खाटू श्याम जी का जीवन परिचय और श्याम कुंड का रहस्य

खाटू श्याम को श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है। खाटू श्याम बाबा कौन है? वे कैसे हारे का सहारा बने? खाटू श्याम नाम कैसे पड़ा? जानिए...

खाटू श्याम जी का जीवन परिचय (Khatu Shyam ji story in Hindi)

खाटू श्याम
को भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है। खाटू श्याम बाबा कौन है? वे कैसे हारे का सहारा बने? बर्बरीक से खाटू श्याम नाम कैसे पड़ा? जानिए खाटू श्याम बाबा का पूरा जीवन परिचय... 

खाटू श्याम बाबा कौन है- Who is khatu shyam ji in hindi 
श्याम बाबा घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं। भीम और उनकी पत्नी हिडिंबा बर्बरीक के दादा दादी थे। कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया। बचपन से ही वे वीर योद्धा थे। उन्होंने युद्धकला अपनी माँ और श्रीकृष्ण से सीखी थी। बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वाद स्वरुप भगवान शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए। जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। तीनों बाणों की वजह से बर्बरीक अजेय हो गया था। 

वे हारे का सहारा कैसे बने? 
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने युद्ध में भाग लेने के लिए अपनी माँ से अनुमति मांगी। मौरवी ने अनुमति तो दे दी लेकिन कहा कि बेटा युद्ध में जो भी पक्ष कमजोर होगा, जो हार रहा होगा, तुम उसकी ओर से युद्ध लड़ना, हारे का सहारा बनना। क्योंकि मौरवी को लगा था कि पांडवों की सेना कम है, इसलिए कहीं वे युद्ध में हार न जाये। मौरवी का यह वचन कलयुग में संसार भर के लोगों के कल्याण का कारण बना। 

खाटू श्याम बाबा का नाम कैसे मिला? 
जब वे महाभारत युद्ध भूमि की ओर जा रहे थे, उस समय उनकी भेंट श्रीकृष्ण से हुई। श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में कौरव पक्ष की हार होगी और ऐसे में अगर बर्बरीक कौरव पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेगा तो पांडव ये युद्ध जीत नहीं सकेंगे और धर्म की हार हो सकती है। बर्बरीक को रोकने के लिए श्रीकृष्ण गरीब ब्राह्मण बनकर उसके सामने आए। और बर्बरीक की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उससे कहा कि सिर्फ़ तीन बाणों से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है? बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को खत्म करने में सक्षम है और उसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकस में आ जायेगा। अतः तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है। 

ब्राह्मण ने बर्बरीक (Barbarik) से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए। बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया। उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा। असल में कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था। बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है। बर्बरीक बोले, ''हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा!'' 
तब ब्राह्मण ने अपना पैर हटा लिया और बाण ने उस आखिरी पीपल के पत्ते को भी बेध लिया। पांडवों की और धर्म की जीत के लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका कटा हुआ सिर दान में मांग लिया। इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मण देव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों। भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए वचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया। 
रात भर भजन-पूजन कर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा करके, बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना शीश श्रीकृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया। जहां से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें। इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया। 

महाभारत का महायुद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए। विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है। श्रीकृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए। तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्रीकृष्ण को जाता है, क्योकि यह सब कुछ श्रीकृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही संभव हुआ। विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी। 

बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे। श्रीकृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान है। मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे। कलयुग में आप कृष्ण अवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे। मान्यता है कि खाटू श्याम जी का धाम वही स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का कटा सिर रखा था। एक कहानी के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया था। इसलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान में खाटू नगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है। 

हर साल लगता है खाटू श्याम मेला 
प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्याम जी का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटू श्याम जी, मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी इन सभी नामों से खाटू श्याम को उनके भक्त पुकारते हैं। खाटू श्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। बड़े से बड़े घराने के लोग आम आदमी की तरह यहां आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। 

श्याम कुंड का रहस्य-
श्याम कुंड का इतिहास एक कहानी के रूप में बताया जाता है। प्राचीन समय में इस कुंड के स्थान पर एक बहुत बड़ा टीला था। यहाँ पर एक ग्वाला अपनी गाय चराने के लिए लाया करता था। एक गाय हर रोज अपने झुंड से अलग होकर टीले के एक स्थान पर आती। और जैसे ही गाय उस स्थान के पास आती तो उसका दूध टपकने लग जाता था। जब ग्वाले ने ये सब देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि इस जगह पर ऐसा क्या है जो गाय यहां पर आते ही खुद ही दूध देने लगती है। उसी रात ग्वाले को स्वप्न में श्याम बाबा ने कहा कि तुम्हारी गाय का दूध शक्ति से मैं पीता हूँ। मैं जमीन में मूर्ति के रूप में दबा हुआ हूँ। यहाँ के राजा से कह दो कि यहाँ कुंड खुदवाकर मेरी मूर्ति को निकलवाये। समस्त जनता मुझे श्याम नाम से पूजेगी। जब राजा को यह बात बताई गई तो राजा ने उस स्थान पर खुदाई करवाई। उस खुदाई में बर्बरीक का शीश निकला जिसकी आज श्याम नाम से पूजा की जाती है। बर्बरीक का शीश निकालने के बाद गड्ढे में से पानी निकलने लगा। जो आज तक निरंतर निकल रहा है। बाद में खुदाई की जगह पर कुंड बनवाया गया जिसे आज श्याम कुंड के नाम से जाना जाता है। यह कुंड बारह महीने पवित्र जल से भरा रहता है। इस कुंड में स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्यों की प्राप्ति होती है।
फिर मिलती हूं अगले वीडियो में तब तक खुद का ध्यान रखिए और खुश रहे।

राजस्थान (Rajasthan) के सीकर (Sikar) जिले के खाटू कस्बे में स्थित खाटूश्यामजी (Lord Khatu Shyam) मंदिर का लक्खी मेला (Lakkhi Mela 2022) इस बार 6 मार्च 2022 से शुरू होगा, जो 15 मार्च 2022 तक चलेगा। इसे खाटू फाल्गुन मेला (Khatu Falgun Mela) भी कहा जाता है। 

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COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. ज्ञानवर्धक पोस्ट !

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  2. बहुत बहुत सुन्दर ज्ञान वर्द्धक प्रसंग |

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  3. श्याम बाबा का गुणगान कितना भी सुनो और पढ़ो, कम ही लगता है। अपने भक्तों के बीच 'हारे का सहारा' नाम से लोकप्रिय यह सांवला सेठ राजस्थान में खाटू धाम में विराजता है। फागुन महीने में तो देश विदेश से लाखों भक्त दर्शन को आते हैं। विशेष बात यह कि जब आपकी यह पोस्ट मुझे मेल से प्राप्त हुई तब मैं एक परिचित के घर श्याम बाबा के कीर्तन से ही लौटी थी।

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  4. बहुत ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक लेख। मैने तो खाटू श्याम बाबा जी का नाम सुना था आज पहली बार जाना उनके बारे में।
    जय हो बाबा खाटू श्याम जी की🙏🙏

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नाम

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आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल: खाटू श्याम जी का जीवन परिचय और श्याम कुंड का रहस्य
खाटू श्याम जी का जीवन परिचय और श्याम कुंड का रहस्य
खाटू श्याम को श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है। खाटू श्याम बाबा कौन है? वे कैसे हारे का सहारा बने? खाटू श्याम नाम कैसे पड़ा? जानिए...
https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhijwFBF0M5K9vOsjK8hiXdl43Wt8Nqq_J5ChpPjdypIBHfHpBc341nvaM0nwou5ZwFIZbR0cnZMNtlrBxyDv9rYWTRjqPbgrH0PIs1XyHUIE9s_rCFbHUc7aEdEj811es4lbSY_4yvgyJFL9Z8Ofn78V0glfIWoNGVQvq9WAmrPmgSCiBHiWdwWlTZKw=w400-h266
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आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल
https://www.jyotidehliwal.com/2022/03/Khatu-Shyam-ji-story-in-Hindi.html
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