलों में ये सही भी हो सकता हैं। लेकिन इस डर से हम 98% लोगों को दर्द से तिल-तिल मरने नहीं दे सकते न? ऐसे बहुत से कानून हैं जिनका दुरुपयोग हो रहा हैं। हम उनके खिलाफ आवाज़ उठा सकते हैं लेकिन हम कानून विहीन निरंकूश समाज का निर्माण नहीं कर सकते! महिलाएं भी किसी पुरुष के साथ गलत कर सकती हैं लेकिन हमारा समाज पुरुषप्रधान समाज हैं। समाज ने पुरुषों को ज्यादा ताकत दी हैं। जब पुरुषों के पास ज्यादा ताकत हैं तो यौन उत्पीड़न के अपराधी होने के चांस भी पुरुषों के ही ज्यादा होंगे न?
#मीटू अभीयान का परिणाम-
• कई पालक अपने बच्चों को खास कर बेटीयां और बहूओं को पढ़ाई अथवा नौकरी के लिए शहर भेजने से झिझकते थे। अब यह स्थिति बदलेगी। क्योंकि मीटू अभियान के कारण कार्यस्थल अब महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित माने जायेंगे।
• कंपनियां भी छेड़छाड़ की किसी घटना पर कड़ी कारवाई करने पर मजबूर होगी। कानून सिर्फ़ भूतकाल के गलत कार्यों पर न्याय दिलाने में मददगार होता हैं लेकिन सामाजिक आंदोलन भविष्य को बेहतर बनाने और उसे सुरक्षित बनाने में मददगार होते हैं। मीटू अभियान से प्रेरणा लेकर कल को एक आम महिला अपने ससुर, जेठ या देवर के यौन शोषण के खिलाफ़ बोलने की हिम्मत करेगी।
• कंपनियां भी छेड़छाड़ की किसी घटना पर कड़ी कारवाई करने पर मजबूर होगी। कानून सिर्फ़ भूतकाल के गलत कार्यों पर न्याय दिलाने में मददगार होता हैं लेकिन सामाजिक आंदोलन भविष्य को बेहतर बनाने और उसे सुरक्षित बनाने में मददगार होते हैं। मीटू अभियान से प्रेरणा लेकर कल को एक आम महिला अपने ससुर, जेठ या देवर के यौन शोषण के खिलाफ़ बोलने की हिम्मत करेगी।
• शोषण की प्रवृत्ति रखने वाले पुरुष डरेंगे कि भविष्य में मामला खुल सकता हैं।
• केंद्र सरकार ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने और इसे रोकने के लिए कानूनी और संस्थागत ढांचों को मजबूत करने के लिए मंत्री समूह का गठन किया है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में गठित किए गए इस समूह में एक मंत्री समूह कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों से निपटने के लिए मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढांचों का परीक्षण करेगा।
जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई
जब कोई महिला यौन शोषण का शिकार होती हैं तो यौन शोषण एक बार ही होने पर भी उसके घाव ताउम्र रहते हैं। उस महिला को सामान्य होने में सालों लग जाते हैं। इज्जत खोने के डर से वो अपना दर्द किसी से साझा भी नहीं कर सकती। अंदर ही अंदर तिल-तिल कर हर रोज मर-मर कर जीवन जीती हैं। उठते–बैठते, सोते-जागते हर वक्त ये दर्द उसका पिछा करता हैं। यहां तक की कई लड़कियाँ इस शोषण के उपरांत पति के स्पर्श से भी डरती हैं। यौन शोषण की भयावहता वो ही समझ सकता हैं जो इससे गुजरा हैं...इसलिए आजकल मीटू से संबंधित सोशल मीडिया पर जो बेतुके पोस्ट आ रहे हैं जैसे कि गर्लफ्रेंड ने रेस्टॉरंट का बिल नहीं भरा या पत्नी 4-5 रोज से लौकी की सब्जी बना कर खिला रहीं हैं, यह भी #shetoo के अंतर्गत आना चाहिए ...दाद देनी पड़ेगी ऐसी पोस्ट लिखने वाले के दिमागिया दिवालेपन की!! क्या रेस्टॉरंट का बिल भरने का दर्द या लौकी की सब्जी खाने का दर्द और यौन शोषण का दर्द एक समान हैं? ऐसी मानसिकता वाले पुरुष बलात्कार को इतने हल्के में क्यों लेते हैं? सच हैं, जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई...
Keywords: #MeToo campaign, Me Too movement, women, women empowerment in hindi
सत्य वचन। इस विचारोत्तेजक लेख का आभार!!!
जवाब देंहटाएंसटीक अवलोकन
जवाब देंहटाएंसटीक लेख लिखा आपने ज्योती जी
जवाब देंहटाएंलेख तो सही है आदरणिया अनुजा ज्योति देहलीवील मगर मेरी मातृ शक्ती ने राज कुमारी किरण कुमारी का किरदार क्यु नही ध्यान मे रक्खा ? जिसने अकबर महान को भी कान पकड़ कर नाक रगड़कर माफी मांगने पर मजबूर कर दिया ।। ये मी टू का लेख पढ़ पढ़ कर मेरा सर चकराने लग गया है तो अब मै राज कुमारी किरण कुमारी और अकबर के बीच घटी घटना का लेख गूगल पर डालूंगा आप पढियेगा ।।
जवाब देंहटाएंअभ्यंकर भैया,मुझे राजकुमारी किरण कुमारी के बारे में जानकारी नहीं हैं। आपकी पोस्ट का इंतजार रहेगा। लेकिन मुझे पोस्ट की लिंक भेजिएगा। क्योंकि आपस्क ब्लॉग खुलता ही नहीं हैं।
हटाएंअकबर को सबक सिखाने वाली किरणदेवी
हटाएंओंकार की साधना करने वाले चाहे युवक हो या युवती हो, मौत से डरते नही लेकिन मौत के घाट उतारने वाले को ठीक कर देते है.
महाराणा प्रताप का नाम तो तुम लोग जानते हो..महाराणा प्रताप का भाई था शक्ति सिंह ..शक्ति सिंह की बेटी का नाम किरण देवी था..किरण देवी को सत्संग में ऐसा कुछ दिव्य ज्ञान मिला था की ओंकार का गुंजन करती..ऐसा कुछ सीखने को मिल गया की किरण बड़ी बहादुर हुई..और लोग तो किरण को देख कर बोलते थे की ये तो देवी का रूप है..क्यों की ओंकार का जप करने से अधी भौतिक और अधी दैविक शक्तियां विकसित हो गयी थी..
उन दिनों अकबर बादशाह के यहा खुशरोज मेला लगता था..खुशरोज मेला में नौवे दिन सिर्फ़ महिलाओं को प्रवेश होता था.. पुरुष नही आते थे..तो सारी महिलायें महिलायें होती तो दिल खोल के मेले में घूमती थी…घूँघट की ज़रूरत नही..
तो अकबर जितना प्रसिध्द राजा था उतना ही हवस का भी गुलाम था…रानियों से उस का पेट नही भरता, हवस पूरी नही होती तो कोई भी सुंदर युवती को देखता तो उस को फसाने के लिए साजिश करता…अब मेले में नवमे दिन कोई पुरुष नही जाए..अकबर भी औरत के कपड़े पहेंन कर जाता..और उस की रखी हुई जो बदमाश वेश्याए भी उस के साथ में रहेती उस मेले में..अकबर जिस लड़की की तरफ इशारा कर देवे वो कुलटाए उस लड़की को समझा के बुझा के उस को प्रलोभन देकर..साम दाम दंड भेद कैसे भी कर के लड़की को ले आती..जब राजा चाहे तो उन की रखी हुई बदमाश औरते कुछ भी कर सकती थी राजा के लिए..
तो मेला देखने गयी शक्ति सिंह की कन्या किरण देवी.. और अकबर ने उस का रूप लावण्य प्रभाव देख कर ऐसा हो गया की जैसे दीपक के आगे पतंगा कुर्बान हो जाता है, ऐसे किरण देवी का रूप सौंदर्य प्रभाव देख कर अकबर के साथ में जो कुलटा बदमाश औरते थी उन को बोला की कुछ भी हो जाय बीसो उंगलियों का ज़ोर लगा कर इस को मेरे महेल में हाजिर कर दो..
अब किरण देवी तो उन के साजिश मे फंसी और उन के साथ हो गयी..किरण देवी को क्या क्या बाते कर के प्रलोभन दिखा के फ़सा के उस को अकबर मे महेल में ले गयी..कुलटायें तो चली गयी..किरण को देख कर अकबर का तो काम विकार एकदम अंधे घोड़े पर हावी हो गया…किरण देवी समझ गयी की वो औरते इन्ही की भेजी हुई कुलटायें थी और मेरे को फँसा कर यहा लाया गया है..ये हवस का शिकार है…क्षण भर के लिए चुप हुई और आज्ञा चक्र में ओंकार स्वरूप का ध्यान किया.. हे अंतरात्मा परमात्मा तू मेरे साथ है..तू ही आद्य शक्ति के रूप में और तू ही कृष्ण और राम जी के रूप में , तू ही संत और भगवंत के रूप सब के दिल में प्रगट होता है.. मेरी सहायता करना और मुझे सामर्थ्य देना तेरी ही कृपा है..ओम ओम… मन में जपा..कमर से कट्यार निकाली..और जैसे शेरनी हाथी पर झपटती है ऐसे अकबर का हाथ पकड़ा एक…कट्यार को संभालते हुए ऐसा कुछ दाँव मारा की अकबर नीचे गिर पड़ा..किरण देवी जंप मार के अकबर के छाती पर चढ़ बैठी और कट्यार गर्दन पर रख के बोली अभी तेरी मृत्यु की घड़ी है नालायक..भगवान ने तुझे राजा बनाया..बहू बेटियों की इज़्ज़त बचाने का राजा का काम होता है..और तू औरते के कपड़े पहेंन कर सुंदर लड़कियों को फसाने के लिए मेले में ये साजिश करता है..अब तेरी मृत्यु निकट है..बोल क्या चाहिए?..
अकबर बोला, ‘मुझे प्राणो का दान दे दे देवी….’
किरण देवी बोली, ‘तू हवस का शिकार..इस खुषरोज मेले को बंद करेगा की नही?’
अकबर बोला, ‘अल्लाह की कसम मैं बंद कर दूँगा..’
किरण देवी ने तो गर्जना की ‘ओम ओम ओम ओम ..’
अकबर के नीचे कपड़े गीले हो गये..अकबर कापने लगा..बोला, ‘मैं मेला बंद कर दूँगा और दुबारा तुम्हारी जैसी युवतियों को नही फसाउंगा ..’
किरण देवी दहाडी, “हमारी जैसी नही, दूसरी कोई भोलीभाली हो तो भी..किसी भी कन्या की इज़्ज़त नही लूटेगा..बोल वचन देता है की कट्यार गले से आरपार कर दूं?”
अकबर बोला, “नही नही! ..” ..क्या अकबर की दुर्दशा हुई..बच्चा भी इतना कपड़ा गीला नही करता…आगे कपड़ा गीला होता तो पिछे नही होता..लेकिन अकबर के तो पिछे भी रंगीन कपड़े हो गये.. ऐसी बुरी हालत हुई..
अकबर ऐसा कापने लगा..किस से? एक कन्या से!..
कन्यायें अपने को अबला ना समझे..महिलायें अपने को दुर्बल ना समझे..ओम स्वरूप अंतरात्मा परमात्मा की शक्तियां सब के अंदर छूपी है…ओम ओम ओम ओम ओम…
(बहुत सुंदर ओंकार का कीर्तन हो रहा है..)
ओंकार के गुंजन ने ऐसी शक्ति जगाई किरण देवी में…अकबर ने माफी माँगी..अकबर के मुँह पर थूकती हुई किरण देवी उस के महेल से निकल गयी..अकबर ने वो मेला बंद कर दिया..और सुंदर युवतियों को फ़सा के हवस का शिकार बनाने का दुष्कर्म छोड़ दिया की नही पता नही लेकिन कम तो ज़रूर किया होगा..
ॐ शांती
किरणदेवी की साहसिक पूरी कहानी पोस्ट करने के लिए बहूत बहुत धन्यवाद, भैया। सच में यदि महिलाएं अपनेआप को सशक्त बनाये तो कोई भी उनका बाल बांका नहीं कर सकता।
हटाएंज्योति जी आप ने बिल्कुल सही कहा ....इस सकारात्मक पोस्ट के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंवाह!ज्योति ,बहुत ही सार्थक ओर सटीक !!
जवाब देंहटाएंati uttam lekhan
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-10-2018) को "मन में हजारों चाह हैं" (चर्चा अंक-3139) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
धन्यवाद, राधा दी।
हटाएंएक सार गर्भीत पोस्ट... मसख़रों को आईना दिखता लेखन !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 28/10/2018 की बुलेटिन, " रुके रुके से कदम ... रुक के बार बार चले “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, शिवम जी।
हटाएंजाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई...सटीक एवं विचारणीय लेख.....।
जवाब देंहटाएंमहिलाओं की चुप्पी ने ही यौन उत्पीड़न को बढावा दिया जब तक इज्ज़त और आबरू जैसी उपमाओं को छोड़ नारी स्वयं Me too पर खुलकर नहीं बोलेंगी तब तक ऐसे नर पिशाचों के हौसले बुलन्द रहेंगे ...बहुत ही सटीक लेख लिखा है आपने...सकारात्मक लेख के लिए बहुत बहुत बधाई ज्योति जी....सस्नेह शुभकामनाएं।
Bahut hi umda lekhan hai Aapka.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लिखा आपने ज्योति जी , आज जिस तरह से आज मी टू अभियान का मजाक उड़ाया जा रहा है उससे आहत होना स्वाभाविक है ... कम से कम अपने दर्द कहने का अधिकार तो सबको होना चाहिए, भारत में इस अभियान का ज्यादा मजाक बन रहा है क्योंकि वास्तव में हमारे देश में औरतों की स्थिति ज्यादा खराब है , लोग उन्हें पहले से चुप करा देना चाहते हैं ताकि औरतों की स्थिति में कोई परिवर्तन ना आये | जरूरत है हम लोग स्त्री के एक यौन शोषण मुक्त समाज के निर्माण की इस मशाल को बुझने ना दें ताकि कल हमारी बच्चियां बरसों दर्द झेलने के बाद अपनी बात कहनेके लिए मी टू जैसे किसी अभियान का इंतज़ार ना करें
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने की इस मशाल को बुझने न देने की जिम्मेदारी हमारी ही हैं।
हटाएंबहुत ही काम की जानकारी शेयर की है अपने ज्योति जी. हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है की बॉलीवुड द्वारा इस तरह का अभियान जारी किया गया है तो ये कितना सच है लेकिन इससे आम नारी, औरत, लड़की को जो हिम्मत मिली है वो काबिले तारीफ है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद