क्या हुआ यदि हमारे पास मंदिरो में चढ़ाने के लिए लाखों रूपये नही है। लेकिन यदि हम मरणोपरांत नेत्रदान करते है तो मैं विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि हम ज्यादा पुण्य कमायेंगे।
"न कुछ लेकर आये थे, न कुछ लेकर जाएंगे।
हर इंसान चाहता है कि ऐसा कुछ करे कि मरने के बाद भी लोग उसे याद करे। लेकिन इसके लिए कुछ असाधारण काम करने होते है। जिंदगी यह मौका हर किसी को नहीं देती। लेकिन अंतिम समय में इंसान के मन में यह बात जरूर आती है कि काश, मैं भी कुछ असाधारण काम, कुछ अच्छे काम कर पाता/या कर पाती ताकि मेरा अगला जन्म सुधर जाता।
नेत्रदान का महत्व
नेत्रदान एक ऐसा दान है जिसमें अभी हमकों अपने पास से कुछ भी देना नही पड़ेगा, फिर भी हमकों मिलेगा जिंदगी भर का सुकून। कुछ दिन पहले पढ़ने में आया था कि एक आँख की कार्निया को चार भागो में विभाजित कर चार व्यक्तियों की आँखों में उसे सफल तरीके से प्रत्यारोपित करने में डॉक्टरों को सफलता मिली है। इस तरह एक व्यक्ति की दो आँखों से आठ व्यक्ति को रोशनी मिल सकती है। मरने के बाद हमारी दोनों आंखें जो जलकर खाक हो जाती है वे ही आँखें यदि आठ व्यक्ति की जिंदगी में रोशनी कर सकती है तो यह दुनिया का सबसे फायदेमंद सौदा होगा। जीते जी तो हमारे पास से कुछ भी नही गया और मरने के बाद तो किसी के भी साथ कुछ भी नहीं जाता। ऐसे में जीतेजी नेत्रदान का संकल्प लेकर हम थोड़ा तो सुकून प्राप्त कर ही सकते है। क्या हुआ यदि हमारे पास मंदिरो में चढ़ाने के लिए लाखों रूपये नही है। लेकिन यदि हम मरणोपरांत नेत्रदान करते है तो मैं विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि हम ज्यादा पुण्य कमायेंगे।
नेत्रों की आवश्यकता
नेत्रों की आवश्यकता
हमारे देश में प्रति हजार शिशुओंमे 9 शिशु नेत्रहीन जन्मते है। और देश में प्रति वर्ष 30 लाख लोगों की मौत होती है। यदि इन 30 लाख लोगों में से सिर्फ एक प्रतिशत याने सिर्फ 30 हजार लोगों ने भी नेत्रदान किया तो हमें हमारे देश में नेत्रहीन व्यक्ति खोजने पर भी नही मिलेगा। मध्यप्रदेश के नीमच का नाम 'उजली क्रांति' के लिए गिनीज बुक में दर्ज किया जा सकता है। 1975 से 2008 तक यहां पर 1633 लोग नेत्रदान कर चुके है।
गलत धारणाएं
आइए, अब हम इस बात पर गौर करे कि वे कौनसी गलत धारणाएं है जो हमे नेत्रदान जैसा पुण्य काम करने से रोकती है। पहली गलत धारणा यह है कि ईश्वर ने हमें सम्पुर्ण अंगों के साथ पृथ्वी पर भेजा है तो हमें भी ईश्वर के पास सम्पुर्ण अंगों के साथ ही जाना चाहिए। मुझे एक बात समझ में नही आती कि क्या ईश्वर ने हमको सशरीर पृथ्वी पर भेजा था? क्या हम सशरीर ईश्वर के पास जा पाएंगे, नही न? तो फिर हम इस मिट्टी मोल शरीर का सदुपयोग क्यों नही करते? दुसरी गलत धारणा यह है कि यदि हमने इस जन्म में नेत्रदान किया तो अगले जन्म में हम नेत्रहीन पैदा होंगे। अब तो हद हो गई !! हमारे चारों वेद, सभी शास्त्र, बाइबल, कुरान यही कहते है कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है। तो फिर यह नियम यहां क्यों लागु नही होता? ईश्वर की अदालत में कोई भ्रष्टाचार नही है। वहां कोई अंधेर नही है। फिर नेत्रदान के बदले में ईश्वर हमें नेत्रहीन क्यों पैदा करेंगे ? यदि हम मानते है कि ईश्वर है तो हमें ईश्वर के न्याय पर विश्वास करना चाहिए। इसलिए देर मत कीजिएगा। आज ही नेत्रदान का संकल्प लीजिए।
हां, नेत्रदान का सिर्फ संकल्प लेने से काम नही बनेगा। क्योंकि आंकड़े बताते है कि जितने लोग नेत्रदान का संकल्प लेते है उनमें से वास्तव में बहुत ही कम लोगों की आंखे काम आ पाती है। क्योंकि उन्होंने इसकी जानकारी अपने परिवार को नहीं दी थी। मैं और मेरे पतिदेव ने नेत्रदान का संकल्प लिया हुआ है। इसकी जानकारी हमने हमारे परिवार को दे दी है।
आंखों का दान कौन कर सकता है
• जीवित शख्स आंखों का दान नहीं कर सकता।
• यदि आपकी नजर कमजोर है, चश्मा लगाते हैं, मोतियाबिंद या काला मोतिया का ऑपरेशन हो चुका है, डायबीटीज के मरीज हैं तो भी आप आंखें दान कर सकते हैं। यहां तक कि ऐसे अंधे लोग भी आंखें दान कर सकते हैं, जिनके अंधेपन की वजह रेटिनल या ऑप्टिक नर्व से संबंधित बीमारी हैं और उनका कॉर्निया ठीक है।
• रेबीज, सिफलिस, हिपेटाइटिस या एड्स जैसी इन्फेक्शन वाली बीमारियों की वजह से जिन लोगों की मौत होती है, वे अपनी आंखें दान नहीं कर सकते।
• अगर किसी इंसान की मौत दूर-दराज के इलाके में होती है, जहां आई-बैंक वालों को पहुंचने में ज्यादा वक्त लग सकता है तो उनकी आंखों का दान मुमकिन नहीं है।
नेत्रदान करने का तरीका-
• मौत के छह घंटे के अंदर आई बैंक वाले बॉडी से आंखों को ले लेते हैं। इसलिए मौत के बाद करीबी लोगों को आई बैंक को तुरंत सूचित करना जरूरी है।
• जब तक आई बैंक वाले आएं, तब तक मरने वाले की दोनों आंखों को बंद कर देना चाहिए और आंखों पर गीली रुई रख देनी चाहिए। अगर पंखा चल रहा है तो बंद कर दें। मुमकिन हो तो कोई ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप मरने वाले की आंखों में डाल दें। इससे इन्फेक्शन का खतरा नहीं होगा। सिर के हिस्से को छह इंच ऊपर उठाकर रखना चाहिए।
• आई-बैंक से आकर डॉक्टर आंखों की कार्निया निकालते हैं। इससे आंखों में कोई गड्ढा नहीं पड़ता। देखने में आंखें पहले जैसी ही लगती हैं।
• चूंकि कॉर्निया में ब्लड वेसल्स नहीं होतीं इसलिए इसे किसी को भी लगाया जा सकता है। लगाने से पहले मरीज के साथ मैचिंग करने की जरूरत नहीं होती।
एक जगह हास्य के रुप में लिखा हुआ था-
"मरने के बाद भी हसीन लड़कियां देखनी है तो नेत्रदान करें।"एक जगह हास्य के रुप में लिखा हुआ था-
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विचारणीय और सार्थक आव्हान .....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत शुक्रिया मोनिका जी !
बहुत ही सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक आलेख,सादर।
जवाब देंहटाएंएकदम बढ़िया और उपयोगी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक कदम मानवता के लिए...संस्था के सदस्य 1 जनवरी 2015 नया साल नेत्र दान कर मनाएँगे।9977299315
जवाब देंहटाएंएक कदम मानवता के लिए...संस्था के सदस्य 1 जनवरी 2015 नया साल नेत्र दान कर मनाएँगे।9977299315
जवाब देंहटाएंGjb story
जवाब देंहटाएंहमे आँखो का दान अवश्य करना चाहिए नेत्र दान सबसे बड़ा दान है
जवाब देंहटाएंSo inspiring words ,it was amazing👌👍
जवाब देंहटाएंहमें नेत्र दान करना चाहिए एवं दुसरो को भी दान करने के लिए सलाह देना चाहिए|
जवाब देंहटाएंNice article, we are providing total free corneal transplantation to all and having surplus donated eyes.
जवाब देंहटाएंPlease give message to all.
Dr Ramesh MD corneal transplant surgeon.
Dr. Ramesh Ramesh super speciality eye and laser centre ludhiana
Website www.rameshvision.com
YouTube Dr Ramesh super speciality
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