जिसने एक बार हलाहल पान किया, वो सदियों से निलकंठ बन पूजा गया! बलात्कार पीड़िता हर रोज थोड़ा-थोड़ा विषपान करती है, है कोई उपाय जो पीड़िता का ताप कम कर सकेगा???
हमारें यहां बला की महिला महिमा है। धन की देवी लक्ष्मी है, तो ज्ञान की सरस्वती! हर अन्याय के प्रतिकार हेतु शेर पर सवार दुर्गा मैया है, तो अस्त्रशस्त्र से लैस जबान लपलपाती काली माता! जिस देश में महिलाओं का देवी के रुप में पुजन होता है, उस देश के बुलंदशहरों की बुलंदियों को क्यो लगता है ग्रहण? क्यों होते है यहां इतने बलात्कार और वो भी गैंगरेप? सोचिए, उस बंधक बाप पर क्या बीत रहीं होगी, जब उसकी पत्नी और बेटी के साथ तीन घंटे तक यह घिनौना कृत्य किया गया! अपनी पत्नी और बेटी की चिखें गुंजती रहेगी उसके कानों में, जब-तक वह जिंदा है...!
बुलंदशहरों की बुलंदियों को कब तक लगता रहेगा ग्रहण??
बुलंदशहरों की बुलंदियों को कब तक लगता रहेगा ग्रहण??
जिसने एक बार हलाहल पान किया, वो सदियों से निलकंठ बन पूजा गया!
बलात्कार पीड़िता हर रोज थोड़ा-थोड़ा विषपान करती है,
है कोई उपाय जो पीड़िता का ताप कम कर सकेगा???
सामान्यत: यह कहा जाता है कि रात को महिला अकेली घर से बाहर निकली थी और उसने भड़काऊ कपड़े पहन रखें थे इसलिए बलात्कारियों को प्रोत्साहन मिला! लेकिन बुलंदशहर हादसे की पीड़िताएं अकेली नहीं थी और उन्होंने कपड़े भी कम नहीं पहने थे फिर क्यों हुआ उनके साथ गैंगरेप? आइए, हम थोड़ा इस बात पर गौर करें कि आखिर इंसान इंसानियत की सभी हदे पार करकर बलात्कार जैसे कुकर्म क्यों करता है?
• पुरुषवादी अहंकारी सोच
बलात्कार के लिए सबसे प्रमुख रुप से उत्तरदायी है, पुरुषवादी अहंकारी सोच! प्राचीन काल से ही पुरुषों की सोच महिलाओं को सिर्फ एक भोग्या मानने की रहीं है। ब्रम्हापुत्रि देवी अहिल्या को भी देवराज इंद्र की काम लोलुपता का शिकार होना पडा था। पाप किया इंद्र ने और सजा भुगती निर्दोष अहिल्या ने! अपने पति ऋषी गौतम के शाप के बाद जड हो चुकी अहिल्या हजारों वर्षों के तप के बाद श्रीराम के दर्शन से वापस चैतन्य हो पाई। प्राचीन काल में युद्ध में विजयी देश के सैनिक, पराजित देश की महिलाओं पर बलात्कार करते थे। युद्ध दो देशों के पुरुषों के बीच हुआ, महिलाओं ने तो युद्ध नहीं किया, फिर उन पर बलात्कार क्यों? आज भी महिला चाहे जितनी पढ़ी-लिखी हो, बड़े से बड़े पद पर आसीन हो, पुरुषों के लिए वह सिर्फ जिस्म है शोषण के लिए। 'सुल्तान' फिल्म के कुश्ती के दृश्यों की शुटिंग के दौरान हुई थकान की सलमान खान ने एक दुष्कर्म पीड़िता से संवेदनहीन तुलना की थी। मानो कुश्ती की थकान और दुष्कर्म पीड़िता का दर्द दोनों बातें समान हो! सलमान की टिप्पणी समाज में इस तरह की पुरुषवादी अहंकारी मानसिकता का आम संकेत है। बातचीत में हम आमतौर पर इस तरह की बातें सुनते है। मसलन, किसी युवा ने एक दोस्त के बाइक की खराब हालत देखी तो उसने तपाक से कह दिया कि तुमने तो बाइक का रेप कर दिया! मुद्दा यहीं है। पुरुषों के लिए 'रेप' एक सामान्य घटना है, जब तक वह उनकी स्वयं की बहन-बेटी के साथ न हो! सलमान या कोई भी युवा, एक घृनित अपराध को किसी भी संदर्भ में एक बार भी विचार किए बिना इस्तेमाल करते हैं, तो यह उनकी पुरुषवादी अहंकारी सोच का ही परिणाम है।
• किसी को परास्त करने हेतु या बदला लेने हेतु
यदि कोई व्यक्ति बहुत ईमानदारी से अपने कार्य को अंजाम दे रहा है, आसमान की बुलंदियों को छू रहा है, खुद के ग़ैरक़ानूनी कामों के आड़े आ रहा है, उसे किसी भी तरह से परास्त करना नामुमकिन दिख रहा है, तो ऐसे में आसान शिकार बनती है उस पुरुष की पत्नी या बहन! बहन-बेटी की इज्जत से खेल लो, उस इंसान का गरुर अपने-आप टूट जाएगा। किसी व्यक्ति से झगड़ा है, तो बदला लेने के लिए भी उस व्यक्ति की बहन-बेटी पर बलात्कार किया जाता है। यह नुस्खा प्राचिनकाल से ही अपनाया जा रहा है और आज भी जारी है...। क्योंकि आज भी एक औरत की इज्जत को पूरे परिवार की इज्जत से जोडकर देखा जाता है।
• कानुन का डर न होना
अलग-अलग देशों में बलात्कार के लिए अलग-अलग सजाओं का प्रावधान है। कहीं उम्रकैद दी जाती है, तो कहीं मृत्यु दंड! लेकिन हमारे यहां क्या होता है? सोशल मीड़िया पर छाने के बाद प्रदर्शन...धरना...जांचआयोग...समझौता...रिश्वत...लड़की की आलोचना...राजनीतिकरण...सालों बाद चार्जशिट...सालों तक मुकदमा...जमानत...अंत में दोषी बच निकलता है!!
चाहे ‘दामिनी कांड’ हो, ‘निर्भया कांड’ हो या ‘बुलंदशहर रेप कांड’ हो, हमारे नेताओं, समाजसेवियों और मानवाधिकार के ठेकेदारों को बलात्कारियों से इतनी हमदर्दी है कि इसी हमदर्दी के चलते आज तक किसी भी बलात्कारी को सरे आम मौत की सजा नहीं दी जा सकी हैं। सभी बलात्कारी इस बात को अच्छे से जानते और समझते है कि पकड़े जाने पर, उन पर जुल्म साबित करना कानुन के लिए बहुत टेढ़ी खीर है। क्योंकी कानुन को सबूत चाहिए होता है और कोई भी बलात्कारी किसी के सामने बलात्कार नहीं करेगा! सनी देओल के ‘दामिनी’ फिल्म के मशहूर डायलॉग की तरह सिर्फ तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख... मिलती जाएगी! यदि जुल्म साबित हो भी गया तो क्या होगा? जेल के अंदर ही मनोरंजन और रहन-सहन की सभी ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी, जो शायद जेल के बाहर रहने पर भी उन्हें नहीं मिल पाती! हमारे यहां लोगों के मन में कानुन का डर न होने से बलात्कार की घटनाएं ज्यादा होती है।
• घटना को वोटबैंक में बदलने की राजनिति
आज ‘बुलंदशहर रेप कांड’ की सभी चैनल पर साधारण खबर है। मायावती का कोई बयान नहीं आया, केजरीवाल जी चूप है, राहुल गांधी मिलने नहीं गए और न ही टी. व्ही. पर ‘दलित बनाम अदलित’ की बहस छिडी! क्यों? क्योंकि ‘बुलंदशहर रेप कांड’ की पीड़िताएं सामान्य कैटेगरी की थी और आरोपी दलित थे!! क्या सामान्य कैटेगरी के लोग इंसान नहीं होते? अचंभा तो तब अधिक होता है जब सामान्य कैटेगरी के नेता भी ऐसे समय चुप्पी साध जाते है और आजम खान जैसे नेता बलात्कार जैसी घटना को भी विरोधियों की साजिश बताने से बाज नहीं आते। हमारें यहां जब-तक कोई घटना वोटबैंक में बदली नहीं जा सकती तब-तक वो घटना, एक सामान्य घटना रहती है। चाहे वह किसी का बलात्कार ही क्यों न हो!!!
जब तक महिलाओं को भोग्या मानने की मानसिकता खत्म नहीं होगी, अपराधियों को कानुन एवं समाज का डर नहीं लगेगा, घटना को वोटबैंक में बदलने की राजनिति खत्म नहीं होगी, तब तक बुलंदशहरों की बुलंदियों को ग्रहण लगता रहेगा!!!
सुचना- दोस्तो, फेसबुक के एक ग्रुप में इस पोस्ट पर एक कॉमेंट आई है, "कब तक आप बुझती हुई आग को हवा देती रहेगी।" इन महाशय ने गैंगरेप जैसे घृनित अपराध का क्या बढ़िया हल निकाला है...! बलात्कार पीड़िताओं ने चुपचाप सब सहन करना चाहिए और किसी ने भी उस बात को गंभिरता से नहीं लेना चाहिए। चाहे बलात्कार पीड़िताएं ताउम्र उस दर्द की आग के जलन को महसुस कर हर रोज थोड़ी-थोड़ी मरती रहें। चूप रहों मामला खत्म।
सुचना- दोस्तो, फेसबुक के एक ग्रुप में इस पोस्ट पर एक कॉमेंट आई है, "कब तक आप बुझती हुई आग को हवा देती रहेगी।" इन महाशय ने गैंगरेप जैसे घृनित अपराध का क्या बढ़िया हल निकाला है...! बलात्कार पीड़िताओं ने चुपचाप सब सहन करना चाहिए और किसी ने भी उस बात को गंभिरता से नहीं लेना चाहिए। चाहे बलात्कार पीड़िताएं ताउम्र उस दर्द की आग के जलन को महसुस कर हर रोज थोड़ी-थोड़ी मरती रहें। चूप रहों मामला खत्म।
Bahut sahi kaha aapne.Hame hamari soch ko badalna hoga.Desh ke kanun ko badalna hoga.
जवाब देंहटाएंsach ka samna
जवाब देंहटाएंजब तक महिलाओं को भोग्या मानने की मानसिकता खत्म नहीं होगी, अपराधियों को कानुन एवं समाज का डर नहीं लगेगा, घटना को वोटबैंक में बदलने की राजनिति खत्म नहीं होगी, तब तक बुलंदशहरों की बुलंदियों को ग्रहण लगता रहेगा ....एकदम सच कहा आपने ....
जवाब देंहटाएं.......
बलात्कारियों को तो सीधे फांसी पर लटकाये जाने का कानून होना चाहिए ..या फिर जनता के हवाले छोड़ देना चाहिए सारे आम दण्डित करने के लिए ...फिर देखो ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-08-2016) को "तिरंगा बना देंगे हम चाँद-तारा" (चर्चा अंक-2428) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
मित्रतादिवस और नाग पञ्चमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बह्त धन्यवाद।
हटाएंAm speechless, hats of to you....
जवाब देंहटाएंइतने अधिक सम्मान के लिए धन्यवाद, ज्योतिर्मोय!
जवाब देंहटाएंjyoti ji aapne Article me Rahul gandhi ki jagah Rajeev gandhi likh diya hai....kripya correct karen......
हटाएंअमूल जी, ध्यानाकर्षण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। वैसे आपने इतने मन से मेरा ब्लॉग पढ़ा उसके लिए दूबारा धन्यवाद।
हटाएंजय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 09/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
ब्लॉगर भाई कुलदीप जी, मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहूत धन्यवाद।
हटाएंबहुत सटीक बाते लिखी है देवीजी अपने भक्तो पर कारवाई की मांग क्यो नही करती । राहुल गांधी भी मिलने नही जाऐगे क्योंकि वे दलित नही है । यह व्यवस्था देश को बर्बाद कर देगी । गृह युद्ध होगा यह अब निश्चित हो रहा है
जवाब देंहटाएंज्ञान द्रष्टा जी, यहाँ पर देवी और भक्त का क्या मामला है, मेरी समझ में नहीं आया है। कृपया स्पष्ट करें।
हटाएंMujhe lagta hai inhone mayavati ko devi kaha hai aur unke voter ko bhakt kaha hai
हटाएंAapki sabhi baton se me sehmat hu....pata nahi kuch logo ke andar kesi gandi mansikta panap rahi hai....me nafrat karta hu in sabhi se.....yeh log jo esa karte hain, purush to nahi kahe ja sakte kyoki purush ka ek kartavya mahilayon ki ijjat karna bhi hai.....ese log jaanvar bhi nahi kahe ja sakte kyoki janvar bhi esa ghinauna karya nahi karte.....ese log janvar se bhi nimn sreni ke hain.....aur jo log is par rajneeti karte hain veh repist se bhi nimn sreni ke hain.....beemar hote hain ese log....are koi to ilaz karo inka.....kyoki ilaz ek hi hai aur vo hai....FANSHI.....
जवाब देंहटाएंJyoti ji you have accurately listed the reason, and those doesn't always have a correlation with how a woman dresses. It is the mindset that needs to be altered in Bulandshahar or any other place for women to be safe.
जवाब देंहटाएंJyoti ji you have accurately listed the reason, and those doesn't always have a correlation with how a woman dresses. It is the mindset that needs to be altered in Bulandshahar or any other place for women to be safe.
जवाब देंहटाएंआँखें झुक जाती हैं शर्म से ... कितना घिनोना हो गया है इंसान और उस पे जो प्रतिक्रियाये आती हैं वो तो और भी शर्मनाक होती हैं ...
जवाब देंहटाएंहमारा संविधान ही दोषपूर्ण है जिसमें लिखा है कि चाहे 100 अपराधी छूट जाएँ पर एक निरपराध को सजा नहीं मिलनी चाहिए। संविधान निर्माताओं ने इस बात पर भी विचार नहीं किया कि संदेह का लाभ केवल अपराधी को ही क्यों पीड़ित को क्यों नहीं और अपराध साबित करने की जिम्मेदारी पीड़ित की ही क्यों अपराधी पर स्वयं को निरपराध साबित करने की जिम्मेदारी क्यों नहीं।
जवाब देंहटाएंIt was very useful for me. Keep sharing such ideas in the future as well. This was actually what I was looking for, and I am glad to came here! Thanks for sharing the such information with us.
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