दुनिया की हर औरत माँ बनने का दर्द सहती है।इसमें अनोखा क्या है? ऐसे ताने सभी मांओं को सुनने पड़ते है। काश, नवजात बच्चे की माँ के दर्द को हम समझ पाते!!
दुनिया की हर औरत माँ बनने का दर्द सहती है...तुमने ऐसा कौन सा अनोखा कार्य किया है...यह तो हर औरत करती है...ऐसे ताने लगभग सभी मांओं को सुनने पड़ते है। साथ ही में हम यह भी जानते है कि माँ बनना बहुत ही मुश्किल कार्य है। क्योंकि एक बच्चे को जन्म देते समय महिला को 20 हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द होता है। महिलाओं को इस समय 57 डेल (दर्द मापने की इकाई) दर्द होता है। जबकि पुरुषों की दर्द सहने की क्षमता ही सिर्फ 45 डेल होती है। 45 डेल से ज्यादा दर्द होने पर पुरुष की मौत भी हो सकती है। यह कड़वी सच्चाई जानते हुए भी एक नवजात बच्चे की माँ के दर्द को हम समझ ही नहीं पाते या जानबूझकर समझना ही नहीं चाहते!
आज मैं बच्चे के माँ के दर्द की बात इसलिए कर रहीं हूँ क्योंकि हाल ही में कर्नाटक के पूर्व सीएम और बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा की नातिन सौंदर्या (yediyurappa granddaughter soundarya) ने 28 जनवरी को प्रसव के बाद होने वाले डिप्रेशन, पोस्टपार्टम डिप्रेशन से तंग आकर आत्महत्या कर ली। येदियुरप्पा के परिवार को पता था कि सौंदर्या इस बीमारी से जूझ रही थी। इसलिए आत्महत्या की सही वजह पता चल सकी। नहीं तो कोई यह बात मानने को तैयार ही नहीं होता कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन (postpartum depression) से तंग आकर सौंदर्या जैसी पढ़ी लिखी महिला जो खुद एक डॉक्टर थी आत्महत्या कर सकती है! 4 महीने पहले ही उसने अपने बच्चे को जन्म दिया था। जब हमारे देश मे डिप्रेशन को ही बिमारी नहीं माना जाता तो माँ बनने के बाद होने वाली तकलीफ़ को हम इतनी बड़ी परेशानी या समस्या मान ही नहीं सकते कि जिसकी वजह से कोई अपनी जान ले ले!
क्यों इतना बड़ा है नवजात बच्चे की माँ का दर्द?
• महिला ने यदि बेटे को जन्म दिया तो घर के लोग उस बच्चे में ही खो जाते है। थाली पीटी जाती है। ख़ुशी के मारे लड्डू बांटे जाते है। सोशल मीडिया पर बच्चे की फोटो शेयर की जाती है। लेकिन उस महिला को अकेली छोड़ दिया जाता है जिसने 20 हड्डियां एक साथ टूटने के जितना दर्द सहन करके बच्चे को जन्म दिया है! और यदि महिला ने बेटी को जन्म दिया है तो कई घरों में आज भी उस महिला के खान पान तक पर ध्यान नहीं दिया जाता।
• डिलीवरी के बाद महिला के शरीर का एक हिस्सा बच्चे के रूप में अलग होता है जिसे वह 9 महीने अपने शरीर के अंदर लिए घूम रहीं थी। उसे वह जगह खाली लगती है। उसे स्वयं को समझ में ही नहीं आता कि उसके साथ क्या हो रहा है?
• महिला को कई प्रकार के डर सताने लगते है जैसे कि कहीं वह मोटी तो नहीं हो जाएगी...कहीं वह बदसूरत तो नहीं दिखने लगेगी...कहीं उसके पति का उसके प्रति आकर्षण कम तो नहीं हो जाएगा...क्या वह एक अच्छी माँ बन पायेगी...कहीं उसे अपनी मौजूदा नौकरी छोड़नी तो नहीं पड़ेगी...आदि।
• गर्भावस्था के बाद पहले ही महिला शारीरिक रूप से कमजोर होती है, ऊपर से उसे अकेलेपन से भी जुझना पड़ता है। ऐसे वक्त वो किसी से बात करना चाहती है। किसी के साथ अपने एहसास को बांटना चाहती है। लेकिन उसे बीमार समझ कर आराम करने के लिए अकेले छोड़ दिया जाता है। कई घरों में तो बच्चे के जन्म के बाद छुआछूत के नाम पर कुछ दिनों तक महिला को अलग कमरे में सबसे दूर रखा जाता है।
• आजकल संपन्न घरों की महिलाओं को एसी की आदत होती है। डिलीवरी के बाद एसी तो दूर की बात कुछ लोग महिला को पंखा भी नहीं चलाने देते। जिस महिला को एसी की आदत है उस महिला को इतने शारीरिक कष्टों में बिना पंखे के रहने को मजबूर किया जाता है। जबकि आजकल डॉक्टर खुद कहते है कि शिशु के कमरे में एसी का तापमान 23 और 26 डिग्री सेल्सियस पर सेट कर एसी चालू रख सकते है।
• वह खाना खाने बैठती है उसी वक्त बच्चे को पॉटी आती है। कई बार बच्चा रात-रातभर सोने नहीं देता। बच्चा तो दिन को सोकर अपनी नींद पूरी कर लेता है। लेकिन माँ तो दिन में नहीं सो सकती न। नींद पूरी न होने से वह चिड़चिड़ी हो जाती है।
• मुझे कुछ हुआ तो बच्चे को भी हो जाएगा इसलिए वह पसंद का खाना भी नहीं खा सकती। बच्चे को थोड़ी सी सर्दी खांसी भी हुई तो घरवाले माँ को ही दोषी मानते है।
• शोध बताते है कि बच्चे को थोड़ी सी भी कोई परेशानी होती है तो मजबूत से मजबूत महिला भी घबरा जाती है।
एकल परिवारों के कारण बच्चे के परवरिश संबंधित जानकारियों का अभाव
पहले संयुक्त परिवारों में बच्चे आसानी से पल जाते थे। नई माँ को बच्चें के परवरिश संबंधित जानकारी न होने पर घर की बुजुर्ग महिलाएं सब संभाल लेती थी। लेकिन अब एकल परिवारों के चलते ये सब बातें बताने के लिए घर में बुजुर्ग महिलाएं नहीं होती। गूगल बाबा से पूछते पूछते बेचारी थक जाती है। हर सवाल का जबाब गूगल बाबा सही और जल्दी से बता भी नहीं सकता। क्योंकि गूगल बाबा के पास हर सवाल के कई जबाब रहते है और इन जबाबों में सही जबाब कौन सा है इसका फैसला लेने में उसका बहुत सा समय चला जाता है। जैसे कि यदि बच्चे को सर्दी खांसी हो गई हो तो तुरंत में क्या दे...बच्चा जोर जोर से रो रहा हो और चुप ही न हो रहा हो तो क्या करे...हर छोटी छोटी बात के लिए डॉक्टर के पास तो नहीं ले जा सकते न। इन सब बातों से वह घबरा जाती है।
दोस्तों, सोचने वाली बात यह है कि एक बड़े राजनेता की नातिन, पति डॉक्टर और खुद भी डॉक्टर होने के बावजूद सौंदर्या किस दर्द से गुजरी होगी, जो उसने अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली। सौंदर्या के केस से सबक लेकर काश, अब तो भी हम नवजात बच्चे की माँ का दर्द समझने की कोशिश करे ताकि आगे से किसी भी सौंदर्या को पोस्टपार्टम डिप्रेशन की वजह से अपनी जान न लेनी पड़े!!
ज्योति, राजनेताओं के घर में कैसे-कैसे तनाव होते हैं, इसका हम तुम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते. तुमने सौंदर्या की आत्महत्या को अनावश्यक रूप से प्रसव-पीड़ा से जोड़ा है.
जवाब देंहटाएंप्रसव-पीड़ा से या उसकी आशंका मात्र से कोई महिला आत्महत्या नहीं करती और फिर सौंदर्या तो ख़ुद एक डॉक्टर थी जो कि आए दिन हॉस्पिटल में महिलाओं को प्रसव-पीड़ा पर विजय प्राप्त करते हुए देखती होगी.
यह सही है कि हमारे देश में गर्भवतियों की और प्रसव के बाद माताओं की समुचित देखभाल नहीं की जाती और पुत्र को जन्म देने वाली तथा कन्या को जन्म देने वाली माता के मान-सम्मान में, सुख-सुविधा में, अंतर किया जाता है लेकिन फिर भी कोई इसके कारण आत्महत्या कर ले, ऐसी बात पर विश्वास नहीं होता.
गोपेश भाई, मैं ने अनावश्यक रूप से सौंदर्या की मौत को प्रसव पीड़ा से नही जोड़ा है। मैं ने वही कहा जैसी खबरे मीडिया में थी! वैसे सही कहा आपने जिस देश मे जनसंख्या इतनी तेजी से बढ़ रही हो कि डर लगने लगा है कि कही हम चीन को भी पीछे न छोड़ दे। उस देश में एक डॉक्टर महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन जैसी बीमारी से तंग आकर आत्महत्या करे यह बात हजम ही नहीं होती न!
हटाएंलेकिन मुझे लगता है कि जिस तरह आज बच्चे लगभग दसवीं के बाद से ही पढ़ाई हेतु घर से बाहर रहे है चाहे वह लड़का हो या लड़की तो उन्हें बच्चे के परवरिश संबंधी जानकारियां न के बराबर होने से दिक्कते आ सकती है। हर महिला माँ बनती है तो इन कार्य को समाज बहुत ही आसान समझता है। जिनका ही नतीजा है पोटपार्टम डिप्रेशन।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-02-2022) को चर्चा मंच "यह है स्वर्णिम देश हमारा" (चर्चा अंक-4336) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंachhi post
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक लेख । मुझे लगता है सौंदर्या को अपने पति तथा घर वालों की सपोर्ट की जगह उपेक्षा मिल रही होगी ।जिससे वह और टूट गई होगी । वर्ना आत्म हत्या का निर्णय कोई खेल नहीं होता । वह निराशा की चरम सीमा होती है।
जवाब देंहटाएंसही कहा आलोक भाई। यदि परिवार वालो का साथ मिले तो बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
हटाएंविचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंPostpartum Depression के बारे में अब धीरे-धीरे ही सही लेकिन भारत में भी बात की जाने लगी है. अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) की मानें तो हर 4 में से 1 महिला डिलीवरी के बाद तनाव (Post Delivery Stress) का शिकार हो जाती हैं....आपने इस मुद्दे पर बहुत सही लिखा ज्योति जी
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ज्योति जी बच्चे की देखभाल और जच्चे की अनदेखी आम बात है हमारे देश में...सौन्दर्या जैसी बहुत सी महिलाएं इस दौर से गुजरती हैं अपने आप से लड़ती हैं कोई जीत जाती हैं तो कोई ऐसे ही मौत को गले लगा लेती हैं लोग कहते हैं क्या कमी थी खाना नहीं आया इसे..पर वाकई बच्चे से ज्यादा जच्चे को देखभाल और सपोर्ट की जरूरत होती है..इस बात को हम सबको समझते हुए सभी को समझाना भी चाहिए
जवाब देंहटाएंलाजवाब लेख।
बहुत दिनों बाद आना हुआ बहुत सुन्दर सार्थक लेख पढ़कर अच्छा लगा
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