महिलाओं को इतनी तो आजादी दो कि वे अपनी इच्छा से कपड़े पहन सकें!!

क्या वास्तव में छेड़खानी, बलात्कार की सभी घटनाएं सिर्फ छोटे और आधुनिक कपड़े पहनने से ही होती है? क्यों महिलाओं के कपडों को लेकर जब-तब बयान जारी कर दिए जाते है?

महिलाओं को इतनी तो आजादी दो कि वे अपनी इच्छा से कपड़े पहन सकें!!
सोशल मीडिया पर, अखबारों में, टेलीविजन पर, जहां देखो वहां महिलाओं ने क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं पहनना चाहिए इस पर ढेरों बयानबाजी हो रहीं है। जैसे,

“विदेशी महिला सैलानी भारत में स्कर्ट पहनकर न घुमें”

“पी वी सिंधु भी न...देखो मंदिर जाने के लिए साड़ी पहन ली”

“लड़के न बहके इसलिए रोहतक के स्कूल में स्कर्ट बैन”

ऐसी बयानबाजी देख-सुनकर दिमाग सुन्न हो जाता है! कहां तो हम चाँद और मंगल पर जाने की बातें करते है, नारी-पुरुष समानता की बातें करते है और कहां हमारी सोच, महिलाओं के कपड़े के इर्द-गिर्द ही भटकती रहती है! अरे...थोड़ा महिलाओं को भी सांस लेने दो...इतनी तो आज़ादी दो उन्हें कि वे अपनी इच्छा से कपड़े पहन सकें!! कुछ पुरुष तो इससे भी आगे जाकर कहते है कि लड़कियों ने जीन्स नाभी से नीचे नहीं पहननी चाहिए...साड़ी की ब्लाउज के गले ज्यादा डीप नहीं रखने चाहिए! इससे पुरुषों की भावनाएं उत्तेजित होती है। लड़कियों के पहनावे पर टिप्पणी करनेवाले कुछ बुजुर्ग ऐसे भी है, जिनकी खुद की बेटियां आधुनिक लिबास पहनती है, लेकिन दूसरी लड़कियों/ महिलाओं को वे शालीनता का पाठ पढ़ाते है। महिलाओं को शालीनता का पाठ पढ़ानेवाले ये बुजुर्ग ये नियम अपने घर की बहू-बेटी पर लागू नहीं करते! जैसे कश्मीर के अलगाववादी गरीब कश्मीरी बच्चों के हाथों में पत्थर थमाते है और खुद के बच्चों को कश्मीर से दूर सुरक्षित जगहों पर रखते है!

जब भी कहीं महिलाओं के साथ बर्बरता की कोई खबर सुर्खियों में आती है, तो बिना किसी शुरवाती जानकारी के लोगों की पहली प्रतिक्रिया यहीं होती है कि यह सब आधुनिकता का तकाजा है, महिलाएं भड़काऊ कपड़े पहनती है इसलिए...! क्या वास्तव में छेड़खानी, बलात्कार की सभी घटनाएँ सिर्फ छोटे और आधुनिक कपड़े पहनने से ही होती है? हाल ही में हुए बुलंदशहर गैंगरेप में क्या उन माँ-बेटी ने भडकाऊं कपड़े पहन रखें थे? सादे कपड़े में और परिवारवालों के साथ रहने पर भी क्यों हुआ उनके साथ गैंगरेप? दो-तीन साल की मासूम बच्चियों पर क्यों होते है बलात्कार? दरअसल नारी अपना कितना शरीर दिखाएं या कितना छिपाएं, यह महत्वपुर्ण नहीं है, क्योंकि कामभावना मस्तिक में जन्म लेती है और तरंगे सारे शरीर को झंकृत कराती है। बलात्कार या छेड़खानी की घटनाएँ कपड़ों की वजह से नहीं होती, वो होती है गंदी, बीमार और विकृत मानसिकता के कारण।

आजाद देश की आजाद महिलाओं को इतनी भी आजादी क्यों नहीं है कि वे अपनी मनमर्जी से कपड़े पहन सकें। क्यों महिलाओं के कपडों को लेकर जब-तब बयान जारी कर दिए जाते है? क्या महिलाओं ने कभी भी पुरुषों के कपड़ों को लेकर कोई टीका-टिप्पणी की? जब पुरुष अपनी मनमर्जी के कपड़े पहन सकते है तो महिलाएं क्यों नहीं? कुछ लोगों को महिलाओं के छोटे कपड़े से ही तकलीफ़ नहीं है, उन्हें तो पी वी सिंधु के साड़ी पहनने पर भी बयानबाजी करने का मौका मिल जाता है! भई... जब खेल के मैदान पर छोटे कपड़े पहनने से सहुलीयत होती है, तो छोटे कपड़े पहन लिए। मंदीर जाते वक्त साड़ी पहनने की इच्छा हुई, तो साड़ी पहन ली! आखिर क्या हो गया है हमारी सोच को? हम किसी महिला की प्रतिभा से ज्यादा उसके परिधान के तरफ ख्याल क्यों देते है? माना कि हमारा समाज पुरुषप्रधान समाज है, लेकिन ''जिसकी लाठी उसकी भैंस'' यह तो जंगल का नियम था। असल में लाठी से मुक्त होना ही सुसंस्कृत होना है। यह बात पुरुषों को समझनी होगी।

मेरा यह सब कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि आज़ादी के नाम पर महिलाएं नग्नता परोसे। लेकिन पुरुषों से नम्र विनंती है कि कृपया महिलाएं क्या पहने और क्या न पहने, कम से कम इतना सा निर्णय लेने की आज़ादी लड़कियों/महिलाओं को अवश्य दें!!

Keywords: women freedom, women's clothing, freedom, article on women empowerment, mahila sashaktikaran, women rights in hindi

COMMENTS

BLOGGER: 34
  1. Bahut sahi kaha aapne.mahilayo ka kam se kam itni to aazadi milni hi chahiye ki wo apni pasand se kapde pehen sake.

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    1. बेनामी18/3/21, 2:56 pm

      एक दूषित मानसिकता का व्यक्ति ही रेप करता है **दूषित मानसिकता **मै कहता हूं कि आखिर मानसिकता दूषित हुई तो कैसे इसका भी जवाब दें आप श्री मान अगर नहीं पता तो मै आपको बता दूंमानसिकता दूषित होने का कारण है छोटे कपडे इतना पढ़ लिख कर हम लोग मूर्खो जैसी बातें क्यों करने लगते है समझ नहीं आतालड़कियों के पहने छोटे कपडे मर्दों को सेक्सुली उत्तेजित करते हैं ये बात विज्ञान सिद्ध कर चुका है आशा करता हूं ये बात आपको पता होगी। जब कोई व्यक्ति जो कि एक जिम्मेदार और सामाजिक इंसान नहीं है वो भी लड़की को कम कपड़ों में देख कर सेक्सुअली उत्तेजित होगा और उसकी उत्तेजना शांत ना होने की अवस्था ही उसके मानसिकता के दूषित होने का कारण बनेगी और मानसिकता दूषित हो जाने की अवस्था में वो इंसान निरंतर संभोग की कामना में लिप्त रहेगा। जो कि उसकी मानसिकता को और भी ज्यादा दूषित करेगी और हां ऐसा एक दिन में नहीं होता।फिर उस दूषित मानसिकता का व्यक्ति के सामने चाहे 2 साल की बच्ची आए या 50 साल की कोई अधेड़ महिला उसकी दूषित मानसिकता उस महिला के संबंध में संभोग की कामना ही करेगी चाहे वो महिला कम कपड़ों में हो या बुर्के और सूट में पूरी तरह ढकी हुई। उसकी मानसिकता उस महिला का सम्मान करने की इजाज़त ही नहीं देगी। भले ही वो ऊपर से उसका सम्मान करने का दिखावा करे।आजकल के युग में जहां तरह तरह के मादक पदार्थो का उपयोग किया जाता हो जहां अभद्रता और अश्लीलता से भरी हुई फिल्में हो या वेब सीरीज जहां अधिक पॉपुलैरिटी के लिए नग्नता अश्लीलता और दोहरे मतलब वाली वीडियो और फिल्म हो या जोक्स का सहारा लिया जाए वहां आप लोगो से क्या आशा रखेंगे।जहां संजू (बॉलीवुड फिल्म ) के डायलॉग (मै 300 औरतों के साथ सोया) पर तालियां बजाईं जाती हो क्या उन लोगो को दूषित मानसिकता का नहीं समझते आप।और अगर आपको अपने कपडे गंदे होने की फिकर है तो आपको कीचड़ से बचना पड़ेगा या आप कीचड़ से आपका रास्ता छोड़ देने की आशा रखते हैं।अगर नग्नता और अश्लीलता ही विकास का मापदंड है तब तो आपके हिसाब से सभी औरतों को निर्वस्त्र हो कर सारी रात जाग कर बार में पार्टी करनी चाहिए और जिससे चाहे उसके साथ संभोग कर के अपनी कामुकता के अधीन हो कर अपने मान सम्मान का खंडन कर देना चाहिए जो कि मुझे तो नहीं लगता कि सही है आपके हिसाब से सही हो सकता है।और जो लोग विदेशी ट्रेंड को यहां लागू करने की सोच रखते है जैसे कि कम कपडे या न्यूडिटी कॉमन होना तो आपको विदेशो की जमीनी हकीकत के बारे में भी पूरी तरह से पता होना चाहिए।विदेशो में जैसे कम कपडे पहनना न्यूडिटी कॉमन है उतना ही कॉमन वहां परएक्स्ट्रा मैरिटल अफेयरभाई बहन के बीच शारीरिक संबंध होनाअधिकतर लोगों के 1 से अधिक पिता होना जैसे 1 लीगल फादर 2 बायलॉजिकल फादर होनामा का बेटे से और बाप का बेटी से शारीरिक संबंध का होना भी नॉर्मल होता जा रहा है10 से 11 साल की लड़की का अपने भाई से ही प्रेगनेंट हो जाना भी देखने को मिल जाता हैविदेशो में कम कपडे पहनना आपको नॉर्मल लगता है तो ये सब भी विदेशो में नॉर्मल है क्या इसे भी अपनाना चाहेंगे क्युकी खुलापन अपनी सीमाएं तय करके नहीं आता।क्या अगर ये सब किसी सामाजिक भारतीय व्यक्ति के घर में नॉर्मल हो जाए तो क्या वो सहज रहेगा।वो लोग तो इसलिए सहज है क्युकी उनकी विदेशी संस्कृति ही ऐसी है या यूं कहे की संस्कृति ही नहीं है पर जब हमारे पास इतनी विस्तृत संस्कृति अनेक वैज्ञानिक कारणों के साथ मौजूद है फिर भी हम विदेशी संस्कृति की तरफ भागे जा रहे हैं और अपनी संस्कृति का ही उपहास करने में और उसे गलत

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    2. यदि संजू (बॉलीवुड फिल्म ) के डायलॉग (मै 300 औरतों के साथ सोया) पर तालियां बजाईं जाती है तो यकीनन ये दूषित मानसिकता ही है। उस फिल्म में ये डायलॉग इतनी सहजता से और गर्व के साथ बोला गया है जैसे संजू ने कोई महान कार्य किया हो!! मेरे हिसाब से इससे ज्यादा नीच बात कोई हो ही नही सकती!!!
      आप जो हो आपने शायद मेरा लेख बराबर पढा नही है। मैं ने कही नही कहा है कि महिलाएं नग्नता परोसे। मैं ने सिर्फ यह कहा है महिलाओं को कपड़े पहनने की आजादी हो। मर्यादा में रह कर भी शालीन मनमर्जी के कपड़े पहने जा सकते है।

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  2. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 02/09/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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    1. कुलदीप जी, मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बह्त धन्यवाद।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-09-2016) को "शुभम् करोति कल्याणम्" (चर्चा अंक-2453) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आदरणीय शास्त्री जी, मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  4. यदि पुरुष ये आज़ादी महिलाओं को दे देंगे तो उन पर शासन कैसे कर पाएंगे... क्या पहनना है कहाँ जाना है क्या कहना है कैसे उठना बैठना है सब कुछ निर्धारित किया गया है पुरुष प्रधान समाज ने हमारे

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    1. wah! kya apni marji ke kapde pehnakar purush mahilao par shashan kar rahe hain??? nahi.....vo jamana gaya jab purush pradhan samaj tha...aaj sabhi ko samaan sdhikaar hain....aur kaha jaye to purusho ki jagah mahilao ko jyada kanooni adhikaar hain....aaj mahilayen har jagah tarakki kar rahi hain....aur aap keh rahi hain ki purush shashan karna chahate hain....agar esa hota to kya mahilayen aaj itna aage bad pati....chalo choriye...mere ek prash ka uttar dijiye....aaj ke purush to itne positive hain ki karodo berojgaar mahilayon se aaj bhi shadi kar rahe hain....lekin aaj mujhe kisi ek ladki ka name bataiye jo job par ho aur usne kisi berojgar ladke se shadi ki ho????? apne galebaan me bhi jhakiye......

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    2. अमुल जी, शिक्षा से कुछ हद तक जागरुकता आई है, लेकिन आज भी ज्यादातर मामलों में पुरुषों के लिए नारी भोग्या ही है। यह एक कड़वी सच्चाई है। कानुन ने नारी को समान अधिकार दिए है, सही है। कानुन से तो कन्या भृण हत्या और दहेज पर भी पाबंदी है, तो क्या ये मसले खत्म हो गए? आप के मुताबिक पुरुष बेरोजगार महिलाओं से शादी करते है ये उनका बडप्पन है, तो काश हम उस दौर में कभी पहूंच पाएं ... क्योंकि वास्तव में पुरुषों का अहं ही उन्हें इजाजत नहीं देता कि वे उनसे ज्यादा कमानेवाली लड़की से शादी करें! हमारे समाज की संरचना ही कुछ ऐसी है कि पुरुष कमाएंगे और महिला घर संभालेंगी। यह हमें जन्मघुटी की तरह घोट घोट कर पिलाया गया है। इसलिए ही ... महिलाओं की भी अपेक्षा रहती है कि उनका पति उनके ज्यादा कमाएं, उनसे सुपर हो!

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    3. Jyoti ji maansikta to dono taraf se badalni hogi....vese dono ko kandha se kandha milakar chalna chaiye....lekin demand itni hai ki baat kandha todkar aage badne ki ho rahi hai....vese 100 baton ki ek baat kahu.....AAJ KA TIME MAHILAYON KE LIYE "GOLDEN AGE" KA HAI.....aaj se pehle mahilao ko na to itne adhikar mile aur na hi itni ajadi....aur do-char log is ajadi ka virodh karte hain to karne do....isse koi fark nahi padta.....

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    4. Shi kha aapne koi mhila brojgar push se sadi nhi krti inko bs aajadi chahiye paida hote hi smaj inhe aajadi ke path pdhane lgta h kuchh smy bad inhe bchcho se bhi aajadi chahiye hoga ye bhi purush paida kre tb jakr dono sman hoge

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  5. जाने मानसिकता कब बदलेगी ..

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  6. Acchi post likhi hai aapne lekin mai kuch kehna chahunga.....dekhiye kapde kai type ke hote hain....ek veh jo ham sote time pehnte hain aur ek veh jo ham market me jate time pehente hain....ab socho yadi sote time vale kapde yadi ham market me pehne to logo ki kya pratkriya hogi??? hame sabhi ka dhyan rakhna hai....khud ka bhi, bhartiya culture ka bhi aur saleenta ka bhi...kapde vahi pehnne chaiye jo shaleen lage....ek baat aur mahilao ke hi nahi purusho ke kapdo par bhi comment bahut hote hain...salmaan khan iska example hai....aazadi sabko hai lekin kuch bhi pehnne ko azadi nahi kehte hain balki koi bhi saleen kapde pehnne ko aajadi kehte hain....

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    1. अमुल जी, मैंने यह नहीं कहा कि महिलाएं अपनी मर्यादा छोड़े... आजादी के नाम पर अंगप्रदर्शन करें। जीस तरह पुरुषों को अपनी मान-मर्यादा का ख्याल है उसी तरह महिलाओं को भी अपनी मानमर्यादा का ख्याल है। लेकिन महिलाओं के कपड़ों को लेकर जिस तरह से आए दिन फतवे जारी किए जाते है, वो गलत है न? कई बार महिलओं की योग्यता से भी ज्यादा उनके पहनावे को महत्व दिया जाता है। ब्रिटेन की नई पीएम टरीसा कहीं भी जाती हैं तो उनके हील्स की फोटो क्लिक करने के लिए होड़ मच जाती है। यूके के प्रमुख अखबारों ने फ्रंट पेज पर उनके जूतों की चर्चा की। मजे लेते हुए। विश्व स्तर पर भी महिला की काबिलियत नहीं जूते देखे गए!क्यो?

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    2. jo dikhega vahi to click hoga.....talent dikhna chaiye...to talent hi click hoga...for example Shiv kheda ji....kya unke koi kapde dekhta hai?....nahi....vahi deekhta hai jo jyada show ho raha hota hai....

      हटाएं
    3. आपको क्या लगता है कि ब्रिटेन की नई पीएम टरीसा में काबिलीयत नहीं है इसलिए उनसे ज्यादा उनके जूते की चर्चा हुई?

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  7. आप ठीक कह रही हैं । ऐसी मानसिकता के चलते स्वतन्त्रता भी एक भ्रम ही है ।

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  8. bahut hi acche shabadon main aapne samaj ko baat bata dee.

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  9. बेनामी2/9/16, 12:41 pm

    सार्थक

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  10. बेनामी2/9/16, 9:08 pm

    जाने मानसिकता कब बदलेगी .. यह विचारणीय प्रश्न है ???

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  11. आप ने बहुत बाड़िया जानकारी सेयर की इसके लिए धन्यवाद, लेकिन मैं यहा पे आपके बतो पे कुछ प्रशन पूछना चाहूँगा, जैसे की उपर अमूल जी ने कहा वो भी बिल्कुल सही सवाल किए थे. लेकिन आप कहते है की लड़कियों पे कुछ प्राब्लम होता है जैसे - छेड़खानी या और कुछ भी. तो लोग बिना कुछ जाने उसके पहनावा को दोष देते हैं इसके बाद आपने कहा की ये मानसिकता कब बदलेगी,,,,,तो मैं पूछना चाहूँगा आपसे - 1. क्या लड़कियाँ सिर्फ़ इसलिए आगे नही बढ़ पा रही है क्यूंकी इसको छोटे-छोटे कपड़े पहने मे बेन हैं.,,?? अगर लड़कियो को ये इजाज़त मिल जाए तो क्या वो बहुत प्रोग्रेस कर जाएँगे..?? और जो महिलाए बहुत प्रोग्रेस किए हैं जैसे - अरुन्धति भट्टाचार्य जो की भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन हैं या और कोई भी इन लोगो को ये आज़ादी था इसलिए प्रोग्रेस की...??? नही ये मानसिकता लड़को को नही लड़कियों को बदलना चाहिए,,, और जहा तक छेड़खानी की बात हैं,, तो कुछ पार्सेंट ये भी कारण होता है,,,क्यूंकी ये कल्चर विदेशी है ये भारतीय कल्चर नही हैं, अगर आप कपड़ो मे विदेशी कल्चर का फॉलो कर रहे हैं तो आपको ये भी पता होना चाहिए की वहाँ का नियम क्या हैं - जैसा भारत मे पिता को महत्व दिया जाता हैं लेकिन फॉरेन कॉंट्री मे मा को दिया जाता हैं क्यूंकी पिता कोई भी हो सकता हैं,, और ऐसे बहुत चीज़े हैं जो फॉरेन कॉंट्री मे अफ़राध नही होते हैं पर भारत मे उसे अफ़राध माना जाता हैं ये बात मैं यहाँ खुल के नही बोल सकता.... ऐसा क्यूँ होता हैं हमलोग हमेशा फॉरेन कॉंट्री का फॉलो करना चाहते हैं अपनी कल्चर को नही बढ़ाते...

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    1. छोटे-बड़े कपड़े पहनने का और प्रोग्रेस का कहीं कोई संबंध है, ऐसी बात तो मैंने नहीं कहीं है। इंसान प्रोग्रेस करता है, अपनी काबिलीयत से।
      मैने तो सिर्फ उस मानसिकता की बात की है, जिसके तहत महिलाओं की काबिलीयत से ज्यादा उसके परिधानों पर ख्याल दिया जाता है। बलात्कार और छेड़खानी के लिए महिलाओं के कपडों को दोषी ठहराया जाता है। ऐसी कोई घटना होते ही कपडों को लेकर जो बयानबाजी की जाती है, वो गलत है। बलात्कार और छेड़खानी के लिए असल में कुत्सित और विकृत मानसिकता दोषी है।

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    2. Shi kha aapne larkiyo ko or kisi me nhi unko kpro se aajadi chahiye wo apni mrji se rat me boyfrind ke sath ghumna chahti h

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  12. पाबंदी की बातें सिर्फ़ पुरुष ही नहीं महिलाएँ भी करती हैं। कपड़े सलीक़े दार हों, सुविधाजनक भी और पहनने वाले की मर्ज़ी के हों बस फूहड़ ना हों।

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  13. Salute krta hu apki post ko. Lekin hmare india me kayi tarah ke log hai unki manskita ajib hoti hai. Bt i like your article

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  14. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. हालांकि पुरुषवादी समाज में लोगों को ऐसे विचार रास नही आते। लेकिन आवाज़ तो उठानी ही होगी। बहुत ही उम्दा लेख। प्रभावी प्रस्तुति। आपके लेख को मेरी कुछ पंक्तियाँ अर्पित हैं-


    अहद उठी है ताब सी, जिगर में एक आब सी
    हुमक उठी है गर्जना, प्रपंच हैं ये वर्जना।

    सदा नियम रिवाज़ में, ये वंश ये समाज में
    युगों से बात बात में ,कुलों में और ज़मात में।

    सदा ही नार तिक्त क्यों, है भीड़ मगर रिक्त क्यों
    हे रंजना हे संजना, करो तो कोई वंचना।

    सहो नहीं अज़ाब यूँ, रहो नहीं अवाक् सी
    भड़क उठो भभक उठो, उत्तंग चण्ड आग सी।

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  16. वा....व, अमित जी क्या बढ़िया कविता लिखी है। इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  17. Jab aap chandi ki bat krte hai apne kavita me to unke bhi dress ke bare me jan lijiyega
    Aap sb log ko lgta hai chandi bn jaye aaurtein pr yeh nhi jante ki unhone bhi maryadit sabhyata me hi sb kux kiya tha jo aaj purusho dwara bhi prashanshniy hai
    Karya wo kriye jo samman ke yogya ho

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  18. बुरा लगे तो माफ करना ...

    मर्द धर्म के नाम पर नंगे रहते है ...नंगे होकर सड़को पर घुमते है..मंदिर भी जाते है ..फिर भी उन्हे सम्मान मिलता है ..और वो ब्रहमचारी कहलाते है ... पूरा समाज और औरते उनका सम्मान करती है ..उन्हे पूजती है ...
    जैसे नागा साधु और जैन मुनी .....

    अगर कोई महिला भी धर्म के नाम पर ऐसे ही निर्वस्त्र होकर रहे ..तो क्या पूरा समाज और पुरूष उन महिलाओ को सम्मान की नज़र से देखेंगे..उसे ब्रहम चारिनी कहकर उसकी पूजा करेंगे ...
    अरे जब ऐसे पुरुष नग्न होकर घूमते हैं तो कोई भी महिला उनसे जाकर छेड़खानी नहीं करती है अथवा उनका शोषण करने की नहीं सोचती है लेकिन.... महिला का जरा भी अंग खुला हुआ दिखे पुरुष उसको भोग की वस्तु समझता है और अधिक से अधिक उसके संपर्क में आने की कोशिश करता है पुरुष का यह मानना है जो महिला अधिक से अधिक अंग प्रदर्शन कर रही है वह पुरुषों को आमंत्रण कर रही है
    पता नहीं लड़कियों के कपड़े ज़्यादा छोटे हैं या हमारे पुरूष मानसिकता वाली समाज की सोच…!
    लड़कियों के शॉर्ट ड्रेस पर चिल्लाने वालो से मेरा ये सवाल है ..
    Please comment..

    विचारक : धर्मवीर ठाकुर ..

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    1. धर्मवीर भाई,आपने बहुत ही अहम मुद्दा उठाया हैं। जब पुरुष नग्न घूमते हैं तो महिलाएं तो उनसे छेड़खानी नहीं करती तो फ़िर महिलाओं कब सिर्फ छोटे कपड़े पहनने पर पुरूष क्यों अनियंत्रित हो जाता हैं? मतलब साफ हैं कि पुरुषों की सोच ही छोटी हैं। बहुत खूब भाई।

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    2. धर्मवीर भाई,एक मर्द होकर इतने बेबाक तरीके से लिखना मान गए आपको।

      हटाएं

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'रेप प्रूफ पैंटी',1,#मीटू अभियान,1,#साड़ीट्विटर,1,10 मिनट रेसिपी,1,14 नवम्बर,1,15 अगस्त,4,1अक्टुबर,1,25 दिसम्बर,1,26 जनवरी,1,5 मिनट रेसिपी,1,5000 रुपए किलों का गुड़,1,6 नमकीन रेसिपी,1,6 मिठाई रेसिपी,1,8 मार्च,5,9 वी सालगिरह,1,अंंधविश्वास,1,अंकुरित अनाज,1,अंगदान,1,अंगुठी,1,अंगूर,2,अंगूर की जेली,1,अंगूर की लौंजी,1,अंगूर की सब्जी,1,अंग्रेजी,2,अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस,7,अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस,2,अंतिम संस्कार,1,अंधविश्वास,22,अंधश्रद्धा,20,अंधश्रध्दा,4,अंश,1,अग्निपरीक्षा,1,अग्रवाल,1,अग्रसेन जयंती,1,अग्रसेन जयंती की शुभकामनाएं,1,अचार,15,अच्छी आदतें,1,अच्छी पत्नी,1,अच्छी पत्नी चाहिए तो...,1,अच्छी ससुराल,1,अच्छे काम,1,अजब-गजब,3,अजय नागर,1,अतित,1,अदरक,1,अदरक का चूर्ण,1,अदरक-लहसुन पेस्ट,1,अधिकमास,1,अनमोल वचन,10,अनरसा,2,अनास्तासिया लेना,1,अनियन रिंग्स,1,अनुदान,1,अनुप जलोटा,1,अनोखा गिफ्ट,1,अनोखी शादी,1,अन्न,1,अन्य,38,अन्याय,1,अपमान,1,अपाहिज,1,अपेक्षा,1,अप्पे,4,अभिमान,1,अमरुद,1,अमरूद की खट्टी-मीठी चटनी,1,अमावस्या,1,अमावस्या को बाल धोना,1,अमीरी,1,अमेजन,1,अयोध्या,1,अरबी,1,अरुणा शानबाग,1,अरुनाचलम 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आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल: महिलाओं को इतनी तो आजादी दो कि वे अपनी इच्छा से कपड़े पहन सकें!!
महिलाओं को इतनी तो आजादी दो कि वे अपनी इच्छा से कपड़े पहन सकें!!
क्या वास्तव में छेड़खानी, बलात्कार की सभी घटनाएं सिर्फ छोटे और आधुनिक कपड़े पहनने से ही होती है? क्यों महिलाओं के कपडों को लेकर जब-तब बयान जारी कर दिए जाते है?
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आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल
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