आखिर क्या कारण है की हम कहलाते तो अग्रवाल है लेकिन कुछ मामलों में हमारा आचरण निम्नतर हो जाता है? उपरोक्त सभी मामलों में सुधार हेतु क्या हम सब मिलकर कुछ प्रयत्न कर सकते है?
हम सभी को बहुत अभिमान है कि हम अग्रवाल है! होना भी चाहिये। कहा जाता है कि,
'अग्र' जो सदा आगे बढ़ता है,
'वाल' जो बालक कहलाता है।
आगे बढ़ जो दूसरों का कष्ट मिटाता है,
वहीं वास्तव में 'अग्रवाल' कहलाता है!!
ऐसे बहुत से कारण है जिस वजह से हम अपने आप को अग्रवाल होने की वजह से गौरवान्वित महसूस कर सकते है।
'अग्र' जो सदा आगे बढ़ता है,
'वाल' जो बालक कहलाता है।
आगे बढ़ जो दूसरों का कष्ट मिटाता है,
वहीं वास्तव में 'अग्रवाल' कहलाता है!!
ऐसे बहुत से कारण है जिस वजह से हम अपने आप को अग्रवाल होने की वजह से गौरवान्वित महसूस कर सकते है।
1) कुल इन्कम टैक्स में 24 % हिस्सा अग्रवालों का है।
2) कुल दान में 62 % हिस्सा अग्रवालों का है।
3) कुल 16000 गौशाला में 12000 अग्रवाल समुदाय व्दारा संचालित है।
4) भारत में कुल 50000 मंदिर अग्रवालों के है।
5) 46 % शेयर दलाल अग्रवाल है।
6) सभी प्रमुख न्यूज पेपर के मालिक अग्रवाल है।
7) भारत के विकास में 25 % योगदान अग्रवालों का है।
8) लगभग 80% से ज्यादा धर्मशालाए अग्रवाल समाज द्वारा संचालित होती है।
9) लगभग
35% चार्टर्ड अकाउंट,8% इंजीनियर,
10% डॉक्टर,
21% कंपनी सेक्रेटरी,
21% कॉस्ट एकाउंटेंट्स,
7% एम बी ए,
3% वकील अग्रवाल है।
जबकि कुल अग्रवाल समुदाय की भारत में जनसंख्या सिर्फ 1 % है। हमें यह बात समझनी होगी कि 'अग्रवाल' केवल एक जाती नहीं, एक सभ्यता है...एक संस्कृती है...एक दर्शन है! इन्हीं सब कारणों से हम शान से कह सकते है की हम अग्रवाल है। कोई भी व्यक्ति, कोई भी समाज, कोई भी राष्ट्र भौतिक दृष्टी से कितना भी संपन्न क्यों न हो पूजनीय नहीं होता। पूजनीय होते है उसके आदर्श। भारत विश्व गुरु था। इसलिए नहीं कि वह सोने की चिडियां था। अपितु इसलिए कि 'वसुधैव कुटुंंबम' की भावना से पोषित वैदिक आचरण था उसके पास! हम ऐसा क्यों सोचते है कि सिर्फ अग्रवाल होने मात्र से हम मेंं कोई कमी नहीं हो सकती? नजर डालते है उन मामलों पर जिन मामलों में अभी भी हम में सुधार की गुंजाइश बाकी है।
घटना 1 ) - एक बार ईद के समय मैं भोपाल में थी। मुझे वहांपर ईदगाह मस्जिद में मुस्लिम भाइयों को नमाज अदा करते देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ईद के दिन अलसुबह से ही हजारों की संख्या में मुस्लिम भाई चारों दिशाओं से मस्जिद की तरफ आ रहे थे। लेकिन चारों ओर शांति का माहौल था। सभी चुपचाप बिना किसी भी शोरगुल के मस्जिद की ओर जा रहे थे। मस्जिद में सभी एक साथ नमाज हेतु झुके। जैसे एक साथ झुकने की सभी ने रिहर्सल की हो! उन्होंने नमाज अदा की, एकदूसरे के गले मिले, अपना-अपना आसन उठाकर वापस रवाना हो गए। और वो भी बिना किसी शोरगुल के! इतने सारे लोग एक ही जगह पर जमा होने पर भी इतनी शान्ति? अचानक मेरे आंखों के सामने अपने त्योंहारों का नजारा आ गया। हमारा एक भी त्योंहार ऐसा नहीं है जिसमें शैकड़ों की संख्या में लोगों के जमा होने पर इतनी शांति रहती हो! इतने शांततामय वातावरण में पूजा पाठ होता हो!
हजारों लोगों के जमा होने पर भी एकदम शांततामय वातावरण में पूजा कैसे की जाती है ये बात क्या हम उनसे सिख नहीं सकते?
घटना 1 ) - एक बार ईद के समय मैं भोपाल में थी। मुझे वहांपर ईदगाह मस्जिद में मुस्लिम भाइयों को नमाज अदा करते देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ईद के दिन अलसुबह से ही हजारों की संख्या में मुस्लिम भाई चारों दिशाओं से मस्जिद की तरफ आ रहे थे। लेकिन चारों ओर शांति का माहौल था। सभी चुपचाप बिना किसी भी शोरगुल के मस्जिद की ओर जा रहे थे। मस्जिद में सभी एक साथ नमाज हेतु झुके। जैसे एक साथ झुकने की सभी ने रिहर्सल की हो! उन्होंने नमाज अदा की, एकदूसरे के गले मिले, अपना-अपना आसन उठाकर वापस रवाना हो गए। और वो भी बिना किसी शोरगुल के! इतने सारे लोग एक ही जगह पर जमा होने पर भी इतनी शान्ति? अचानक मेरे आंखों के सामने अपने त्योंहारों का नजारा आ गया। हमारा एक भी त्योंहार ऐसा नहीं है जिसमें शैकड़ों की संख्या में लोगों के जमा होने पर इतनी शांति रहती हो! इतने शांततामय वातावरण में पूजा पाठ होता हो!
हजारों लोगों के जमा होने पर भी एकदम शांततामय वातावरण में पूजा कैसे की जाती है ये बात क्या हम उनसे सिख नहीं सकते?
घटना 2 ) - एक बार अमरकंटक के गुरुद्वारे में जाना हुआ। गुरुद्वारे में उनके गुरु ने गुरुग्रंथसाहेब का पठन किया। पुरे हॉल में सुई भी गिरे तो आवाज हो इतनी शांतता थी। हम जाते तो है भागवत सुनने लेकिन हमारा ध्यान भागवत सुनने में कम और अन्य बातों की तरफ ज्यादा रहता है। सिर्फ सामने बैठे लोग मजबूरन कम बातें करते है। पीछे तो सब चलता है! लेकिन गुरुद्वारे में सबसे पीछे बैठे लोग भी बिलकुल चुपचाप बैठे थे। पूजा-पाठ होने के बाद सभी एक बार खड़े हो गए। फिर अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए। तीन-चार लोगों ने सभी के पास जाकर प्रसाद का वितरण किया। प्रसाद का इतनी शांततामय तरीके से वितरण मैंने मेरे जीवनकाल में पहली बार देखा। हमारे मंदिरों में जहां सौ-पचास लोग जमा हुए नहीं की प्रसाद के लिए धक्का-मुक्की होने लगती है।
मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि जब हम अपने आप को अग्र याने श्रेष्ठ कहते है तो प्रसाद वितरण के समय क्या हम शांति से अपनी बारी आने का इंतजार नहीं कर सकते?
सिंदी समाज वालों की जब झूलेलाल जयंती आती है तब पुरे सिंदी समाज के सभी प्रतिष्ठान, सभी दुकाने बंद रहती है। जयंती में लगभग सौ फीसदी उपस्थिति रहती है। लेकिन जब हमारी अग्रसेन जयंती आती है तब कितने लोग दुकाने बंद रखते है? जब बाबासाहेब आम्बेडकर की जयंती की रैली निकलती है तो तब उस रैली की विशालता देखते ही बनती है। उस वक्त मन में आता है कि हमारी अग्रसेन जयंती की शोभायात्रा में इतने लोग क्यों नहीं रहते? एक दिन काम पर न जाने से या दुकाने बंद रखने से जितना नुकसान हमारा होता होगा उतना ही नुकसान इन लोगों का भी तो होता होगा? फिर जयंती के दिन हमारी ही उपस्थिति कम क्यों रहती है?
हमें अपने घरों में कामवाली बाई भी रखना हो तो हम पहले उसकी जात पूछते है, आखिर क्यों? मुझे लगता है कि यदि हम इंसान को इंसान भी नहीं समझते तो हमें अग्र कहलाने का हक नहीं है।
आखिर क्या कारण है की हम कहलाते तो अग्रवाल है लेकिन कुछ मामलों में हमारा आचरण निम्नतर हो जाता है? उपरोक्त सभी मामलों में सुधार हेतु क्या हम सब मिलकर कुछ प्रयत्न कर सकते है? हमें अपने घरों में कामवाली बाई भी रखना हो तो हम पहले उसकी जात पूछते है, आखिर क्यों? मुझे लगता है कि यदि हम इंसान को इंसान भी नहीं समझते तो हमें अग्र कहलाने का हक नहीं है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-09-2014) को "जिसकी तारीफ की वो खुदा हो गया" (चर्चा मंच 1744) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर प्रस्तुति , ज्योति जी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 23 . 9 . 2014 दिन मंगलवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
बहुत अच्छी और सच्ची पोस्ट
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रश्न उठाये हैं आपने
ये सन्देश या सवाल हर अग्रवाल तक पहुंचना चाहिये ताकि हम सब और बेहतर हो/कर सकें।
प्रणाम
प्रेरक आलेख, कमोवेश हिंदू के सभी जातियों में ये समस्याएं हैं. जरुरत है एक सच्ची पहल की.
जवाब देंहटाएंहिन्दू रीतियों पर एक विचारात्मक व सार्थक प्रश्न किया है , ज्योति जी। सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पल्लवी जी...
हटाएंHam agrwalon k sath samaj mai bahut bura vhyvahar hota hai , kya ek agarwal ka ladka foji nhi bansakta btao mujhe
जवाब देंहटाएंफौजी कोई भी बन सकता हैं चाहे वो कोई भी जात का क्यों न हो।
हटाएंSahi kaha aapni jyoti ji, hamari asli pahchan insan ki hi hai. Aapki is bhavna ko dil se salam.
जवाब देंहटाएंKripya inhen bhi dekhen: Whatsapp plus vs gbwhatsapp , Games like stick war legacy