शब्द...जिसकी वजह से इंसान या तो दिल में उतर जाता है या दिल से उतर जाता है। ऐसे हजारों शब्दों में मेरे पसंदिदा तीन शब्द...माँ, क्षमा और खुशी
शब्द... जिसे मस्तिक बुनता है और जुबां बया करती है,
शब्द... जो ब्रम्हा है और विज्ञान भी,शब्द...जो प्रकाश है और ज्ञान भी,
शब्द...जिसकी वजह से इंसान या तो दिल में उतर जाता है या दिल से उतर जाता है। ऐसे हजारों शब्दों में से सिर्फ तीन शब्दों को चुनना, फटे गुब्बारे में हवा भरने जैसा कठीन काम है! फिर भी यदि चुनना ही है, तो मैं चुनुंगी...
माँ... एक ऐसा शब्द है, जो न मस्तिक बुनता है और न जुबां बया करती है,
माँ... जो खुद ब्रम्हा है और विज्ञान भी, जो खुद प्रकाश है और ज्ञान भी,
माँ...जो आत्मा से निकलता है और वही उसे उच्चारित भी करती है,
माँ... जो रुप से छोट सही किंतु किरदार में ब्रम्हांड से बडा है,
माँ...जिसे कोई उपमा न दी जा सके,
माँ...पुर्ण शब्द है, ग्रंथ है,
माँ...मंत्र बीज है, हर सृजनता का आधार है,
माँ... वह है जिसको हम जिंदगी के पहले से जानते है,
माँ...स्नेह से सजी और ममता से भरी होती है,
माँ... त्याग और प्यार की सच्ची मुरत होती है,
माँ...धरती पर भगवान का दुसरा रुप होती है
माँ...हमारी गलती पर भी बहुत ही प्यार से हमें समझाती है। फिर भी हम न सुधरे तो हमें सजा तो देती है लेकिन उस सजा पर हमसे ज्यादा वो ही दु:खी होती है। हमारे द्वारा उसे दु:ख पहुंचाने पर भी उसके दिल से हमारे लिए सिर्फ और सिर्फ दुआए ही निकलती है!
संक्षेप में, माँ... तो बस माँ होती है!!!

जब हम किसी व्यक्ति को क्षमा करते है, तो मन को उसके लिए निरंतर चलने वाली नकारात्मक भावनाओं के बोझ से मुक्त करते है। फिर क्रोध, शिकायत आदि पर खर्च कि जाने वाली उर्जा का इस्तेमाल जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर सकते है।
क्षमा एक ऐसी औषधी है, जो गहराई तक जाकर घावों का इलाज करती है। क्षमा न करने से महत्वपुर्ण हार्मोन का बनना बंद हो जाता है। संक्रमण और अन्य शारीरिक बिमारिओं जैसे मौसमी सर्दी, जुकाम आदि बिमारिओं से लडनेवाली कोशिकाओ को भी बाधा पहुंचती है।
वास्तव में, क्षमा ही तो नहीं सिखी हमने! कौरव-पांडव एक दुसरे को क्षमा कर देते तो महाभारत का युद्ध ही नहीं होता!!
किसी को क्षमा न करने से उस व्यक्ति से ज्यादा नुकसान हमारा स्वयं का होता है। वास्तव में हम उस व्यक्ति को निरंतर याद करते है जो हमें दु:ख पहुंचाता है। अत: मेरा तो यही मंत्र है कि "जिसकी उसके साथ, अपने से जितना अच्छा हो सके उतना करते जाओ!"

जिंदगी का हर पल खुशियों से भरा है। छोटी-छोटी बातों में भी बड़ी-बड़ी खुशियां छिपी होती है। सर्दियों में धुप भरा दिन खुशी है, तो गर्मी में पानी के छिटें खुशी है। भुख में करारी गरम रोटी खुशी है तो अचानक कई सालों बाद बचपन का कोई दोस्त या सहेली का मिल जाना खुशी है। खुशी बाजार में मिलनेवाली चिज नहीं है, जो पैसे से खरीद सके।
खुशी वह है, जो हमने किसी को बिना मांगे दी और उसका चेहरा चमक गया। वास्तव में जब हमारी वजह से किसी और के चेहरे पर खुशी की हल्की सी चमक भी आती है, तो उस क्षण को महसुस करिए... उस वक्त उस व्यक्ति से भी ज्यादा खुशी हमें मिलती है। हमारे मन को सकुन का एहसास होता है कि हमारी वजह से इस व्यक्ति के चेहरे पर खुशियां आई है!
आज जो तनाव बढ़ रहा है, उस का कारण यह है कि हम खुशी देना, पहचानना और पाना भुल रहें हैं। हमें करंसी नोट या क्रेडिट कार्ड पर इतना भरोसा है कि हम यह भुल रहें हैं कि असली खुशी उनके बिना भी मिल सकती है। बिना साधनों के भी खुशी मिल सकती है। यह दर्शन नहीं हकीकत है, जो एक सर्वे में सामने आई है। छोटा सा देश वेनेज़ुएला, विश्वशक्ती अमेरिका से कहीं ज्यादा खुश हैं। लेकिन खुशी को पाने के अवसर हमें स्वयं ढुंढने पडते है। ''मैं'' से उपर उठकर दुसरों के लिए भी सोचना पडेगा, कुछ करना पडेगा। हर संबंधों में मोलभाव नहीं हो सकता। "मैं उसके लिए कुछ क्यों करुं, जब उसने मेरे लिए कुछ नहीं किया'' यह कहना भुलना होगा। तब हमें सहीं मायने में खुशी मिलेगी। जीवन में हर कोई खुश रहना चाहता है। लेकिन खुशी यूं ही नसीब नहीं होती। खुश रहना है तो सबसे पहले खुशी बांटनी होगी। मैं खुशियां बांटना चाहती हूं। मेरी मर्यादाओं के चलते चाहे वे छोटी-छोटी ही क्यों न हो!
जरा प्यार से मुस्कराइए! मुस्कराइए न, मुस्कराइए न प्लीज!! हां, ऐसे ही... केवल अभी नहीं, हमेशा.......!
Keywords: words, Mother, Happiness, forgiveness