दुर्भाग्य से... अग्रपुरुष अग्रसेन जी का जीवन चरित्र, धर्म नीति, सिद्धांतों की पावन कथा सदियों से विलुप्त रही। इसलिए यह छोटी सी कोशिश है, उनका जीवन परिचय कराने की।
इस साल 1 अक्टूबर, 2016 को अग्रसेन जयंती है। सभी अग्रवाल भाइयों और बहनों को अग्रसेन जयंती की असीम शुभकामनाएं। दुर्भाग्य से... अग्रपुरुष अग्रसेन जी का जीवन चरित्र, धर्म नीति, सिद्धांतों की पावन कथा सदियों से विलुप्त रही। इसलिए यह छोटी सी कोशिश है, उनका जीवन परिचय कराने की। महाराजा अग्रसेन लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष बाद भी पूजनीय है, तो इसलिए नहीं कि वे एक प्रतापी राजा थे अपितु इसलिए कि क्षमता, ममता और समता की त्रिविध मूर्ति थे महाराजा अग्रसेन। उनके राज में कोई दु:खी या लाचार नहीं था। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजावत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले सभी जीव मात्र से प्रेम रखने वाले दयालु राजा थे। उनके राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। अग्रसेन वल्लभगढ और आगरा के राजा वल्लभसेन के ज्येष्ठ पुत्र और शुरसेन के बड़े भाई थे।
जन्म
महाराजा अग्रसेन जी का जन्म सुर्यवंशी भगवान श्रीराम जी के पुत्र कुश की चौतीस वी पीढ़ी में द्वापर के अंतिम काल (याने महाभारत काल) एवं कलयुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल एकम को हुआ। कालगणना के अनुसार विक्रम संवत आरंभ होने से 3130 वर्ष पूर्व अर्थात ( 3130+ संवत 2073) याने आज से 5203 वर्ष पूर्व हुआ। वृहत्सेन जी अग्रसेन के दादा जी थे। वे प्रतापनगर के महाराजा वल्लभसेन एवं माता भगवती देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रतापनगर, वर्तमान में राजस्थान एवं हरियाणा राज्य के बीच सरस्वती नदी के किनारे स्थित था। बालक अग्रसेन को शिक्षा ग्रहण करने के लिए मुनि तांडेय के आश्रम भेजा जाता है। जहां से अग्रसेन एक अच्छे शासक बनने के गुण लेकर निकलते है।
15 वर्ष की आयु में, अग्रसेन जी ने महाभारत के युद्ध में पांडवो के पक्ष में युद्ध लड़ा था। उनके पिता महाराज वल्लभसेन युद्ध के दसवे दिन भीष्म पितामह के बाणों से वीरगती को प्राप्त हुए। तब शोकाकुल अग्रसेन को भगवान श्रीकृष्ण ने शोक से उबरने का दिव्य ज्ञान देकर पिता का राजकाज संभालने का निर्देश दिया।
करने पड़े थे दो विवाह
महाराजा अग्रसेन जी का पहला विवाह नागराज कुमुद की कन्या माधवी जी से हुआ था। इस विवाह में स्वयंवर का आयोजन किया गया था, जिसमें राजा इंद्र ने भी भाग लिया था। माधवी जी के अग्रसेन जी को वर के रुप में चुनने से इंद्र को अपना अपमान महसूस हुआ और उन्होंने प्रतापनगर में अकाल की स्थिति निर्मित कर दी। तब प्रतापनगर को इस संकट से बचाने के लिए उन्होंने माता लक्ष्मी जी की आराधना की। माता लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर अग्रसेन जी को सलाह दी कि यदि तुम कोलापूर के राजा नागराज महीरथ की पुत्री का वरण कर लेते हो तो उनकी शक्तियां तुम्हें प्राप्त हो जाएंगी। तब इंद्र को तुम्हारे सामने आने के लिए अनेक बार सोचना पडेगा। इस तरह उन्होंने राजकुमारी सुंदरावती से दूसरा विवाह कर प्रतापनगर को संकट से बचाया। दो-दो नाग वंशो से संबंध स्थापित करने के बाद महाराज अग्रसेन के राज्य में अपार सूख-समृध्दि व्याप्त हुई। इंद्र भी अग्रसेन जी से मैत्री करने बाध्य हुए। दो दो नागराजों से संबंध होने के कारण ही अग्रवाल समाज नागों को अपने मामा मानते है।
अग्रोहा धाम
महाराजा अग्रसेन ने अपने नए राज्य की स्थापना के लिए रानी माधवी के साथ पूरे राज्य का भ्रमण किया। इसी दौरान उन्हें एक जगह एक शेरनी शावक को जन्म देते दिखी। शावक ने महाराजा अग्रसेन के हाथी को अपनी माँ के लिए संकट समझकर तत्काल हाथी पर छलांग लगा दी। इसे दैवीय संदेश समझकर ॠषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर यहां पर नए राज्य की स्थापना कर, नये राज्य का नाम अग्रेयगण या अग्रोदय रखा गया और जिस जगह शावक का जन्म हुआ था उस जगह अग्रोदय की राजधानी अग्रोहा की स्थापना की गई। यह जगह आज के हरियाणा के हिसार के पास है। आज भी यह स्थान अग्रवाल समाज के लिए पांचवे धाम के रूप में पूजा जाता है, वर्तमान में अग्रोहा विकास ट्रस्ट ने बहुत सुंदर मन्दिर, धर्मशालाएं आदि बनाकर यहां आने वाले अग्रवाल समाज के लोगो के लिए सुविधायें जुटा दी है।
अठारह गोत्र-
अग्रसेन जी ने अपने राज्य को 18 गणों में विभाजित कर विशाल राज्य की स्थापना की। महर्षी गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 गणाधिपतियों के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने। उन्होंने सबसे बड़े राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। यज्ञों में बैठे इन 18 गणाधिपतियों के नाम पर ही अग्रवंश के साढ़े सत्रह गोत्रो (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई।
यज्ञ क्रमांक ऋषि गोत्र
1) गर्ग गर्ग
2) गोभिल गोयल
3) गौतम गोयन
4) वत्स बंसल
5) कौशिक कंसल
6) शांडिल्य सिंघल
7) मुद्रगल मंगल
8) जैमिनी जिंदल
9) तांड्य तिंगल
10) और्वा ऐरण
11) धौम्य धारण
12) भरद्वाज भंदल
13) वशिष्ठ बिंदल
14) मैत्रेय/विश्वामित्र मित्तल
15) कश्यप कुच्छल
16) तैतिरेय तायल
17) मुद्गल मधुकुल
इस तरह 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे। जिस समय 18 वें यज्ञ में एक जीवित घोड़े की बलि दी जा रही थी, घोड़े को तड़पता देख कर अग्रसेन जी को घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न माँस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। लेकिन यज्ञ में यज्ञाचार्यो द्वारा पशुबलि को अनिवार्य बताया गया, ना होने पर गोत्र अधूरा रह जाएगा, ऐसा कहा गया। परन्तु महाराजा अग्रसेन के आदेश पर अठारवें यज्ञ में
काका हाथरसी जी ने अग्रवाल गोत्र महिमा
वैश्य जाती में प्रतिष्ठित अग्रवाल का वर्ग,
गोत्र अठारह में प्रथम नोट कीजिए गर्ग,
नोट कीजिए गर्ग कि कुच्छल, तायल, तिंगल,
मंगल, मधुकूल, ऐरण, गोयन, बिंदल, जिंदल,
कहीं कहीं है नागल, धारण, भंदल, कंसल,
अधिक मिलेंगे मित्तल, गोयल, सिंहल, बंसल,
यह सब थे अग्रसेन के पुत्र दूलारे,
हम सब उनके वंशज है, वे पूज्य हमारे।
''एक ईट और एक रुपया'' का समाजवादी सिद्धांत
एक बार अग्रोहा में अकाल पड़ने पर चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। ऐसे में समस्या का समाधान ढुंढ़ने के लिए अग्रसेन जी वेश बदलकर नगर भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक परिवार में सिर्फ चार सदस्यों का ही खाना बना था। लेकिन खाने के समय एक अतिरिक्त मेहमान के आने पर भोजन की समस्या हो गई। तब परिवार के सदस्यों ने चारों थालियों में से थोड़ा-थोड़ा भोजन निकालकर पांचवी थाली परोस दी। मेहमान की भोजन की समस्या का समाधान हो गया। इस घटना से प्रेरित होकर उन्होंने ‘एक ईट और एक रुपया’ के सिद्धांत की घोषणा की। जिसके अनुसार नगर में आने वाले हर नए परिवार को नगर में रहनेवाले हर परिवार की ओर से एक ईट और एक रुपया दिया जाएं। ईटों से वो अपने घर का निर्माण करें एवं रुपयों से व्यापार करें। इस तरह महाराजा अग्रसेन जी को समाजवाद के प्रणेता के रुप में पहचान मिली। महाराजा अग्रसेन जी की इसी विचारधारा का प्रभाव है कि आज भी अग्रवाल समाज शाकाहारी, अहिंसक एवं धर्मपरायण के रुप में प्रतिष्ठित है।
निकट संबंधोंं में विवाह पर रोक-
उस समय निकट संबंधों में ही बच्चों की शादियां करने का चलन था। विज्ञान के अनुसार यह अनुचित था। तब अग्रसेन जी ने सर्वसंमति से यह निर्णय लिया कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह सगोत्र में नहीं करेंंगे। इसके लिए उन्होंने अपने पुत्रों को 18 गोत्रों का मुखिया बनाया और सगोत्र विवाह पर रोक लगाई। आज भी अग्रवालों में यह प्रथा प्रचलित है।
अग्रसेन जी का अंतिम समय-
महाराजा अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। एक निश्चिंत आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श कर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विधु के हाथों में सौंप कर तपस्या करने चले गए।
भारत सरकार द्वारा प्राप्त सम्मान
• महाराजा अग्रसेन के नाम पर 24 सितंबर 1976 में भारत सरकार ने 25 पैसे का डाक टिकट जारी किया था।
• सन 1995 में भारत सरकार ने दक्षिण कोरिया से 350 करोड़ रुपए में एक विशेष तेल वाहक जहाज खरिदा, जिसका नाम “महाराजा अग्रसेन’’ रखा गया।
• राष्ट्रिय राजमार्ग-10 का अधिकारिक नाम महाराजा अग्रसेन पर है।
कही पढ़ी हुई कविता की चंद पंक्तियां
अग्रसेन जी की राह पर हम सबको अब चलना है,
नहीं झुकेगा सिर अब, सिर उठाकर जीना है।
उंच-नीच का भेद मिटाए,
हम सब समान है,
निर्धन हो या धनी,
धरती पर सिर्फ इंसान है।
प्यार अमन के दीप हमें, पग-पग पर जलाना है,
जागो, उठो साथ चलो, जग को यहीं बताना है।
अग्रसेन जयंती-
महाराजा अग्रसेन जी के जन्मदिन अश्विन शुक्ल एकम अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिन जयंती के रुप में धुमधाम से मनाया जाता है। कई जगह तो पूरे सप्ताह भर विविध स्पर्धाओं का आयोजन किया जाता है। जयंती के दिन अग्रसेन जी की विधि-विधान से पुजा-अर्चना कर शोभायात्रा निकाली जाती है।
आइए, अग्रसेन जयंती के शुभ अवसर पर हम यह प्रतिज्ञा लें कि हम अग्र है, अग्र ही रहेंगे, अग्रवालों की शान कभी कम न होने देंगे!
अग्रसेन जयंती को आप सभी को पुन: बहुत-बहुत बधाई!!
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Maharaja Agrasen ji ke bare me itni important jankari dene ke liye dhanyavad! "Ek eet aur ek Rupya" ka samajvadi siddhant bahut accha laga.....thanks for share....
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "आदिशक्ति" (चर्चा अंक-2482) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लगा पढ़ के.
जवाब देंहटाएंआपको भी अग्रसेन जयंती पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीया ज्योति जी । अग्रसेन जी का जीवन सचमुच एक आदर्श है जिसे सत्ता के सिंहासन पर जा पहुँचने वालों को ही नहीं, अन्य सामान्य लोगों को भी अपनाना चाहिए । अत्यंत ज्ञानवर्धक आलेख है यह आपका । हार्दिक आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंThanks for sharing the information, Jyotiji. I learnt something new from this post... :-)
जवाब देंहटाएंAgrasen ke vishay mein vistrit jaankari dene ke liye dhanyavad Jyotiji. Mujhe yeh maloom nahi tha ki Maharaja Agrasen agrwalon ke poorvaj hain. Kya yeh wahi Agrasen hain jinke naam ki baoli dilli mein hai?
जवाब देंहटाएंहां..सोमाली,ये वही अग्रसेन महाराजा है जिनके नाम की बावली दिल्ली में है।
हटाएंYes
हटाएंकृपया कर माता माधवी जी की जन्म और विवाह की तारीख बताये।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्
अनिल जी, क्षमा करे...वो तो मुझे नहीं पता।
जवाब देंहटाएंAapne is Article me aapne Maharaja Agrasen ji ke baare me bahut Achchi jankari share ki h... Isse mujhe Agrasen ji maharaj ke baare me kaafi kuch naya janne ko mila
जवाब देंहटाएंthanks for this Article
Toh Kya hum aggarwal rajput hai...kyu agarsen Maharaja ko ram ka wansaaj bataya gaya hai... suriya vansi.... agar nhi toh Maharaja agarsen Kya the baniye ya rajput..or unka gotra Kya tha...aggarwal mat batana plzz
जवाब देंहटाएंActually maharaja agrasen kshatriy hi the lekin havan ke baad di jani wali pashu bali ka unhone virodh kiya tha isiliye unhone kshatriya varna ko tyag kr vaishya varna apna liya or hmm agrawal baniye kahlane lge...
हटाएंराघव जी, महाराजा अग्रसेन सूर्यवंशी रामचंद्र जी के वंशज थे। उन्होंने ही अठारह गोत्र की स्थापना की थी। महाराजा अग्रसेन जी के पहले गोत्र का अस्तित्व ही नही था। अतः उन्हें हम किसी एक गोत्र का नही कह सकते।
जवाब देंहटाएंमहाराजा अग्रसेन जयंती की बधाई हो सबको.बहुत खूब ज्योति जी.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya. update karte rahiye
जवाब देंहटाएंजय अग्रसेन
जवाब देंहटाएंमहाभारत युद्व में भीष्म पितामह के बाणों से महारजा अग्रसेन जी को वीरगति प्राप्त हुई इसका उल्लेख तो आज तक नहीं कहा गया, बल्कि यह बताया गया की अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु (गर्ग) का राज्याभिषेक कर वे वनों की ओर प्रस्थान कर गये।
Regards
Sarvesh Gupta (Garg, Agrawal)
M- 9584995225
शायद आपने बराबर पढ़ा नहीं हैं! मैने यह लिखा हैं कि ''महाभारत के युद्ध में महाराज वल्लभसेन, पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए युद्ध के दसवे दिन भीष्म पितामह के बाणों से वीरगती को प्राप्त हुए।'' न की महाराज अग्रसेन!
हटाएंमहाराज अग्रसेन जी की पत्नी माधवी जी का जन्म स्थान बताने की कृपा करें
जवाब देंहटाएंAaj ki agrsen pidhi pr he kya aisi. Wo to jat jat me bhedbav Kati he.
जवाब देंहटाएंMaharaja agrasen ki antim saans kaha li
जवाब देंहटाएंकोई ऐसा ग्रुप ह क्या, जिसमे महाराजा अग्रसेनजी की जानकारी एवम उनके संभंध में हमारे समाज मे जानकारी देने के कार्य मे लगा हो। आज कल के की बच्चो को शायद महाराजा अग्रसेनजी की जानकारी तक नही ह।
जवाब देंहटाएंEk rupya Ek eat khani k writer kon h ? Pls Aap bataye
जवाब देंहटाएंएक रुपया एक ईंट के लेखक है ओमप्रकाश गर्ग मधुप" जी
जवाब देंहटाएंमहाराजा बल्लभ सेन जीके पिताजी का क्या नाम था कुछ पता है तो प्लीज मुझको रिप्लाई करके बताएं
जवाब देंहटाएंवृह्तसेन
हटाएंमेरे कहने का मतलब यह है की महाराजा अग्रसेन जी के दादाजी का कुछ नाम पता है तो प्लीज बताने की कृपाल ता करें
जवाब देंहटाएंअग्रसेन जी के दादा जी का नाम था वृहत्सेन जी।
हटाएंMaharaja Shri Agrasen ji ke Bhanje ka naam Bataye Jo vidwan the
जवाब देंहटाएंमहाराजा अग्रसेन की पत्नी माधवी की माताजी का नाम क्या था
जवाब देंहटाएंMaharaja agrasen ji ka janm ka samay kya tha btaiye plz
जवाब देंहटाएंअभिजीत मुहूर्त दोपहर
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